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Career की इंजीनियरिंग

बदलते वक्त के साथ करियर के तमाम नये ऑप्शंस भी खुल गए हैं, लेकिन आज भी अधिकतर स्टूडेंट्स की पसंद इंजीनियरिंग ही है। इस फील्ड में अच्छी हैसियत, बढिय़ा वेतन और काम की संतुष्टि है। टॉप-10 करियर की सीरीज में इस बार पढ़ें इंजीनियरिंग फील्ड में संभावनाओं के बारे में...

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 15 Apr 2015 12:07 PM (IST)Updated: Wed, 15 Apr 2015 12:14 PM (IST)
Career की इंजीनियरिंग

बदलते वक्त के साथ करियर के तमाम नये ऑप्शंस भी खुल गए हैं, लेकिन आज भी अधिकतर स्टूडेंट्स की पसंद इंजीनियरिंग ही है। इस फील्ड में अच्छी हैसियत, बढिय़ा वेतन और काम की संतुष्टि है। टॉप-10 करियर की सीरीज में इस बार पढ़ें इंजीनियरिंग फील्ड में संभावनाओं के बारे में...

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सॉफ्टवेयर इंजीनियर

उदयन मौर्य

सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर

मिडिल क्लास फैमिली से हूं। बचपन में करियर को लेकर काफी कंफ्यूजन था। लेकिन एक बात क्लियर थी, मुझे कंप्यूटर में बहुत इंट्रेस्ट था। आगे चलकर इसीलिए मैंने इंजीनियरिंग को करियर के रूप में चुना। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के जेके इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से बीटेक किया। उसके बाद मुझे एचसीएल टेक्नोलॉजीज में जॉब मिली। कुछ साल काम करने के बाद मैं अमेरिका चला आया। यहां फिडेलिटी नेशनल इंफो सर्विस में सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम कर रहा हूं। इसके साथ ही सिंटेल इंक में प्रोजेक्ट लीडर की भूमिका निभा रहा हूं। सब कुछ बहुत चैलेंजिंग है, लेकिन इंट्रेस्ट के मुताबिक काम करकेबहुत अच्छा लगता है।

अपॉच्र्युनिटी

मल्टीनेशनल कंपनियों में नौकरी के अवसर तो मौजूद हैं ही, साथ ही आप खुद का बिजनेस भी शुरू कर सकते हैं। कंपनीज अपनी जरूरतों के हिसाब से सॉफ्टवेयर डेवलप कराती हैं, इसलिए हर फील्ड में सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की डिमांड बढ़ गई है।

कोर्स

सॉफ्टवेयर इंजीनियर के लिए बीटेक/बीई कंप्यूटर साइंस आदि कोर्स करने की आवश्यकता होती है। लेकिन कई दूसरे तरीकों से भी इस फील्ड में जाया जा सकता है। आप कंप्यूटर बेसिक लेवल कोर्स शुरू कर सकते हैं या फिर ओ लेवल कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। इसके बाद आप कंप्यूटर प्रोग्राम में डाटा एंट्री करने के काबिल हो जाएंगे। आगे ट्रेनिंग लेकर आप कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में भी जॉब हासिल कर सकते हैं। प्रोग्रामिंग जॉब में आप प्रोग्राम को लिखने और टेस्टिंग का काम करेंगे तथा इंप्लीमेंटिंग फेज में आपको यूजर की सहायता करनी होगी।?

