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ऑनलाइन गुरु

गुरु शब्द पढ़ते या सुनते ही स्कूल की क्लास में ब्लैकबोर्ड के सामने हाथ में मार्कर लिए एक इंसान की तस्वीर जेहन में घूम जाती है। जरा सोचिए आप घर में अपने कंप्यूटर पर बैठे हों और वही गुरुजी आपके जी-मेल हैंग आउट चैट बॉक्स या स्काइप पर आ जाएं, सामने ब्लैकबोर्ड दिखे, और आपसे कहें, हां, बताओ, कौन-सा सवाल सॉल्व नहींहो रहा, कौन-सा चैप्टर समझ

By Edited By: Published: Tue, 02 Sep 2014 04:10 PM (IST)Updated: Tue, 02 Sep 2014 04:10 PM (IST)
ऑनलाइन गुरु

गुरु शब्द पढ़ते या सुनते ही स्कूल की क्लास में ब्लैकबोर्ड के सामने हाथ में मार्कर लिए एक इंसान की तस्वीर जेहन में घूम जाती है। जरा सोचिए आप घर में अपने कंप्यूटर पर बैठे हों और वही गुरुजी आपके जी-मेल हैंग आउट चैट बॉक्स या स्काइप पर आ जाएं, सामने ब्लैकबोर्ड दिखे, और आपसे कहें, हां, बताओ, कौन-सा सवाल सॉल्व नहींहो रहा, कौन-सा चैप्टर समझ नहींआ रहा है?

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राहुल लखनऊ यूनिवर्सिटी से बी.कॉम कर चुका था। अब उसे जॉब चाहिए थी। बचपन से ही वह पढ़ाई में तेज था। उसके मा‌र्क्स भी हमेशा 80 परसेंट के आस-पास रहे। अपनी पॉकेटमनी खुद निकालने के लिए वह घर के आस-पास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करता था। कभी किसी बच्चे को घर पर ही बुला लेता था, कभी उनके घर जाकर पढ़ा दिया करता था। आने-जाने में एक-दो घंटे लग जाते थे। एक बार में एक ही स्टूडेंट को पढ़ाता था। इस तरह महीने में 1000 रुपये मिल जाते थे। बी.कॉम करने के बाद उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस फील्ड में करियर बनाए। चार्टर्ड एकाउंटेंट का कोर्स करे, एमकॉम करे, एमबीए करे या फिर सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करे? फिर उसने सोचा कि क्या वह इनमें से एक भी काम दिल लगाकर कर सकता है? उसे जवाब मिला, नहीं। फिर किस काम में उसका मन लगता है। जवाब मिला, ट्यूशन पढ़ाने में। उसके पढ़ाए बच्चे जब क्लास में अव्वल आते हैं, तो उसका सीना फक्र से चौड़ा हो जाता है, लेकिन इसमें तो ज्यादा पैसे नहीं मिल पाते थे। तभी उसे ऑनलाइन ट्यूशन के बारे में पता चला। उसने ट्रेनिंग ली और अब वह सात समंदर पार के देशों के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता है, वह भी घर बैठे और अब उसकी कमाई डॉलर्स और पौंड्स में होती है। क्या आप भी राहुल की तरह ऑनलाइन गुरु बनकर डॉलर्स कमाना चाहते हैं, तो मिलिए हाईटेक गुरुओं से..

टेक्नोलॉजी से बढ़ी

सुधीर सचदेवा,दिल्ली

Facult4 CA (La2),

Superprof.com

एर्नाकुलम के ग्रीन वैली पब्लिक स्कूल में छठी क्लास के स्टूडेंट पोस्टग्रेजुएट स्टूडेंट्स को ऑनलाइन ट्यूशन दे रहे हैं।

सुधीर सचदेवा ने बीकॉम थर्ड ईयर में ही फैसला कर लिया था कि वे टीचिंग प्रोफेशन को अपनाएंगे, लेकिन उसके लिए पहले खुद को इस काबिल बनाएंगे कि स्टूडेंट्स की नींव मजबूत कर सकें। इसलिए दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन, फिर एमकॉम, सीए और बीएड कं प्लीट किया। बीते 14 साल से वे स्टूडेंट्स को सीए लॉ की कोचिंग दे रहे थे, लेकिन 2013 में सुपर प्रॉफ से जुड़ने के बाद अब सुधीर सीए के अलावा सीएस और सीएमए की ऑनलाइन तैयारी करवा रहे हैं। इससे 80 से ज्यादा शहरों के स्टूडेंट्स को फायदा हो रहा है।

