खुद को शाबाशी..ना बाबा ना
बारहवीं के एग्जाम जारी हैं, लेकिन राहुल को इसकी फिक्र नहीं! मां-पापा उसे पढ़ने के लिए कहते, तो उसका जवाब होता-आप लोग चिंता न करें, मैंने सभी विषयों की बढि़या तैयारी कर रखी है। स्
बारहवीं के एग्जाम जारी हैं, लेकिन राहुल को इसकी फिक्र नहीं! मां-पापा उसे पढ़ने के लिए कहते, तो उसका जवाब होता-आप लोग चिंता न करें, मैंने सभी विषयों की बढि़या तैयारी कर रखी है। सातवीं कक्षा से ही मैं प्रथम आ रहा हूं। इस बार भी मुझे टॉप करने से कोई नहीं रोक सकता। मेरे क्लासमेट्स रोहित, कनिका और जाथ्वी तो पढ़ाई में मुझसे काफी पीछे हैं।
जब एग्जाम का रिजल्ट आया, तो उसके सारे फ्रेंड्स काफी अच्छे नंबर्स से पास हुए और राहुल फेल। रिजल्ट देखकर वह सुबक-सुबककर रोने लगा। पर अब पछताय होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत! दरअसल, राहुल आत्ममुग्धता का शिकार हो गया था। उसे इस बात की गलतफहमी हो गई कि वह जो कुछ भी कर रहा है, वह सही है। दूसरे लोग उससे कमअक्ल हैं।
छुपाएं नहीं कमियां
राहुल एक जीनियस स्टूडेट है। वह वर्षो से बढि़या मार्क्स ला रहा था, पर एग्जाम के दौरान सबसे जरूरी चीज पढ़ाई और रिवीजन, दोनों को उसने अनदेखा कर दिया। वह खुद को सुपीरियर समझने लगा। राहुल या उसके जैसे दूसरे लोगों की यही सोच आत्ममुग्धता कहलाती है। आत्ममुग्ध लोग ही अपने हर काम को सही और दूसरों के काम को गलत मानते हैं। ऐसे लोग यदि किसी परीक्षा में फेल हो जाते हैं, तो अपनी कमियों को छुपाने के लिए वे आंसुओं का सहारा लेते हैं।
मनोविज्ञान की भाषा में इसे नारसिस्टिक टेंडेंसी कहते हैं। मनोविज्ञान के अनुसार, टींस यानी किशोरों के शरीर में एनर्जी लेवल अधिक होता है। घर और बाहर उन्हें कई लोगों और उनके अलग-अलग विचारों से रूबरू होने का मौका मिलता है। अक्सर वे अपने लिए सही-गलत का निर्णय नहीं कर पाते हैं। दरअसल, उनकी सोच या निर्णय पर आस-पास के वातावरण यानी पैरेंट्स, टीचर, पीयर ग्रुप का बहुत अधिक प्रभाव होता है। सही समय पर सही निर्णय के लिए उन्हें अपने माता-पिता, टीचर और अच्छे दोस्तों की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
आई एम द ग्रेट
विनीत की कप्तानी में उसकी टीम वर्षो से डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट ट्रॉफी जीतती आई है। वह एक उम्दा बैट्समैन और लाजवाब टीम लीडर है। इस साल विनीत कप को लेकर ओवर कॉन्फिडेंट था। उसके दिमाग में यह बैठ गया था कि कप तो उसकी टीम का ही है। दूसरी सभी टीमें तो उसके और उसकी टीम के सामने फिसड्डी हैं। इसी सोच के साथ विनीत खेलने उतरा और मैदान में पूरी मेहनत नहीं की। वह अपनी टीम को मैदान पर विपक्षी टीम के खिलाफ जोरदार ढंग से उत्साहित नहीं कर पाया। उसके गलत निर्देशन की वजह से टीम के कई खिलाडि़यों ने विरोधी टीम के कैच तो छोड़े ही, रन भी कम बनाए। बॉलिंग, फील्डिंग और बैटिंग तीनों में नाकामयाब टीम ने एक गुमनाम-सी टीम के हाथों मैच गंवा दिया। ट्रॉफी हाथ से निकल गई तो विनीत हार के लिए अंपायर को दोष देने लगा।
