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डिफेंस की बैक बोन

मोदी सरकार द्वारा डिफेंस में एफडीआई को 26 से बढ़ाकर 4

By Edited By: Published: Tue, 05 Aug 2014 02:55 PM (IST)Updated: Tue, 05 Aug 2014 02:55 PM (IST)
डिफेंस की बैक बोन

मोदी सरकार द्वारा डिफेंस में एफडीआई को 26 से बढ़ाकर 49 फीसदी किए जाने के बाद उम्मीद है कि आने वाले दिनों में भारत सैन्य उपकरणों के मामले में न सिर्फ आत्मनिर्भर हो जाएगा, बल्कि उत्पादन बढ़ने पर जरूरतमंद देशों को इसकी सप्लाई करने में भी सक्षम हो सकेगा। लेकिन इसके लिए डीआरडीओ, इसरो, बार्क, एचएएल, आर्डिनेंस डिपो जैसे अपने संगठनों को और समृद्ध बनाना होगा, क्योंकि सही मायने में आज हमारे डिफेंस के बैकबोन यही हैं..

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इंडियन आ‌र्म्ड फोर्सेज के जवान जल-थल-नभ में अपनी मुस्तैदी और चौकस निगाहों से हर पल देश की सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं। हालांकि आधुनिक समय में एडवांस इक्विपमेंट्स से काम करना बेहतर हो गया है। यह बात अलग है कि अब तक इंडियन डिफेंस फोर्स को इन इक्विपमेंट्स के लिए विकसित देशों पर निर्भर रहना पड़ा है, जो हमें 75 परसेंट तक डिफेंस इक्विपमेंट्स की सप्लाई करते हैं। भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा रक्षा उत्पाद खरीदार है। केंद्र सरकार इसी स्थिति को बदलना चाहती है। रक्षा अनुसंधान और निर्माण से जुड़ी लंबित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए डीआरडीओ और अन्य उत्पादक एजेंसियों का एक समूह बनाने पर विचार हो रहा है, ताकि महत्वपूर्ण इक्विपमेंट्स की डिजाइन इंडिया में ही तैयार कर उन्हें डेवलप किया जा सके। जाहिर है, इससे दूसरे राष्ट्रों पर डिफेंस संबंधी निर्भरता कम होगी।

आत्मनिर्भरता से असली आजादी

आंकड़ों पर विश्वास करें, तो इस समय भारत सालाना करीब आठ बिलियन डॉलर के रक्षा उत्पाद का आयात करता है और करीब 183 मिलियन डॉलर का निर्यात। इसके अलावा भारत में जिन रक्षा उपकरणों का उत्पादन होता है, उसके लिए लगभग 70 फीसदी टेक्नोलॉजी और दूसरे कल-पुर्र्जो का भी आयात किया जाता है। ऐसे में देश की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठते हैं। यही वजह है कि सरकार ने डिफेंस सेक्टर में विदेशी पूंजी निवेश की सीमा 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत कर दी है, ताकि घरेलू डिफेंस इंडस्ट्री को बढ़ने का मौका मिले। इंडियन डिफेंस प्रोडक्शन यूनिट्स, जैसे- डीआरडीओ, इसरो, ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज, एचएएल, गार्डन रीच शिपयार्ड आदि को विदेशी रक्षा कंपनियों से नई टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने में आसानी हो और वे स्थानीय स्तर पर सेना की जरूरतों को पूरा कर सकें। इससे हथियारों की खरीद या रक्षा सौदों पर होने वाले खर्च को भी कंट्रोल किया जा सकेगा।

आरऐंडडी पर खर्च

सरकार ने पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले मौजूदा रक्षा खर्च में 12 परसेंट की बढ़ोत्तरी की है। इसके अलावा रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट को बढ़ावा देने के लिए डीआरडीओ का बजट 5975 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 9298 करोड़ रुपये कर दिया है। इसी तरह ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के लिए 1207 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। सेना के विभिन्न अंगों का खर्च भी बढ़ाया गया है जिससे उन्हें आधुनिक हथियारों, फाइटर प्लेन, मिसाइल और नई टेक्नोलॉजी से लैस करने में मदद मिलेगी। सरकार ने बॉर्डर एरियाज में जवानों तक रसद पहुंचाने के लिए डिफेंस रेल नेटवर्क पर 1000 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया है।

