नशे के भंवर में फंसते जा रहे नौनिहाल, परिजन अनजान
पेरेंट्स के समय नहीं देने के कारण बच्चे अपने रास्ते से भटक जाते हैं और वे नशे के आदी हो जाते हैं। ये समस्या धीरे धीरे बड़ा रुप ले रही है।
जीवनशैली में आ रहे बदलावों को लोग इस कदर अपना रहे हैं कि वे इस बदलाव के नकारात्मक परिणामों को भी नहीं देख पा रहे हैं। आज माता-पिता के पास समय नहीं है। बचपन प्रतिस्पर्धा के बोझ के नीचे दब गया है और संस्कार व परिवार समय की कमी की बलि चढ़ गए हैं। ऐसे में बच्चे उन रास्तों को चुन रहे हैं, जो उनके भविष्य को अंधकारमय बना रहे हैं। माता-पिता के पास पैसा है लेकिन समय नहीं। ऐसे में वे बच्चों को पैसे से खुश रख रहे हैं। बच्चे उन पैसों से अपने लिए विषैली खुशियां खरीद नशे के गर्त में गिरते जा रहे हैं। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि एनसीपीसीआर (राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग) के एक सर्वे के मुताबिक पहले यह धारणा थी कि गलियों
में घूमने वाले अनपढ़ बच्चों में नशे की प्रवृति बढ़ रही है लेकिन सच यह है कि एनसीआर के स्कूली विद्यार्थियों में यह लत तेजी से बढ़ रही है।
साथ से बचेगा बचपन
दिल्ली की क्लीनकल साइकोलॉजिस्ट तान्या सिन्हा के मुताबिक बच्चों को माता पिता के प्यार-दुलार व समय की
जरूरत होती है। मैं हमेशा माता पिता को बताती हूं कि बच्चों को पैसे कतई न दें। उन्हें पॉकेट मनी भी जरूरत के अनुसार ही दें। पहले के माता पिता पॉकेट मनी देते ही नहीं थे, वे केवल जरूरत का सामान ला देते थे। आज स्थिति बिलकुल उलट है। तान्या के मुताबिक पैसे देने चाहिए लेकिन जरूरत से ज्यादा नहीं। पैसे देने से बच्चा लतों में फंसने लगता है।
साथियों के दबाव में
गुरुग्राम के मानव रचना इंटरनेशनल स्कूल की काउंसलर कैरल डिसूजा के मुताबिक बच्चों में दो चीजों की वजह से इस तरह की लत बढ़ रही है। एक तो उन्हें परिवार के सानिध्य के नाम पर पैसे मिलते हैं और दूसरे साथियों के दबाव में वे इस तरह की लत में फंस जाते हैं। माता-पिता सोचते हैं कि बच्चों को पैसों से खुश रखेंगे तो शायद वे समय न देने की शिकायत नहीं करेंगे। ऐसे में बच्चे अकेलापन महसूस करने लगते हैं और अपने इस भावनात्मक कमी को पूरा करने के लिए दोस्तों से और जुड़ जाते हैं। दोस्त उन्हें ड्रग्स आदि की तरफ मोड़ देते हैं और बच्चे इसमें समय के साथ फंसते चले जाते हैं।
आजकल माता व पिता दोनों कामकाजी हैं, उनके लिए पैसा कमाना प्राथमिकता है। ऐसे में वे बच्चों की बेसिक जरूरतों को अनदेखा कर रहे हैं। बच्चों की सुख सुविधाओं के लिए पैसा कमा रहे हैं लेकिन उन्हें समय नहीं दे रहे हैं। बच्चे खालीपन को भरने के लिए ड्रग्स की तरफ भाग रहे हैं। हम उन्हें बताते हैं कि गलती अभिभावकों की हैे।
-डॉ. नियति धवन, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, अवेर्कंनग इंडिया फाउंडेशन
मैं जब कहीं जाकर बच्चों की काउंर्संलग करती हूं तो दस में से आठ बच्चे बताते हैं कि वे ऐसे दोस्तों को जानते हैं जो कि ड्रग्स लेते हैं और यह एनसीआर की कड़वी सच्चाई बनती जा रही है। भले आपके पास कितना ही पैसा क्यों न हो, बच्चों को पैसे न दें।
-कैरल डिसूजा, काउंसलर, मानव रचना इंटरनेशनल स्कूल, सेक्टर 46, गुरुग्राम
-प्रियंका दुबे मेहता