स्किल्स

-कॉन्संट्रेशन के साथ सीखने की चाहत

-क्रिएटिविटी

-मैथ्स में स्ट्रांग

-न्यू टेक्निक के प्रति जागरूकता

-लॉजिकल कैपेसिटी

-प्रैक्टिकलिटी

इलेक्ट्रॉनिक्स का जमाना

इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग के तहत माइक्रोवेव और ऑप्टिकल कम्युनिकेशन, डिजिटल सिस्टम्स, सिग्नल प्रोसेसिंग, टेलीकम्युनिकेशन, एडवांस्ड कम्युनिकेशन, माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक जैसे फील्ड शामिल हैं। साथ ही, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिकल, पॉवर सिस्टम ऑपरेशंस, कम्युनिकेशन सिस्टम में भी इसकी अहमियत कम नहीं है।

अपॉच्र्युनिटी

कम्युनिकेशन इंजीनियरों को टीसीएस, मोटोरोला, इंफोसिस, डीआरडीओ, इसरो, एचसीएल, वीएसएनएल आदि कंपनीज में अच्छी सैलरी पर नौकरी मिलती है। एक सर्वे के अनुसार अगले 10 साल में इंजीनियरिंग फील्ड की ग्रोथ रेट 14 फीसदी से ज्यादा होगी। इस फील्ड में अब भी 86 फीसदी से ज्यादा इंजीनियर काम कर रहे हैं।

कोर्स

इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक करना होगा।

वर्क प्रोफाइल

कम्युनिकेशन इंजीनियर चिप डिजाइनिंग और फैब्रिकेटिंग के काम में शामिल होते हैं।?सैटेलाइट और माइक्रोवेव कम्युनिकेशन जैसे एडवांस्ड कम्युनिकेशन, कम्युनिकेशन नेटवर्क सॉल्यूशन, एप्लिकेशन ऑफ डिफरेंट इलेक्ट्रॉनिक फील्ड्स में काम करते हैं।

सैलरी

शुरुआत में 3.5 से 4 लाख रुपये प्रतिवर्ष औसतन वेतन मिल सकता है। यह सैलरी 12 लाख रुपये प्रतिवर्ष तक भी जा सकती है।

एवरग्रीन ब्रांच मैकेनिकल

ऋषिकेश कुमार

मैकेनिकल इंजीनियर

मैंने कभी सोचा नहीं था कि इंजीनियरिंग करूंगा। दोस्तों को फॉलो करते हुए इंजीनियरिंग के एंट्रेंस एग्जाम दिए। इस तरह कोमेड-के (कंसोर्शियम ऑफ मेडिकल, डेंटल ऐंड इंजीनियरिंग कॉलेजेज ऑफ कर्नाटक) की परीक्षा क्लियर करने पर मेरा दाखिला बेंगलुरु स्थित आर.वी.कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में मैकेनिकल ब्रांच में हो गया। साथ ही, पब्लिक प्रोक्योरमेंट में डिप्लोमा भी किया है। दो साल लार्सन ऐंड टुब्रो में काम करने के बाद आज मैं एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड में असिस्टेंट मैनेजर हूं।

वर्क ऐंड स्कोप

मैकेनिकल इंजीनियर्स थर्मल पावर इंडस्ट्री, गैस टर्बाइन, एयर कंडिशनिंग, रेफ्रिजरेशन, रिफाइनिंग, शिपिंग, ऑटोमोबाइल, कंस्ट्रक्शन, डिफेंस आदि इंडस्ट्री के आरऐंडडी विंग, प्रोडक्शन, डिजाइनिंग, टेस्टिंग, एनालिसिस, इंस्टॉलेशन और मेंटिनेंस डिपार्टमेंट में काम करते हैं। मेक इन इंडिया मिशन के शुरू होने से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में मैकेनिकल इंजीनियर्स के लिए अवसर बढऩे की उम्मीद है।

एलिजिबिलिटी

जिन स्टूडेंट्स को कार या मशीनों में दिलचस्पी है, इनोवेटिव और क्रिएटिव हैं, वे इस स्ट्रीम को चुन सकते हैं। इससे पहले उन्हें इंजीनियरिंग का एंट्रेंस एग्जाम क्वालिफाई करना होगा। जेइइ के अलावा कर्नाटक के प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजेज में दाखिले के लिए एक कॉमन एंट्रेंस एग्जाम होता है।

