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जो चाहूं वैसा बनूं कैसे

आखिर कैसे सुलझाएं यह पहेली और कैसे बढ़ें अपनी इच्छाओं को पूरा करने की राह पर...

By Srishti VermaEdited By: Published: Sat, 18 Mar 2017 12:35 PM (IST)Updated: Sat, 18 Mar 2017 12:45 PM (IST)
जो चाहूं वैसा बनूं कैसे
जो चाहूं वैसा बनूं कैसे

दोस्तो, हम जो बनना चाहते हैं, उसके लिए कोशिश जरूर करते हैं। पर जब समझ ही न पाएं कि वास्तव में हमें बनना क्या है, वही होती है सबसे बड़ी और शुरुआती मुश्किल। 

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साइंस या मैथ अच्छी है, तो डॉक्टर, इंजीनियर या वैज्ञानिक बनने की इच्छा होती है। अचानक लगता है कि आप क्रिकेट, टेनिस या फुटबॉल आदि खेल भी अच्छा खेलते हैं, इसलिए आगे इन खेलों में भी पहचान बनाने का बेहतर स्कोप है। आवाज भी अच्छी है, गाना भी गा लेते हैं। लोगों से बातें करने में भी माहिर हैं, तो कभी पाश्र्वगायक, रेडियो जॉकी, डबिंग आर्टिस्ट आदि बनने की सलाह भी मिल जाती है। सोशल मीडिया या टीवी पर किसी सफल व्यक्ति को देखकर उस जैसा बनने की ख्वाहिश भी होती है। लेकिन इतना सब कुछ चाहने के चक्कर में सब कुछ गड्ड-मड्ड होने लगता है। हम निर्णय नहीं ले पाते कि क्या चुनें या किस दिशा में आगे बढ़ें?

दरअसल, तकनीक और सूचनाओं के इस युग में रहते हैं, वह किसी फंतासी दुनिया जैसी भुलभुलैया लगती है। इसलिए अक्सर लुईस कैरोल के उपन्यास ‘एलिस इन वंडरलैंड’ की पात्र एलिस की तरह हम खुद को ऐसी दुनिया में घिरे हुए महसूस कर सकते हैं, जिससे निकल पाने का सही-सही रास्ता नहीं मिल पाता। हालांकि यह मुश्किल उनके लिए नहीं होती, जिन्हें पता होता है कि हमें किस दिशा में जाना है? उसके लिए खुद को तैयार कैसे करना है?

यूं होता है कोई करिश्मा
‘मैंने इतनी मेहनत की, पर पीछे रह गया और जो पढ़ने में मुझसे कमजोर था, वह आगे निकल गया, ऐसा कैसे हुआ?’ ऐसे खयाल यदि आपको भी आते हैं, तो यह समझना होगा कि पढ़ाई में अच्छा होना एक बात है और सबसे आगे निकलने की हुनर होना दूसरी बात। आपने देखा होगा कि अक्सर जो बच्चे स्कूल के दिनों में पढ़ाई में कमजोर होते हैं, वे आगे जाकर कामयाबी के सारे रिकॉर्ड तोड़ डालते हैं। यह भी देखा गया है कि जो शारीरिक रूप से असमर्थ होते हैं, वे आश्चर्यजनक रूप से असामान्य सफलता हासिल कर सबको चौंका देते हैं। स्कूल काउंसलर गीतिका कपूर के मुताबिक,‘यह सब महज संयोग नहीं, बल्कि आत्मबल का कमाल होता है। इसे मजबूत इच्छाशक्ति भी कह सकते हैं। यही हमें हार दिलाती है या असंभव लगने वाली जीत के लिए तैयार करती है।’ इसी बात पर पूर्व मैग्ससे पुरस्कार विजेता अंशु गुप्ता कहते हैं,‘आत्मबल से बेहतर दोस्त नहीं होता। अपनी रुचि को पहचानें, उस पर तमाम मुश्किलों के बाद भी कायम रहने की इच्छाशक्ति पैदा करें।’

