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सर्वे भवन्तु सुखिन:

पढ़ाई को पहले महंगाई ने मारा और अब डॉलर ने लूटा..इन दिनों कुछ ऐसा ही हो रहा है। विदेश में हायर स्टडी की इच्छा रखने वाले यूथ के सपनों को रुपये में आई भारी गिरावट ने चकनाचूर कर दिया है। डॉलर के मुकाबले रुपया गिरने की सबसे ज्यादा मार उन पर पड़ रही है, जिन्हें पहले की तुलना में कहीं ज्यादा लोन लेना पड़ रहा है। मुश्किल यह है कि अब बैंक भी लोन के एवज में 100 परसेंट सिक्योरिटी मांग रहे हैं। उधर, रिजर्व बैंक ने कह दिया है कि अगर एब्रॉड स्टडीज के लिए जाना है, तो 75 हजार डॉलर से ज्यादा ले जाने से पहले उससे परमिशन लेनी होगी। वैसे, इस हालात में भी यूथ का अपना फंडा है। वह खर्चे में कटौती कर उम्मीद से आगे की ओर देख रहा है और गॉड से प्रे कर रहा है कि इकोनॉमी की यह उथल-पुथल जल्द थम जाए और एक बार फिर चारों तरफ सुख और शांति कायम हो..

By Edited By: Published: Wed, 18 Sep 2013 11:07 AM (IST)Updated: Wed, 18 Sep 2013 12:00 AM (IST)
सर्वे भवन्तु सुखिन:

सुमित ने 2012 में यूएस के एक संस्थान में मेजर इन इकोनॉमिक्स एंड मेजर इन बिजनेस मैनेजमेंट में एडमिशन लिया। उस समय डॉलर की कीमत तकरीबन 55 रुपये थी। छह महीने पहले जब फीस जमा कराई थी, तब वह दस-साढे दस लाख रुपये थी, अब जब दोबारा फीस जमा कराने का समय आया, तो यह बढकर साढे तेरह लाख रुपये से ऊपर पहुंच गई। यानी पहले जहां 8 या 10 लाख में एब्रॉड में स्टडी हो जाती थी, वहीं अब 12-15 लाख रुपये भी कम पड रहे हैं। ऐसे में हर साल इंडिया से फॉरेन कंट्रीज में पढने जाने वाले करीब आठ लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स के मन में उलझन है कि क्या उनका फॉरेन यूनिवर्सिटीज में पढना मौजूदा कंडीशन में सही रहेगा, जबकि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमतों में लगातार फ्लक्चुएशन बना हुआ है।

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बढ गया लिविंग एक्सपेंस

बायोटेक्नोलॉजी में बीटेक करने वाले शलभ वर्मा एमटेक के लिए अमेरिका जाना चाह रहे थे। खर्च ज्यादा था, लेकिन पिता अखिलेश वर्मा उसे उठाने के लिए तैयार हो गए और उसे स्टडीज के लिए भेज दिया। इधर, जैसे-जैसे रुपये की कीमत घटने लगी, वहां का रूम रेंट बढने लगा। 2011 में शलभ जहां करीब 17 हजार रुपये रेंट देता था, वहीं वह आज बढकर साढे उन्नीस हजार रुपये हो गया है।

खाने पर पहले अगर ढाई सौ खर्च होते थे, तो अब तीन सौ से कम में बात नहीं बनती। इस तरह हर महीने 1800 से लेकर 2000 रुपये का एक्स्ट्रा खर्च बढ गया है। अखिलेश कहते हैं, शलभ का खर्च बढने से उन्हें हर महीने सात से आठ हजार रुपये ज्यादा भेजने पडते हैं।

