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बच्चों के लिए खेलना है बहुत जरूरी

इंटरनेट व सोशल मीडिया के दौर में बढ़ रहे बच्चों-किशोरों को कम उम्र में आंखों पर चश्मे, मोटापा, डायबिटीज, जैसी बीमारियां जकड़ रही हैं। ऐसे में खुद को फिट रखने के लिए खेलना है बेहद जरूरी...

By Srishti VermaEdited By: Published: Sat, 08 Apr 2017 11:56 AM (IST)Updated: Mon, 10 Apr 2017 09:00 AM (IST)
बच्चों के लिए खेलना है बहुत जरूरी
बच्चों के लिए खेलना है बहुत जरूरी

सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले युवराज को बास्केटबॉल खेलना पसंद है। लेकिन जंक फूड का मोह नहीं छूट रहा। वजन बढ़ता ही जा रहा है। चलने से बचते हैं। इसलिए जब कभी पढ़ाई से समय बचता है, तो ऑनलाइन ही गेम खेल लेते हैं। दोस्तो, यह सिर्फ युवराज की कहानी नहीं है, बल्कि देश के दूसरे नौनिहालों का भी यही हाल है। फिटनेस एक्सपर्ट नीरज मेहता बताते हैं, आजकल बच्चों ने पौष्टिक आहार से बिल्कुल तौबा कर ली है। न फल खाते हैं, न हरी सब्जियां। शरीर चलने के लिए बना है, लेकिन एक स्थान पर ही जमे रहते हैं। कोई शारीरिक श्रम नहीं। इससे बॉडी मास इंडेक्स के अलावा कार्डिएक आउटपुट (दिल धड़कने की गति) भी घट रहा है। एसी में रहते हैं, पसीना कम आता है। इससे न सिर्फ मोटापा बढ़ता है, बल्कि 4-5 वर्ष की उम्र से ही उनका शरीर मधुमेह, अस्थमा जैसी बीमारियों का घर बन जा रहा है। ऐसे में जरूरी है कि बच्चे-किशोर रोजाना कम से कम आधे घंटे साइक्लिंग, रनिंग, जंपिंग जैसे व्यायाम करें।

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फिजिकल एक्टिविटी से एकाग्रता बढ़ती है, स्फूर्ति आती है। इसमें अभिभावकों को भी अपने बच्चों का प्रेरणास्रोत बनना होगा। जापानी बच्चों से ले सकते हैं प्रेरणा दोस्तो, कहते हैं कि अगर आप बचपन में स्वस्थ रहेंगे, तो न सिर्फ लंबी उम्र, बल्कि एक खुशहाल जीवन का आनंद भी ले पाएंगे। जॉयस मेयर ने कहा है, ‘हम अपने परिवार और दुनिया को जो सबसे सुंदर तोहफा दे सकते हैं, वह है खुद की अच्छी सेहत।’‘द लैंसेट’ पत्रिका ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि जापान के बच्चे सबसे अधिक स्वस्थ होते हैं। नाओमी मोरियामा एवं विलियम डॉयल ने इस पर अपनी पुस्तक,‘सीक्रेट्स ऑफ द वल्र्ड हेल्दिएस्ट चिल्ड्रेन-व्हाई जैपनीज चिल्ड्रेन हैव द लॉन्गेस्ट, हेल्दिएस्ट लाइव्स-ऐंड हाऊ योर्स कैन टू?’ में लिखा है कि जापानी बच्चे संतुलित एवं पौष्टिक आहार लेते हैं। उनके लंच में चावल, सब्जियां, दही,फल होते हैं, न कि तले-भुने खाने या जंक फूड।

स्कूल जाने के लिए बस की बजाय पैदल जाना पसंद करते हैं। वहां के बच्चे अपना काम भी खुद करते हैं। दूसरी ओर, जब हम अपने देश के बच्चों की सेहत पर नजर डालते हैं, तो स्थिति उतनी अच्छी नहीं दिखाई देती। समस्याओं से छुटकारा देश के शीर्ष खेल संगठनों में शामिल ‘एडुस्पोट्र्स’ की एक हालिया हेल्थ एवं फिटनेस स्टडी से पता चला है कि हमारे यहां के स्कूली बच्चों-किशोरों का स्वास्थ्य एवं फिटनेस का स्तर लगातार गिर रहा है। सुस्त जीवनशैली एवं खेलकूद में भागीदारी घटने से वे मोटापे की चपेट में आ रहे हैं। उनके लिए तेज दौड़ना मुश्किल हो गया है। व्यायाम और फिजिकल एक्टीविटीज न करने से शरीर का लचीलापन कम होता जा रहा है। रहीसही कसर इंटरनेट की लत पूरी कर दे रहा है।

