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छोटी उम्र के बड़े लेखक

लेखन के प्रति क्रेज पैदा होने से कई युवा लेखक चर्चा में आए हैं। दिलचस्प ट्रेंड छोटी उम्र के उन राइटर्स का है, जिन्होंने अपने हाथों में थाम ली है कलम और लिख रहे हैं देश-समाज के लिए प्रेरक किताबें...

By Srishti VermaEdited By: Published: Sat, 25 Mar 2017 10:56 AM (IST)Updated: Fri, 08 Sep 2017 04:43 PM (IST)
छोटी उम्र के बड़े लेखक
छोटी उम्र के बड़े लेखक

बुक राइटिंग को कभी गंभीर किस्म का काम माना जाता था। इसके लिए उम्र, अनुभव और समय तीनों को बेहद जरूरी माना जाता था, लेकिन अब लेखन उम्र का मोहताज नहीं रहा। इन दिनों कई बच्चे, किशोर या कम उम्र के युवा अलग-अलग विषयों पर बढ़िया किताबें लिख रहे हैं। वह भी कु छ ही महीनों में। ऐसे यंग राइटर्स सवाल करते हैं कि बड़े लोग बच्चों के लिए लिख सकते हैं, तो वे क्यों नहीं? आखिर अपनी दुनिया और उसकी जरूरतों को वे कहीं ज्यादा अच्छी तरह से समझते हैं। ये नन्हे लेखक सिर्फ अपनी संतुष्टि के लिए ही नहीं, देश और समाज के लिए भी प्रेरक किताबें लिख रहे हैं। ऐसे बच्चों-किशोरों से यह जानना दिलचस्प हो सकता है कि आखिर उन्हें किताबें लिखने की प्रेरणा कहां से मिली है और आगे की उनकी योजना क्या है।

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सजना-संवरना पसंद नहीं
मुझे न सजने-संवरने में वक्त बर्बाद करना पसंद है और न ही पार्टी अटेंड करने में दिलचस्पी है। खाली समय में मैं सिर्फ किताबें पढ़ती और अपने विचार लिखती हूं। हालांकि छोटी उम्र में मुझे अंग्रेजी विषय अच्छा नहीं लगता था।
मेरी मेंटर और टीचर अमनदीप कौर ने मुझे अंग्रेजी सिखाई और उनकी मदद व अपनी मेहनत के बल पर मैं इस भाषा के लिटरेचर को पसंद करने लगी। अलग-अलग किताबें पढ़ने के बाद मेरे दिमाग में कई सारे नए विचार आते, जिन्हें लिखने के लिए मां और भाई मुझे हमेशा प्रेरित करते रहते। गर्मी की छुट्टियों के दौरान मैंने अपना पहला नॉवेल ‘द ट्राइम्फ ड्राइव’ लिख लिया। पब्लिशर ने जब किताब की डमी हमारे हाथों में दी, तो उसमें कई सारी गलतियां मौजूद थीं। तब भाई ने उसे दोबारा खुद प्रकाशित करने का निर्णय लिया। इस तरह मैं देश की सबसे कम उम्र की फीमेल राइटर्स में शामिल हो गई। पाठक जब मेरे नॉवेल्स को पढ़ेंगे, तो उन्हें जरूर प्रेरणा मिलेगी। भविष्य में मैं फु ल टाइम ऑथर बनना चाहती हूं। हॉरर और फिक्शन नॉवेल्स के अलावा, देश के ज्वलंत मुद्दों पर आर्टिकल भी लिखना चाहती हूं।

कविताओं से समाधान
जब भी मैं अपने अंदर के प्रश्नों से परेशान होती हूं, तो उनका हल ढूंढ़ने के लिए कविताएं लिखती हूं। ब्लॉग पर लिखी मेरी कविताएं लोगों द्वारा खूब सराही जा रही हैं। हाल में यूट्यूब पर मैंने जो दो कविताएं अपलोड की हैं, वे मेरे मन की ही समस्याएं हैं, जिन्हें सुलझाने का मैंने प्रयास किया है। मैं जानती हूं कि मेरी तरह दूसरे लोग भी परेशान होंगे। उन्हें मेरी कविताओं से समाधान मिल सकता है। जल्द ही मेरा कविता संग्रह प्रकाशित होने वाला है किसी भी टॉपिक पर बिना अनुभव के कविताएं या कहानियां लिखना आसान नहीं है। मैंने कहानियां भी लिखी हैं, जो अभी प्रकाशित नहीं हो पाई हैं। मेरे पापा रजत कपूर बढ़िया एक्टिंग करते हैं, लेकिन मुझे एक्टिंग का शौक नहीं है। वे कहते हैं कि जिस काम में आपको खुशी मिले, वही करें। इसलिए आगे मैं इंग्लिश लिटरेचर की पढ़ाई के लिए लंदन जाने वाली हूं।