सुपरप्रॉफ ने दिखाई राह

पहले मैं दिल्ली स्थित कोचिंग सेंटर पर सीए की तैयारी के लिए आठ से दस घंटे की क्लास लेता था। इस तरह साल में 1500 से दो हजार स्टूडेंट्स को लॉ, एथिक्स और कम्युनिकेशन पढ़ा पाता था। लेकिन सुपरप्रॉफ की वजह से आज मेरी पहुंच सिर्फ दिल्ली के स्टूडेंट्स तक नहीं रही, बल्कि अब मैं चार से पांच घंटे में गुजरात, राजस्थान, असम, ओडिशा, दिल्ली, हरियाणा जैसे तमाम शहरों के स्टूडेंट्स को एक साथ पढ़ा पाता हूं। स्टूडेंट्स भी घर बैठे लाइव क्लासेज, क्वैश्चन-आंसर सेशंस,मॉक टेस्ट्स, रिकॉर्डेड वीडियो, ई-बुक्स और एक्सक्लूसिव फिजिकल कोर्स मैटीरियल्स आदि की मदद से सीए, सीएस आदि की तैयारी कर लेते हैं। उन्हें रिवीजन के लिए भी पूरा समय मिल जाता है और फीस भी पहले से लगभग आधी ही देनी पड़ती है।

ब्राइट है फ्यूचर

मेरा मानना है कि एक टीचर को हमेशा मल्टी डिसीप्लीनरी अप्रोच रखना चाहिए। उन्हें खुद को अपग्रेड करते रहना चाहिए। जिस तरह एजुकेशन व‌र्ल्ड में नई टेक्नोलॉजी का प्रवेश हो रहा है। ऑनलाइन ट्यूटोरियल्स एक ऐसा ही नया ट्रेंड है, जो मुमकिन है कि आने वाले दो-तीन सालों में कोचिंग सेंटर्स के कॉन्सेप्ट को ही खत्म कर देगा। ऐसे में अगर हम नई टेक्नोलॉजी को एडॉप्ट नहीं करेंगे, समय के साथ नहीं चलेंगे तो कहीं पीछे छूट जाएंगे। हां, ऑनलाइन में सक्सेसफुल होने के लिए भी आपको पूरी तैयारी के बाद ही पढ़ाना होगा, प्रेजेंटेशन स्किल डेवलप करनी होगी।

ऑनलाइन में फ्लेक्सिबिलिटी

सुलगना सरकार, कोलकाता

Facult4 Accounts,

E-Tuitions.com

अमेरिका, ब्रिटेन और वियतनाम में ऑनलाइन ट्यूशन का मार्केट सबसे तेजी से डेवलप हो रहा है और भारतीय ट्यूटर्स की डिमांड भी बढ़ रही है।

फैमिली रिस्पॉन्सिबिलिटी संभालते हुए अगर अपने पैशन को भी पूरा करने का मौका मिले, तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। कोलकाता की सुलगना सरकार ग्रेजुएशन के बाद शौकिया तौर पर बच्चों को ट्यूशन देती थीं। लेकिन शादी के बाद इसे जारी रख पाना संभव नहीं रहा। ऐसे में उन्होंने घर बैठे देश और विदेश के स्टूडेंट्स को ऑनलाइन ट्यूशंस देना शुरू किया।

सहूलियत के हिसाब से क्लास

सुलगना ने बताया कि साल 2009 में वे अहमदाबाद में थीं, तभी ई-ट्यूशन ऑनलाइन ट्यूटर्स की हायरिंग कर रहा था। मैंने भी अप्लाई किया। एक इंटरव्यू हुआ। मैं सलेक्ट कर ली गई। इसके बाद वेबसाइट पर मेरी प्रोफाइल क्रिएट हुई और मुझे सब्जेक्ट के अनुसार स्टूडेंट्स एलॉट किए जाने लगे। फीस ई-ट्यूशन द्वारा प्रति घंटे के हिसाब से तय की गई। इस तरह मैंने 11वीं और 12वीं के स्टूडेंट्स को अकाउंटिंग पढ़ाना शुरू किया। साथ ही सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड के दसवीं के स्टूडेंट्स को मैथ्स भी पढ़ाती हूं। आज मेरे पास इंडिया के अलावा, मध्य एशिया, यूके, यूएस और ऑस्ट्रेलिया के स्टूडेंट्स हैं। इस तरह अपनी सहूलियत के हिसाब से हफ्ते में करीब 4 से 5 घंटे पढ़ाकर मैं महीने में औसतन 15 से 16 हजार रुपये कमा लेती हूं।