डीआरडीओ: रिसर्च विंग

डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन) की शुरुआत 1958 में डीएसओ (डिफेंस साइंस आर्गेनाइजेशन) के साथ टेक्निकल डेवलमेंट इस्टैब्लिशमेंट (टीडीई) को मिलाकर की गई थी। आज डीआरडीओ आर्मी, नेवी और एयरफोर्स तीनों सेनाओं के लिए हथियार बनाने से लेकर नई टेक्नोलॉजी डेवलप करने में लगा है। 80 के दशक में डीआरडीओ ने सेना के बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम करना शुरू किया था। आकाश, पृथ्वी, नाग, अग्नि जैसी मिसाइलें, तेजस लड़ाकू विमान, अर्जुन MBT एडवांस टैंक्स डीआरडीओ की ही देन हैं।

टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट

डीआरडीओ एडवांस टेक्नोलॉजी पर काम करते हुए सेना की जरूरतों के मुताबिक वेपंस का डिजाइन एवं उनका विकास करता है। सेना से स्वीकृति मिलने के बाद इनके उत्पादन की जिम्मेदारी आर्डिनेंस फैक्ट्रीज, एचएएल तथा बीडीएल जैसी पीएसयू को दे दी जाती है।

सेना में शामिल वेपंस

डीआरडीओ द्वारा तैयार किए गए वेपंस सेना में बड़े पैमाने पर शामिल किए गए हैं। कई दशक पहले तैयार की गई 1.05 एलिमेंट्री गन का इस्तेमाल सेना आज भी कर रही है। इसके अलावा, इंसास राइफल डीआरडीओ ने ही डेवलप की है, जिसका प्रोडक्शन आर्डिनेंस फैक्ट्री में किया गया। पिनाका रॉकेट लांचर का इस्तेमाल कारगिल वार में किया गया था। इसके अलावा, डीआरडीओ द्वारा डेवलप अर्जुन टैंक, अग्नि, आकाश, पृथ्वी मिसाइल, तेजस लड़ाकू विमान, कई प्रकार के रडार, सोनार तथा नाइट विजन डिवाइस, तारपीडो सेना मे शामिल हो चुके हैं।

डीआरडीओ के विंग्स

डीआरडीओ की 57 से अधिक प्रयोगशालाओं को 7 टेक्नोलॉजी क्लस्टरों में विभाजित किया गया है। ये हैं, आर्मामेंट ऐंड कॉम्बैट इंजीनियरिंग सिस्टम्स, एरोनॉटिकल सिस्टम्स, मिसाइल ऐंड स्ट्रेटेजिक सिस्टम्स, नेवल सिस्टम्स ऐंड मैटीरियल्स, इलेट्रॉनिक्स ऐंड कम्युनिकेशन सिस्टम्स, माइक्रो इलेट्रानिक्स डिवाइसेज ऐंड कम्प्युटेशनल सिस्टम्स और लाइफ साइंसेज। प्रत्येक क्लस्टर के मुखिया डायरेक्टर जनरल होते हैं, जो उस क्लस्टर के अतंर्गत आने वाली लैब्स द्वारा किए जाने वाले रिसर्च डेवलपमेंट एवं प्रोजेक्ट्स को दिशा प्रदान करते हैं।

कैसे होती है एंट्री?

डीआरडीओ में विभिन्न कैडर में एंट्री के लिए अलग-अलग एलिजिबिलिटी है। पहला कैडर है, डीआरडीएस (डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट सर्विस)। इसमें साइंटिस्ट पदों पर इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के कैंडिडेट्स का सलेक्शन होता है। नियुक्ति साइंटिस्ट-बी पद पर होती है। इसके लिए क्वालिफिकेशन बीटेक/एमएससी/ एमटेक फ‌र्स्ट क्लास होना चाहिए। हायरिंग ओपन एग्जाम और कैंपस प्लेसमेंट के जरिये की जाती है। कैंपस सलेक्शन कमेटी आइआइटी, आइआइएससी, एनआइटी आदि से कैंडिडेट्स रिक्रूट करती है। दूसरा कैडर डीआरटीसी (डिफेंस रिसर्च टेक्निकल कैडर) है। इसमें लोअर लेवल पर टेक्निशियन और हायर लेवल पर सीनियर टेक्निकल असिस्टेंट की भर्ती होती है। लोअर लेवल की भर्ती के लिए आइटीआइ डिप्लोमा और सीनियर टेक्निकल असिस्टेंट के लिए डिप्लोमा इन इंजीनियरिंग या बीएससी होना चाहिए। तीसरा कैडर एडमिन ऐंड एलाइड कैडर है, जिसमें एडमिनिस्ट्रेटिव और एस्टैब्लिशमेंट सपोर्ट के लिए भर्ती होती है। साइंटिस्ट्स का रिक्रूटमेंट आरएसी द्वारा किया जाता है। वेबसाइट : http://rac.go1.in