स्काईलाइन इमिग्रेशन कंसल्टेंसी की अमनदीप ने बताया कि असल में यूनिवर्सिटीज की फीस नहीं बढी है, लेकिन डॉलर के महंगा होने से इंडियन स्टूडेंट्स को ज्यादा पे करना पड रहा। पहले जहां कनाडा जैसी कंट्री में उनका लिविंग एक्सपेंस तीन लाख रुपये था, वह अब साढे तीन लाख के करीब पहुंच गया है। वहीं अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और लंदन में तो खर्च एक से डेढ लाख रुपये तक बढ चुका है। अमनदीप कहती हैं कि पहले जहां एक स्टूडेंट का महीने का औसत खर्चा 300 डॉलर (करीब 16,500 ) होता था, वहीं अब पॉकेट से 21,000 हजार रुपये से ज्यादा ही निकल जा रहे हैं। इस समय जिन-जिन स्टूडेंट्स ने फॉरेन से डिग्री हासिल करने के लिए लोन ले रखा है, वे परेशान हैं।

नहीं है कोई ऑप्शन

एक्सपेंसिव होते डॉलर के कारण स्टूडेंट्स का कंफर्ट लेवल काफी कम हो गया है। खासकर वैसे स्टूडेंट्स, जिन्होंने लोन लेकर बडी यूनिवर्सिटीज में एमबीए जैसे कोर्सेज में एडमिशन लिया है और फीस के तौर पर जमा किया है। उनके लिए ये एक डिफिकल्ट सिचुएशन है। शिखा सिंह को आयरलैंड की डब्लिन यूनिवर्सिटी से एक साल का एमबीए प्रोग्राम करना था। इस साल मार्च से ही वे वहां जाने की तैयारी कर रही थीं, लेकिन रुपये की वैल्यू घटने से उनकी फीस का अमाउंट सीधे एक लाख रुपये बढ गया। शिखा कहती हैं, एडमिशन मिल चुका था, इसलिए अब एब्रॉड नहीं जाने का डिसीजन नहीं ले सकती थी। शिखा की मां रेखा सिंह ने बताया कि उन्होंने लोन के लिए कई बैंकों के चक्कर काटे। आखिर में बैंक ऑफ पटियाला से साढे सात लाख रुपये का लोन मिल सका। अब ईएमआई तो चुकानी ही है, साथ ही दूसरे खचरें का भी ध्यान रखना है।

फ‌र्स्ट सेमेस्टर पर इंपैक्ट ज्यादा

साफ है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की खस्ता हालत ने एब्रॉड स्टडीज के लिए जाने वालों का पूरा बजट कैलकुलेशन डिस्टर्ब कर दिया है। इससे न सिर्फ यूएस, बल्कि यूरोप, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया पढने जाने की प्लानिंग करने वालों पर भी असर पडने की उम्मीद है। एचडीएफसी की सब्सिडियरी कंपनी क्राइडेलिया फाइनेंशियल सर्विसेज के कंट्री हेड प्रशांत भोंसले कहते हैं, कुछ लोगों की सोच है कि रुपये का इंपैक्ट पूरे सेमेस्टर की फीस पर पडता है, लेकिन हकीकत ये है कि बैंक्स फ‌र्स्ट सेमेस्टर के हिसाब से लोन्स रिलीज करते हैं।

इसलिए इसका असर सिर्फ पहले सेमेस्टर पर होता है। इसके बाद स्टूडेंट का एक्सपेंस डॉलर और रुपये के मूवमेंट पर डिपेंड करता है। प्रशांत ने बताया कि रुपये की कीमत घटने से स्टूडेंट्स को डेफिनिटली ज्यादा अमाउंट का लोन लेना पड रहा है, लेकिन जो स्टूडेंट्स अब से दो-तीन साल पहले एब्रॉड स्टडीज के लिए गए थे और आज वहां जॉब कर रहे हैं, वे फायदे में हैं क्योंकि अब उन्हें ईएमआई के रूप में हर महीने कम डॉलर ही पे करना पड रहा है।

