तीसरी आंख के जरिये बच्चों पर रहती है माता-पिता की नजर
साथ नहीं होकर भी माता-पिता रहते हैं बच्चों के साथ, मोबाइल एप के जरिये रखते हैं बच्चों की गतिविधियों पर नजर...
अपने नन्हे-मुन्नों को किसी के सहारे छोड़ना शहरी कामकाजी माता-पिता की मजबूरी है। इसका तनाव चौबीस घंटे इनको रहता है। लगातार बढ़ रहे अपराधों के कारण आया के भरोसे बच्चों को छोड़ने में लोग डरते हैं। ऐसे में अब इन माता पिता की सहायता कर रहे हैं मोबाइल एप। जिनके जरिये वे घरों में कैमरे लगाकर अपने मोबाइल पर 24 घंटे घर के हर हिस्से में हो रही गतिविधियों को देख सकते हैं। शहरों में यह ट्रेंड काफी लोकप्रिय व कारगर साबित हो रहा है। सेक्टर 56 निवासी मनीषा के मुताबिक वे और उनके पति दोनों कामकाजी हैं और शहर में अकेले रहते हैं। मनीषा ने मां बनने के बाद जॉब छोड़ दी थी क्योंकि वे आया पर भरोसा नहीं कर पा रही थी। लेकिन, अब एप डाउनलोड किया है और बिना किसी डर के नौकरी कर रही हैं। मनीषा के मुताबिक अब वे कार्यस्थल पर भी बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं और बच्चों की तरफ से भी निश्चिंत हैं। मनीषा की तरह शहर में रह रहे माता-पिता तेजी से टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों के साथ न होकर भी उनके साथ हैं। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक इस प्रक्रिया में बच्चों का विकास भी बेहतर तरीके से हो रहा है। बच्चे भी माता-पिता के पास होने का अहसास भी ले सकते हैं।
-‘तकनीकी क्रांति के जरिए जो बदलाव आ रहे हैं उसमें बच्चों की सुरक्षा के बदलावों को सकारात्मक माना जा सकता है। मोबाइल एप के जरिए कम से कम बच्चों पर माता पिता की नजर तो है। दिनभर साथ न रहने के बाद लोगों में एक अंजाना तनाव व कुंठा उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में माता पिता न तो कार्यस्थल पर ध्यान दे पाते हैं और न ही घर पर। बच्चों का विकास भी उस तरह से नहीं हो पाता। जो लोग इस तरह की समस्या लेकर आते थे उसके पीछे अधिकतर यही कारण निकलता था कि माता-पिता से दूर रहने वाले बच्चों को पालन पोषण सामान्य बच्चों की तरह नहीं हो पाता था। -कल्पना माहेश्वरी, मनोवैज्ञानिक, दिल्ली
-मोबाइल एप अब तो स्कूलों में भी काम करते हैं। प्ले स्कूलों में बच्चों की गतिविधियों को देखने के लिए भी हम इनका प्रयोग कर सकते हैं। बच्चों को क्या सुविधाएं मिल रही हैं व उन्हें किस तरह का ट्रीटमेंट मिल रहा है इसकी जानकारी मिलती रहती है। मुझे एप के माध्यम से बच्चों के साथ होने का अहसास होता है। -अमिता मदान, प्राध्यापक, फरीदाबाद
-शहरों में माता पिता के पास इन चीजों का विकल्प काफी लाभदायक साबित हो रहा है। मैं भी इसी तरह की समस्या से जूझ रही थी पर मुझे यह विकल्प बेहतरीन लगा और लोगों को इसी तरह की सलाह दे रही हूं। एनसीआर में तो इतनी जागरूकता बढ़ी है कि लोग नए-नए एप तलाश रहे हैं।’ -मनीषा शर्मा, अभिभावक व साइकोलॉजिस्ट, नोएडा
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