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क्रैक द टारगेट

जेईई एग्जाम करीब है। इस बार भी लाखों स्टूडेंट्स पूरी तैयारी के साथ जेईई (मेन्स) एग्जाम में हिस्सा लेंगे और सफल होने की कोशिश करेंगे। जिन स्टूडेंट्स की रैंकिंग टॉप के डेढ़ लाख स्टूडेंट्स में होगी, उन्हें जेईई (एडवांस) में शामिल होने के मौका मिलेगा। इसके बाद तो वे आइआइटी और दूसरे टॉप के टेक्निकल इंस्टीट्यूट्स में इंजीनियर ब

By Edited By: Published: Tue, 01 Apr 2014 03:27 PM (IST)Updated: Tue, 01 Apr 2014 03:27 PM (IST)
क्रैक द टारगेट

जेईई एग्जाम करीब है। इस बार भी लाखों स्टूडेंट्स पूरी तैयारी के साथ जेईई (मेन्स) एग्जाम में हिस्सा लेंगे और सफल होने की कोशिश करेंगे। जिन स्टूडेंट्स की रैंकिंग टॉप के डेढ़ लाख स्टूडेंट्स में होगी, उन्हें जेईई (एडवांस) में शामिल होने के मौका मिलेगा। इसके बाद तो वे आइआइटी और दूसरे टॉप के टेक्निकल इंस्टीट्यूट्स में इंजीनियर बनने के अपने सपने को पंख लगा सकेंगे। फिर भी मन में कोई संशय है कि जेईई एग्जाम कैसे क्रैक करेंगे? घबराने की जरूरत नहींहै। जेईई के टॉप रैंकर्स और एक्सप‌र्ट्स बता रहे हैं कि कैसे स्टूडेंट्स अपनी लगन, ईमानदारी और प्लानिंग से इस एग्जाम में सफलता पा सकते हैं और इंजीनियरिंग फील्ड में ब्राइट करियर बना सकते हैं..

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प्रैक्टिस पर फोकस

सही गाइडेंस और हार्ड वर्क, वे दो हथियार हैं जिनसे आप जेईई जैसे टफ एग्जाम को क्लियर कर सकते हैं। यह कहना है 2013 में जेईई एग्जाम क्रैक करने वाले अमन रॉय का, जो इस समय आइआइटी, दिल्ली में सिविल इंजीनियरिंग फ‌र्स्ट ईयर के स्टूडेंट हैं।

पिता से मिला गाइडेंस

जेईई का सिलेबस काफी बड़ा होता है, इसलिए मैंने ग्यारहवीं में ही एग्जाम की तैयारी शुरू कर दी थी। रोजाना आठ से नौ घंटे पढ़ाई करने का रूटीन बनाया था। लेट नाइट की जगह सुबह पढ़ता था। किसी तरह की कोचिंग नहीं ली। स्कूल के अलावा पिता गाइड किया करते थे। फिजिक्स में उनकी मदद ली, जबकि मैथ्स की प्रैक्टिस खुद की। एग्जाम के मुताबिक टेम्परामेंट बिल्ड करने के लिए टेस्ट पेपर्स सॉल्व किया करता था। इस तरह कड़ी मेहनत और डेडिकेशन की वजह से मुझे जेईई में कामयाबी मिली।

सक्सेस के टिप्स

जो भी स्टूडेंट जेईई क्रैक करना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले अपने वीक प्वाइंट्स पर ध्यान देना होगा। एग्जाम से कुछ समय पहले पढ़ने की बजाय रेगुलर तैयारी करनी होगी। तैयारी एनसीइआरटी सिलेबस बेस्ड होनी चाहिए। इसके अलावा फिजिक्स के लिए प्रो. एच.सी.वर्मा या डी.सी.पांडे, फिजिकल केमिस्ट्री में आर.सी.मुखर्जी आदि की बुक्स को फॉलो करना अच्छा रहेगा। इनऑर्गेनिक के लिए एनसीइआरटी की बुक काफी है। सबसे अहम बात। कभी स्ट्रेस न लें और ब्रेक लेकर पढ़ाई करें। जितना हार्ड वर्क करेंगे, उतना फायदा होगा।

जुनून जरूरी

बचपन से ही मैं आइआइटी और इंजीनियरिंग को लेकर काफी सीरियस था। रोज 13-14 घंटे की पढ़ाई करता था। क्रिकेट जो मेरा पैशन था, वह भी मैंने दो साल में केवल दो बार खेला, पहला एआईईईई एग्जाम के बाद और दूसरा जेईई के बाद।