बाल मनोचिकित्सक नयामत बावा के अनुसार, बच्चों में संवेदना दिनों-दिन कम होती जा रही है। वे नाकामी का सामना नहीं कर पाते। ऐसे तमाम कारक मिलकर उन्हें शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर कर रहे हैं। उनकी प्रॉब्लम सॉल्विंग क्षमता घट रही है। इस स्थिति में उनका बाहर निकलना, खेलना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। स्कूलों में मिले प्रोत्साहन ‘एडुस्पोट्र्स’ के सह-संस्थापक परमिंदर गिल कहते हैं,‘पहले उनके खेलने के लिए सड़क भी थी, मैदान भी। लेकिन बीते करीब 20 वर्षों में शहरों का भूगोल बदल गया है।

ओपन स्पेस सिकुड़ते जा रहे हैं। अगर कहीं मैदान बचा है, तो वह स्कूलों में ही है। इसलिए स्कूलों की भूमिका बढ़ जाती है कि वे बच्चों को खेलकूद एवं शारीरिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करें। हमने अपने अध्ययन में भी पाया है कि जिन स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएं, संसाधन एवं प्रशिक्षित फिजिकल टीचर हैं, स्पोट्र्स के लिए तीन से अधिक पीरियड्स यानी कक्षाएं निर्धारित हैं, वहां के बच्चे कहीं अधिक फिट हैं। लिहाजा, यह जरूरी है कि शैक्षिक की तरह स्पोट्र्स को लेकर भी एक ‘स्ट्रक्चर्ड प्रोग्राम’ स्कूलों में तैयार किया जाए। बच्चों को एक उत्साहवर्धक वातावरण मिलेगा, तो वे खेल-कूद को एक कौशल के रूप में महत्व देना शुरू कर देंगे। ’

बच्चों का फिटनेस टेस्ट
-3 में से 1 स्कूली बच्चे का बीएमआई अस्वस्थ 65.03% 

-तेज दौड़ने (स्प्रिंटर कैपेसिटी) में दिक्कत । 66.33 % 

-शरीर का निचला हिस्सा अपेक्षाकृत कमजोर। 57.96 % 

-चार में से एक बच्चे में लचीलेपन की कमी। 71.62 %

(एडुस्पोट्र्स द्वारा देश भर के 7 से 17 वर्ष के स्कली बच्चों के बीच किए गए सर्वे का निष्कर्ष)

जरूरी है बच्चों का मूवमेंट
सोशल मीडिया, ऑनलाइन गेम्स में पढ़ाई या आउटडोर खेलों की अपेक्षा जल्दी सफलता मिलती है। इससे बच्चे बाहर खेलने जाने से परहेज करते हैं। अभिभावक भी सुरक्षा व समय की कमी को लेकर उन्हें बाहर मैदानों में खेलने भेजने से हिचकते हैं। बच्चों की जीवनशैली पूरी तरह बदल गई है। अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों के मूवमेंट पर पूरा ध्यान दें।

ऐसे सुधारें सेहत

-स्कूलों में फिजिकल एजुकेशन के पीरियड अधिक हों। 

-रोजाना एक घंटे दें खेलों को। 

-कार्डियो एक्सरसाइज के साथ ब्रिस्क वॉक करें, दौड़ें, कूदें। 

-तीस मिनट की साइक्लिंग और स्पॉट रनिंग से भी होगा फायदा। 

-जंक फूड के अलावा नमक के सेवन पर रखें नियंत्रण। 

-खाएं हरी सब्जियां, फल, अनाज।

दुनिया के सेहतमंद बच्चे
-द लैनसेट’ के अनुसार, जापान के बच्चे सबसे अधिक स्वस्थ होते हैं। 

-जापानी बच्चे कम कैलोरी का सेवन करते हैं।

-वे मीट और डेयरी प्रोडक्ट्स की तुलना में मछली व हरी सब्जियां अधिक खाते हैं। 

-विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अमेरिकी बच्चे छोटी उम्र से ही गंभीर बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

- अंशु सिंह


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