सस्ते में मस्ती
डोमेस्टिक स्टूडेंट्स भी महंगाई को मात देने के लिए तमाम तिकड़म अपना रहे हैं। पुणे, बेंगलुरु, चेन्नई, मुंबई जाकर पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट अब हवाई यात्रा का सुख छोड़कर ट्रेन से ट्रैवल करने को तरजीह देने लगे हैं। खर्च कम करने के लिए वे मल्टीप्लेक्स में मूवी का मजा लेने की बजाय सिंगल स्क्रीन थियेटर में सस्ते टिकट पर मनचाही फिल्में देख रहे हैं। जिमिंग पर पैसा लुटाने वाले अब रनिंग और साइकिलिंग पर डिपेंड होने लगे हैं..
ईजी गोइंग लाइफ
डॉलर के मुकाबले रुपये के डाउनफॉल ने यंग जेनरेशन पर इंपैक्ट तो डाला है, लेकिन उन्होंने इसमें भी फुली मस्त रहने और लाइफ को एंजॉय करने का रास्ता ढूंढ लिया है। दिल्ली के बहुत से यूथ्स ने इस महंगाई के दौर में भी पब जाना नहीं छोडा है। उन्होंने बस ऐसे नए पब्स तलाश निकाले हैं, जहां एंट्री कम खर्च पर हो जाती है। सौरभ कहते हैं कि कुछ पब्स में गर्लफ्रेंड को साथ ले जाने या फिर ड्रेस कोड फॉलो करने से फ्री में एंट्री मिल जाती है या बहुत कंसेशन मिल जाता है। तो क्यों न इस तरह की स्कीम्स का बेनिफिट उठाया जाए। अगर पॉकेट इसके लिए भी एलाऊ नहीं करता है तो किसी फ्रेंड के घर पर पार्टी करने में क्या बुराई है? किसी पार्क का भी तो सेलेक्शन हम अपने लिए कर सकते हैं?
सस्ते में एंटरटेनमेंट
ये बात बिल्कुल सही है कि मल्टीप्लेक्स की सीटें पूरी तरह कंफर्टेबल होती हैं। स्क्रीन की क्वॉलिटी अच्छी होने से विजुअल्स के साथ-साथ ऑडियो का भी अपना एक अलग ही मजा है। अंकित कहते हैं कि इनके टिकट के रेट सिंगल स्क्रीन थियेटर की तुलना में कहीं ज्यादा होते हैं, वहीं वीकेंड्स में तो इनके टिकट की कीमत और भी बढ जाती है। जबकि फिल्म सिंगल स्क्रीन थियेटर में इससे जस्ट आधी कीमत पर देखने को मिल जाती है। मनी सेविंग के मामले में अगर क्वॉलिटी से थोडा कंप्रोमाइज करना पडे, तो इसमें भला कैसी बुराई। इस क्राइसिस के दौर में इससे भला दूसरा और कौन सा तरीका हो सकता है, मनी सेविंग का?
जॉगिंग से फिटनेस
सुरभि फिट रहने के लिए पहले जिम जाया करती थीं। फिजिकल ट्रेनिंग देने के लिए घर पर एक पर्सनल ट्रेनर भी लगा रखा था। इन दोनों चीजों पर मिलाकर महीने में 6000 से 8000 रुपये का खर्च तो हो ही जाता था। इन्होंने इस खर्चे पर कटौती कर दी है। वे अब सुबह मॉर्निग वॉक और जॉगिंग करने जाने लगी हैं। कभी-कभी तो साइकिल से कॉलोनी के दो राउंड भी लगा आती हैं। इससे शरीर फिट का फिट बना रहता है और पॉकेट पर कोई एक्स्ट्रा बर्डन भी नहीं पडता।
चेंजिंग फूड हैबिट्स
रिसेशन की आहट और रुपये के घटती वैल्यू ने यूथ को अपनी आउटिंग हैबिट्स चेंज करने पर तो मजबूर किया ही है, लेकिन उन्होंने इसका भी तोड निकाल लिया है। भले ही वे महंगे रेस्टोरेंट्स में न जा रहे हों, लेकिन बाहर स्ट्रीट फूड का टेस्ट लेना नहीं छोडा है। मैकडोनाल्ड के बर्गर की जगह छोले-कुल्चे, पराठा, पाव भाजी जैसे आइटम्स ने ले ली है। ये आराम से 25-30 रुपये तक में आ जाते हैं।
एंटरनेट पर फन
लाइफ में आगे बढना है, तो एंटरटेनमेंट भी जरूरी है। फाइनेंशियली टाइट होती सिचुएशन में यूथ ने कम खर्च में बेहतरीन एंटरटेनमेंट के लिए ब्लॉगिंग की ओर रुख किया है। वे ब्लॉग लिखने के लिए नए-नए सब्जेक्ट्स तलाश रहे हैं। नेट का एक सस्ता पैकेज सब्सक्राइब किया और पूरे मंथ ब्लॉगिंग का मजा लिया। अनिकेत इस बारे में कहते हैं कि ब्लॉगिंग से न केवल उनकी नॉलेज बढ रही है, बल्कि वे नई-नई इंफॉर्मेशन्स का भी बेनिफिट उठा रहे हैं। एंटरनेट पर ब्लॉगिंग के अलावा न्यू रिलीज फिल्मों की क्लिप्स, म्यूजिक एलबम्स, बुक्स और ढेर सारे न्यूज पेपर्स की फैसिलिटी भी तो है। तो क्यों न सस्ते में फुल इंज्वॉय करें?