मजबूती देते हैं क्लस्टर्स

डीआरडीओ के क्लस्टर्स रिसर्च और डेवलपमेंट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक तरह से हमारे लिए बैकबोन की भूमिका यही निभाते हैं।

रवि कुमार गुप्ता

डायरेक्टर, डायरेक्टरेट ऑफ पब्लिक इंटरफेस, डीआरडीओ

इसरो: सेना की आंख

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (www.द्बह्यह्मश्र.श्रह्मद्द ) भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है। सरकार ने इसकी स्थापना 1972 में की थी। इसका हेड ऑफिस कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में है। संस्थान का मुख्य काम सैटेलाइट्स, पेलोड्स लांच वेहिकल्स, रॉकेट्स और उनके लिए ग्राउंड सिस्टम तैयार करना है।

सुरक्षा बलों को दिखाई राह

इसरो ने दो प्रमुख स्पेस सिस्टम बनाए हैं, संचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम विज्ञानी सर्विसेज के लिए इनसैट और संसाधन मॉनिटर और मैनेजमेंट के लिए भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस)। इनके जरिए सुरक्षा बलों को मुख्य तौर पर मैपिंग करने और मौसम की जानकारी रखने में बहुत मदद मिलती है। अभी हाल ही में हिमाचल प्रदेश की व्यास नदी में लापता छात्रों को ढूंढने के लिए सुरक्षा बलों को इसरो ने ही इनसैट मैप्स और फोटोग्राफ्स मुहैया कराए थे।

बेस्ट चांस फॉर इंजीनियर्स

इसरो में करीब 17 हजार कर्मचारी और वैज्ञानिक काम करते हैं। 12वीं के बाद एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग, एयरक्राफ्ट इलेक्ट्रॉनिक्स, एस्ट्रो फिजिक्स, स्पेस टेक्नोलॉजी जैसे सब्जेक्ट्स में बीटेक और एमटेक करके इसरो में जॉब पा सकते हैं। तिरुवनंतपुरम में इसरो इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ स्पेस साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (www.iist.ac.in ) से भी बीटेक कोर्स किया जा सकता है।

ऑर्डिनेंस फैक्ट््री

1775 में कलकत्ता में ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी ने फोर्ट विलियम में सिक्योरिटी फोर्सेज के लिए वेपंस, ड्रेस, वेहिकल्स जैसी चीजें बनाने के लिए ऑर्डिनेंस बोर्ड की स्थापना की। तब से लेकर आज तक पूरे देश में 41 ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियां काम कर रही हैं। इनका हेडऑफिस कोलकाता में है।

देश भर में 41 फैक्ट्री

गन और पैराशूट बनाने का काम मुख्य तौर पर कानपुर में और क्लोदिंग्स का काम शाहजहांपुर में होता है। हैवी वेहिकल्स चेन्नई में, हाइ एक्सप्लोसिव्स पुणे में और राइफल्स पश्चिम बंगाल के 24 परगना स्थित ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में बनाए जाते हैं।

सेना के लिए जरूरी प्रोडक्ट्स

मुख्य तौर पर इनके प्रोडक्ट्स हैं : पिस्टल, रिवॉल्वर, सिविलियन आ‌र्म्स ऐंड एम्यूनिशन, एक्सप्लोसिव, प्रोपेलेंट, केमिकल्स, मिलिट्री वेहिकल्स, आ‌र्म्ड वेहिकल्स, ऑप्टिकल डिवाइसेज, पैराशूट्स, ट्रूप कम्फर्ट स्टोर्स।

