फैशन की डोर जड़ों की ओर
यशा माथुर के मुताबिक लुप्त होते प्रिंट्स और टेक्सटाइल्स को नए अंदाज में पेश कर डिजाइनर्स न केवल विरासत संजो रहे हैं बल्कि नया बाजार भी बना रहे हैं।
भारत की आंचलिक कला को जाननेसमझने और फैशन में लाने की प्रक्रिया ने इन दिनों काफी तेजी पकड़ी है।दिल्ली का नेशनल रेल म्यूजियम और भारत की धरोहर बने रेल इंजनों के बीच से गुजरता आधुनिक फैशन। मूंगा सिल्क से बने परिधानों पर जरदोजी की कढ़ाई और मॉडल्स के दिलकश अंदाज। लगता था जैसे रैंप पर नए प्रयोगों के साथ आंचलिक शिल्प का वैभव बिखर गया है और अपनी जड़ों से जुड़कर हाई फैशन निखर गया है। वैसे तो फैशन हमेशा से परंपरागत शिल्प को नए डिजाइंस में लेकर सामने आता है लेकिन इन दिनों फैशन में आंचलिक कलाओं को काफी बढ़ावा दिया जा रहा है और फैशन वीक के प्लेटफॉर्म पर इनका ही जलवा है। चाहे लखनऊ की चिकनकारी हो या बनारसी सिल्क, असम की मूंगा सिल्क हो या झारखंड की टसर और जादूपटिया कला, कश्मीर का आरी वर्क हो या गुजरात का मिरर वर्क, हर शिल्प बन रहा है ब्रांड।
सीधा फायदा कामगारों को
भागलपुर सिल्क के साथ काम कर रहे फैशन डिजाइनर सामंत चौहान ने इस बार एमेजॉन इंडिया फैशन वीक में असम की मूंगा सिल्क को बढ़ावा देने के लिए शो किया। मूंगा पर जरदोजी के काम से बने उनके परिधान शानदार थे। आंचलिक शिल्प के साथ सालों से काम कर रहे सामंत कहते हैं, ‘हम फैशन के प्लेटफॉर्म पर इन क्षेत्रीय कलाओं को लेकर आते हैं तो लोग इन्हें खरीदने के लिए प्रेरित होते हैं। मैं भागलपुरी सिल्क पर काम करता आया हूं। पिछले साल चंदेरी पर किया, इस साल मूंगा सिल्क को फैशन रैंप पर लेकर आया हूं। आने वाले सालों में और भी इंडियन क्राफ्ट्स पर काम करूंगा। मैं मानता हूं कि काम बढ़ेगा, मांग बढ़ेगी तो इसका सीधा फायदा कामगारों को मिलेगा क्योंकि इन्हें हम मशीन से नहीं बना सकते। हमने मूंगा के साथ किसी फैब्रिक को मिक्स नहीं किया है।’
विरासत से परिचय
‘बाजीराव मस्तानी’ की परंपरागत पोशाकों में अपनी कलात्मकता का परिचय देने वाली फैशन डिजाइनर अंजु मोदी इतिहास को फैशन में संजो लेना चाहती हैं। इसके पीछे उनका उद्देश्य न केवल अपनी संस्कृति को सभी के सामने नए अवतार में लाना है बल्कि नई पीढ़ी का परंपरा से परिचय करवाना भी है। वे कहती हैं, ‘मैं इतिहास से काफी प्रभावित हूं तो सोचती हूं कि आज की डिजाइनर होने के नाते कैसे परंपरा को आगे लाऊं? कैसे अपनी सोच को अपने डिजाइंस में लाऊं कि फैशन गारमेंट बने, खूबसूरत लगे, लोगों को भाए और आज की जेनरेशन उसे पहनकर प्राउड फील करे। इससे हमारी संस्कृति भी आगे बढ़ेगी और नई पीढ़ी अपनी विरासत को भी समझेगी।’
कभी पुराना नहीं होता शिल्प
आंचलिक शिल्प को रोजाना के फैशन का हिस्सा बनाने के लिए फैशन डिजाइन काउंसिल सतत् प्रयासरत है। एफडीसीआई से जुड़े डिजाइनर्स भारतीय टेक्सटाइल और प्रिंट्स के साथ आधुनिक फैशन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पेश कर रहे हैं। वे मानते हैं कि भारत के सभी टेक्सटाइल्स और कलाओं को फैशन में बढ़ावा मिलना चाहिए। एफडीसीआई के अध्यक्ष सुनील सेठी कहते हैं, ‘एफडीसीआई के डिजाइनर लोकल क्राफ्ट में वैल्यू एड करते हैं, जिससे लोकल क्राफ्ट की डिजाइन इंटरवेंशन होती है। शिल्प कभी पुराना नहीं होता लेकिन डिजाइन पुराने हो सकते हैं। लोगों को आज नए डिजाइन चाहिए। हमारे डिजाइनर्स पारंपरिक डिजाइन को आधुनिक तरीके से पेश करते हैं। इससे हमारा शिल्प और परंपरा बचती है और फैशनप्रेमियों को नए डिजाइन मिलते हैं। लोग आंचलिक फैब्रिक और कला को तो जानते हैं लेकिन उसमें एक ही तरह के डिजाइन देखकर उकता जाते हैं। इनमें नए प्रयोग उन्हें खुश कर जाते हैं।’
बंधेज-बगरू को मॉडर्न टच