वन टाइम इनवेस्टमेंट

ई-ट्यूशन के साथ जुड़ने से मुझे सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि मैं इंटरनेशनल करिकुलम को जान और समझ पाई। मुझे जो वेबसाइट्स, सॉफ्ट कॉपीज, ऑनलाइन मैटीरियल्स और सिलेबस उपलब्ध कराए गए, उनसे मुझे इंडिया और एब्रॉड के स्टूडेंट्स को उनकी जरूरत के मुताबिक पढ़ाने में मदद मिली। जहां तक सेट अप का सवाल है, तो मुझे सिर्फ शुरू में एक कंप्यूटर सिस्टम, एक हेड फोन, पॉवर बैक अप, हाई स्पीड इंटरनेट और एक डिजीटल राइटिंग पैड में इनवेस्ट करना पड़ा। ऑनलाइन ट्यूटोरियल साइट्स के आने से एक बदलाव यह आया है कि जिन्हें भी टीचिंग का शौक है और जो अपने सब्जेक्ट पर कमांड रखते हैं, वे घर बैठे या वैकल्पिक प्रोफेशन के रूप में इससे अच्छी कमाई कर सकते हैं। इससे उन लोगों को भी बेनिफिट मिला है, जिन्होंने किसी कारण बीच में पढ़ाई छोड़ दी है। आज वे ऑनलाइन ट्यूटर की मदद से डिस्टेंस लर्निंग का कोर्स कंप्लीट कर सकते हैं।

बृज कुमार दिल्ली

फ्रीडम वाली जॉब

noidatutors.com

यूएस में पर्सनलाइज्ड ट्यूशन के महंगा होने से इंडियन ट्यूटर्स की बढ़ी डिमांड। यूएस में एक घंटे का चार्ज है 40 से 60 डॉलर।

बचपन में मैं बहुत स्टडीअस था। 12वीं क्लास में मेरे 98 परसेंट मा‌र्क्स आए थे और क्लास के स्टूडेंट्स काफी इंप्रेस्ड हुए थे। मैं एक तरह से हीरो बन गया था। सब मुझसे पूछने लगे, इतने मा‌र्क्स कैसे लाए, कैसे पढ़ते हो, हमें भी पढ़ाओ। इस तरह मैं पढ़ाने लगा।

कोई फिक्स रूटीन नहीं

धीरे-धीरे मेरा इंट्रेस्ट बढ़ता गया। फिर मैंने सोचा, जब मुझसे पढ़ना चाहते हैं, तो क्यों ना इसे ही करियर बनाया जाए। मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज में एडमिशन लिया। एम्स में रेडिएशन टेक्नोलॉजी में कोर्स किया, लेकिन मेरा मन टीचिंग में ही रमा रहा। फिर मैंने इसी में करियर बनाने का फैसला किया। कॉलेज या यूनिवर्सिटीज में भी पढ़ाया जा सकता था। लेकिन यह मुझे रास नहीं आया। मुझे फिक्स रूटीन अच्छी नहीं लगती थी। इसलिए मैंने ट्यूशन का ही करियर अपनाया। पहले होम ट्यूशन और फिर ऑनलाइन ट्यूशन।

ऑनलाइन नहींमुश्किल

इसके जरिए अब मैं अमेरिका, ब्रिटेन, अबूधाबी, सिंगापुर और दूसरे कई देशों के स्टूडेंट्स को पढ़ाता हूं। खास तौर पर मैं मैथ्स, फिजिक्स और हिंदी की ट्यूशन देता हूं। ऑनलाइन ट्यूशन शुरू में हैंडल करने में थोड़ी मुश्किल जरूर आती है, लेकिन जब आप हैबिचुअल हो जाते हैं, तो सब कुछ बहुत आसान हो जाता है। इसके लिए आपको चाहिए बस, अच्छी स्पीड वाला ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शन, हेडफोन, माइक,स्पीकर, वेबकैम वाला लैपटॉप, डिजिटल व्हाइट बोर्ड, मार्कर और वेब चैटिंग के लिए स्काइप पर एकाउंट।

विदेशों में बहुत डिमांड

शुरुआत में आपको ऑनलाइन स्टूडेंट्स खुद ढूंढने में परेशानी आती है। अमेरिका, सिंगापुर या दूसरे कंट्रीज के स्टूडेंट्स और गॉर्जियंस को वहां के टीचर्स की काउंसलिंग थोड़ी महंगी पड़ती है और बच्चों को कई बार अपने कोर्स में कुछ प्रॉब्लम होती है, तो उनके पास कोई सॉल्यूशन देने वाला नहीं होता है। ऐसे में उनके पास ऑनलाइन ट्यूशन एक अच्छा ऑप्शन होता है। इंडिया में उन्हें कम फीस में अच्छे ट्यूटर भी मिल जाते हैं। इसके लिए आपको ज्यादा टेंशन भी नहींलेनी है, क्योंकि आपको काम करने की फ्रीडम होती है।