टेक्निकल लेवल पर भर्ती

ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज में बड़े पैमाने पर टेक्निकल स्टाफ के लिए रिक्रूटमेंट होती रहती है। मसलन शाहजहांपुर की क्लोदिंग फैक्ट्री के लिए सबसे जूनियर लेवल पर टेलर्स की भर्ती होती है। संबंधित ट्रेड में आइटीआइ या डिप्लोमा मांगा जाता है। अलग-अलग ट्रेड्स में 10वीं या 12वींपास होना चाहिए। इसके लिए न्यूनतम उम्र 17 साल होनी चाहिए। भर्ती की सूचना अखबारों और रोजगार समाचार में दी जाती है। ग्रुप बी या सुपरवाइजर लेवल पर मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल आदि ट्रेड में डिपार्टमेंटल प्रमोशन से भर्ती होती है। बीटेक कैंडिडेट्स की ग्रुप ए अफसर और इंजीनियर के रूप में भर्ती यूपीएससी के जरिए की जाती है।

वेबसाइट: http://ofbindia.go1.in

एचएएल: एयरक्राफ्ट बिल्डर

भारत की नवरत्न कंपनियों में से एक हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की स्थापना एक अक्टूबर 1964 को हुई थी। आज एचएएल के 19 प्रोडक्शन यूनिट्स के साथ-साथ 10 रिसर्च और डिजाइन सेंटर्स हैं। यहां स्थानीय रिसर्च और डेवलपमेंट के जरिये अब तक 15 प्रकार के एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर का निर्माण हुआ है। वैसे, कंपनी ने 3500 से ज्यादा एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर और 4000 से ज्यादा इंजन बनाए हैं। इसके अलावा 272 एयरक्राफ्ट को अपग्रेड और 9643 का ओवरहॉल करने में भी एचएएल की भूमिका रही है।

फोर्स को दी मजबूती

एचएएल ने एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट-तेजस और यूटिलिटी हेलीकॉप्टर ध्रुव का निर्माण किया है, जो सेना, वायुसेना, नौसेना और कोस्ट गार्ड सभी को अपनी सेवा दे रहा है। इसके अलावा इंडियन स्पेस प्रोग्राम में भी एचएएल की बड़ी सहभागिता रही है। इसने पीएसएलवी, जीएसएलवी, आइआरएस और इनसैट जैसे सैटेलाइट्स और लॉन्च वेहिकल्स डेवलप करने में भी सहयोग किया है।

एचएएल में एंट्री

ऑल इंडिया एग्जाम के जरिये तीन स्तरों पर भर्ती होती है। पहला फ्रेश इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स, दूसरा मैनेजमेंट और डिजाइन ट्रेनीज (एग्जीक्यूटिव्स) और तीसरा टेक्निशियंस और डिप्लोमा ट्रेनीज (वर्कमेन)। यानी यहां प्रोडक्शन, ओवरहॉल, सर्विस डिवीजन और ऑफिस में एग्जीक्यूटिव कैडर (पोस्ट्स) स्तर पर कैंडिडेट्स को टेक्निकल, इंटीग्रेटेड मैटीरियल मैनेजमेंट,मार्केटिंग, फाइनेंस, एचआर, लीगल के साथ ही सिविल और आर्किटेक्चरल स्ट्रीम्स में काम करने का मौका मिलता है। इसके अलावा, लेटरल इंडक्शन के जरिये अनुभवी एग्जीक्यूटिव्स को अलग-अलग प्रोजेक्ट्स या प्रोग्राम्स के लिए हायर किया जाता है। वे डिजाइन, कटिंग एंड टेक्नोलॉजी, इंडिजेनाइजेशन, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, एरो हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में करियर बना सकते हैं। जिन कैंडिडेट्स ने आइटीआइ, एनएसी, एनसीटीवीटी और इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया हो, उनकी टेक्निकल ट्रेनी और डिप्लोमा ट्रेनी के रूप में नियुक्ति होती है।

वेबसाइट: www.hal-india.com

बार्क: न्यूक्लियर एक्सपर्ट

भारत के महान साइंटिस्ट होमी जहांगीर भाभा ने कुछ साइंटिस्ट्स के साथ मिलकर मार्च 1944 में इंडियन न्यूक्लियर प्रोग्राम की शुरुआत की थी। बाद में भाभा के विजन के आधार पर ही मुंबई के निकट ट्राम्बे में 1957 में ट्रेनिंग स्कूल खोला गया। यही आगे चलकर भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के रूप में डेवलप हुआ। यह भारत सरकार के न्यूक्लियर एनर्जी डिपार्टमेंट के तहत न्यूक्लियर साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी का रिसर्च सेंटर है। यहां मुख्य तौर पर न्यूक्लियर एनर्जी के पीसफुल यूज के लिए रिसर्च होता है।