कोचिंग विद शेयरिंग
बुक शेयरिंग की बात तो आपने सुनी ही होगी और शायद कभी न कभी इसे किया भी हो, लेकिन अब कुछ यूथ अपनी मनी सेव करने के लिए कोचिंग की भी शेयरिंग करने लगे हैं। रजत ने मनी सेविंग का एक नया तरीका निकाल लिया है। उन्होंने फिजिक्स की कोचिंग ज्वॉइन की है और उनके बेस्ट फ्रेंड शिवम ने केमिस्ट्री की। रोज शाम को वह एक सेट टाइम पर किसी एक के घर पर मिलते हैं और रजत फिजिक्स की इंफॉर्मेशन शिवम को और शिवम केमिस्ट्री की इंफॉर्मेशन रजत को देता है। दोनों लोगों की एक-एक कोचिंग से दोनों सब्जेक्ट तैयार हो रहे हैं। एक की फीस पर दोनों का काम चल रहा है। पूरे पचास फीसदी की सेविंग। मनी सेविंग का यह तरीका, गजब है न भाई? आप भी इसे आजमा सकते हैं।
बैग्स एंड बॉटल
सिचुएशन चाहे जैसी हो, यूथ उसे टैकल करने की कोशिश अपनी तरफ से करता ही है। दिल्ली हो या मुंबई या फिर पटना और इलाहाबाद जैसे कुछ छोटे शहर। सभी जगहों पर आज बहुत से यूथ बैग लिए दिख जाएंगे। कॉलेज टाइम में बैग लेकर घूमना तो ठीक है, लेकिन अगर यह एक हैबिट बन जाए तो जरूर इसमें कहीं न कहीं कुछ और बात भी चल रही है। जी हां, इस माजरे से पर्दा उठाते हुए विनय ने बताया कि यूथ के इस बैग में हमेशा रहने वाली स्टेशनरी तो आपको मिलेगी ही साथ ही अब पानी की बॉटल और कुछ हल्के-फुल्के खाने का सामान भी इसमें नजर आ जाएगा। यूथ इस फाइनेंशियल क्राइसेस के पीरियड में मिनिरल वाटर और नाश्ते में होने वाले खर्च को कम करके उससे बचने वाली मनी का यूज किसी दूसरे काम में करना चाहता है। वह जानता है कि उसने अपने लिए जो सपने देखे हैं, उन्हें पूरा करने के लिए छोटी-छोटी बचत तो करनी ही पडेंगी। है न मनी सेविंग का यह एकदम नया तरीका?
पार्टी एट होम
महंगाई ने वैसे ही रेस्टोरेंट्स का खर्च बढा दिया है। ऐसे में अब फ्रेंड्स के साथ गेट-टु-गेदर करनी हो या बर्थडे पार्टी सेलिब्रेट। घर पर ही खाने-पीने का पूरा इंतजाम हो जा रहा है। पेरेंट्स भी खुश कि बच्चे देर रात बाहर नहींघूम रहे, बल्कि नजरों के सामने ही मौज-मस्ती कर रहे। ब्वॉयज और गर्ल्स दोनों ही इस मामले में किसी से पीछे नहीं हैं। वे टाइम के अनुसार जो कुछ सैक्रिफाइज कर सकते हैं ।
ड्रीम बडा तो पॉकेट हल्की!
