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ऐसे करें वक्त की कद्र

बात अभी हाल ही की है। मैं कंप्यूटर कोर्स कर रही थी। हमारे कंप्यूटर सेंटर में जनपद स्तर पर कई प्रतियोगिताओं का आयोजन हर साल किया जाता है। मैं उन सभी प्रतियोगिताओं में पूरे उत्साह के साथ व पूरी तैयारी करने के बाद भाग लेती और कई पुरस्कार भी जीत चुकी हूं। दो-तीन सें

By Edited By: Published: Wed, 23 Apr 2014 12:15 PM (IST)Updated: Wed, 23 Apr 2014 12:15 PM (IST)
ऐसे करें वक्त की कद्र

बात अभी हाल ही की है। मैं कंप्यूटर कोर्स कर रही थी। हमारे कंप्यूटर सेंटर में जनपद स्तर पर कई प्रतियोगिताओं का आयोजन हर साल किया जाता है। मैं उन सभी प्रतियोगिताओं में पूरे उत्साह के साथ व पूरी तैयारी करने के बाद भाग लेती और कई पुरस्कार भी जीत चुकी हूं।

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दो-तीन सेंटरों की प्रतियोगिताएं निकलने के बाद हर साल की तरह सामान्य-ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता के फॉर्म एक महीने पहले से ही भरने प्रारंभ हो गए थे, परंतु आजकल के चक्कर में वह दिन समीप आ गया, जिसके दूसरे दिन प्रतियोगिता होनी थी। मम्मी-पापा कहते थे, 'जाओ, जाकर फॉर्म भर आओ।' मैं उनसे कहती, 'कौन-सा नौकरी का फॉर्म है, जो इतनी जल्दी भर आएं। सर हम लोगों को जानते ही हैं, जिस दिन प्रतियोगिता होगी, उसी दिन भर देंगे।'

आखिर वह दिन नजदीक आ गया, जिस दिन प्रतियोगिता होनी थी। 18 अगस्त दिन रविवार को प्रतियोगिता होनी थी। मैं मम्मी के साथ शनिवार करीब पांच बजे सेंटर पहुंची। मैं सर के पास गई। उनसे जब मैंने बताया, तो उन्होंने कहा, 'अगर कल आ जातीं तो फॉर्म भर जाता लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता।' उनकी यह बात सुनकर मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई। मैं बार-बार सोच रही थी कि मैं इतने दिनों से जिस प्रतियोगिता की तैयारी कर रही थी, वही मेरे हाथ से निकल गई। यह सोचकर और सर की बात सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए, मैं वहींपर रोने लगी। सर ने कहा, 'अब रोने से क्या होगा। जो होना था, सो हो गया।'

वह दिन है और आज का दिन, तब से मैंने अपने जीवन में कभी न तो किसी काम को छोटा समझा न ही कभी आलस किया। उस घटना से मुझे समझ में आ गया था कि आलस्य प्रगति का शत्रु है। उसी दिन मैंने यह निश्चय कर लिया कि जीवन में हर काम को जितनी जल्दी हो सकेगा, करने की कोशिश करूंगी। क्योंकि जब समय निकल जाता है, तो पश्चाताप करने के सिवाय कुछ शेष नहीं बचता है। अपनी इस भूल से मुझे पश्चाताप तो हुआ ही, साथ ही मेरी जिंदगी को एक नया आयाम भी मिल गया। मुझे समय का महत्व पता चल गया और अपने काम को समय से करने की मेरी आदत पड़ गई।

सुरभि गोस्वामी,

फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)


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