सेना का न्यूक्लियर माइंड

देश की सेना को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने का काम बार्क करता है। 1974 और 1998 में पोखरण में परमाणु बम का परीक्षण बार्क की देखरेख में ही हुआ था। अप्सरा, साइरस, ध्रुव, कामिनी, पूर्णिमा, जर्लिना ऐसी कई न्यूक्लियर रिएक्टर्स बार्क ने डेवलप किए हैं। न्यूक्लियर फ्यूल डेवलप करके इन पर बेस्ड डिफेंस उपकरण डिजाइन किया जाता है। इनके अलावा, बार्क के साइंटिस्ट्स इलेक्ट्रॉनिक्स इंस्ट्रूमेंटेशन, न्यूक्लियर फ्यूल डिजाइन ऐंड फैब्रिकेशन, रिप्रोसेसिंग ऐंड वेस्ट मैनेजमेंट पर भी काम करते हैं।

जॉब अपॉच्र्युनिटीज

इस संस्थान के स्टाफ को कई कैटेगरीज में डिस्क्राइब किया जा सकता है :

1. साइंटिफिक ( साइंटिफिक ऑफिसर, टेक्निकल ऑफिसर)।

2.टेक्निकल ( साइंटिफिक असिस्टेंट, फोरमैन, ड्राफ्ट्समैन, टेक्नीशियन, पैरा-मेडिकल स्टाफ, फायर सर्विस स्टाफ, हार्टीकल्चर स्टाफ)

3. एडमिनिस्ट्रेटिव ( एडमिनिस्ट्रेटिव, एकाउंटेंट)

4. पर्चेज ऐंड स्टोर्स

5. ऑक्जिलरी स्टाफ (सिक्योरिटी, ड्राइवर, अटेंडेंट)

इसमें काम करने की चाहत रखने वाले कैंडिडेट्स कई माध्यमों से इसमें एंट्री कर सकते हैं।

साइंटिस्ट्स ऐंड इंजीनियर्स

बार्क ट्रेनिंग स्कूल ओरिएंटेशन कोर्स फॉर इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स ऐंड साइंस पोस्ट ग्रेजुएट्स (ओसीइएस) और डीएई ग्रेजुएट फेलोशिप स्कीम (डीजीएफएस) के तहत इनकी भर्ती करता है। इसके अलावा, डॉ. के. एस. कृष्णन रिसर्च एसोसिएटशिप प्रोग्राम के तहत भी इनकी भर्ती की जाती है।

ओरिएंटेशन कोर्स फॉर इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स ऐंड साइंस पोस्ट ग्रेजुएट्स (ओसीइएस)

इसके लिए 60 परसेंट मा‌र्क्स के साथ बीइ, बीटेक, एमटेक या एमएससी पास स्टूडेंट्स अप्लाई कर सकते हैं। सलेक्शन के बाद बार्क ट्रेनिंग स्कूल्स, आरआरसीएटी, एनएफसी और एनपीसीआइएल साइट्स पर एक साल की ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के दौरान हर महीने 15 हजार रुपये मिलते हैं।

डीएई ग्रेजुएट फेलोशिप स्कीम (डीजीएफएस)

चार महीने के इस फेलोशिप के लिए बीइ या बीटेक या एमएससी में 60 परसेंट मा‌र्क्स पाने वाले स्टूडेंट्स अप्लाई कर सकते हैं। साइंटिस्ट के लिए गेट स्कोर देखा जाता है या रिटेन एग्जाम होता है। सलेक्टेड आइआइटीज से ग्रेजुएट इंजीनियर्स को दो साल का एमटेक प्रोग्राम ऑफर किया जाता है।

कृष्णन रिसर्च एसोसिएट्स प्रोग्राम

60 परसेंट मा‌र्क्स के साथ इंजीनियरिंग ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट्स जो पीएचडी कर चुके हैं, वे इसके लिए अप्लाई करते हैं। बार्क में करियर की ज्यादा जानकारी के लिए वेबसाइट www.barc.go1.in/careers देखें।