यूरोपियन कंट्रीज में एजुकेशन लेना पहले ही महंगा था। डॉलर के मजबूत होने से वह अब और भी महंगा हो गया है। यूके में जाकर आगे की एजुकेशन करना चाहता हूं। इसलिए अभी से सिचुएशन को देखते हुए लाइफ स्टाइल में चेंज लाना शुरू कर दिया है। ब्रांडेड ड्रेसेज की जगह देसी फॉर्मल पहनने लगा हूं। मोबाइल पर बात करने की जगह एसएमएस पैक से काम चला रहा हूं। बडा ड्रीम पूरा करना है, तो पॉकेट खर्च में तो अभी से कटौती करनी ही होगी।
अभिषेक
डेडलाइन सिचुएशन
अमेरिका में कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का कोर्स करना चाहता हूं। ट्राई भी करूंगा। फाइनेंशियल प्रॉब्लम तो आएगी ही इसलिए अभी से अपना कनवेंस और मोबाइल खर्च कम कर दिया है। फे्रंड्स के साथ बाइक शेयर करना भी शुरू कर दिया है। फ्रेंड्स पार्टी से भी दूर रहने लगा हूं। आज पार्टी लूंगा, तो कल देनी भी पडेगी। अपना ड्रीम पूरा करने के लिए सेविंग की आदत डाल रहा हूं। हर तरह के खर्च की एक डेडलाइन डिसाइड कर दी है। लाइफ को एक फाइनेंशियल दायरे में बांध लिया है।
शान्तनु
एब्रॉड में पढाई को लेकर स्टूडेंट्स के अलावा पेरेंट्स, बैंक ऑफिसर्स और कंसल्टेंट्स का क्या सोचना है? क्या अभी बिना किसी स्कॉलरशिप या फाइनैंशियल स्टैबिलिटी के लिए वहां जाना ठीक है। आइए जानें..
अगली फीस की चिंता
मेरा बेटा सोमिल बिजनेस अकाउंटिंग की पढाई के लिए कनाडा गया है। एंबेसी वाले पहले ही दस हजार डॉलर स्टूडेंट के अकाउंट में जमा करवा ले रहे हैं। अगली फीस नवंबर में भरनी है, जिसमें 50-55 हजार रुपये का अंतर आ गया है।
सरिता, पेरेंट, जालंधर
जरूरी खर्च में कटौती
जिनके बच्चे अमेरिका या यूरोप में पढना चाहते हैं उनके सामने प्रॉब्लम आ गई है। इसका बस एक यही सॉल्युशन है कि वे अपने बाकी जरूरी खर्च में न चाहते हुए भी कटौती करें। बच्चों के फ्यूचर की बात है। यह तो करना ही पडेगा।
इंदर कपूर, दिल्ली
लोन लेना हुआ मुश्किल
डॉलर का रेट बढने से खर्च बढ गए हैं। फीस भी बढ गई है। एजुकेशन लोन लेने में कठिनाइयां हो रही हैं। बैंक अफसर लोन वापसी की गारंटी चाहते हैं। इसके लिए कई करीबियों से संपर्क करना पडा। लोन मिलने पर भी पहले से 20 फीसद तक ज्यादा खर्च करना पडेगा। पहले इतनी दिक्कत नहींआती थी, अब कई नए नियम भी आडे आ रहे हैं।
ज्ञानचंद्र शर्मा, पेरेंट, कानपुर
लोन लेने वाले हुए कम
एजुकेशन लोन में कोई बदलाव नहीं हुए। लोन लेने वाले अब भी आ रहे हैं, लेकिन कुछ कमी हुई है। मिडिल क्लास के लिए बच्चों को एब्रॉड भेजना ईजी नहींहोता, इसलिए वे बैंक से लोन लेते हैं। अभी हालात को देखते हुए कम लोग ही आ रहे। दावा नेगी, एजीएम, बीओआई, जालंधर हो गई है सख्ती विदेशों में पढने वालों से रिकवरी करना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है, क्योंकि विदेश में पढाई के बाद छात्र वहीं बस जाते हैं। उनके पेरेंट्स लोन की रकम चुकाना नहीं चाहते। ऐसी स्थिति में बैंक को थोडी सख्ती दिखाते हुए सिक्योरिटी के रूप में रखी हुई प्रॉपर्टी को जब्त करना पडता है।
