टैलेंट फैक्ट्री हॉस्टल्स
यूनिवर्सिटी-कॉलेज के हॉस्टल्स वहां रहने वाले स्टूडेंट्स की लाइफ में टर्निग प्वाइंट होते हैं। यहीं से उनके करियर की दिशा तय होती है। पढ़ाई के लिए बेहतर माहौल और रेगुलर इंटैलेक्चुअल इंटरैक्शन जैसी खासियतों से कोई हॉस्टल सिर्फ अपने शहर में ही नहीं, पूरे देश में खास पहचान बना लेता है। यही कारण्
यूनिवर्सिटी-कॉलेज के हॉस्टल्स वहां रहने वाले स्टूडेंट्स की लाइफ में टर्निग प्वाइंट होते हैं। यहीं से उनके करियर की दिशा तय होती है। पढ़ाई के लिए बेहतर माहौल और रेगुलर इंटैलेक्चुअल इंटरैक्शन जैसी खासियतों से कोई हॉस्टल सिर्फ अपने शहर में ही नहीं, पूरे देश में खास पहचान बना लेता है। यही कारण है कि इलाहाबाद के ए एन झा और डीयू के जुबिली-ग्वैयर हॉल जैसे हॉस्टल्स में रहने के लिए स्टूडेंट्स में खासा क्रेज देखा जाता है। देश के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों के हॉस्टल्स और उनके आस-पास के इलाकों पर केंद्रित एक्सक्लूसिव रिपोर्ट..
डीयू का जुबिली हॉल हो या ग्वैयर हॉल या फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का एएन झा हॉस्टल..,देश की लगभग हर यूनिवर्सिटी या कॉलेज के हॉस्टल्स में से एक-दो ऐसे जरूर होते हैं, जो पढ़ाई के अपने खास माहौल, कल्चर, रहन-सहन, आत्मीय माहौल आदि के कारण सबसे अलग पहचान और इतिहास बना लेते हैं और यही उनकी यूएसपी बन जाती है। कुछ हॉस्टल्स तो ऐसे भी हैं, जहां रहने वाले स्टूडेंट्स आगे चलकर देश के टॉप ब्यूरोक्रेट्स, साइंटिस्ट, एजुकेशनिस्ट या टॉप लीडर में जगह बनाकर देश की अगुआई करते हैं। कुछ हॉस्टल्स आइएएस, इंजीनियरिंग या बैंकिंग की तैयारी के लिए भी खासे मशहूर हैं। नामी यूनिवर्सिटी/कॉलेज के आसपास प्राइवेट हॉस्टल्स, पीजी (पेइंग गेस्ट) और ऐसे इलाके भी डेवलप हो गए हैं, जो आइएएस, इंजीनियरिंग, बैंकिंग, सीए की तैयारी के लिए मशहूर हैं। इस बार चलते हैं देश के ऐसे जाने-माने हॉस्टल्स और इलाकों के सफर पर, जो देश भर के स्टूडेंट्स के लिए टैलेंट फैक्ट्री साबित होते रहे हैं..
स्टूडेंट फ्रेंडली
स्टूडेंट्स से हर दो-तीन महीने पर किसी ब्यूरोक्रेट या सेलिब्रिटी से इंटरैक्शन कराया जाता है। इससे उन्हें करियर निर्माण में फायदा मिलता है।
प्रो. दीवान एस रावत
प्रोवोस्ट
कूल माहौल
दिल्ली यूनिवर्सिटी के एफएमएस से एमबीए करने के दौरान तीन साल इस हॉस्टल में कैसे गुजर गए, पता ही नहीं चला। यह बेस्ट हॉस्टल है।
अर्पणाघ्य साहा डिजिटल मार्केटिंग हेड, अमेरिकन एक्सप्रेस
पॉजिटिव थिकिंग
जैसा सोचा था, उससे कहीं बढ़कर है यह हॉस्टल। यहां के सुकून भरे और कॉम्पिटिटिव माहौल से बहुत पॉजिटिव एनर्जी मिलती है। यही एनर्जी हमें जीवन में आगे बढ़ाती है।
विनय कुमार दुबे स्टूडेंट
जुबिली हॉल: डीयू
दिल्ली यूनिवर्सिटी का जुबिली हॉल हॉस्टल सैकड़ों प्रतिभाओं को तराशकर हीरा बनाने का काम कर चुका है और यह सिलसिला आज भी जारी है। इसे आइएएस फैक्ट्री कहा जाता था।
हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा, पूर्व राजदूत ललित मान सिंह और नवतेज सरना, पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एमएम पुंछी, पूर्व चीफ इलेक्शन कमिश्नर एमएम लिंगदोह, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के पूर्व डायरेक्टर सव्यसाची भट्टाचार्य, सीबीडीटी के चेयरमैन रहे एनके सिंह.., ये वो नाम हैं जो इस हॉस्टल को दूसरों से अलग करते हैं और हर स्टूडेंट को अपनी ओर खींचते हैं। यहां का माहौल इतना शांतिपूर्ण है कि कोई स्टूडेंट यहां चाहे तो अपने कमरे में बैठा घंटों पढ़ाई करता रहे। हॉस्टल से हर साल आइएएस-पीसीएस, बैंक और दूसरे कॉम्पिटिटिव एग्जाम में स्टूडेंट्स सलेक्ट होते हैं और आगे भी बेहतर पोजीशन के लिए तैयारी करते रहते हैं। जिसका सलेक्शन एसएससी में हो चुका है, वह फिर आइएएस के लिए तैयारी करता है। जिसका सलेक्शन आइआरएस के लिए हो चुका है, वह आइएएस के लिए तैयारी करता रहता है। ऐसे स्टूडेंट्स के बीच जब कोई नया स्टूडेंट आता है, तो खुद-ब-खुद उसके अंदर एक कॉम्पिटिशन का भाव पैदा हो जाता है, जो उसे लगातार कुछ करने के लिए प्रेरित करता है। जुबिली हॉल के रूम नंबर 92 में रहने वाले रुपिंदर सिंह धीमान मानते हैं कि उन्होंने इस हॉस्टल के बारे में जैसा सुना था, उससे बढ़कर पाया। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए यहां बहुत बढि़या माहौल है। इसकी सबसे बड़ी वजह है, यहां के इनमेट्स के आपसी कनेक्शन और सीनियर्स का अपने जूनियर्स के प्रति सहयोग भाव। इसके अलावा, अक्सर होने वाले सेमिनार और इंटरैक्शंस भी स्टूडेंट्स के दिमागी विकास में अहम भूमिका निभाते हैं और उनके चमकदार करियर का रास्ता बनाते हैं।
टाइम मैनेजमेंट
स्टूडेंट्स के पास वक्त बहुत कम होता है। हम इस बात का पूरा ख्याल रखते हैं कि वे अपने ज्यादातर टाइम का इस्तेमाल पढ़ाई और अपने विकास के लिए कर सकें।
प्रोफेसर ए के सिंह प्रोवोस्ट
प्रतियोगी माहौल
इस हॉस्टल से बिल्कुल अपने घर जैसा लगाव हो गया है। आज जो कुछ भी हूं, उसमें इस हॉस्टल के कॉम्पिटिटिव माहौल का बहुत बड़ा योगदान है।
पीयूष राज राजभाषा अधिकारी, बैंक ऑफ इंडिया, हावड़ा
अच्छी गाइडेंस
मुझे पॉलिटिकल साइंस में रिसर्च करना है। यहां से कई सारे अच्छे प्रोफेसर निकले हैं। अक्सर हम उनसे मिलते रहते हैं, जिससे हमें अच्छी गाइडेंस भी मिल जाती है और प्रेरणा भी।
निशांत स्टूडेंट
ग्वैयर हॉल: डीयू
दिल्ली यूनिवर्सिटी का यह सबसे पुराना हॉस्टल 1937 में खुला था। 1948 में तत्कालीन वाइस चांसलर सर मौरिस ग्वैयर के नाम पर इसका नाम बदलकर ग्वैयर हॉल रख दिया गया।
केंद्रीय मंत्री रहे डॉ. कर्ण सिंह और नटवर सिंह, जेएनयू के वाइस चांसलर एस के सोपोरी, एचआरडी मिनिस्ट्री में सेक्रेट्री रहे ए के रथ, झारखंड के एडीजी कमल नयन चौबे, पत्रकार विनोद दुआ और रजत शर्मा..ये वे नाम हैं जो डीयू के इसी हॉस्टल में रहे और आज अपने-अपने क्षेत्र में झंडे गाड़ रहे हैं।
खास सुविधाएं
इस हॉस्टल में 76 सिंगल रूम और 12 डबल सीटेड रूम हैं। डबल सीटेड रूम में फुलटाइम पोस्टग्रेजुएट स्टूडेंट्स के लिए खास इंतजाम हैं। स्टूडेंट्स के रहने के अलावा हॉस्टल में फेलोज कोर्ट भी हैं, जिनमें टीचर्स और कुछ रिसर्च स्कॉलर के रहने का इंतजाम है। हॉस्टल में मॉडर्न किचेन, जिमनेजियम और दो शानदार लॉन के अलावा कई सारे गेस्ट रूम भी हैं। हॉस्टल में बाकी सभी सुविधाओं के साथ-साथ लांड्री भी है, जहां ऑटोमेटिक वॉशिंग मशीन और एक लांड्रीमैन है। करीब हर हफ्ते हॉस्टल के कॉमन रूम में किसी न करेंट इश्यू पर डिबेट, कॉम्पिटिशन कराया जाता है। इसके अलावा कई बार किसी टॉपिक पर किसी और यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर्स या किसी विद्वान का लेक्चर भी कराया जाता है। यहां पढ़ाई के साथ-साथ खेल-कूद के स्तर पर भी नियमित रूप से कई तरह के कॉम्पिटिशन कराए जाते हैं। ग्वैयर हॉल के प्रेसिडेंट रहे दीपक गुप्ता बताते हैं कि हॉस्टल के 75 साल पूरे हो गए हैं। इतने लंबे वक्त के बाद आज भी यह हॉस्टल हर साल लगातार टैलेंट्स को तराशकर उनकी मंजिल तक पहुंचा रहा है।
सोशली स्ट्रांग
हॉस्टल, फैकल्टी रेजिडेंस और कैंटीन को एक साथ रखना यहां के फाउंडर्स की सोच थी। स्टूडेंट्स-टीचर्स का डिस्कशन में हिस्सा लेना जेएनयू के कल्चर को दर्शाता है।
प्रो.आर महालक्ष्मी एसो. डीन
कैंपस अट्रैक्शन
यहां स्टूडेंट्स की पूरी पर्सनैलिटी निखरती है। यहां जो माहौल है वह आपको कहीं नहीं मिलेगा। यहां स्टूडेंट्स क्लासरूम से ज्यादा कैंपस से सीखते हैं।
सुनील कुमार
असिटेंस प्रो. वर्धा यूनि.