किताबी कीड़ा

मेरी सफलता में मेरे परिवार का बहुत बड़ा हाथ?रहा, खासकर मेरी मां का। वे मुझे किताबी कीड़ा कहती थीं, क्योंकि हर वक्त मेरे हाथ में किताब रहती थी, लेकिन ऐसे में बाकी चीजों का ख्याल मां ही रखती थीं।

जुनून पालें

जेईई एग्जाम क्रैक करने के लिए जुनून जरूरी है। हर वक्त आपके जेहन में बस एक ही सपना होना चाहिए, इंजीनियर बनना है। जब आपके मन में जुनून सवार होता है, तब चिड़िया की आंख की तरह अपने लक्ष्य के अलावा कुछ भी दिखाई नहींदेता। संडे,मंडे हर दिन हर वक्त आपके दिमाग में बस केमिस्ट्री के पीरियॉडिक टेबल और मैथ्स के फॉर्मूले घूमने चाहिए।

सपने देखें

मैं माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी बनाना चाहता हूं। आइआइटी मुंबई?से बीटेक के बाद अमेरिका के मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी से पीजी करने का सपना है। मैं हर वक्त इसी उधेड़-बुन में रहता हूं कि कैसे मेरा यह सपना पूरा हो।

इंजीनियरिंग को जिएं

सुबह आंख खुलने से लेकर रात को आंख बंद होने तक इन आंखों में बस एक ही बात रही, इंजीनियरिंग। जेईई एग्जाम पास करना मुश्किल नहीं है, लेकिन यह काम केवल सिलेबस पूरा करने से नहीं होगा।?एवरी-डे लाइफ में इंजीनियरिंग है, जरूरत है उसे देखने और समझने की।?

पेपर की प्रैक्टिस करें

हर साल जेईई में नए-नए टिपिकल क्वैश्चंस पूछे जाते हैं, उन्हें सॉल्व करने के लिए आपको हर रोज पिछले साल के पेपर्स सॉल्व करने चाहिए।?इससे आपका कॉन्फिडेंस बढ़ेगा।

राइट प्लानिंग

कॉम्पिटिशन के इस दौर में जेईई के टॉप रैंकर्स में शामिल होना आसान नहीं है। लेकिन जयपुर के दिव्यांश ने प्लांड तरीके और प्रैक्टिस से जेईई (2013) में सफलता हासिल की। पहले मेन्स और फिर एडवांस (267 रैंक) को क्लियर किया। आज वे आइआइटी दिल्ली में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के अपने फेवरेट ब्रांच में पढ़ाई कर रहे हैं।

दसवीं से शुरू की तैयारी

दिव्यांश कहते हैं, बोर्ड के साथ-साथ जेईई एग्जाम्स के लिए प्रिपेयर करना काफी टफ होता है। अगर सही प्लानिंग और टाइम मैनेजमेंट न किया जाए, तो स्टूडेंट पर प्रेशर बढ़ जाता है। इसलिए मैंने दसवीं क्लास से ही जेईई की तैयारी भी शुरू कर दी थी। स्कूल के अलावा कोचिंग क्लासेज जाता था, जहां सब्जेक्ट्स की डिटेल पढ़ाई होती थी। मैंने 20-20 दिनों का एक टाइम टेबल भी बना रखा था। उसी के मुताबिक रेगुलर आठ से नौ घंटे की तैयारी करता था। एग्जाम से पहले रिवीजन करने के लिए शॉर्ट नोट्स भी बनाए थे। इससे आखिरी समय में कोई कंफ्यूजन नहीं रहता है। आखिर में इसी हार्ड वर्क ने सफलता दिलाई।

सक्सेस के टिप्स

जेईई क्रैक करने के लिए तीनों सब्जेक्ट्स पर बराबर का ध्यान देना होगा। बेसिक कॉन्सेप्ट्स पर कमांड के लिए एनसीइआरटी बुक्स बेस्ट हैं। वैसे, स्टूडेंट्स चाहें तो टाटा मैक्ग्राहिल की मैथ्स, डॉ.पी.बहादुर की फिजिकल केमिस्ट्री, जेडी की इनऑर्गेनिक केमिस्ट्री और यूनिवर्सिटी फिजिक्स को फॉलो कर सकते हैं। एग्जाम में सक्सेस के लिए सेल्फ स्टडी और रिवीजन भी बहुत जरूरी है। रेगुलर पढ़ाई का रूटीन अपनी क्षमता के मुताबिक ही बनाएं। इन सबके साथ आप जितना प्रैक्टिस करेंगे, उससे कॉन्फिडेंस बढ़ेगा और एग्जाम में अच्छा परफॉर्म कर पाएंगे।