टीचिंग का नया अंदाज

अत्री नंदी कोलकाता

Biolog4 Facult4,

m4pri1atetutor.com

ऑनलाइन टीचिंग में इंटरैक्टिव व्हाइट बोर्ड, इंस्टेंट मैसेजिंग टूल और इंटरनेट टेलीफोन सिस्टम काफी मददगार होते हैं।

कोलकाता की अत्री नंदी समय के साथ चलने और उसका सदुपयोग करने में विश्वास रखती हैं। इसलिए स्कूल में पढ़ाने के अलावा इंडिया और यूएस के 11वीं और 12वीं के स्टूडेंट्स को बायोलॉजी की ऑनलाइन ट्यूशन भी देती हैं।

ऑनलाइन से नई शुरुआत

माइक्रोबायोलॉजी में मास्टर्स अत्री चाहतीं तो किसी कंपनी में नौकरी कर अच्छा सैलरी पैकेज पा सकती थीं। लेकिन उन्हें बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता था। इसलिए टीचिंग को चुना। मैं बीते कई सालों से शिक्षण के पेशे से जुड़ी हूं। स्टूडेंट्स को इनोवेटिव तरीके से पढ़ाने में आनंद आता है। ऐसे में जब इस साल की शुरुआत में अपने साथी शिक्षकों से ऑनलाइन टीचिंग के बारे में जानकारी मिली, तो मैंने इसे आजमाने का सोचा। मैंने ऑनलाइन पोर्टल माईप्राइवेट ट्यूटर डॉट कॉम पर रजिस्ट्रेशन कराया। इसके लिए मुझे किसी तरह का शुल्क नहींदेना पड़ा। रजिस्ट्रेशन के बाद मेरी प्रोफाइल का वेरिफिकेशन हुआ और वह एक्टिवेट कर दिया गया। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 24 से 48 घंटे लगे। इसके बाद स्टूडेंट्स ने मुझसे संपर्क किया और शुरू हो गया ऑनलाइन ट्यूटोरियल का सिलसिला। तकनीक ने बढ़ाए विकल्प

अत्री कहती हैं, ऑनलाइन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है। ट्रांसपोर्टेशन का कोई खर्च नहींआता। घर बैठे, अपनी सहूलियत के अनुसार क्लास ले सकती हैं। आप चाहें तो फुलटाइम या दूसरे काम करते हुए भी ऑनलाइन टीचिंग से जुड़ सकती हैं। मैं स्काइप और वीडियो कॉल्स के जरिए अपने स्टूडेंट्स से कनेक्ट रहती हूं। उनके सवालों के जवाब देती हूं। हर दिन करीब दो घंटे की क्लास लेती हूं। इनका समय अलग-अलग देशों के समयानुसार तय करती हूं। यानी बॉस्टन के स्टूडेंट्स को देर रात पढ़ाना होता है, जो मैं दिन में स्कूल की ड्यूटी के बाद आसानी से कर पाती हूं। पॉवर प्वाइंट प्रेजेंटेशन और ई-टेक्स्ट बुक्स की मदद से स्टूडेंट्स को पढ़ाती हूं। इसके अलावा समय-समय पर ऑनलाइन टेस्ट्स भी लेती हूं। वैसे तो आप ग्रुप में भी पढ़ा सकती हैं, लेकिन मैं वन टु वन ट्यूशन लेती हूं। देश के साथ-साथ विदेशों के स्टूडेंट्स से इंटरैक्ट करना, एक बेहद अलग अनुभव होता है। यह सब टेक्नोलॉजी की मदद के बिना कभी संभव नहीं था।

पैशन वाला काम

अमित मिश्रा वाराणसी

missioneducation.

2eebl4.com

दुनिया के सबसे बड़े एजुकेशनल पब्लिशर पीयर्सन ने ऑनलाइन एजुकेशन में काफी इनवेस्ट किया है।

आम तौर पर यूथ का सपना होता है डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या आइएएस बनना, खासकर जब बात यूपी-बिहार की हो, तब तो लगता है कि वहां माहौल ही सिविल सेवा का है, लेकिन वाराणसी के अमित मिश्रा का सपना हमेशा से ही कुछ था। बचपन से ही उन्हें बच्चों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता था। इसलिए शिक्षण के पेशे से जुड़ गए।

टीचिंग का पैशन

अमित बताते हैं, हाईस्कूल से ही मुझे बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता था। तभी से पढ़ा रहा हूं। होम ट्यूशन से अपनी नॉलेज भी रिवाइज होती रहती है और एक आत्मसंतुष्टि भी मिलती है। शुरू में तो होम ट्यूशन ही पढ़ाता था। फिर कोचिंग इंस्टीट्यूट्स का दौर आया। एक साथ कई बच्चों को पढ़ाया। धीरे-धीरे जब ऑनलाइन ट्यूशन के बारे में पता चला, तो मैंने इसे ही अपना प्रोफेशन बनाने का फैसला कर लिया।