सिविल में अपॉच्र्युनिटीज

सिविल में ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन के अलावा डिप्लोमा किया जा सकता है।

आलोक झा

सिविल इंजीनियर

मेरे पैरेंट्स चाहते थे कि मैं इंजीनियरिंग करूं और वह भी सिविल इंजीनियरिंग में। इसलिए कॉमेडके एग्जाम क्लियर करने पर मैंने बेंगलुरु स्थित दयानंद सागर इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। वहां पढ़ाई के दौरान मेरी इसमें दिलचस्पी बढ़ी। इसके बाद चार साल कैसे बीते, पता ही नहीं चला। सिविल के अलावा मैं टेक्नोलॉजी को लेकर काफी पैशनेट था। कैम्पस प्लेसमेंट में पहली जॉब एसेंचर में लगी। फिर डेल में मौका मिला। वहां करीब ढाई साल काम करने के दौरान टेक्नोलॉजी फ्रंट पर बहुत कुछ नया सीखने को मिला। आज मैं आरऐंडडी की अग्रणी कंपनियों में शामिल वीएमडब्ल्यूएआरइ के साथ एलएमएस एनालिस्ट के तौर पर काम को एंज्वॉय कर रहा हूं।

वर्क ऐंड स्कोप

मैंने अपने पैशन को फॉलो किया और सिविल इंजीनियरिंग करने के बावजूद रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट से जुड़ा। लेकिन देश में आए इंफ्रास्ट्रक्चर बूम को देखते हुए यहां आपके लिए अच्छे अवसर हैं।?प्राइवेट के अलावा गवर्नमेंट सेक्टर, कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स, डिफेंस सर्विसेज में सिविल इंजीनियर्स की बहुत आवश्यकता है। वहीं, हाइड्रोलिक, कंस्ट्रक्शन, ट्रांसपोर्टेशन, स्ट्रक्चरल, मैटीरियल इंजीनियरिंग आदि में स्पेशलिस्ट्स को हाथों-हाथ लिया जाता है।

एलिजिबिलिटी

इंजीनियरिंग में में एंट्री तभी करनी चाहिए, जब आपका इसमें इंट्रेस्ट हो। बहुत सारे स्टूडेंट्स थर्ड या फोर्थ इयर में आते-आते इसे छोड़ देते हैं। जरूरी है कि आपका मैथ्स और फिजिक्स के कॉन्सेप्ट्स स्ट्रॉन्ग हों।

राइज इन आर्किटेक्चर

महेन्द्र सेठी

आर्किटेक्ट

स्कूल के दिनों से ही मैं साइंस, आट्र्स और इकोनॉमिक्स में एक साथ एक्सेल करना चाहता था। यह मौका मुझे सिर्फ आर्किटेक्चर की पढ़ाई में मिलता। इसलिए दिल्ली की आइपी यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर में बैचलर्स किया। फिर स्कूल ऑफ प्लानिंग ऐंड आर्किटेक्चर से एनवॉयर्नमेंटल प्लानिंग में मास्टर्स। इसके बाद जापान की यूएन यूनिवर्सिटी से फेलोशिप करने का भी अवसर मिला। इन सबने आर्किटेक्चर में प्रोफेशन के प्रति मेरे आउटलुक को बढ़ाया। मैंने रिसर्च फील्ड में काम करने का फैसला किया और फिलहाल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स में अर्बन एनवॉयर्नमेंट एक्सपर्ट एवं एडिटर के रूप में काम कर रहा हूं।

वर्क ऐंड स्कोप

पहले की तुलना में आर्किटेक्चर का फील्ड आज काफी ब्रॉड हो चुका है। बैचलर्स के बाद आप प्रोडक्ट, इंडस्ट्रियल, हाउसिंग, अर्बन डिजाइन, रियल एस्टेट, कंस्ट्रक्शन, बिल्डिंग मैनेजमेंट, अर्बन ऐंड रूरल प्लानिंग में मास्टर्स कर करियर को नया आयाम दे सकते हैं। एक एक्सपर्ट आर्किटेक्ट शहरों की प्लानिंग, डिजाइनिंग और पॉलिसी मेकिंग में भी भागीदार बनता है। जो पीएचडी करते हैं, वे शिक्षण कार्य या रिसर्च वर्क से जुड़ सकते हैं। विदेशों में तो इनके लिए अनेक संभावनाएं हैं।