कहां है आपकी मंजिल?
ड्रॉइंग सबकी अच्छी नहीं होती। फोटोग्राफी भी सभी नहीं कर सकते। शब्दों से कलाबाजी करने में भी हर कोई उस्ताद नहीं होता। आवाज भी सबकी कहां अच्छी होती है? हर गुण हर किसी में मौजूद नहीं होता है। लेकिन कुछ लोग दो या तीन या कई तरह के हुनर में माहिर होते हैं। आपमें भी ऐसी कई बातें होंगी, जो आपको दूसरों से अलग करती होंगी। उन्हें यूं ही न जाने दें। स्कूल काउंसलर गीतिका कपूर कहती हैं,‘स्कूल के दिनों में पढ़ाई का दबाव रहता है, लेकिन यही वह समय है कि आप अलग-अलग चीजों को जल्दी सीख सकते हैं। आगे चलकर यही सीख सबसे अधिक काम आती है। इसलिए जिसमें रुचि है, उसे गंभीरता से लें। उसे अधिक से अधिक एक्सप्लोर करें। क्या पता उन्हीं चीजों में छुपी हो आपकी मंजिल।’ यदि आप निर्णय नहीं कर पा रहे हैं कि किस दिशा में आगे बढ़ना है, तो इसके लिए दोस्तों के साथ-साथ अपने अभिभावक, शिक्षकों और काउंसलर आदि की मदद ले सकते हैं। उनसे अपनी रुचियों को शेयर करें। उनकी राय व लोगों के फीडबैक पर काम करें। लेकिन इन सबसे पहले आपको पता होना चाहिए कि आपकी पसंद क्या है! इसके लिए खुद की गतिविधियों-आदतों पर भी गौर करें। इसी से आगे का रास्ता निकलेगा।

आगे बढ़ते जाना है
‘हमने नहीं सोचा था कि गाने का शौक और दोस्तों के साथ बैंड बना लेने का शौकिया काम आज इतने बड़े मुकाम पर ले जाएगा। इससे यह बात साबित होती है कि फोकस्ड होकर आगे बढ़ने से ही मनचाही मंजिल मिल सकती है,’ कहते हैं यूट्यूब बैंड सनम के फाउंडर और गायक सनम पुरी। पिछले दिनों अभिनेता रितिक रोशन ने भी बड़े पते की बात कही, ‘मुश्किल जैसा कुछ भी नहीं होता। आपको यदि पता है कि करना क्या है, तो आपको उस क्षेत्र में मेहनत करनी चाहिए, अपना बेस्ट देना चाहिए। हमेशा याद रखें, अपना बेस्ट देने के अलावा हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं। बेस्ट देने का मतलब है पूरी ईमानदारी से अपनी कमियों पर काम करना और आलोचना, प्रशंसा से ज्यादा प्रभावित होने के बजाय आगे बढ़ते जाना।’ दोस्तो, जिस दिन आपको यह पता चल जाए कि किस दिशा में आगे बढ़ना है, तो तमाम दूसरे नकारात्मक खयालों को अपने मन से निकाल दें। साथ ही हमेशा अपना उत्साह बनाए रखें। इस विषय में अमेरिकी कवि और निबंधकार राल्फ वाल्डो इमर्सन ने एक सुंदर बात कही है। उनके मुताबिक,‘उत्साह ही वह इंजन है, जो मुश्किल परिस्थितियों से निकलने का हौसला देता है। काम के वक्त यह आपके मन-मस्तिष्क को ऊर्जा से भर देता है। आप लगातार सक्रिय रहते हैं। उत्साह के बिना हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते।’

काम की 4 बातें
-बेमन से या जबरन कोई काम कर रहे हैं, तो उससे शीघ्र मुक्त हों।
- जिज्ञासाओं को एक्सप्लोर करें। रिसर्च करें, अधिक से अधिक जानकारी जुटाएं।
-पैसे को पहली प्राथमिकता न बनाएं।
-नई चुनौती के लिए हरदम तैयार रहें।

मन में हो जीतने की जिद

अब तक के अपने खेल करियर में जो सबसे बड़ी बात मैंने सीखी है, वह यह कि दुनिया में कुछ भी संभव है और असंभव को पाने के लिए हमारे भीतर ही तमाम हथियार मौजूद हैं। उनका इस्तेमाल आप तभी कर पाते हैं, जब खुद पर भरोसा रखेंगे। कोच या काउंसलर, रिश्तेदार आदि तो सिर्फ मदद करते हैं, अपने आपको तो हमें खुद ही तैयार करना है। हार-जीत चलती रहती है। किसी एक जीत या हार को लेकर अपनी ऊर्जा नष्ट न करें। इच्छाशक्ति को जिद की हद तक ले जाएं, ताकि जो मंजिल आपने चुनी है, उस तक पहुंच सकें।- दीपा करमाकर, जिम्नास्ट

प्रस्तुति- सीमा झा

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