नॉलेज के साथ इनकम

केवल फिजिक्स, केमिस्ट्री या मैथ्स ही नहीं, कंप्यूटर एप्लीकेशंस, डॉट नेट, एएसपी, जावा स्क्रिप्ट, बीसीए, एमसीए सभी क्लासेज के स्टूडेंट्स को पढ़ाने लगा। ऑनलाइन ट्यूशन का फायदा यह हुआ कि मुझे इंडिया ही नहीं, फॉरेन कंट्रीज से भी स्टूडेंट्स मिलने लगे। फॉरेन कंट्रीज के स्टूडेंट्स को हैंडल करने के लिए अपडेट रहना पड़ता है। कम्युनिकेशन स्किल्स बेहतर करनी पड़ती है, लेकिन इसके एवज में आपको अच्छी इनकम हो जाती है।

आप तभी अच्छे टीचर बन सकते हैं, जब आप पढ़ाते वक्त भी एक स्टूडेंट की तरह हर वक्त सीखते रहें। मैं हमेशा खुद को अपडेट करने की कोशिश करता रहता हूं, जिससे हर बार मैं अपने स्टूडेंट्स को पहले से बेहतर एजुकेशन दे सकूं। नतीजे सामने होते हैं। जब आपके स्टूडेंट्स न केवल अच्छे मा‌र्क्स लाते हैं, बल्कि अच्छा करियर भी बना लेते हैं, तो बहुत संतुष्टि मिलती है।

स्मार्ट है आज का स्टूडेंट

आज का स्टूडेंट बहुत स्मार्ट है, वह बहुत जल्दी सीखता है। उनके दिमाग में ढेर सारे सवाल होते हैं। केवल कोर्स कम्प्लीट करने से ही बात नहींबनती। आपको हर स्टूडेंट की जिज्ञासा का समाधान करना होता है। उनकी जिज्ञासाएं ही उन्हें इनोवेटिव बनाती हैं, वास्तव में मेरे हिसाब से शिक्षा तभी सार्थक है।

नॉलेज से बढ़ती कमाई

मंदिरा गुप्ता पुणे

English Facult4,

E-Tuitions.com

ब्रिटेन में जीसीएसई एग्जाम क्लियर कराने के लिए पैरेंट्स बच्चों के ऑनलाइन ट्यूशन पर काफी पैसे खर्च कर रहे हैं।

ऑनलाइन टीचिंग ने रिटायरमेंट के बाद भी शिक्षकों को अपना नॉलेज और एक्सपीरियंस शेयर करने का एक बड़ा प्लेटफॉर्म दिया है। पुणे की मंदिरा गुप्ता इसकी मिसाल हैं। करीब 30 से भी ज्यादा साल का शिक्षण अनुभव रखने वाली मंदिरा, डीपीएस स्कूल की प्रिंसिपल रह चुकी हैं। 2009 में जब ई-लर्निंग मेथड भारत में उतना लोकप्रिय भी नहीं हुआ था, तब से वे इंग्लिश की ऑनलाइन ट्यूशंस दे रही हैं। आज उम्र के एक खास पड़ाव पर पहुंचने के बावजूद, उनमें पढ़ाने को लेकर पैशन कम नहींहुआ है।

नए करियर का आगाज

मंदिरा गुप्ता ने इंग्लिश में एम.ए और बी.एड किया है। सालों तक स्कूल में बच्चों को पढ़ाया है। प्रिंसिपल के तौर पर शैक्षिक और प्रशासनिक जिम्मेदारी संभाली है। लेकिन कभी कुछ नया सीखने में संकोच नहीं किया। टेक्नोलॉजी से दोस्ती करने में देर नहीं की। वे कहती हैं, 2009 में मैं ई-ट्यूशंस पोर्टल के साथ जुड़ी। वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन और सीवी अपलोड करने के बाद मुझे व्हाइट बोर्ड पर काम करने, स्टूडेंट्स के साथ इंटरैक्ट करने और अपने लेसंस अपलोड करने की ट्रेनिंग दी गई।?ट्रेनिंग पूरी होने के बाद धीरे-धीरे मुझे स्टूडेंट्स मिलने लगे। देखते ही देखते ब्रिटेन, यूएस, जापान, चीन, कोरिया जैसे देशों के स्टूडेंट्स को मैं इंग्लिश की ट्यूशन देने लगी। मुझे इसमें मजा आ रहा है।