टेक इनिशिएटिव

2013 में एनआइटी राउरकेला से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग करने वाले प्रतीक को मशहूर सॉफ्टवेयर कंपनी ओरेकल ने इंजीनियरिंग फाइनल ईयर के कैंपस रिक्रूटमेंट के दौरान ही जॉब का ऑफर दे दिया था। पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रतीक ने कंपनी च्वाइन भी की और एक बिल्कुल नया अनुभव हासिल किया। इसी क्रम में उन्हें अमेजन की ओर से भी जॉब का प्रस्ताव आया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। आज वे अमेजन में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर काम कर

रहे हैं।

ट्रेनिंग से शुरुआत

प्रतीक ने बताया कॉलेज की पढ़ाई और प्रोफेशनल वर्क में काफी अंतर होता है। कॉलेज में थ्योरी पर ज्यादा फोकस होता है, जबकि कंपनी में टेक्निकल कॉन्सेप्ट्स को प्रैक्टिकली इंप्लीमेंट करना होता है। इसीलिए कंपनियां कैंडिडेट्स की प्रॉब्लम सॉल्विंग और प्रोग्रामिंग स्किल्स को इंपॉटर्ेंस देती हैं। उसी के मुताबिक उन्हें काम अलॉट किया जाता है। शुरुआत ऑन द जॉब ट्रेनिंग (जिसे नॉलेज ट्रांसफर भी कहा जाता है) से होती है। इसमें कंपनी अपने यहां इस्तेमाल होने वाले टूल्स, टेक्नोलॉजीज ऐंड लैंग्वेजेज की ट्रेनिंग फ्रेशर्स को देती है। प्रतीक कहते हैं, ओरेकल में च्वाइनिंग के बाद मुझे भी एक महीने की ट्रेनिंग दी गई। कुछ समय ट्रेनर्स के साथ काम करने के बाद ही मैनेजर के अंडर डिप्यूट किया गया।

सीखने से बढ़ेंगे आगे

प्रतीक ओरेकल में डेटा बेस (सिस्टम टेस्टिंग) पर काम कर रहे थे, तभी लेटरल हायरिंग के तहत उन्हें अमेजन से जॉब का ऑफर आया। 4-5 राउंड इंटरव्यू के बाद उन्हें कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर अप्वाइंट कर लिया गया। प्रतीक के अनुसार, अगर आपके फंडामेंटल कॉन्सेप्ट्स क्लियर हैं, टीम स्पिरिट में विश्वास रखते हैं और हमेशा कुछ नया सीखने को तैयार रहते हैं, तो आईटी इंडस्ट्री में आगे बढ़ने का पूरा मौका है।

डेवलप योरसेल्फ

अमिताव रॉय के सामने भी दूसरे स्टूडेंट्स की तरह तमाम प्रॉब्लम्स आईं। वे भी अपने उमड़ते सवालों से जूझते रहे। थोड़े कंफ्यूज्ड भी हुए, लेकिन ऑब्जर्वेशन और निरंतर कोशिशों से वह धीरे-धीरे खुद को डेवलप करते गए और आज वे ब्रह्मंाोस जैसी प्रतिष्ठित कंपनी से जुड़ चुके हैं।

प्लान योर करियर

गुवाहाटी का रहने वाला हूं। अपने बिजनेसमैन पिता का सबसे बड़ा बेटा हूं।?कोई गाइड करने वाला नहींथा, लेकिन फिर भी बचपन से ही आंखों में कुछ सपने थे, बस क्लैरिटी नहीं थी।?अपने सीनियर्स से डिस्कशन करके एनालिसिस किया और धीरे-धीरे सारी बातें साफ होती गई कि क्या-क्या कर सकते हैं। क्या-क्या करना चाहिए, फिर मैंने अपना करियर प्लान कर लिया कि मुझे मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ही जाना है।

इनोवेटिव बनें

एनआइटी सिलचर में बी.टेक लास्ट ईयर में कैंपस सेलेक्शन के लिए कई सारी कंपनियां आई। मैकेनिकल इंजीनियरिंग के लिए ब्रह्मंाोस भी इंटरव्यू के लिए आई। इंटरव्यू में ज्यादातर क्वैश्चंस टेक्निकल ही पूछे गए। शायद बोर्ड यही जानना चाहता था कि स्टूडेंट्स कितने इनोवेटिव हैं और कॉन्सेप्ट को किस हद तक समझा है। मुझे ज्यादा मुश्किल नहीं लगा, क्योंकि हमारे क्लासेज में प्रैक्टिकल भी खूब कराया जाता है।