बीइएमएल: वेहिकल पावर

भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड इंडिया के सबसे बड़े डिफेंस इक्विपमेंट निर्माता के रूप में पहचाना जाता है। 1964 में अपनी स्थापना के बाद से इसने सेना और डिफेंस फोर्सेज को आधुनिक मिलिट्री साजो-सामान उपलब्ध कराने में बड़ी भूमिका निभाई है। सेना द्वारा हर तरह के भौगोलिक क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले टेट्रा वेहिकल्स, हाइ मोबिलिटी ट्रक्स, ब्रिज सिस्टम आदि का निर्माण इसी कंपनी द्वारा किया जाता है। इसके अलावा, बीइएमएल टैंक ट्रांसपोर्टेशन ट्रेलर्स, वेपन लोडिंग इक्विपमेंट्स, आ‌र्म्ड रिकवरी वेहिकल, एयरक्राफ्ट टोइंग ट्रैक्टर, एयरक्राफ्ट वेपन लोडिंग ट्रॉली की सप्लाई भी करता है। देश के इंटिग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए ग्राउंड सपोर्ट वेहिकल उपलब्ध करने का जिम्मा भी इसी कंपनी का है। इतना ही नहीं, डिफेंस इक्विपमेंट औऱ वेहिकल्स की टेस्टिंग के लिए बेंगलुरु के करीब केजीएफ कॉम्प्लेक्स में व‌र्ल्ड क्लास टेस्ट ट्रैक बीइएमएल ने ही क्रिएट किया है।

ऐसे होती है एंट्री

बीइएमएल के ह्यूमन रिसोर्स, सिविल, क्वालिटी, फाइनेंस ऐंड ऑडिट जैसे विंग्स में एमकॉम, एमबीए, एमए, एमएसडब्ल्यू से लेकर बीटेक या बीइ करने वाले कैंडिडेट्स को रिटेन टेस्ट, ग्रुप डिस्कशन और इंटरव्यू के आधार पर सलेक्ट किया जाता है। कैंडिडेट्स बीइएमएल की वेबसाइट के जरिये वैकेंसी संबंधी सूचना प्राप्त कर सकते हैं। कैंडिडेट्स को ऑनलाइन अप्लाई करने की सुविधा दी जाती है। इसके अलावा, समय-समय पर राष्ट्रीय अखबारों और रोजगार समाचार पत्र में भी वैकेंसी का विज्ञापन निकाला जाता है।

वेबसाइट: www.bemlindia.com

बीइएल: सेना का रडार

सरकार ने सेना की इलेक्ट्रॉनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए इसकी स्थापना 1954 में डिफेंस मिनिस्ट्री के तहत बेंगलुरु में की। साल-दर-साल यह मल्टी प्रोडक्ट, मल्टी-टेक्नोलॉजी, मल्टी-यूनिट नवरत्न कंपनी के रूप में स्थापित हो गया। इसकी चेन्नई, पंचकूला, गाजियाबाद, पुणे, हैदराबाद, नवी मुंबई, मछलीपट्टनम में दूसरी यूनिट्स हैं। रीजनल ऑफिसेज दिल्ली, मुंबई, कोचीन, विशाखापट्टनम और कोलकाता में हैं।

सरहदों की निगहबानी

यह डिफेंस सर्विसेज के लिए मुख्य तौर पर वेपन लोकेटिंग रडार, बैटल फील्ड सर्विलांस रडार, सोनार जैसे टेलीकम्युनिकेशंस उपकरण बनाता है। देश-विदेश में फैली सेना की टुकडि़यों को एक-दूसरे से जोड़े रखने का काम भी बीइएल ही करता है। इसके अलावा, सरहदों पर हो रही गतिविधियों पर नजर रखने के लिए भी तमाम तरह के इलेक्ट्रॉनिक सेटअप बीइएल ही तैयार करता है।

बेस्ट फॉर टेक्निकल कैंडिडेट्स

बीइएल में मुख्य तौर पर मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, कंप्यूटर साइंस और इलेक्ट्रॉनिक्स ट्रेड में जॉब अपॉ‌र्च्युनिटीज होती हैं। बीटेक और एमटेक किए स्टूडेंट्स के लिए बीइएल में रिक्रूटमेंट चलती रहती हैं। इसमें अपर एज लिमिट अमूमन 25 साल होती है और सलेक्शन प्रॉसेस में रिटेन और इंटरव्यू होता है। इसके अलावा, आइटीआइ और डिप्लोमा किए कैंडिडेट्स के लिए भी टेक्निशियन अप्रेंटिस और इंजीनियरिंग असिस्टेंट के रूप में सीधी भर्ती होती है।

