गीत गोविन्द
अनुवाद में घनाक्षरी, आल्ह, दोहा, हरिगीतिका आदि विविध छंदों का प्रयोग हुआ है। भाषा तत्सम व प्रांजल तथा शैली प्रवाहमय और विषय के अनुरूप है।
‘गीत गोविन्द’ मूलत: 12वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि जयदेव का लगभग 300 श्लोकों में रचा गया संस्कृत काव्य ग्रंथ है, जिसमें श्रीकृष्ण की राधा व अन्य गोप बंधुओं संग हुई रास क्रीड़ाओं का मनोहर वर्णन है। समीक्षागत पुस्तक में रघोत्तम शुक्ल ने इस ग्रंथ का हिंदी पद्य में अनुवाद किया है, जिसे शशि प्रकाशन, गाजियाबाद ने सजिल्द, स्वच्छ और आकर्षक ढंग से छापा है। अनुवादक कवि सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी और तत्पश्चात ‘वर्तमान कमल ज्योति’ पाक्षिक पत्रिका के संपादक रहे हैं। अनुवाद में घनाक्षरी, आल्ह, दोहा, हरिगीतिका आदि विविध छंदों का प्रयोग हुआ है। भाषा तत्सम व प्रांजल तथा शैली प्रवाहमय और विषय के अनुरूप है। कृष्ण का राधा से मिलन, फिर वियोग, अन्यान्य गोपियों में रुचि लेना, सखी का राधा को यह सब बताना, मिलने के लिए प्रेरित करना, राधा के उलाहने, कृष्ण का राधा को मनाने का प्रयास, पारस्परिक नोक-झोंक, ईष्र्या, सखी प्रेरित राधा का कुंज में प्रवेश, राधा का कृष्ण से निवेदन आदि का विशद और सुरम्य वर्णन किया गया है। भाषा और वर्णन शैली पाठक के मन को निरंतर इन मधुरा-भक्ति भरे छंदों में बांधे रहती है। यथा: ललित लवंग लताएं छूकर, करते वहन गंध का भार/ राधे! जहां बह रही कुंजों में बसंत की मृदुल बयार/गुंजित भ्रमर कोकिला कूजन, विरहीजन को दुखद अपार/ सखी वहां ब्रज बालाओं संग, कृष्ण कर रहे नृत्य विहार।