नो शॉर्टकट, वर्क स्मार्ट

कुछ स्टूडेंट्स में सब कुछ फटाफट और शॉर्टकट से पाने की जल्दी होती है। इस थिंकिंग से बचकर रहें। स्मार्ट वर्क अच्छा है, लेकिन मेहनत की बजाय शॉर्टकट में लगे रहेंगे, तो कुछ हाथ नहीं आएगा।

क्लियर योर कॉन्सेप्ट

एआइईईई हो या जेईई दोनों में बस सेलेक्शन का तरीका बदला है। आपने अगर पूरा सिलेबस कवर करते हुए टेक्स्ट बुक स्टडी की हैं और सब्जेक्ट में आपका कॉन्सेप्ट क्लियर है, तो आपको एंट्रेंस क्वालिफाई करने और अच्छा कॉलेज मिलने से कोई नहीं रोक सकता।

ऐसे पाएं सक्सेस

जेईई मेन्स या एडवांस्ड क्वालिफाइ करना मुश्किल नहीं है, लेकिन इसके लिए आपको स्ट्रेटेजिक प्रिपरेशन करनी होगी।

इन पर ध्यान दें

4ओरिजनल सोर्स से एग्जाम के पैटर्न और

सिलेबस पर ध्यान रखें।

4स्टडी शिड्यूल बनाकर इंपॉटर्ेंट सब्जेक्ट्स और

वीक एरियाज की तैयारी करें।

4पहले थ्योरी के क्वैश्चंस सॉल्व करें, फिर

न्यूमेरिकल क्वैश्चन।

4एनसीइआरटी के 11वीं और 12 वीं कोर्स

से सिलेबस के क्वैश्चंस देखें।

4बेसिक कॉन्सेप्ट्स पर करें फोकस।

4क्वैश्चन सॉल्व करने का अपना शॉर्टकट मेथड

डेवलप करें, कॉपी न करें।

4हर दिन तीनों विषयों पर दें बराबर का ध्यान।

4न्यूमेरिकल्स सॉल्व करने की बढ़ाएं स्पीड।

4हरेक सब्जेक्ट के इंपॉटर्ेंट प्वाइंट्स और

फॉर्मूलों की लिस्ट तैयार करके रखें।

4दो महीने पहले रिवीजन पर दें पूरा ध्यान।

4कम से कम दो बार सिलेबस को रिवाइज करें। 4सवालों को ध्यान से पढ़ें।

ये कभी न करें

4ऑनलाइन के लिए कंफर्टेबल न होने पर भी

ऑनलाइन एग्जाम देना।

4जरूरी हो, तो भी रफ शीट यूज न करना।

4पेपर में दिए गए इंस्ट्रक्शन को फॉलो न करना।

4एक्स्ट्रा टाइम बचाकर रिवीजन न करना।

4एक बार में पूरा क्वैश्चन पेपर न देखना।

एग्जाम फॉर्मेट

4रिटेन के बाद पहले आइआइटीज स्टूडेंट्स की काउंसलिंग कंडक्ट करते हैं, उसके बाद एनआइटी और दूसरे टॉप इंस्टीट्यूट्स।

टॉप इंजीनियरिंग कोर्सेज

इंजीनियरिंग फील्ड हमेशा से यूथ की पहली च्वाइस रही है। इंजीनियरिंग की फील्ड, जैसे- सिविल, इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग, सॉफ्टवेयर, इलेक्ट्रिकल, न्यूक्लियर, पेट्रोलियम, एग्रीकल्चर, ऑटोमोबाइल, एरोस्पेस और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में चार्म बरकरार है। यही नहीं, भविष्य में भी इन फील्ड्स में ग्रोथ के पूरे चांसेज हैं।

इलेट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग

आज युवाओं की पहली पसंद इलेट्रॉनिक्स है। मार्केट में इलेट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियर्स की काफी डिमांड है। एक सफल इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड कम्युनिकेशन इंजीनियर बनने के लिए डिजाइनिंग और लॉजिकल सर्किट के बारे में जानना जरूरी है। इसके अलावा, स्टडी के दौरान सभी 8 सेमेस्टर पर कमांड होना जरूरी है।