ग्लोबली कनेक्ट
यहां के टीचर्स और सीनियर्स जूनियर्स की मदद के लिए आगे रहते हैं। जेएनयू से पासआउट होने के बाद भी स्टूडेंट्स एक दूसरे से कनेक्ट रहते हैं। यही जेएनयू की पहचान है। दीपक पीएचडी स्टूडेंट, जेएनयू
जेएनयू : अलग कल्चर
आफ्टर डिनर कल्चर मीटिंग यहां की परंपरा है। इस मीटिंग में सीनियर स्टूडेंट्स, फ्रेशर्स और टीचर्स सभी हिस्सा लेते हैं और किसी नए टॉपिक पर डिस्कशन करते है।
जेएनयू के विभिन्न हॉस्टल्स में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए स्टूडेंट्स आकर पढ़ाई करते हैं। यहां का माहौल न सिर्फ सामाजिक, बल्कि बेहद कॉम्पिटिटिव है। एग्जाम के दिनों में स्टूडेंट्स को पढ़ाई के साथ एक-दूसरे से इंटरैक्शन करते भी देखा जा सकता है। एक अच्छी बात यह है कि यहां हॉस्टल और फैकल्टी मेंबर्स के रेजिडेंस पास-पास हैं। इससे जब कभी किसी स्टूडेंट को किसी सब्जेक्ट में प्रॉब्लम होती है या उन्हें किसी गाइडेंस की जरूरत होती है, तो वे प्रोफेसर्स के घर जाकर अपनी प्रॉब्लम्स सॉल्व कर लेते हैं। एक कैंपस में शिक्षक और छात्रों के बीच इस तरह का रिलेशन कम ही यूनिवर्सिटीज में देखने को मिलता है। इसके अलावा कैंपस स्थित कैंटीन (ढाबे) पर भी अलग-अलग विषयों पर चर्चाएं होती हैं। इससे स्टूडेंट्स के बीच समझ तो बढ़ती ही है, साथ में आपसी मेलजोल भी बढ़ता है।
हॉस्टल के लिए क्रेजी स्टूडेंट्स
जेएनयू में एडमिशन को लेकर जितना क्रेज स्टूडेंट्स में होता है, उससे कहीं ज्यादा क्रेज हॉस्टल को लेकर रहता है। जेएनयू के हॉस्टल्स का अपना अलग ही मजा है, लेकिन हॉस्टल में एडमिशन के लिए एक क्राइटेरिया है, जिसे फुलफिल करने के बाद ही स्टूडेंट्स को हॉस्टल एलॉट किया जाता है।
लाइफटाइम एक्सपीरियंस
पीएचडी स्टूडेंट उमेश कुमार के मुताबिक वे 12वीं क्लास से हॉस्टल में रह रहे हैं, लेकिन जो माहौल उन्हें जेएनयू के ब्रह्मंापुत्रा हॉस्टल में मिला, वह किसी और कॉलेज के हॉस्टल में नहींमिला। उमेश के मुताबिक जेएनयू का हॉस्टल सिर्फ हॉस्टल ही नहीं है, बल्कि एक छोटा-सा देश है, क्योंकि यहां देश-विदेश के कोने-कोने से स्टूडेंट्स पढ़ाई के लिए आते हैं। हर स्टूडेंट अपना कल्चर भी साथ लाता है और सभी स्टूडेंट्स को एक डिफरेंट कल्चर को जानने और समझने का मौका मिलता है।
डाइनिंग टेबल मीटिंग
जेएनयू में डिनर के बाद जो कल्लचरल मीटिंग होती है, उसका अपना अलग ही महत्व है। जेएनयू कैंपस में करीब 17 हॉस्टल हैं और एक हॉस्टल में तकरीबन 350 स्टूडेंट्स रहते हैं। कैंटीन में रोज डिनर के बाद अलग-अलग हॉस्टल के स्टूडेंट्स आकर जमा होते हैं और हर बार किसी नए टॉपिक पर चर्चा करते हैं। इससे बहुत-सी नई चीजों के बारे में उन्हें पता चलता है। थॉट्स इंटरचेंज होते हैं। सही और गलत में फर्क पता चलता है। यह माहौल दुनिया के किसी हॉस्टल या यूनिवर्सिटी में नहीं मिलेगा।
कॉम्पिटिशन के लिए फेमस
जेएनयू का पेरियार हॉस्टल सिविल सर्विसेज के लिए फेमस है, तो ब्रह्मपुत्रा रिसर्च स्टूडेंट्स के लिए। पेरियार हॉस्टल ने देश को बहुत से आइएएस और आइपीएस दिए हैं। कुछ साल पहले रूम नंबर 24 से राघवेंद्र सिंह नाम के एक स्टूडेंट ने आइएएस में 12वीं रैंक प्राप्त की थी।
डिफरेंट एटमॉस्फियर मिला
जेएनयू कैंपस का एटमॉस्फियर बाकी यूनिवर्सिटीज के कैंपस से काफी अलग है। यहां सीनियर-जूनियर स्टूडेंट्स में एक लगाव सा देखने को मिलता है। स्टूडेंट्स के साथ यहां के फैकल्टी मेबर्स भी काफी सहयोगी हैं। फैकल्टी मेंबर्स अक्सर रात में डिनर के बाद स्टूडेंट्स के साथ वॉक पर चले जाते हैं। इससे स्टूडेंट-टीचर्स के बीच एक रिलेशन डेवलप हो जाता है, जो उन्हें हमेशा क्लोज रखता है।
सीनियर्स बने गाइड
हिंदी बेल्ट से आए अधिकतर स्टूडेंट्स को इंग्लिश में प्रॉब्लम होती है, लेकिन उनके रूममेट, टीचर्स और बाकी साथी उन्हें इस तरह से ट्रेंड करते हैं कि वह कुछ दिनों में ही मास्टर हो जाते हैं। जेएनयू की एक खास बात यह भी है कि यहां हॉस्टल एलॉटमेंट में एक तरह की ट्रांसपेरेंसी रखी जाती है। स्टूडेंट्स खुद से हॉस्टल का सलेक्शन नहींकर सकते, बल्किजेएनयू एडमिनिस्ट्रेशन खुद डिसाइड करता है कि किसे कौन सा हॉस्टल एलॉट किया जाना है।