फैशन डिजाइनर मधु जैन कई जगहों की इकत पैटर्न को रैंप पर लेकर आई हैं। अनीथ अरोड़ा गुजरात की शिल्प पर अनूठे प्रयोग कर रही हैं। जुबेर किरमानी की पहचान कश्मीर शिल्प से है। संजय गर्ग बनारस से जुड़े हैं तो राहुल मिश्रा और प्रतिमा पांडे चंदेरी पर काम कर रहे हैं। आंचलिक शिल्प पर काम करने वाले डिजाइनर्स की लिस्ट काफी लंबी है। जयपुर के शिल्प को फैशन पटल पर लाने में लगातार अग्रसर फैशन डिजाइनर पल्लवी जयपुर कहती हैं, ‘जयपुर की क्राफ्ट तो सालों से लोकप्रिय है लेकिन हम इसे कंटेपरेरी लुक दे रहे है। अब केवल बंधेज और बगरू प्रिंट के लिए ही नहीं बल्कि इन्हें मॉडर्न टच देकर बनाए गए डिजाइंस लोगों को खासेपसंद आ रहे हैं।’
ला सकते हैं नया फ्लेवर
अगर हम इंडियन ट्रेडिशन को इंडियन टेक्निक्स के साथ संतुलित करें तो पूरी दुनिया में इसका प्रभाव देख सकते हैं। इंडियन सेंसेबिलिटी बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसे छोड़ना नहीं चाहिए। हमारे पास भारतीयता है अगर हम उसे छोड़ देंगे तो कहीं के नहीं रहेंगे। आजकल फैशन एक-सा ही हो गया है। जापान में लोग जो कपड़े पहनते हैं वे यूएसए जैसे ही लगते हैं। ऐसे में इंडियन क्राफ्ट से फैशन में एक नया फ्लेवर लाया जा सकता है।- रोहित बल, फैशन डिजाइनर
गोल्डन थ्रेड ऑफ मूंगा सिल्क
मूंगा थ्रेड असम में ही होता है। ऑर्गेनिक होने के बाद भी यह लुप्त होने की कगार पर है। इसमें 100 साल तक खराब न होने की क्षमता होती है। यह सिल्क पीढ़ियों तक चलती है। राजाओं के जमाने से यह असम की परंपरा है लेकिन आधुनिकीकरण की दौड़ में इसका उत्पादन कम हो गया है। इसके कामगार कम हो गए हैं। हम इसे बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। मूंगा सिल्क की केवल साड़ियां ही नहीं होतीं। हम इसका प्रयोग जूतों, बैग्स, सोफा आदि में भी कर रहे हैं। इस तरह हम अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं।’- रिनिकी भुयान शर्मा, अध्यक्ष, गोल्डन थ्रेड ऑफ असम
गोंड आर्ट से बनाया कलेक्शन
हमारी परंपरागत कलाएं टाइमलेस हैं। इन्हें जब हम फैशन में लाते हैं तो यह एक नए नजरिए से लोगों के सामने आती है और लोग इन्हें काफीपसंद करते हैं। हम डिजाइनर्स अपनी पारंपरिक कला से जुड़ते हैं तो अपनी जड़ों से जुड़ा महसूस करते हैं। मैंने गोंड आर्ट से कलेक्शन ‘वाइल्ड चाइल्ड’ बनाया है। यह पारंपरिक द्रविड़ कला है जो मध्य भारत में मिलती है। इस ट्राइबल आर्ट में आमतौर पर प्रकृति और मानव के आपस के संबंध को बताया गया है। इसमें जंगल के जीवन और जंगली जानवरों का बहुत सुंदर चित्रण है। मुझे अपने कलेक्शन में बहुत गहरे रंग, टेक्सचर और डिटेलिंग यूज करनी थी। इसके जरिए मैंने बताने की कोशिश की है आदमी प्रकृति के साथ बहुत अच्छी तरह से रह सकता है।- अंकिता चौधरी फैशन डिजाइनर
हाई फैशन की ओर झारक्राफ्ट
हमारे झारखंड का सिल्क अभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा लोकप्रिय नहीं है इसलिए हम झारक्राफ्ट के जरिए जाने-माने डिजाइनरों से जुड़ रहे हैं ताकि लोग इनकी कीमत पहचानें। अहिंसा सिल्क और टसर सिल्क से बने कपड़ों को देखकर लगता था कि इन्हें तीस-चालीस की उम्र के बाद ही पहना जा सकता है लेकिन अब हम इसे लो फैशन से हाई फैशन की ओर ला रहे हैं ताकि हर वर्ग के लोग इसे खरीदें और पहनें। दुमका की क्राफ्ट जादूपटिया से बनी हुई साड़ियों को काफी पसंद किया जा रहा है। इस हैंडलूम फैब्रिक पर करीब 25 हजार से ज्यादा लोग बुनाई का काम कर रहे हैं। हमारे जितने भी क्राफ्ट हैं उन्हें हम रिवाइव करने की कोशिश कर रहे हैं।– अभिलाषा हेड डिजाइनर, झारक्राफ्ट
होती है विन-विन सिचुएशन
आंचलिक शिल्प जब फैशन में शामिल होता है तो विक्रेता को नया बाजार और उपभोक्ता को नए डिजाइन मिलते हैं। डिजाइनर्स को प्रयोग करने के लिए नया फैब्रिक और मैटीरियल भी मिलता है। इसमें सभी के लिए विन-विन सिचुएशन है तो क्यों न हम अपने क्राफ्ट और फैब्रिक को ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की यूएसपी बनाएं!- सुनील सेठी अध्यक्ष, एफडीसीआइ
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