ऑनलाइन में एक्सपोजर

मंदिरा कहती हैं, ऑनलाइन ट्यूटोरियल्स ने स्टूडेंट्स की समस्याएं दूर करने के साथ ही टीचर्स को क्वालिटी एक्सपोजर दिलाया है। जो लोग सर्विस से रिटायर हो चुके हैं, वे भी आज इंटरनेट या ब्रॉडबैंड की मदद से अपनी नॉलेज और एक्सपीरियंस देश-दुनिया के अलग-अलग कोने के स्टूडेंट्स से शेयर कर सकते हैं। उन्हें गाइड कर अच्छी कमाई कर सकते हैं। वे कहती हैं, मुझे ऑनलाइन में पढ़ाना ज्यादा मजेदार लगता है। स्कूल में जहां पढ़ाने के अलावा तमाम किस्म की जिम्मेदारियां निभानी पड़ती थीं, ऑनलाइन में हर दिन एक घंटे की क्लास लेती हूं। इसमें समय की बचत तो होती ही है, कहीं आने-जाने का टेंशन भी नहीं होता। वहीं, महीने में कम से कम 10 से 15 हजार रुपये की कमाई हो जाती है सो अलग। वैसे, ये स्टूडेंट्स या क्लासेज पर भी निर्भर करता है। आप जितना समय देंगे, उतनी अधिक कमाई होगी।

स्कूल एट योर डोर

संदीप राजपूत गुड़गांव

Founder Inno1ation Night School

ब्रिटेन में 2013 में प्राइवेट ट्यूशन पर 6 बिलियन पौंड से ज्यादा खर्च हुए। वहां पेरेंट्स 22 पौंड प्रति घंटा देने को तैयार हैं।

हर किसी की अपनी अलग हॉबी होती है, कुछ लोगों का गेम्स में इंटरेस्ट होता है, तो कुछ का पढ़ाई में। लेकिन कुछ लोगों का शौक दूसरों का भविष्य संवारना होता है। संदीप राजपूत भी ऐसे कुछ गिने चुने हुए लोगों में शामिल है, जो स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों को शिक्षित कर उनका जीवन सुधारने की कोशिश में जुटे हुए हैं। दरअसल संदीप ने खुद विषम परिस्थतियों एजुकेशन हासिल की है। उनका मकसद गरीब बच्चों को एजुकेशन देना है। संदीप ने ऑल इंडिया सिटीजन्स एलाइन्स फॉर प्रोग्रेस ऐंड डेवलपमेंट (एआइसीपीडी) की 2010 में स्थापना की और शुरू कर दिया बच्चों को पढ़ाना।

स्कूल आपके द्वार

गुड़गांव व आसपास के क्षेत्रों में सर्वे किया, तो पता चला कि सोहना रोड पर ही 5 किलोमीटर के दायरे में 1000 बच्चे 6 से 14 साल की उम्र के दायरे में स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। जिनमें अधिकांश लड़कियां थी। संदीप राजपूत ने वालेंटियर्स की मदद से 2010 में विभिन्न कासंट्रक्शन साइटस पर मोबाइल स्कूल की शुरुआत की और नाम दिया 'स्कूल एट डोर स्टेप' यानी स्कूल आपके द्वार।

आइआइटी ने की तारीफ

आइआइटी मद्रास और आइआइटी रूड़की ने भी संदीप राजपूत के इस प्रयास की तारीफ की। आइआइटी मद्रास ने संदीप को अपने वार्षिक सिम्पोजियम 2013 में मेंटर के खिताब से नवाजा। यही नहीं सेंट्रल रेलसाइड वेयरहाउस कंपनी, सीआरडब्लूसी ने संदीप के प्रयासों की सरहाना की और सीएसआर प्रोजेक्ट के लिए समझौता भी किया। जापानी से आए एक डेलिगेशन ने भी 10 अगस्त 2014 को उनके मोबाइल स्कूल साइटस का दौरा किया। नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) ने जुलाई 2013 में दी मान्यता प्रदान की।

10 बच्चों से की शुरुआत

2010 में जब मोबाइल स्कूल की शुरुआत की तो, मात्र 10 प्रवासी बच्चे ही स्कूल में पढ़ने के लिए आगे आए। इसके बाद अपने साथियों के साथ बच्चों और उनके पेरेंट्स को जागरूक किया। आज यह स्ट्रेंथ बढ़कर करीब 450 बच्चों से ज्यादा की हो गई है। आज करीब 60 प्रवासी बच्चे ग्रेजुएशन कर रहे हैं।

जिंदगी में रंग भरना

गंगा नारायण दिल्ली

Founder, Manorma School Of Fine Arts

भारत, ताइवान और थाईलैंड के आधे से ज्यादा पेरेंट्स अपने बच्चों को एक्स्ट्रा पे करके एक्स्ट्रा ट्यूशन दिलवाते हैं