ग्लोबल चेंज
इस हॉस्टल की गौरवशाली परंपरा रही है, जिसे बरकरार रखने के लिए हम ग्लोबली बदलते सिस्टम के हिसाब से स्टूडेंट्स को बेहतर माहौल दे रहे हैं।
प्रो. संजॉय सक्सेना वार्डेन
मैच्योर गाइडेंस
इस हॉस्टल से बहुत गहरा जुड़ाव है। सीनियर्स के गाइडेंस और काम्पिटेटिव माहौल से ही प्रेरित होकर मैं लगातार मेहनत करता गया और सही दिशा में मेरी मेहनत रंग लाई।
सोहराब आलम डिप्टी एसपी (प्रो)
टैलेंट ग्रूंिमंग
यहां ऐसा माहौल है कि कोई भी नया स्टूडेंट जो छोटी से छोटी जगह हो, यहां आकर अपने टैलेंट को पहचान पाता है।
नरेंद्र ओझा, पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च फेलो, मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ केमिस्ट्री जर्मनी
ऑफिसर्स फैक्ट्री
एक वक्त था, जब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी को पूरब का ऑक्सफोर्ड और म्योर हॉस्टल को आइएएस फैक्ट्री कहा जाता था। आज भी इसे ऑफिसर्स फैक्ट्री कहना गलत नहींहोगा।
एजुकेशन हब कहे जाने वाले इलाहाबाद शहर में प्रदेश ही नहीं, देश के दूसरे हिस्सों और विदेश तक के युवा अच्छे माहौल के लिए खिंचे चले आते हैं यहां शिखर पर है एएन झा हॉस्टल। अमरनाथ झा अंग्रेजी के टॉप स्कॉलर एवं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर थे, उन्हीं के नाम पर यह हॉस्टल बना। यहां के कॉमन हॉल में ऐसे स्टूडेंट्स की सूची लगी है, जिन्होंने यहां पढ़ाई करके देश में नाम किया। उनमें राष्ट्रपति रहे डॉ. शंकर दयाल शर्मा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र, यूपी के सेक्रेटरी और रक्षा सचिव रहे योगेंद्र नारायण, कैबिनेट सचिव रहे बीके चतुर्वेदी, नगालैंड के गर्वनर रहे निखिल कुमार, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट शांति भूषण प्रमुख हैं। पीएम के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र के सहपाठी और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व अध्यक्ष विनोद चंद्र दुबे बताते हैं कि पहले सितंबर में आइएएस की परीक्षा होती थी। तब चार हॉस्टल्स में से एक को समर हॉस्टल बना दिया जाता था और सारे प्रतियोगी दो महीने के लिए उसी में रहते थे। कोई अपने घर नहीं जाता था। दिल्ली में तैनात आइआरएस शिवकुमार बताते हैं, जब एएन झा हॉस्टल में प्रवेश लिया तो सीनियर्स ने उनकी तगड़ी क्लास ली थी, लेकिन वही सीनियर्स आज हमारे सुख-दुख के साथी हैं। पद्म भूषण सिंह, अभिषेक और अनंत त्रिपाठी ने बताया कि उन्हें इस हॉस्टल में मेरिट से दाखिला मिला है। जिन लोगों ने यहां रहकर नाम किया उनके जैसा बनना अब हमारी प्राथमिकता है। हॉस्टल में बेहतर लाइब्रेरी की सुविधा है। हॉस्टल की सारी गतिविधियां स्टूडेंट्स के मुताबिक चलती हैं। यहां एडमिशन मेरिट के आधार पर ही दिया जाता है।
ब्राइट फ्यूचर
पश्चिम बंगाल के नदिया जिले से यहां आकर डेलीगेसी में रहकर पढ़ाई की। आज भी दूर-दूर से स्टूडेंट्स पढ़ने आते हैं और ब्राइट फ्यूचर बनाकर जाते हैं।
बादल चटर्जी कमिश्नर, इलाहाबाद
अच्छी संगत
इलाहाबाद के हॉस्टलों में काफी जानकार छात्रों के साथ पढ़ने का मौका मिला। इन सबसे मुझे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में बहुत मदद मिली।
जितेंद्र मणि त्रिपाठी
एडिशनल डीसीपी, दिल्ली पुलिस
प्रेरक माहौल
इलाहाबाद के माहौल में ही कुछ ऐसा है कि भले ही हर कोई आइएएस न बन पाए, लेकिन अपने करियर में कुछ न कुछ अच्छा जरूर करता है।
शचींद्र शुक्ला
साइंटिस्ट, एएमडी
टैलेंट्स की धरती
इलाहाबाद में करीब तीन लाख छात्र यहां रहकर सिविल सर्विसेज एग्जाम की तैयारी करते हैं। मेडिकल, इंजीनियरिंग व अन्य स्टूडेंट्स की कुल तादाद चार लाख से अधिक है।
उच्चतर शिक्षा आयोग, उत्तर प्रदेश के सचिव
डॉ. संजय कुमार सिंह जब बलिया से इलाहाबाद पढ़ने आये, तो एक रिश्तेदार के यहां रहने लगे। बाद में जीएन झा हॉस्टल पहुंचे।?वहां सीनियर्स की गाइड लाइंस ने उनकी लाइफ बदल दी। फिर उन्होंने वह मुकाम पाया, जिसकी हसरत थी। यह तो सिर्फ बानगी भर है। यहां पर उनके जैसे और उनसे बेहतर परिणाम देने वालों की लंबी फेहरिस्त है। ऐसे ही प्रख्यात वकील के नाम पर चल रहा सर सुंदर लाल दवे हॉस्टल, वकील प्रमदा चरन बनर्जी के नाम पर पीसी बनर्जी हॉस्टल, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे सर गंगानाथ झा के नाम पर जीएन झा व गोल्डेन जुबली हॉस्टल आइएएस तैयार करता रहा है।