नेहा, अ.मैनेजर आईओबी, पटना
कोई नए नियम नहीं
डॉलर के मुकाबले गिरते रुपये को देखते हुए बैंक द्वारा एजुकेशन लोन देने के नियमों में बदलाव के लिए भारत सरकार ने कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किया है। हां, पढाई के लिए लोन लेने वाले छात्रों में थोडी कमी आई है। बैंक ने स्टूडेंट्स को नौकरी मिलने के एक महीने बाद या नहीं मिलने पर छह महीने बाद से किस्त भुगतान की सुविधा दी है।
ललित के.जोशी, एजीएम, बीओबी, पटना
महंगी हुई एजुकेशन
वीजा के लिए जरूरी शो मनी बढ गई है। पांच साल पहले जिस कोर्स की फीस 7600 रुपये थी, वह आज 51 हजार रुपये हो गई है। कनाडा और दूसरे अमेरिकी देशों की एलिजिबिलिटी हासिल करना मुश्किल हो रहा है। ऑस्ट्रेलिया ने पीआर पहले ही बंद कर दी है। यूके में रिसेशन इतना ज्यादा है कि वहां अगर स्टूडेंट्स पढाई के साथ जॉब करने की सोचें, तो वह उन्हें मिलती नहीं और खर्च पूरा करना उनके लिए कठिन हो जाता है। इसलिए कुछ लोग आयरलैंड का वीजा अप्लाई कर रहे हैं। वैसे, स्टूडेंट्स के घटने रुझान के मद्देनजर कुछ फॉरेन यूनिवर्सिटीज एप्लीकेशन फीस माफ करने, एयरपोर्ट से फ्री पिक-अप या एक तरफ का टिकट या फ्री मेडिकल करवाने जैसे ऑफर से स्टूडेंट्स को लुभाने की कोशिश में लगी हैं।
मीता जिंदल, जिंदल ओवरसीज, कंसल्टेंट, जालंधर
बढ गया खर्च
विदेश में पढाई करीब 25 से 30 परसेंट तक महंगी हो चुकी है। वैसे तो विदेश में मैनेजमेंट कोर्स और फोटोग्राफी के अलावा पीएचडी, रिसर्च की डिमांड ज्यादा है। बच्चों के रहने का खर्च भी बढ गया है। अब अगर पेरेंट्स आते हैं, तो वे इंतजार करते हैं कि शायद रुपये की हालत सुधरे तो उनको कुछ राहत मिल जाए। इस सेशन में एडमिशन भी कम हो पाए हैं।
मंयक रॉय, एजेंट, राया एब्रॉड एजुकेशन, लखनऊ
स्टूडेंट स्पीक्स
चूक गया मौका
हॉलैंड में वर्ल्ड यूनिवर्सिटी ऑफ पॉवर लिफ्टिंग चैंपियनशिप के लिए मेरा सेलेक्शन हुआ। वहां कॉम्पिटिशन की फीस 81,000 रुपये हैं। रजिस्ट्रेशन नहीं करा पाया। मैं सुनहरा मौका चूक गया।
नीतीश कुमार, स्टूडेंट, पटना
हिल गया बजट
मैंने न्यूजीलैंड के लिए स्टडी वीजा अप्लाई किया था। मुझे इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में पीजी डिप्लोमा करना था। जब इस बारे में सोचा था तब डॉलर की कीमत 43 रुपये थी, लेकिन जब वीजा फाइनल हुआ तो कीमत 20 परसेंट तक बढ चुकी थी। इस कारण हमारा बजट पहले से काफी बढ गया।
इकलीन कौर, स्टूडेंट, जालंधर
वेट करूंगा
एब्रॉड जाने की प्लानिंग कर रहा था, लेकिन अभी जो सिचुएशन है, उसमें वहां एजुकेशन और रहने का खर्च उठाना आसान नहींहै। इसलिए मैं रुपये की स्थिति सुधरने का इंतजार करूंगा। उसके बाद ही अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी में एडमिशन के बारे में सोचूंगा।
आकाश, स्टूडेंट, कानपुरअंशु सिंह, शरद अग्निहोत्री, मिथिलेश श्रीवास्तव इनपुट : लखनऊ से दीपा श्रीवास्तव, जालंधर से वंदना वालिया, पटना से वीरेंद्र पाठक, कानपुर से शिवा अवस्थी और दिल्ली से अभिनव उपाध्याय।