जज्बे के आगे बड़ी से बड़ी चुनौती भी दम तोड़ देती है। ओडिशा के रहने वाले गंगानारायण महाराणा को पेंटिंग का शौक बचपन से था। हमेशा रंगों में ढूबे रहने वाले नारायण के पिता को पेंटिंग पसंद नहीं थी, लेकिन नारायण की मां मनोरमा न खुद अच्छी पेंटिंग बनाना जानती थीं, बल्कि अपने बेटे को भी पेंटिंग की बारीकियों से रूबरू कराया। पेंटिंग को लेकर नारायण और उनके पिता में रोज झगड़े होने लगे। 2003 में नारायण कुछ अनाजा बेचकर जो पैसे मिला उसे लेकर दिल्ली चले आए। दिल्ली में उनके रहने का कोई ठिकाना नहीं था। इसलिए वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में रहने लगे और प्लेटफार्म पर आने वाले यात्रियों के स्केच बनाने लगे। एक स्केच पर नारायण को 50 से 70 रुपये मिल जाते थे। अब स्टेशन ही नाराण का घर हो गया।

टीचर ने पहचानी प्रतिभा

नारायण को एक दिन स्केच बनाता देख एक दिल्ली के बड़े पब्लिक स्कूल के पि्रंसिपल ने उन्हें अपने स्कूल में स्टूडेंट्स को पेंटिंग सिखाने का ऑफर दिया। नारायण को यह एक अच्छी ऑ‌र्प्चुनैटी लगी और वह राजी हो गए।

बेसहारों का सहारा

नारायण ने बताया कि वह रोज सुबह मॉर्रि्नग वॉक के लिए महरौली के एक पार्क में जाते हैं, वहां उन्होंने देखा कि कुछ बच्चे स्कूल से बंक मारकर वहीं पार्क में सिगरेट पी रहे हैं, तो कुछ पेंटिंग बना रहे हैं। नारायण ने उन बच्चों से बात की, तो कुछ पेंटिंग सिखाने के लिए राजी हो गए।

मां के नाम पर इंस्टीट्यूट

नारायण ने अपनी मां के नाम पर मनोरमा स्कूल ऑफ फाइन आ‌र्ट्स की शुरुआत की। पब्लिक स्कूल से जो सैलरी मिलती है, उसमें अपना खर्च निकालने के बाद जो पैसे बचते हैं, उससे बच्चों के लिए पेंटिंग का सामान भी खरीदते हैं।

बच्चों से लगाव

नारायण को बच्चों से खासा लगाव है। वह बच्चों को पेंटिंग की बारीकियों के साथ कुछ किताबी ज्ञान भी देने की कोशिश करते हैं। नारायण बच्चों को उत्साहित करने के लिए पेंटिंग एग्जीबीशन भी आयोजित कराते हैं। नारायण द्वारा सिखाए गए कई बच्चों को पुरस्कृत भी किया जा चुका है। नारायण अब तक करीब 400 बच्चों को ट्रेंड कर चुके हैं।

सोशल एक्टिविटी भी जरूरी

नैंसी शर्मा, गुड़गांव

Assistant Manager

JK Group

प्राइवेट ट्यूशन मार्केट का 15 परसेंट अकेले साउथ कोरिया में है। यहां इसका बिजनेस 13.9 बिलियन डॉलर से ज्यादा का है

सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी सुनने में यह शब्द सामान्य सा लगता है, लेकिन अगर इसे गंभीरता से लिया जाए, तो बहुत सी दिक्कतें अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाकर खत्म की जा सकती हैं, जिसके लिए हम सरकारों पर निर्भर रहते हैं। आमतौर पर लोग खुद सफल होने के बाद अपनी सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी को भूल जाते हैं। लेकिन कॉर्पोरेट में जॉब करने वाली नैंसी शर्मा बाकी लोगों से थोड़ा अलग हैं। नैंसी ने अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को न सिर्फ समझा बल्कि उसे पूरा करने का बीड़ा भी उठाया। अपने ऑफिस से फ्री होने के बाद गरीब और बेसहारा बच्चों को पढ़ाती हैं।

सोसायटी डेवलपमेंट

एजुकेशन से किसी एक का विकास नहीं होता, बल्कि पूरी सोसायटी का डेवलपमेंट होता है। नैंसी कहती हैं कि हममें से ज्यादातर लोग सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं और करते हैं, लेकिन अपनी सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी की तरफ ध्यान नहीं देते। जबकि यह बहुत जरूरी है। इससे पता चलता है कि आपके अंदर सोसायटी के लिए कुछ करने का जच्बा है।