हॉस्टल्स के अलावा इलाहाबाद में स्टूडेंट्स की बड़ी दुनिया निजी लॉज, डेलीगेसी में बसती है। हॉस्टल्स से बाहर कई सारे लॉज में रहकर भी स्टूडेंट्स तैयारी करते हैं। इन्हींमें से कोई बैंक अफसर, कोई प्रोफेसर, कोई इंस्पेक्टर, कोई पीसीएस तो कोई आइएएस अफसर बनता है। पूर्व अपर निदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य डॉ. विद्यासागर त्रिपाठी बताते हैं कि एलनगंज लॉज में जहां वह रहते थे, वहां रसोइया खाना बनाता था और एक पैसा भी किराये का नहीं देना पड़ता था। बॉटनी पर किताब लिखने वाले डॉ. एन परिहार हर दिन सुबह हम लोगों का मार्गदर्शन करने लॉज आते थे। हमारे साथ बाबा हरदेव सिंह, एमपी सिंह, सच्चिदानंद पाठक जैसी चर्चित हस्तियां पढ़ती थीं। यही सारी चीजें हैं, जो स्टूडेंट्स को आज भी अपनी ओर खींचती हैं।
अलग परिवेश
हर हॉस्टल का अपना संस्कार और परिवेश होता है। रानीघाट हॉस्टल में काफी डिसिप्लिन था। गंभीर स्टूडेंट्स रहते थे। मैंने भी यहींरहकर यूपीएससी की तैयारी की थी और मेरा आइपीएस के लिए चयन हुआ था।
गुप्तेश्वर पांडे एडीजी, बिहार
टॉपर्स से पहचान
पहले ह़ॉस्टल्स की पहचान टॉपर्स से होती थी। मुझे भी जैक्सन हॉस्टल का रूम नंबर 54 एलॉट हुआ था। वहां पढ़ने का माहौल था। इसके अलावा, डिबेट आदि रेगुलर होते थे।
एनके चौधरी प्रिंसिपल
पटना कॉलेज
देते हैं पूरी सुविधा
हमारे यहां से करीब हर साल लड़कियों का चयन प्रतियोगी परीक्षाओं में होता है। हम उन्हें गॉर्ड, जेनरेटर, इन्वर्टर, वॉटर प्यूरीफायर आदि की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं।
ओपी कुंवर हॉस्टल संचालक
पटना : टॉपर्स का गढ़
पटना यूनिवर्सिटी के हॉस्टल्स का काफी गरिमामय इतिहास रहा है। 1970-80 के दशक में यहां के कई स्टूडेंट्स ने यूपीएससी क्लियर किया और बड़े-बड़े पदों पर काम किया।
पटना यूनिवर्सिटी के हॉस्टल्स की अपनी विशिष्ट पहचान हुआ करती है। मिंटो, जैक्सन, फैराडे, इकबाल, रानीघाट जैसे हॉस्टल्स वहां रहने वाले अलग-अलग सब्जेक्ट्स के टॉप रैंकर्स के लिए जाने जाते रहे हैं। रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर आनंद सिन्हा ने फैराडे हॉस्टल में ही रहकर पढ़ाई की थी। भारत के पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे रानीघाट हॉस्टल में रहे थे। इसी तरह देश के पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर भी इस यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में रह चुके हैं। पहले इन हॉस्टल्स में बेहद पॉजिटिव और कॉम्पिटिटिव माहौल होता था। सुबह-शाम स्टडी पीरियड्स निर्धारित थे। सिविल सर्विसेज या दूसरे एग्जाम्स की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स के लिए न्यूजपेपर्स, मैगजीन्स उपलब्ध होते थे। इसके अलावा, हॉस्टल अधीक्षक का रेगुलर राउंड हुआ करता था। बिहार के एडीजी गुप्तेश्वर पांडे बताते हैं, हॉस्टल के कई स्टूडेंट्स ने सिविल सर्विस में अच्छी सफलता पाई थी। हॉस्टल में अनुशासित ढंग से पढ़ाई होती थी। रात साढ़े सात बजे डिनर होता था, उसके बाद हम सभी करीब साढ़े आठ बजे से सुबह के तीन बजे तक ग्रुप स्टडी करते थे। मेरी सफलता के पीछे खुद की मेहनत के साथ-साथ हॉस्टल का परिवेश भी काफी मददगार रहा। उन दिनों को याद करते हुए लगता है कि आज हॉस्टल में जिंदगी कितनी बदल गई है। साल 2011 से हाल तक पटना यूनिवर्सिटी के अंतर्गत आने वाले पटना कॉलेज के हॉस्टल वार्डन रहे डॉ. रणधीर सिंह कहते हैं कि पहले अनुशासनिक माहौल के कारण हॉस्टल्स मेधावी छात्रों की पहली पसंद थे। एडमिशन के बाद छात्रों की इच्छा होती थी कि उन्हें इनमें से किसी एक हॉस्टल में दाखिला मिले।
सीए में सफलता
मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी के सुभाष हॉस्टल में रहकर सीए की तैयारी की थी। वहां के अनुशासनिक माहौल में की गई पढ़ाई ने मुझे सफलता दिलाई। इसे मैं कभी भूल नहीं सकता हूं।
अनिमेश रिलायंस इंडस्ट्रीज
बनी आइएएस
मैंने विपरीत परिस्थितियों में लखनऊ के एक प्राइवेट हॉस्टल में रहकर सिविल सर्विस की तैयारी की थी। इसके बाद 1999 में मेरा सलेक्शन आइएएस के लिए हुआ था। आज मैं पंजाब में पोस्टेड हूं।
मीनाक्षी बाजपेयी आइएएस
पढ़ाई का माहौल
मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी के कैलाश हॉस्टल में रहती हूं। यहां टीचर्स हमेशा हमारी प्रॉब्लम सॉल्व करने के लिए मौजूद रहते हैं। यहां पढ़ाई का माहौल भी काफी अच्छा है। ट्यूशन और कोचिंग की सुविधा भी दी जाती है।
अजिता सिन्हा स्टूडेंट
लखनऊ के मेधावी
लखनऊ यूनिवर्सिटी के हॉस्टल्स से कई मेधावी छात्रों ने अलग-अलग फील्ड्स में राज्य और देश का नाम रोशन किया है। इनमें आइएएस से लेकर सीए की तैयारी करने वाले शामिल हैं।
लखनऊ यूनिवर्सिटी के हॉस्टल्स में रहने की तमन्ना बहुत सारे स्टूडेंट्स की रहती है। हालांकि, जिन्हें यूनिवर्सिटी के हॉस्टल्स नहीं मिलते, उनके लिए निजी हॉस्टल्स के रूप में अच्छे विकल्प मौजूद हैं। ऐसे कई स्टूडेंट्स के उदाहरण मिल जाएंगे, जिन्होंने यूनिवर्सिटी और निजी हॉस्टल में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की और उसमें सफल भी हुए। ज्यादातर सफल स्टूडेंट्स का कहना है कि आप चाहे देश के किसी प्रतिष्ठित हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करें या फिर किसी साधारण पीजी या हॉस्टल में, सक्सेस मेहनत से ही मिलती है। एक निजी हॉस्टल की प्रोवोस्ट मोनिका ने बताया कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाली अधिकतर छात्राएं समय पर भोजन और शांत माहौल चाहती हैं। यदि छात्राएं पर्सनल ट्यूशन चाहती हैं, तो हम उसकी अनुमति देते हैं। रात में कोचिंग से लौटने वाली छात्राओं को गाड़ी की सुविधा भी दी गई है। एक दूसरे हॉस्टल की संचालक अलका तिवारी कहती हैं, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स की एकांतवास पहली शर्त होती है। ऐसे में हमारा प्रयास रहता है कि टीवी रूम अन्य कमरों से अलग हो, ताकि उसकी आवाज पढ़ने वाले बच्चों तक न पहुंचे। श्वेता शेखर लखनऊ की एक पीजी में रहती हैं। वे कहती हैं, पीजी में रहने के बावजूद अपने लक्ष्य को पूरा करना ही एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए। युवाओं को भी यही सलाह दूंगी कि अगर लक्ष्य तय रहेगा, आप परिश्रम करेंगे, तो सफलता मिलनी निश्चित है।
सोशल लर्रि्नग
हॉस्टल के एनवॉयर्नमेंट में छात्र सामाजिकता सीखते हैं। डीडीयू, गोरखपुर के हॉस्टल्स में रहे छात्रों ने एकेडमिक के अलावा कॉम्पिटिटिव एग्जाम में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है।
प्रो. अशोक कुमार, वीसी, डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी
पढ़ाई का माहौल
मैंने एनसी हॉस्टल में रहकर तैयारी की थी। यहां से सिविल सर्विस, जूडिशियल सर्विस में सलेक्ट हुए स्टूडेंट्स की लंबी लिस्ट है। पढ़ाई के लिए स्टूडेंट्स को अच्छा माहौल दिया जाता है।
प्रो.के.एन.सिंह वार्डन
एनसी हॉस्टल
ग्रुप में स्टडी
विवेकानंद हॉस्टल का अपना एक इतिहास रहा है। यहां सीनियर-जूनियर स्टूडेंट्स तैयारी करने में एक-दूसरे के साथ पूरा सहयोग करते हैं और यही इस हॉस्टल की यूएसपी है।
प्रो. जितेंद्र तिवारी, वार्डन
विवेकानंद हॉस्टल
जूडिशियरी की नर्सरी
गोरखपुर यूनिवर्सिटी का विवेकानंद हॉस्टल जूडिशियल सर्विसेज के स्टूडेंट्स के लिए फेमस है। दिल्ली, यूपी, बिहार, एमपी में कार्यरत बहुत से जजों ने इसी हॉस्टल में रहकर तैयारी की थी।
