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स्मार्ट बनें बेबी

बच्चों के मानसिक विकास के लिए जरूरी है पैरेंट्स का भावनात्मक प्यार और दोस्ताना व्यवहार, बच्चे कैसे बनें स्मार्ट, बता रहे हैं शहर के कुछ एक्सपट्स्...

By Babita kashyapEdited By: Published: Sat, 12 Nov 2016 02:49 PM (IST)Updated: Sat, 12 Nov 2016 03:11 PM (IST)
स्मार्ट बनें बेबी

नए जमाने के बच्चों का बचपन भी बदल गया है। घर पर पापा की पिटाई, स्कूल में टीचर की डांट और ट्यूशन में वर्क पूरा न होने पर मैम की पनिशमेंट। आज के बच्चों को ऐसी ही उलझनों से जूझना पड़ रहा है। थोड़ी समझ बढ़ी कि करा दी गई किताबों से दोस्ती लेकिन बच्चों से जब कोई काम दबाव में करवाया जाता है तो उसका सीधा असर शारीरिक व मानसिक विकास पर पड़ता है। बच्चे होनहार बनें, इसके लिए जरूरी है कि उन पर हमेशा निगाह रखी जाए लेकिन इससे भी कहीं अधिक जरूरी है कि पैरेंट्स बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार अपनाएं। जिससे बच्चे अपनी हर परेशानी निडर होकर शेयर कर सकें। उनकी परवरिश ऐसी की जाए कि वे हर स्थिति में अपने को ढाल सकें।

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दबाव बनाने से बचें

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.रत्ना त्रिपाठी कहती हैं, 'बात पढ़ाई की हो या अन्य किसी विषय की, बच्चों पर कभी काम का दबाव न बनाएं। मॉडर्न लाइफ स्टाइल में बच्चों पर उम्र के हिसाब से हर चीज का अधिक दबाव है। स्कूल में अच्छे नंबर लाने की होड़, घर में पैरेंट्स और रिश्तेदारों के सामने इमेज बनाने का दिखावा और सार्वजनिक मंच पर एक्स्ट्रा एक्टिविटी में खुद को साबित करने की जद्दोजहद। अच्छा रहेगा कि पैरेंट्स दूसरों की देखा-देखी न करके बच्चे की क्षमता और पसंद को प्राथमिकता में रखें। ऐसा न करें कि बच्चे की किसी भूल या गलती पर सभी डांट लगा रहे हों तो आप भी उस पर हावी हो जाएं। संयम से काम लें और बच्चे को गलत व सही में अंतर करना सिखाएं।'

हमेशा मनोबल बढ़ाएं

आप किसी भी परेशानी से आसानी से उबर सकती हैं, लेकिन बच्चे तो कोरा कागज हैं। इस उम्र में आप उनके दिमाग में जैसी इबारत लिख देंगे भविष्य में वे वैसा ही करेंगे और सोचेंगे भी। चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. आर. सी. गुप्ता कहते हैं, 'किसी भी गलती पर बच्चे को समझाएं और उसे सही करने के लिए उत्साहित करें। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा। बच्चे को नकारात्मक सोच के भंवर में न फंसने दें और हमेशा यह जताएं कि तुम भी वह सब कुछ कर सकते हो जो दूसरे बच्चे कर लेते हैं। इससे उनका उत्साह बढ़ेगा और कुछ कर गुजरने का जज्बा विकसित होगा। बच्चे में अच्छा व बुरा करने की समझ भी बढ़ेगी।'

अवसाद से बचाएं

कई बार अपने साथियों की उपलब्धि या अच्छे अंक लाने की बात से बच्चे नीरस हो जाते हैं। ऐसे में उन्हें डांटने की बजाय आगे अच्छा करने के लिए प्रेरित करें। मनोचिकित्सक डॉ. विपुल सिंह कहते हैं, 'स्कूल से आने के बाद यदि बच्चा गुमसुम रहता है या खाना ठीक से नहीं खाता है तो इसकी वजह जानें और समस्या का शांति के साथ समाधान करें। इससे बच्चा डिप्रेशन की चपेट में नहीं आएगा। हर बच्चे का आई क्यू लेवल अलग होता है। बेहतर रहेगा कि अपने बच्चे की तुलना किसी अन्य से न करें। इस बात पर जोर दें कि वह कैसे और स्मार्ट बन सकता है।'

जिज्ञासाओं का करें समाधान

चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. सौरभ त्रिवेदी कहते हैं, 'बच्चों में बड़ों की अपेक्षा किसी भी चीज को जानने की उत्सुकता अधिक होती है। वे किसी भी विषय को बहुत गहनता से जानना चाहते हैं। स्कूल में बच्चे के कई बार कोई प्रश्न करने पर उसे टीचर की डांट खानी पड़ती है। ऐसे में वे अपनी जिज्ञासा पैरेंट्स से शेयर करते हैं। आप बच्चे से टीचर वाला व्यवहार न करके उसकी जिज्ञासा का समाधान करें। यदि आपको भी उस विषय की जानकारी नहीं है तो सही जानकारी जुटाकर उसे संतुष्ट करें। इससे उनमें किसी भी बात को गहराई से समझने की

आदत विकसित होगी।'

खेलना भी है जरूरी

मनोचिकित्सक डॉ. कलीम अहमद कहते हैं, 'पढ़ाई जरूरी है लेकिन छोटे बच्चों को खेलने का पूरा मौका दें। बच्चे हमेशा पैरेंट्स से अपेक्षा करते हैं कि वे भी उनके साथ खेलें। इस बात पर अक्सर बच्चों को डांट भी खानी पड़ती है। बच्चों के खेलने का समय निर्धारित रखें लेकिन कोशिश करें कि यदि समय है तो उनके साथ खुद भी खेलें। इससे वे अधिक प्रसन्नता के साथ खेल का मजा लेंगे।'

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