एलिजिबिलिटी

यह एक प्रैक्टिस ओरिएंटेड कोर्स है, जिसमें प्रैक्टिकल पर विशेष जोर होता है। 12वीं करने के बाद नेशनल एप्टीट्यूड टेस्ट फॉर आर्किटेक्चर की परीक्षा दे सकते हैं। इसके अलावा, इंस्टीट्यूट्स की अलग से होने वाली प्रवेश परीक्षा में शामिल हो सकते हैं।

ग्रो विद बायोक्लीनिकल

दिलीप मिश्रा

बायोक्लीनिकल इंजीनियर

मैं हमेशा से एक ऑफबीट फील्ड में काम करना चाहता था। एक ऐसा सेक्टर जहां मेडिकल के साथ-साथ इंजीनियरिंग का भी एप्लीकेशन हो। बायोमेडिकल और क्लीनिकल इंजीनियरिंग में इसकी संभावना नजर आ रही थी, इसलिए वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से बायोटेक्नोलॉजी में इंजीनियरिंग करने के बाद मैंने आइआइटी मद्रास से क्लीनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया और चेन्नई स्थित एक कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर हूं।

वर्क ऐंड स्कोप

आज हेल्थकेयर सेक्टर में जिस तरह से मॉडर्न मेडिकल इक्विपमेंट्स, डायग्नोस्टिक टेक्निक और टेक्नोलॉजी का प्रयोग हो रहा है, उसे देखते हुए ऐसे एक्सपट्र्स की जरूरत है, जो इन्हें कुशल तरीके से हैंडल और मेंटेन कर सकें। यही जिम्मेदारी एक बायोमेडिकल या बायोक्लीनिकल इंजीनियर निभाता है। यानी बायोक्लीनिकल इंजीनियर्स इक्विपमेंट मैनेजमेंट, इंस्टॉलेशन, टेस्टिंग, सेफ्टी चेक, मेंटिनेंस आदि का काम देखते हैं। इनके लिए हॉस्पिटल्स, मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के अलावा फार्मास्युटिकल कंपनीज, रिसर्च लैब्स में अच्छे मौके हैं।

एलिजिबिलिटी

क्लीनिकल इंजीनियरिंग एक ऐसा इनोवेटिव प्रोग्राम है, जिसमें फॉर्मल इंजीनियरिंग ट्रेनिंग के साथ-साथ आपको क्लीनिकल एक्सपोजर मिलता है। इंडिया में क्रिश्चियन मेडिकल क़ॉलेज, वेल्लोर, आइआइटी मद्रास जैसे कुछ संस्थान हैं जहां से स्टूडेंट्स क्लीनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स कर सकते हैं।

ऑटोमोबाइल इंजीनियर

भारतीयों की क्रय शक्ति और गाडिय़ों की सेल्स बढऩे से ऑटोमोबाइल सेक्टर तेजी से उभरती हुई इंडस्ट्री बन गया है।

वर्क ऐंड स्कोप

कार बनाने वाली कंपनियों से लेकर सर्विस स्टेशन, इंश्योरेंस कंपनीज, ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन में ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स के लिए काफी मौके हैं। इसके अलावा, जिस तरह से सड़कों पर गाडिय़ों की संख्या बढ़ रही है, उनकी मेंटिनेंस और सर्विसिंग करने वाले प्रोफेशनल्स की मांग भी बढ़ रही है। आप ऑटोमोबाइल टेक्निशियन, कार या बाइक मैकेनिक, डीजल मैकेनिक के रूप में काम कर सकते हैं। आप किसी ऑटो कंपनी में सेल्स मैनेजर, ऑटोमोबाइल डिजाइंस पेंट स्पेशलिस्ट भी बन सकते हैं।