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार राजनाथ सिंह सूर्य, आइपीएस कुंवर ब्रजेश सिंह और दिनेश पांडेय और उत्तराखंड में जज प्रदीप मणि, अलग-अलग फील्ड्स में सक्सेस हुए इन तमाम लोगों में एक चीज कॉमन है। इन सभी ने अपने सपने एक ही जगह पर ही बुने। वह जगह है, गोरखपुर के दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय का छात्रावास। इसमें सिविल सेवा के लिए अगर नाथ चंद्रावत हॉस्टल यानी एनसी हॉस्टल फेमस है, तो विवेकानंद हॉस्टल जूडिशियल सर्विसेज के लिए। इतना ही नहीं, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कभी यहां के गौतम बुद्ध हॉस्टल में ही रहकर अपनी छात्र राजनीति की शुरुआत की थी। यूं तो गोरखपुर-बस्ती मंडल के युवाओं के लिए सिविल सेवा और राजनीति की पहली पाठशाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय को माना जाता रहा है। फिर भी गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्रावासों का अपना अलग ही स्थान है। दरअसल, ये छात्रावास पढ़ाई के अपने खास माहौल, कल्चर, रहन-सहन, आत्मीय माहौल के कारण अलग माने जाते हैं। ज्यूडिशियरी सलेक्शन के लिए खास रूप से माने जाने वाले विवेकानंद छात्रावास के वार्डन और लॉ फैकल्टी के डीन प्रो. जितेंद्र तिवारी बताते हैं कि इन सेलेक्शंस के पीछे सबसे बड़ी बात यह है कि लॉ के सारे छात्रों को एक साथ रखा जाता है। एलएलएम,पीएचडी और लॉ ग्रेजुएशन के छात्रों को एक साथ एक ही परिसर में रखे जाने से सीनियर-जूनियर आपस में बेहतर डिस्कशन कर पाते हैं। एक-दूसरे की कमजोरियों को पहचान कर दूर करने के लिए साझा प्रयास करते हैं।
डिसिप्लिन जरूरी
हॉस्टल में एक डिसिप्लिन है, जिसे सभी फॉलो करते हैं, ताकि पढ़ाई के लिए उन्हें प्रॉपर माहौल मिले। इन सब बातों का खास ध्यान रखा जाता है।
प्रो. गुरदेव सिंह चीफ वार्डन, गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर
प्लेयर्स से फेम
खालसा कॉलेज का नाभा हॉस्टल खिलाड़ियों के लिए फेमस रहा है। गुरुबचन सिंह रंधावा जैसे कई इंटरनेशनल प्लेयर्स ने यहींरहकर प्रैक्टिस की और फिर देश का परचम लहराया।
प्रो.सतनाम सिंह वार्डन,
नाभा हॉस्टल
हर फैसिलिटी
हॉस्टल में स्टूडेंट्स को हर तरह की फैसिलिटी दी जाती है। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अलग से क्लासेज कंडक्ट कराई जाती हैं, जिनसे हमें काफी मदद मिलती है। यहां पढ़ने का अच्छा और
प्रतियोगी माहौल है।
हरचंद सिंह, एमकॉम स्टूडेंट फरीदकोट हॉस्टल
पंजाब : स्पोर्ट्स टैलेंट
अमृतसर के खालसा कॉलेज का नाभा हॉस्टल खिलाड़ियों के लिए फेमस रहा है। इस हॉस्टल में रहकर कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने देश का नाम रोशन किया है।
अमृतसर की ऐतिहासिक गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी आज भी स्टूडेंट्स के बीच वैसे ही फेमस है जैसे पहले थी। यहां का मशहूर खालसा कॉलेज और यहां के हॉस्टल्स अपनी शिक्षा और स्पोर्ट्स दोनों के लिए फेमस हैं। यहां के नाभा, जींद, फरीदकोट व हरगोबिंद हॉस्टल्स ने देश को कई महान हस्तियां दी हैं। वैसे तो हॉस्टल पढ़ाई के लिए फेमस होते हैं, लेकिन यूनिवर्सिटी के अंतर्गत आने वाले खालसा कॉलेज का नाभा हॉस्टल खिलाड़ियों के लिए फेमस है। महाभारत में भीम का किरदार करने वाले प्रवीण कुमार इसी हॉस्टल में रहकर तैयारी करते थे। इसके अलावा, एथलीट्स और पहला अर्जुन अवॉर्ड जीतने वाले गुरबचन सिंह रंधावा भी इसी हॉस्टल में रहकर स्पोर्ट्स की तैयारी करते थे। अर्जुन अवॉर्ड हासिल करने वाले रिटायर्ड कमांडेंट रघुबीर सिंह बल, बास्केटबॉल के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी व पंजाब पुलिस के रिटायर्ड एसएसपी परमदीप सिंह तेजा, पंजाब पुलिस के एसएसपी जसदीप सिंह, अंतरराष्ट्रीय शॉटपुट खिलाड़ी और पंजाब पुलिस में एसपी बहादुर सिंह ने भी इसी हॉस्टल में रहकर अपनी पूरी तैयारी की।
जालंधर के डीएवी कॉलेज का मेहरचंद हॉस्टल भी अपने छात्रों के लिए प्रसिद्ध है। नोबल पुरस्कार विजेता डॉ. हरगोबिंद खुराना ने यहीं रहकर शिक्षा हासिल की। गजल सम्राट जगजीत सिंह हॉस्टल के रूम नंबर 169 में रहते थे, तो सिंगर सुखविंदर सिंह और मौजूदा गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. अजायब सिंह बराड़ ने यहीं रहकर कॉम्पिटिशन की तैयारी की।
असरदार माहौल
किसी भी स्टूडेंट की सफलता के पीछे अपने हौंसले के अलावा कॉम्पिटिटिव माहौल का भी बड़ा योगदान होता है। यह माहौल दिल्ली के जेएनयू और मुखर्जीनगर में बेस्ट है।
राहुल यादव आइआरएस
संघर्ष में होड़