फ्यूचर : इलेक्ट्रॉनिक्स में जॉब अपॉच्र्युनिटी बहुत है। फ्यूचर में भी इस फील्ड में कोई टेंशन नहीं है।

सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग

मार्केट में सॉफ्टवेयर इंजीनियर की काफी डिमांड है। सॉफ्टवेयर इंजीनियर के लिए बैचलर डिग्री या एमसीए की डिग्री होना जरूरी है। इसके अलावा, डिफरेंट कंप्यूटर लैंग्वेज पर कमांड जरूरी है। फ्रेशर्स के लिए प्रोग्रामिंग पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए।

फ्यूचर : आईटी इंडस्ट्री जिस तरह से ग्रो कर रही है, उसे देखते हुए भविष्य में सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की डिमांड बनी रहेगी।

सिविल इंजीनियरिंग

एक सिविल इंजीनियर के ऊपर मॉडर्न और प्लान्ड वे में कंस्ट्रक्शन कराने की जिम्मेदारी होती है। इंजीनियर बनने के लिए सिविल में बैचलर डिग्री होना जरूरी है। इसके अलावा, डिजाइनिंग और आर्किटेक्चर की समझ भी होनी चाहिए।

फ्यूचर : सिविल इंजीनियर की डिमांड मार्केट में हमेशा रहती है। कुछ साल पहले इस फील्ड में थोड़ी कमी देखी गई थी, लेकिन अर्बनाइजेशन के कारण इस फील्ड में फिर से ग्रोथ दर्ज की गई है।

इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग

इंजीनियरिंग की सबसे ओल्ड ब्रांच में से एक है इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग। इस फील्ड में भी जॉब अपॉच्र्युनिटी काफी है। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के लिए बैचलर डिग्री होना जरूरी है। इसके साथ ही डिजाइनिंग, डेवलपिंग, टेस्टिंग और इक्विपमेंट की जानकारी होना जरूरी है।

फ्यूचर : प्रेजेंट के साथ-साथ फ्यूचर में भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की फील्ड में ग्रोथ बनी रहेगी।

न्यूक्लियर इंजीनियर

इस फील्ड के इंजीनियर्स पर न्यूक्लियर रिएक्टर की डिजाइनिंग, उसके फंक्शन्स और पॉवर प्लांट को मॉनिटर करने की जिम्मेदारी होती है। इस प्रोफेशन में आने के लिए न्यूक्लियर इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री होना जरूरी है।

फ्यूचर : करेंट में न्यूक्लियर इंजीनियर्स की डिमांड एवरेज है, लेकिन फ्यूचर में इस फील्ड में तेजी से ग्रोथ होने की उम्मीद है।

पेट्रोलियम इंजीनियर

पेट्रोलियम इंजीनियर की जॉब काफी टफ है। इस प्रोफेशन में आने के लिए केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री होनी चाहिए।

फ्यूचर : करेंट में इस फील्ड में काफी ग्रोथ है। फ्यूचर भी इंजीनियर्स की डिमांड बनी रहेगी।

कंपनी वॉन्ट्स क्वॉलिटी

जिन स्टूडेंट्स के मा‌र्क्स ठीक होते हैं और जिन्होंने अच्छे इंस्टीट्यूट से इंजीनियरिंग की होती है, उन्हें तो जॉब मिल जाती है, लेकिन वे स्टूडेंट्स जिनके मा‌र्क्स कम होते हैं और इंस्टीट्यूट की रैंकिंग कम होती है, उन्हें प्लेसमेंट में दिक्कत आती है। हमारे यहां बहुत से स्टूडेंट्स जॉब के लिए आते हैं, कुछ का सीधे प्लेसमेंट हो जाता है और कुछ स्टूडेंट्स को वेट करना पड़ता है। जॉब न मिलने के पीछे कई कारण हैं, जिसमें मेन है जरूरत से ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेजों का खुलना। ज्यादा इंस्टीट्यूट ओपन होने से इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स की संख्या भी बढ़ गई है। मार्केट में इंजीनियंिरग स्टूडेंट्स के लिए जॉब तो है, लेकिन कंपनीज की डिमांड क्वालिटी स्टूडेंट्स की होती है। कोर्स करने से पहले स्टूडेंट एक बार मार्केट रिक्वायरमेंट को जरूर समझने की कोशिश करें। उसके बाद कोर्स करें।

मिथिलेश श्रीवास्तव, अंशु सिंह

और मो. रज़ा


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