सिविल सर्विसेज में सी-सैट कितना जायज?
सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में सी-सैट पेपर को लेकर सड़क से संसद तक हंगामा मचा हुआ है। इस पेपर के लागू होने के बाद हिंदी और देश की अन्य भाषाओं के अभ्यर्थियों की संख्या तेजी से घटी है। सीसैट पेपर को हटाने के मुद्दे पर जानते हैं एक्सपर्ट्स की राय.. इंग्लैंड जाएं अंग्रेजी के हिमायती एक योजना के तहत भेदभाव हो रहा
सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में सी-सैट पेपर को लेकर सड़क से संसद तक हंगामा मचा हुआ है। इस पेपर के लागू होने के बाद हिंदी और देश की अन्य भाषाओं के अभ्यर्थियों की संख्या तेजी से घटी है। सीसैट पेपर को हटाने के मुद्दे पर जानते हैं एक्सपर्ट्स की राय..
इंग्लैंड जाएं अंग्रेजी के हिमायती
एक योजना के तहत भेदभाव हो रहा है। यह केवल प्रिलिमिनिरी ही नहीं, हर लेवल पर है। यह बात हमारी समझ से परे है कि जिसे हिंदी न आए पर अंग्रेजी अच्छी हो, वह अच्छा एडमिनिस्ट्रेटर कैसे बन सकता है? सोचने वाली बात यह भी है कि यूपीएससी के चेयरमैन ने जिस तरह इस बदलाव के पीछे एक कारण कोचिंग संस्थानों पर स्टूडेंट्स की निर्भरता को खत्म करना बताया था, वह सरासर निराधार और गुमराह करने वाला था। अंग्रेजी के हिमायतियों को इंग्लैंड चले जाना चाहिए।
विकास दिव्यकीर्ति, पूर्व सिविल सर्र्वेट
खत्म हो अंग्रेजों का बनाया पैटर्न
लोकतंत्र के लिए तो अंग्रेजी कलंक है। इसके लिए लोकभाषा, जनभाषा जरूरी है। वहीं सारी भारतीय मेधा को अंग्रेजी खत्म किए जा रही है। सिविल सर्विस के परीक्षा पैटर्न को पूरी तरह बदलना चाहिए, क्योंकि यह अंग्रेजों का बनाया पैटर्न है। ग्रामीण छात्रों में जितना मौलिक चिंतन होता है, उतना ऑनलाइन पढ़ने वाले छात्रों के पास नहीं होता है। मेरे विचार से इस परीक्षा के लिए दो तरह के आधार होने चाहिए। पहला, किसका विजन कैसा है, भविष्य का सपना क्या है? दूसरा कैंडिडेट की जनरल नॉलेज कैसी है?
सूर्य प्रसाद दीक्षित, पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी व भारतीय भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय
हिंदी भाषा का ओरिजिनल पैसेज हो
हिंदी भाषा के एस्पिरेंट्स की चिंता सही है। काम्प्रिहेंशन में पूछे जाने वाले पैसेज का ट्रांसलेशन वाकई नेचुरल नहीं है। इसलिए ट्रांसलेटेड पैसेज की बजाय हिंदी भाषा के कैंडिडेट्स के लिए हिंदी भाषा का ही पैसेज दिया जाना चाहिए, न कि इंग्लिश से हिंदी में ट्रांसलेट किया हुआ। मेंटल एबिलिटी और साइंस-टेक्नोलॉजी के क्वैश्चंस एमबीए एग्जाम के पैटर्न पर पूछे जा रहे हैं। इनकी संख्या कम होनी चाहिए। जनरल और एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़े क्वैश्चंस ज्यादा होने चाहिए।
शेखर खेतान, आइआरएस अफसर
भाषायी भेदभाव का सिस्टम
सी-सैट हिंदीभाषी, मानविकी, गैर तकनीकी और ग्रामीण पृष्ठभूमि के स्टूडेंट्स के लिए माकूल नहीं है। इसलिए हम इसे हटाने की मांग कर रहे हैं। हमारी प्रमुख मांगें हैं- हिंदीभाषी लोगों के साथ भेदभाव बंद किया जाए। मेन्स एग्जाम में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त की जाए। अंग्रेजी माध्यम के स्टूडेंट्स की कॉपी अंग्रेजी माध्यम के टीचर और हिंदी माध्यम के स्टूडेंट्स की कॉपी हिंदी माध्यम के टीचर जांचें। इंटरव्यू में अंग्रेजी बोलने के लिए बाध्य न किया जाए।
नीलोत्पल मृणाल, राष्ट्रीय अधिकार मंच
सोची-समझी साजिश
यह अंग्रेजीदां लोगों की सोची-समझी साजिश है। इन लोगों की मंशा यही है कि देश के मूल निवासी हिंदीभाषियों को आइएएस लॉबी से दूर रखा जाए और जिन्हें आम आदमी की आम जिंदगी से कोई सरोकार नहीं, उन्हें प्रशासन का जिम्मा दे दिया जाए। समस्या ऐसे लोगों ने उत्पन्न की है, जो इस देश की सभ्यता, संविधान और समाज को समझते नहीं हैं। राजभाषा अधिनियम के तहत लिखा गया है कि सरकारी कार्यालयों में हिंदी में काम हो। हिंदी के उत्थान के लिए संसदीय समितियां बनी हुई हैं। वहीं जिन पर नियम-कानूनों को लागू करवाने की जिम्मेदारी है, उन्हें चुनने के लिए हालात ऐसे बना दिए गए हैं ताकि हिंदीभाषी लोग सलेक्ट ही न हो सकें। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि काम तो सारे हिंदी में करने की योजना है, लेकिन एग्जाम इंग्लिश ओरिएंटेड लिया जा रहा है। होना यह चाहिए कि वे हिंदी या देश की दूसरी भाषाओं के माध्यम से सलेक्ट होकर आएं, ताकि वे देश की परिस्थितियों को बखूबी समझें।
धमर्ेंद्र यादव, सांसद
इनपुट : दिल्ली से मिथिलेश श्रीवास्तव एवं राजीव रंजन और लखनऊ से कुसुम भारती