ऐसे बनायें अपने बच्चों को फाइनेंशियली सिक्योर
बच्चों को जेबखर्च देना एक तरह से उन्हें फाइनांशियली इंडिपेंडेंट बनाना होता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि कहीं वे आपके दिये पैसों का इस्तेमाल सिगरेट, जुआ, शराब या ऐसे ही गलत कामों में तो नहीं कर रहे हैं।
बच्चों को वित्तीय रुप से साक्षर बनाने की प्रक्रिया घर से शुरु होती है। इस प्रक्रिया में ये पहला स्टेप होता है जिसमें उन्हें पैसे का महत्व के बारे में समझाया जाता है। लेकिन ये इतना भी आसान नहीं जितना हमें लगता है। बच्चों को फिनांशियली इंडिपेंडेंट बनाने का मतलब रोज उन्हें पॉकेटमनी देना ही नहीं है। माता-पिता को काफी सारी बातें ध्यान में रखनी चाहिए।
फिक्स अमाउंट
आप अपने बच्चों को फिनांशियली बनाने के लिए 5-8 साल, 9-12 साल, 13-15 और 16-18 साल उम्र से शुरुआत करनी चाहिए। उन्हें सात साल से उनके खर्च के अनुसार जेबखर्च देना शुरु करें। लेकिन ये बात ध्यान रखें कि वे ये पैसे सम्हालने में सक्षम हों। अगर आपको ऐसा लगता है कि अभी वे जेबखर्च सम्हालने में सक्षम नहीं हैं तो ये उन्हें बाद में जेबखर्च देना शुरु करें। उनके उम्र के साथ साथ उनके जेबखर्च में बदलाव भी करते रहें। 7-8 साल होने पर उन्हें छोटे मोटे सामानों की शॉपिंग करके आने को कहें इससे उन्हें छोटे-मोटे हिसाब किताब आ जाएगा। अगर आप उन्हें कुछ खर्च देना चाहती हैं तो उन्हें हर रोज अलग अलग अमाउंट देने के बजाय उन्हें एक फिक्स अमाउंट पैसे दें।
उन्हें एक पिग्गी बैंक देकर इसमें पैसे सेव करने को कहें
वित्तीय स्वतंत्रता एक बच्चे को सेल्फ कॉंफिडेंट बनाती है। उन्हें पैसे देने के पहले उनसे एक बार उनके खर्च और सेविंग को लेकर डिस्कस जरुर करें। उन्हें पैसे खर्च करने से सेव करने की आदत लगायें इससे वे अपनी आगे की लाइफ में फिनांशियल सिक्योरिटी जैसी बात अच्छी तरह से समझ पायेंगे। उन्हें एक पिग्गी बैंक ऑफर करें और पैसे सेव करने की तरफ उन्हें प्रोत्साहित करें। उन्हें फेस्टिवल के समय या रिलेटिव से मिले पैसों को सेव करके रखने की ट्रेनिंग दें। उन्हें उनके सेव किये गए पैसों से उनके जरुरत का कोई सामान खरीदने का लक्ष्य निर्धारित करने को कहें।
उनके खर्चे पर नजर रखें लेकिन डिसाइड उन्हें करने दें
उन्हें उनका जेबखर्च देना एक तरह से उन्हें फाइनांशियली इंडिपेंडेंट बनाना होता है। उन पर हमेशा इस बात का दबाव नहीं बनायें कि उन्हें किस चीज पर खर्च करने हैं और किस चीज पर नहीं। आपका काम बस उनके लिए एक फ्रेमवर्क तैयार करना है, उनके टार्गेट को फिक्स करना आपका काम नहीं है। उनका अपना निर्णय खुद लेने दें कि उन्हें खुद के लिए क्या खरीदना है और क्या नहीं। वे उम्र में आपसे छोटे हैं और वे इस काम में गलतियां करेंगे तो उन्हें करने दें, तभी वे सीखेंगे। जब उन्हें आपकी जरुरत हो तो आप उनकी मदद जरुर करें लेकिन उन्हें अपना काम खुद चुनने दें। इस बात पर जरुर नजर रखें कि कहीं वे आपके दिये हुए पैसों का उपयोग सिगरेट, जुआ, शराब या ऐसे ही दूसरे गलत कामों में तो नहीं कर रहे हैं।
उन पर फोर्स ना करें
नई जिम्मेदारी लेने में शुरुआती दौर में बच्चों से गलतियां होना लाजिमी है। आगे की लाइफ में बड़ी मिस्टेक करने से ये अच्छा है कि वे इसी स्टेज छोटी मोटी गलतियां करके सीख जायें। इस बात को आप स्वीकर करें कि शुरुआती दिनों में वे पैसे को मैनेज करना नहीं जान रहे हैं या गलत चीजों में उन्होंने पैसे खर्च कर दिये हैं तो ये सब उनका लर्निंग पार्ट है। टीनेजर्स में उधार लेना और देना आम बात है। ये आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप उन्हें कर्ज में डूबने से कैसे बचाते हैं और उन्हे कैसे इसके बारे मे समझा पाते हैं।
रोज के काम के लिए उन्हें पे नहीं करें
बहुत से पेरेंट्स ये गलती कर बैठते हैं कि वे अपने बच्चों को हर रोज उनके काम से खुश होकर उन्हें पैसे देते हैं। ये एक तरह से उनकी आदत बिगाड़ने जैसा होता है। उन्हें उनके कर्तव्यों और मनी मेकिंग अवसरों में अंतर को अच्छे से समझने दें। उन्हें अपनी मेहनत की कमाई और इनाम का मतलब समझने दें। बच्चे तो हमेशा अपनी छोटी छोटी अचीवमेंट के लिए भी आपसे कंपेनसेट की उम्मीद करते हैं तो क्या उनके हर उम्मीद को पूरा किया जा सकता है।
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