कोई भी व्यक्ति जब बढि़या काम करता है, तो लोग उसकी तारीफ करते हैं। दूसरों की बार-बार तारीफ सुनने के बाद वह सोचने लगता है, 'आई एम द ग्रेट'। यहीं से उसके अंदर अहंकार पनपने लगता है। हार मिलने पर उसे लगता है कि उसकी असलियत दुनिया के सामने आ जाएगी। इसलिए वह गलत तरीके से अपना बचाव करने लग जाता है। वह न सिर्फ दूसरों पर दोष मढ़ता है, बल्कि चीखना-चिल्लाना भी शुरू कर देता है।
अपने-आपको श्रेष्ठ समझना अच्छी बात है, लेकिन खुद को सर्वश्रेष्ठ समझते हुए अपने हाथों ही अपनी पीठ थपथपाना गलत है। यह ओवर कॉन्फिडेंस है। तुम अपने क्लास के बैकबेंचर्स को भी कम मत आंको। मेहनत के बल पर वे अव्वल लड़कों से भी आगे निकल सकते हैं।
प्रशंसा से बहकें नहीं
पुखराज सिंगर है। वह अपने फन में माहिर है, लेकिन उसे इस पर घमंड भी खूब है। हाल में उसने टीवच् चैनल पर आयोजित हो रही संगीत प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। जजेज ने उसे किशोर कुमार का एक गाना गाने को कहा। समय-सीमा बीत जाने पर उसे कई बार वॉर्निग मिली। इसके बावजूद दंभी पुखराज ने अपना गाना जारी रखा। परिणाम यह हुआ कि उसे रेड कार्ड दिखाकर गायन प्रतियोगिता से बाहर कर दिया गया। प्रतियोगिता से आउट होने के बाद पुखराज अपने म्यूजिक टच्ीचर को उलाहना देने लगा कि उन्होंने उसे समय सीमा के भीतर गाने की कला नहीं सिखाई।
ऐसी समस्या के लिए कभी-कभी माता-पिता और नजदीकी लोग भी जिम्मेदार होते हैं। वे उसकी कमियों को बताने की बजाय उसके मुंह के सामने गुणगान करते रहते हैं। दोस्तों, ध्यान रखो बढि़या काम करने पर तुम्हारी प्रशंसा जरूर होगी, लेकिन इससे बहको नहीं। अगर तुम बहकोगे, तो आगे सफलता मिलनी मुश्किल है।
एवरीथिंग यू डू इज राइट डे
दुनिया भर के आत्ममुग्ध लोग आज के दिन को सेलिब्रेट कर सकते हैं। आज है एवरीथिंग यू डू इज राइट डे। आम धारणा है कि इस दिन कोई भी व्यक्ति सही करे या गलत, उसके हर काम को राइट माना जाता है।
आत्ममुग्धता यानी इगो लिबिडो
मशहूर मनोवैज्ञानिक फ्रायड के अनुसार, आत्ममुग्धता जन्मजात नहीं होती है। हमारे आसपास का माहौल इसके लिए जिम्मेदार होता है। माता-पिता, शिक्षकों के मार्गदर्शन, मित्रों के साथ और सामाजिक मेलजोल पर यह निर्भर करती है। इसको इगो लिबिडो भी कहते हैं।
खुद को आंको
आत्ममुग्धता से चचने के लिए इन बातों पर जरूर ध्यान दो :
* दूसरों के सामने अपनी शेखी न बघारो। कभी-भी अपनी उपलब्धियों को बढ़च्-चढ़ाकर पेश न करो। खुद को सर्वश्रेष्ठ न समझो।
* दूसरों को अपने से कम न समझो।
* अपनी गलतियों के लिए दूसरों पर दोष न मढ़ो। कमियां सामने आने पर आंसुओं का सहारा लेना गलत है।
* अपनी प्रशंसा सुनो, लेकिन इससे बहको नहीं।
* समय-समय पर स्वयं को आंको। अपने बारे में माता-पिता और दोस्तों की भी राय लो।
* सेल्फ डेवलपमेंट से संबंधित नॉवेल-लिटरच्चर पढ़ो।
* बुक फेयर, सोशल एक्टिविटीज, सोशल गैदरिंग आदि में भाग लो।
डॉ. आरती आनंद से बाचचीत
पर आधारित)
स्मिता
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