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नवगीत:शुष्क पत्तों की तरह

इक टके का स्वप्न देकर छीन ली है जान छीनकर संघर्ष

By Babita KashyapEdited By: Published: Tue, 07 Mar 2017 10:16 AM (IST)Updated: Tue, 07 Mar 2017 10:18 AM (IST)
नवगीत:शुष्क पत्तों की तरह
नवगीत:शुष्क पत्तों की तरह

हर शब्द भागा जा रहा

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और मुझमें एक

अंतद्र्वंद्व चलता जा रहा

शब्द होते, अर्थ मुर्दा

हो गए अनुकूल

यंत्रवत् सब हो गए हैं

भावना को भूल

सच अकेला वक्त के

विपरीत चलता जा रहा

इक टके का स्वप्न देकर

छीन ली है जान

छीनकर संघर्ष

च्जनज् की छीन ली पहचान

कौन-सी यह क्रांति

हरियल पात झरता जा रहा

उत्सवों में हो विमोचित

रो रहा इतिहास

और कबिरा देख-सुनकर

कह रहा-बकवास

रोष में अपनी लुकाठी को

पटकता जा रहा

क्या दवा है दर्द की

यह धन नहींउपचार

आततायी घूमता

दे घूस का उपहार

चोर-साहूकार का है खेल,

खेला जा रहा

(सुपरिचित नवगीतकार।

अनेक संग्रह प्रकाशित)

वीरेन्द्र आस्तिक

शुष्क पत्तों की तरह

एल-६०, गंगा विहार , कानपुर-२०८०१०


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