रियल्टी-इमेजिनेशन का साथ

मैं चार साल की उम्र से ही कहानियां लिख रहा  हूं। तब से लेकर अब तक मेरे लेखन में बहुत सुधार आया है। ‘मर्सी ऑफ गॉड्स ऐंड मेन’ नॉवेल से पहले भी मैंने कई सारे नॉवेल्स लिखे हैं,जो अभी पब्लिश नहीं हुए हैं। मेरे नॉवेल के बारे में पाठक कहते हैं कि मैंने बहुत जटिल विषय उठाया है, लेकिन कई अलग-अलग चीजों, घटनाओं से रू-ब-रू होने पर ही मेरे नॉवेल का पूरा खाका बना। इसके बाद का काम मेरे इमेजिनेशन ने किया। इन दिनों इसका दूसरा पार्ट लिख रहा हूं। मेरे विचार से ज्यादातर भारतीय उपन्यास रोमांटिक या थ्रिलर हैं। इनमें विविधता नहीं है। मैंने ऑनलाइन देखा, तो कुछ ही लोगों ने ही लोकप्रिय फैंटेसी लिखी है। भारतीय हिस्टॉरिकल फिक्शन या फैंटेसी भी पढ़ें, इसके लिए मैं लिखना चाहता हूं। हालांकि हिस्टॉरिकल फिक्शन लिखने के पहले बहुत रिसर्च करना होता है। मैं ब्रिटिश लेखक कॉन इगेल्डेन को खूब पढ़ता हूं, जो कई प्रसिद्ध हिस्टॉरिकल फिक्शन लिख चुके हैं। अमीश त्रिपाठी भी बढ़िया लिखते हैं। लेखन के अलावा, मैं फिल्म डायरेक्टर भी बनना चाहता हूं।

आंखों देखा हाल
हमारी छत पर पर कई सारी गिलहरियां आती हैं। मैं उनके क्रिया-कलापों को लगातार एक डायरी में नोट करता। उसी बीच मैंने इन्हें छोटी-छोटी कहानियों में भी ढालना शुरू किया। इसके आधार पर ही मैंने अपनी दूसरी किताब ‘गीगी गिलहरी’ और तीसरी किताब ‘गीगी गिलहरी और गर्मी की छुट्टियां’ लिखी। मेरी पहली किताब ‘टूटा खिलौना’ भी मेरे जीवन की ही कहानी है। इस कहानी में एक लापरवाह लड़का टूटे खिलौने की वजह से ही आज्ञाकारी और समझदार बन पाया। दरअसल, तीसरी कक्षा से मैंने कुछ प्रतियोगिताओं के लिए कहानियां लिखनी शुरू की थीं। प्रतियोगिता जीतने पर उत्साह बढ़ गया। मम्मी ज्योति राय और पापा अरुण राय के लेखक और प्रकाशक होने के कारण मेरी किताब छपने में भी कोई दिक्कत नहीं आई। आगे मैं समाज और देश के विकास के साथ आसपास की घटनाओं पर आधारित किताबें ही लिखना चाहूंगा। घटनाओं को हमेशा नोट करता हूं, ताकि उन्हें भूल न जाऊं। इन दिनों चौथी किताब ‘रोशनी वाली गेंद’ पर काम कर रहा हूं। इंडिया गेट पर ऐसे बॉल बिकते रहते हैं,
जिन्हें देखकर यह कहानी लिखने का आइडिया आया। 

खुशी के लिए लेखन
मैं खाली समय में गरीब बच्चों के लिए सोशल वर्क करती हूं। मैं कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिससे न सिर्फ मुझे, बल्कि दूसरों को भी खुशी मिले। तभी मैंने ‘सिमरंस डायरी’ नाम से नॉवेल लिखा। सिमरन एक ऐसी लड़की है, जो जिंदगी के कई सारे अप्स ऐंड डाउंस को पार करते हुए अपना लक्ष्य हासिल करती है। जब मैंने नॉवेल लिखना शुरू किया, उस वक्त मात्र आठ साल की थी। जब इस किताब को लेकर मम्मा-पापा कई सारे प्रकाशकों के
पास गए, तो वे कहते कि अब तक बच्चों के लिए बड़ी उम्र के लोग ही लिखते आए हैं। मैं उनसे कहती कि एक बच्चा ही तो बच्चों की दुनिया को बारीकी से समझ पाता है, तो फिर वह किताब क्यों नहीं लिख पाएगा? काफी जद्दोजहद के बाद यह किताब पब्लिश हो सकी, जिसे पाठकों ने पसंद किया। एग्जाम्स की वजह से मैं दूसरी किताब लिखने पर फोकस नहीं कर पाई हूं, लेकिन अब दोबारा इस पर काम करना शुरू कर चुकी हूं। मैं अलग-अलग टॉपिक पर लोगों से बात कर रियल स्टोरीज लिखना चाहती हूं। मैं राइटर के अलावा पब्लिक स्पीकर भी बनना चाहती हूं, ताकि लोगों को अपनी रुचि का काम करने के लिए मोटिवेट कर सकूं।

-स्मिता


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