वेबसाइट: www.bel-india.com

बीडीएल: वेपन पावर

भारत डायनामिक्स लिमिटेड (बीडीएल) की स्थापना इंडियन आ‌र्म्ड फोर्सेज के लिए 1970 में वेपंस मैन्युफैक्चरिंग के लिए की गई थी। आज बीडीएल की तीन मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स हैं, जो आंध्र प्रदेश के कंचनबाग, हैदराबाद, भानूर, मेदक और विशाखापत्तनम में स्थित हैं। इसके अलावा, इब्राहिमपत्तनम (हैदराबाद) तथा अमरावती (महाराष्ट्र में दो नई यूनिट खोलने की तैयारी चल रही है। बीडीएल द्वारा तैयार वेपंस आज तीनों सेनाओं को सप्लाई किए जा रहे हैं। सेना अपनी जरूरत के मुताबिक बीडीएल को वेपन्स बनाने का ऑडर देती है।

वेपन का निर्माण

बीडीएल भारतीय सेना को जिस प्रकार के वेपंस की जरूरत होती है, उसी पर बीडीएल काम करता है। इसके अलावा, डीआरडीओ द्वारा डेवलप और डिजाइन किए गए वेपंस को तैयार करने की जिम्मेदारी भी बीडीएल को दी जाती है। बीडीएल के साइंटिस्ट्स नई टेक्नोलॉजी पर भी काम करते हैं। इसने आकाश मिसाइल, एडवांस लाइट वेट टॉरपीडो, मिलान 2t मिसाइल, कॉन्क्रस-रू जैसी कम दूरी की अत्याधुनिक मिसाइल तैयार की है।

ऐसे होती है भर्ती

बीडीएल कर्मचारियों की भर्ती के लिए एम्प्लॉयमेंट न्यूजपेपर में विज्ञापन निकालता है। अलग-अलग पदों के लिए क्वालिफिकेशन भी अलग-अलग होती है। पूरा एग्जामिनेशन एचआर डिपार्टमेंट कंडक्ट कराता है। बीडीएल के टेक्निकल विंग में अप्लाई करने के लिए मिनिमम क्वालिफिकेशन बीटेक होती है। वहीं,

नॉन टेक्निकल पोस्ट के लिए क्वालिफिकेशन

अलग-अलग होती है।

वेबसाइट: http://bdl.ap.nic.in

जीएसएल: शिप पावर

गोवा शिपयार्ड लिमिटेड देश का सबसे आधुनिक शिप बिल्डर है, जिसकी स्थापना 1957 में हुई थी। पिछले चार दशक में जीएसएल ने डिफेंस फोर्सेज (इंडियन नेवी और कोस्ट गार्ड) के लिए कई तरह के एडवांस पेट्रोल वेसेल, इंटरसेप्टर क्राफ्ट, मिसाइल क्राफ्ट, सर्वे मोटर बोट्स बनाए हैं, जो आज नौसेना के मजबूत आधार माने जाते हैं। गोवा शिपयार्ड द्वारा नए वेसेल्स (पोतों) की डिजाइनिंग और बिल्डिंग के अलावा पोतों की मरम्मत और उन्हें आधुनिक तकनीक से लैस करने का काम भी किया जाता है। वारशिप्स में रडार, कम्युनिकेशन इक्विपमेंट, ऑक्सिलरी मशीनरी आदि दूसरे अत्याधुनिक इक्विपमेंट्स की फिटिंग्स जीएसएल में ही होती है।

ऐसे होती है एंट्री

जीएसएल में रिटेन टेस्ट औऱ इंटरव्यू के बेसिस पर अलग-अलग विभागों में टेक्निकल और नॉन-टेक्निकल पदों पर नियुक्तियां होती हैं। इसके लिए कंपनी समय-समय पर अपनी वेबसाइट पर रिक्तियां निकालती रहती है, जैसे-अगर आपने बीबीए, एमबीए या सीए या पर्सनल मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया है और संबंधित फील्ड में कम से कम दो साल का वर्क एक्सपीरियंस है, तो सीधे इंटरव्यू के आधार पर जीएसएल में असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट (फाइनेंस) या असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट (एचआर) के पद पर भर्ती हो सकती है। इसके अलावा, रिकग्नाइच्ड यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्पेशलाइजेशन करने वाले बीटेक और इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स को मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर हायर किया जाता है। उन्हें कम से कम 60 प्रतिशत मा‌र्क्स के साथ ग्रेजुएशन होना चाहिए।

वेबसाइट: www.goaship4ard.com

कॉन्सेप्ट ऐंड इनपुट : अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव, मो. रजा, राजीव रंजन


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