वर्क प्रोफाइल

एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर पर कई प्रकार की जिम्मेदारियां होती हैं। उन्हें कम लागत में बेहतरीन ऑटोमोबाइल डिजाइन करना होता है। पहले ड्रॉइंग और ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है। इसके बाद इंजीनियर्स उनमें फिजिकल और मैथमेटिकल प्रिंसिपल्स अप्लाई कर उसे डेवलप करते हैं। ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स प्लानिंग, रिसर्च वर्क के बाद फाइनल प्रोडक्ट तैयार करते हैं, जिसे मैन्युफैक्चरिंग के लिए भेजा जाता है।

स्किल्स

आपके पास टेक्निकल के साथ-साथ फाइनेंशियल नॉलेज होना भी जरूरी है। आपको जॉब के कानूनी पहलुओं से अपडेट रहना होगा। इसके अलावा, इनोवेटिव सोच और स्ट्रॉन्ग कम्युनिकेशन स्किल आगे बढऩे में मदद करेगी। इस फील्ड में ड्यूटी ऑवर्स काफी लंबे होते हैं, इसलिए आपको प्रेशर और डेडलाइंस के तहत काम करना आना चाहिए।

इलेक्ट्रिकल में स्पार्क

नीरज गुप्ता

इलेक्ट्रिकल इंजीनियर

मैथ्स और फिजिक्स में दिलचस्पी ने मेरा रुझान इंजीनियरिंग की ओर किया। 11वींमें ही एंट्रेेंस एग्जाम की तैयारी शुरू कर दी थी। 2007 में एनआइटी, हमीरपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने के बाद फ्रेंच मल्टीनेशनल कंपनी एएलएसटीओएम के साथ काम किया। उस दौरान एनटीपीसी में एक महीने की ट्रेनिंग से फील्ड की प्रैक्टिकल नॉलेज हुई। फिलहाल मैं जर्मन कंपनी बीओआइटीएच के साथ डिप्टी मैनेजर (सप्लाई चेन ऐंड वेंडर डेवलपमेंट) पद पर काम कर रहा हूं।

वर्क ऐंड स्कोप

इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में जेनरेशन, डिस्ट्रिब्यूशन और ट्रांसमिशन से रिलेटेड पढ़ाई होती है। इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स मुख्य तौर पर चार एरियाज में काम करते हैं, डिजाइन इंजीनियरिंग, सप्लाई चेन, प्रोडक्ट मैनेजमेंट और क्वालिटी कंट्रोल। आप अपने इंट्रेस्ट के मुताबिक सेक्टर में आगे बढ़ सकते हैं। इस फील्ड में प्रैक्टिस से ही काफी कुछ सीखा जा सकता है। जहां तक जॉब की बात है, तो विभिन्न इलेक्ट्रिसिटी बोड्र्स, थर्मल एवं हाइड्रो प्लांट्स, एटॉमिक प्लांट, पावर जेनरेशन एवं डिस्ट्रीब्यूशन कंपनीज आदि में काम कर सकते हैं।?

एलिजिबिलिटी

इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के लिए आपको पहले जेइइ क्लियर करना होगा। इसके बाद आप किसी भी आइआइटी, एनआइटी या रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीई, बीटेक और एमई या एमटेक कर

सकते हैं।

इनोवेशन इन बायोमेडिकल

सोहेल गुप्ता

बायोमेडिकल इंजीनियर

मैं डॉक्टर बनना चाहता था। लेकिन जब ऐसा नहीं हो सका, तो मैंने आइआइटी दिल्ली से बायोटेक्नोलॉजी में बैचलर्स और मास्टर्स किया। इसके बाद पहली जॉब कुवैत में लगी। एक साल वहां काम करने के बाद मुझे स्टैनफोर्ड इंडिया बायोडिजाइन फेलोशिप मिली और मैं छह महीने के लिए स्टैनफोर्ड चला गया। अब मैं अपना स्टार्ट-अप शुरू करना चाहता हूं।