यहां संघर्ष में भी कॉम्पिटिशन है।?उदाहरण के लिए मेरा सलेक्शन यूपी के लोअर पीसीएस में ऑडिटर के रूप में हुआ है, लेकिन मैं अभी भी बेहतर रैंक के लिए तैयारी कर रहा हूं।
शैलेश अवस्थी सिविल एस्पिरेंट
यूनीक गाइडेंस
आप दुनिया के किसी भी कोने में हों, अगर आपको सिविल सर्विसेज एग्जाम में सफल होना है, तो आपको एक बार यहां संपर्क करना ही पड़ेगा, चाहे मैटेरियल हो या गाइडेंस।?अखिल श्रीवास्तव स्टूडेंट
इलाके भी हैं हॉट फेवरेट
अगर यह कहा जाए कि दिल्ली के मुखर्जी नगर और नेहरू विहार के करीब हर घर में एक किराएदार स्टूडेंट मिल जाएगा, जो आइएएस की तैयारी करता हो, तो यह गलत नहीं होगा।
आइएएस एस्पिरेंट की पसंद मुखर्जी नगर
सुबह-सुबह आंख खुलते ही किसी 'कल्लू' के हाथ की चाय-मट्ठी से यहां के स्टूडेंट्स का दिन शुरू होता है। ये 'कल्लू' हर गली में हैं, भले ही नाम कुछ और हो। चाय की दुकान पर स्टूडेंट्स अखबार बांचते हैं, कई विषयों पर डिस्कशन भी हो जाती है। किसी नई नौकरी की नोटिफिकेशन निकली हो, तो वह भी पता चल जाती है। स्टूडेंट इसके बाद अपने कमरे में आकर पढ़ाई करते हैं। यहां की हर गली में कोई न कोई स्टूडेंट ऐसा है जिसने सिविल सर्विसेज मेन्स या इंटरव्यू दिया है या फिर एसएससी, बैंक, राच्य स्तर के पीसीएस या फिर नेट-जेआरएफ में सलेक्ट हो चुका है। बेहतर पोजीशन हासिल करने के लिए और आगे बढ़ने के लिए संघर्षरत है। इस माहौल की वजह से किसी भी नए सिविल एस्पिरेंट को गाइडेंस के लिए भटकना नहीं पड़ता। इस इलाके में ही सिविल सर्विसेज एग्जाम के लिए ज्यादातर कोचिंग संस्थान और बुक हाउसेज हैं। इसलिए यहां रहने वाले स्टूडेंट्स को इनके लिए भी ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ता है। कोचिंग भी नजदीक ही होती है और क्लासमेट्स भी पास-पड़ोस में ही रहते हैं। किसी भी टॉपिक पर डिस्कशन हो, या कोई कंफ्यूजन दूर करनी हो, किसी तरह की कोई अपडेट लेनी हो, आपके लिए बेहद आसान हो जाता है। कुछ मिलाकर माहौल ऐसा कि अगर आप अपने करियर और फ्यूचर के प्रति जरा भी सीरियस हैं, तो हर तरह की गाइडेंस और मैटीरियल्स उपलब्ध है, बस आपको इन चीजों को एनहैंस करना है और आपका सलेक्शन पक्का हो सकता है।
समूह में तैयारी का लाभ
अपने बड़े भाई के नक्शे कदम पर चलते हुए मैंने पटना के बाजार समिति इलाके के एक निजी हॉस्टल में रहने का फैसला किया था। इस इलाके में बैंकिंग की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स का एक बड़ा समूह रहता है। हॉस्टल प्रबंधकों की ओर से भी संबंधित विषयों के शिक्षकों द्वारा मार्गदर्शन की व्यवस्था कराई जाती है। इसके अलावा सीनियर्स से भी गाइडेंस मिलता है।
अमित कुमार प्रतियोगी छात्र, पटना
हॉस्टल का बेहतर रिकॉर्ड
मैं बिहार के बेगूसराय से पटना मेडिकल की तैयारी करने आई हूं। ऐसे में निजी ह़ॉस्टल से बेहतर कोई जगह नहींहो सकती थी। मैं राजेन्द्र नगर के एक प्राइवेट हॉस्टल में रहती हूं। इस हॉस्टल की कई लड़कियों का चयन मेडिकल, इंजीनियरिंग और बैंक की परीक्षाओं में हुआ है। हॉस्टल की ओर से सप्ताह में एक दिन टेस्ट सीरिज का आयोजन कराया जाता है, जिससे काफी मदद होती है।
सोनाली प्रतियोगी छात्रा,पटना
पटना में अशोक राजपथ का क्रेज
दिल्ली के मुखर्जी नगर की तरह पटना का अशोक राजपथ इलाका भी हर तरह के प्रतियोगी स्टूडेंट्स से गुलजार रहता है। यह शहर की वह सड़क है, जिस पर पटना यूनिवर्सिटी से संबद्ध अधिकांश मेडिकल, इंजीनियरिंग, साइंस, आर्ट्स और कॉमर्स के कॉलेज और हॉस्टल्स हैं, जिनमें राज्य के बाकी हिस्सों से आने वाले स्टूडेंट्स रहते हैं। इसके अलावा, जिन छात्रों को यूनिवर्सिटी हॉस्टल में जगह नहींमिलती है, उनके लिए यहां प्राइवेट हॉस्टलों की कमी नहींहै। करीब के रमना रोड, खजांची रोड, मखनियाकुआं इलाके में भी मेडिकल, इंजीनियरिंग, बैंकिंग से लेकर सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स रहते हैं।
कॉन्सेप्ट : मिथिलेश श्रीवास्तव, मो.रजा, अंशु सिंह
इनपुट : इलाहाबाद से चंद्रप्रकाश मिश्रा, लखनऊ से कुसुम भारती, पटना से कौशल किशोर,
गोरखपुर से संजय मिश्रा, अमृतसर से कुसुम अग्निहोत्री और कमल किशोर