शुरू हुआ पढ़ाने का सफर

नैंसी जब ऑफिस से घर आती थी, तो वह अक्सर देखती थी कि कुछ बच्चे गुड़गांव स्थित सिग्नेचर टावर के पास काफी संख्या गरीब बच्चे कुछ न कुछ करते रहते हैं। उन्होंने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक सर्वे किया, पता चला कि इनमें से ज्यादातर बच्चे पढ़ना चाहते हैं, लेकिन कोई रिसोर्स न होने के कारण पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। नैंसी ने फैसला किया कि वे ऑफिस से आने के बाद कुछ समय इन बच्चों को पढ़ाने में देंगी। इस काम में उनकी कुछ वॉलेंटियर्स ने भी मदद की।

पढ़ाना ड्यूटी बन गई है

बच्चों को पढ़ाना नैंसी की ड्यूटी बन गई है। जितनी खुशी नैंसी को इन बच्चों को पढ़ा कर मिलती है उतना ही इंतजार इन बच्चों को भी नैंसी का रहता है। शाम होते ही यह बच्चे सबकाम छोड़कर पार्क में पढ़ने के लिए जमा हो जाते हैं। नैंसी रोज शाम को सिग्नेचर टॉवर के पास स्थित पार्क में 6 से 7 बजे तक पढ़ाती हैं। नैंसी ने पुणे के एक इंस्टीट्यूट से एमबीए किया है और जेके ग्रुप में बतौर असिस्टेंट मैनेजर के पद पर जॉब करती हैं।

फेस टु फेस स्टडी

वियतनाम में ऑनलाइन ट्यूशन सबसे तेजी से बढ़ रहा है। पूरी दुनिया के ऑनलाइन ट्यूशन का करीब 40 फीसदी मार्केट वहींहै।

मैं पेशे से केमिकल इंजीनियर था। भारत में काम करने के बाद अमेरिका, रूस, सऊदी अरब जैसे कई दूसरे देशों में काम करने का मौका मिला। काफी कुछ सीखा, लेकिन बचपन से ही मुझे एजुकेशन फील्ड अट्रैक्ट करता था। मैंने रिसर्च में यही पाया कि यह फील्ड बेहद सेक्योर और ब्राइट फ्यूचर वाला है।

कैसे बनती है प्रोफाइल

अगर किसी को ऑनलाइन ट्यूटर बनना है, तो उसे ऑनलाइन ट्यूशन वाली वेबसाइट्स पर रजिस्टर करना होगा। उस वेबसाइट पर लॉग इन करने के बाद आपकी प्रोफाइल बनेगी। प्रोफाइल में आप अपनी फोटो, एक्सपीरियंस, स्किल्स, फीस और ट्रायल क्लासेज की क्लिपिंग पब्लिश कर सकते हैं। अगर कोई स्टूडेंट आपके प्रोफाइल में इंट्रेस्टेड है और आपसे ट्यूशन पढ़ना चाहता है, तो आपसे फोन, मेल या मैसेज के जरिए कॉन्टैक्ट करेगा।

कैसे चलती हैक्लास

क्लास लेने के कई तरीके हैं। मसलन गूगल की चैटिंग फैसिलिटी हैंग आउट, स्काइप काफी प्रचलन में है। इसके अलावा वर्चुअल क्लास और डिजिटल पेन का भी इस्तेमाल किया जाता है। वर्चुअल क्लास के दौरान बिल्कुल क्लासरूम जैसा ही माहौल होता है, जिसमें स्टूडेंट के सामने स्क्रीन पर ब्लैकबोर्ड होता है, साइड विंडो में टीचर भी लाइव होता है। अगर दूसरे स्टूडेंट्स भी साथ में लाइव हैं, तो वे भी दूसरे विंडोज में दिखते हैं। स्टूडेंट्स इस दौरान बिल्कुल क्लासरूम की ही तरह टीचर से इंटरैक्ट कर सकते हैं और कुछ हाईटेक सॉफ्टवेयर्स में अपने क्लासमेट्स से भी बात कर सकते हैं। जिस तरह टीचर क्लासरूम में कोई सवाल करता है और स्टूडेंट हाथ उठाकर जवाब देते हैं, बहुत कुछ वैसा ही माहौल क्रिएट हो सकता है।

घर बैठे क्लासरूम

अभी इंडिया में वर्चुअल क्लास और डिजिटल पेन का यूज एक साथ नहीं हो रहा है। दोनों एक साथ होने से घर बैठे कंप्यूटर के सामने बिल्कुल क्लासरूम की तरह फील हो। आपके सामने क्लिपबोर्ड हो जिस पर आप डिजिटल पेन से सब कुछ समझा सकें। इस बोर्ड में मैथ्स, स्टैट्स, कंप्यूटर्स, कैमिस्ट्री के हर जरूरी टूल्स दिए होते हैं, जिनकी मदद से समझना-समझाना आसान हो जाता है।

कॉन्सेप्ट ऐंड इनपुट : अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव और मोहम्मद रजा


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