वर्क ऐंड स्कोप

बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में काफी रिसर्च, लैब वर्क और इनोवेशन होता है। आपको नए बायोलॉजिकल और इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट्स बनाने के लिए लिविंग सेल्स या ऑर्गेनिज्म पर काम करना होता है। इसमें रिस्क के साथ-साथ बहुत सारी रिस्पॉन्सिबिलिटी होती है। एक बायोमेडिकल इंजीनियर के लिए गवर्नमेेंट और प्राइवेट सेक्टर के अलावा रिसर्च लेबोरेट्रीज, इंस्टीट्यूट्स में काम करने के अच्छे ऑप्शंस हैं। आप फार्मास्युटिकल, फूड मैन्युफैक्चरिंग, बायोटेक्नोलॉजी कंपनी, एक्वाकल्चर, एग्रीकल्चर आदि कंपनीज में भी काम कर सकते हैं।

एलिजिबिलिटी

बायोमेडिकल इंजीनियरिंग एक इंटर-डिसिप्लिनरी

ब्रांच है। ऐसे में जो लोग बायोलॉजी, रिसर्च और

लाइफ साइंस को लेकर पैशनेट हैं, वे इस फील्ड में करियर बना सकते हैं। इंजीनियरिंग के लिए जेइइ या इसके समकक्ष एग्जाम्स क्लियर करने होंगे। वैसे, आप चाहें तो बायोटेक्नोलॉजी में बीएससी भी कर सकते हैं।

पेट्रोलियम ऐंड माइनिंग

जलज डागर

माइनिंग इंजीनियर

मैं गुडग़ांव का रहने वाला हूं। मेरी स्कूलिंग केेंद्रीय विद्यालय से हुई है। 12वींके बाद मेरा सलेक्शन आइएसएम, धनबाद के लिए?हो गया। वहां का माहौल एक बेहतरीन एक्सपीरियंस था। कैैंपस सलेक्शन के दौरान मैं स्क्लंबर्गर में सलेक्ट हो गया। मेरे लिए यह करियर की सीधी राह थी। सबसे ज्यादा मेहनत इंजीनियरिंग में एडमिशन के लिए ही करनी होती है। सही स्ट्रीम चुननी होती है। यहां तक अगर सब कुछ सही रहा, तो आगे आपका करियर अच्छा हो जाता है। आपको ज्यादा भटकना नहींपड़ता।

वर्क एरिया

माइनिंग इंजीनियर खनिज पदार्थों की संभावनाओं का पता लगाना, उनके नमूने इकट्ठे करना, भूमिगत और भूतल खदानों का विस्तार और विकास करना, खनिजों को परिष्कृत करना जैसे काम करता है। वहीं पेट्रोलियम इंजीनियर का काम पेट्रोलियम भंडार को न्यूनतम नुकसान पहुंचाते हुए किफायती और सुरक्षित तरीके से निकालकर सतह तक लाना होता है। इसकी अन्य गतिविधियों में मैटेरियल रिसोर्स मैनेजमेंट, कांट्रैक्टर रिलेशनशिप और ड्रिलिंग स्टाफ का सुपरविजन भी शामिल है।

अपॉच्र्युनिटी

स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, कोल इंडिया लिमिटेड, आइपीसीएल, इंडियन ऑयल, ऑयल इंडिया लिमिटेड, एचपीसीएल, ओएनजीसी, आइबीपी आदि तमाम संस्थानों में इनकी जबरदस्त डिमांड है।

एलिजिबिलिटी

माइनिंग और पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में एडमिशन के लिए मैथ्स, फिजिक्स और केमिस्ट्री से बारहवीं पास होना चाहिए।

इनपुट : अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव


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