लोन बना मुसीबत

द कैलकुलस कंसल्टेंसी फर्म की चेतना गंभीर के अनुसार, प्रेजेंट सिचुएशन में स्टूडेंट्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिस यूनिवर्सिटी में वे एडमिशन लेने जा रहे हैं, उसका किसी बैंक से टाई-अप है या नहीं। क्योंकि कई बैंक्स उन्हीं इंस्टीट्यूशंस को लोन देते हैं, जो उनकी लिस्ट में शामिल होते हैं। दरअसल, एजुकेशन लोन रुपये में दिया जाता है, लेकिन एक स्टूडेंट को फॉरेन करेंसी में खर्च करना होता है। इससे यूनिवर्सिटी की फीस के साथ-साथ लिविंग एक्सपेंस दोनों काफी बढ जाते हैं। ऐसी सिचुएशन में स्टूडेंट्स के पास दो ही ऑप्शन बचते हैं, या तो अपना पर्सनल कंट्रीब्यूशन बढाएं या फिर बैंक से लोन अमाउंट बढाने को कहें। वैसे, आज कई फाइनेंस कंपनीज हैं, जो हायर स्टडीज के लिए एब्रॉड जाने वालों को लोन प्रोवाइड करा रही हैं। इसमें दीवान हाउसिंग फाइनेंस की एजुकेशन लोन सब्सिडियरी अवांसे जैसी कंपनी भी है, जो अब तक 50 करोड का एजुकेशन लोन बांट चुकी है। कंपनी के सीईओ नीरज सक्सेना कहते हैं, एब्रॉड में स्टडी कॉस्ट 15 से 20 परसेंट तक बढ गई है। फिर भी जो स्टूडेंट्स सितंबर 2013 सेशन में एडमिशन लेने जा रहे हैं, उन्होंने अपनी प्लानिंग में कोई चेंज नहीं किया है। हां, डॉलर की बढी वैल्यू के मद्देनजर अब वे प्राइवेट फाइनेंशियल कंपनीज की हेल्प जरूर ले रहे हैं, जहां उन्हें बिना कोई प्रॉब्लम के 12.25 से लेकर 13.5 परसेंट के बीच लोन मिल जाता है।

खर्च में कटौती शुरू

अमेरिका के किसी अच्छी यूनिवर्सिटी से पोस्टग्रेजुएशन कोर्स करने पर सालाना औसतन 25 से 40 हजार डॉलर का खर्च आता है। इसी तरह रहने-खाने पर 15 हजार डॉलर का सालाना खर्च होता है। पहले इसी में स्टूडेंट्स थोडी मौज-मस्ती कर लेते थे, लेकिन आज सारा ध्यान बचत पर है। वे रेस्टोरेंट जाने की बजाय खुद खाना बनाकर खा रहे हैं। सिंगापुर की जेम्स कुक यूनिवर्सिटी से एक साल का एमबीए कर रहीं ज्योति सिंह कहती हैं, फीस के अलावा यहां हॉस्टल में रहना काफी एक्सपेंसिव हो गया है। मैं खाने पर 5 डॉलर से ज्यादा खर्च नहीं करती। पहले वीकेंड में कभी-कभार घूमने जाती थी, अब उसे भी बंद कर दिया है, क्योंकि यहां पढाई के साथ जॉब करने की परमिशन नहीं है, तो बजट को मेंटेन करके रखना पडता है। स्टडीज के लिए 8 लाख रुपये का लोन लिया है, जिसका इंस्टॉलमेंट काफी बढ गया है। दूसरी ओर, ऐसे स्टूडेंट्स भी हैं, जो इंडिया से ही ग्रॉसरी आइटम्स पैक करा के ले जा रहे हैं। यहां तक कि फ्लाइट में खाने की बजाय घर से पराठे ले जा रहे हैं, क्योंकि रुपये की घटती कीमत के कारण फॉरेन फ्लाइट्स में खाना सबसे ज्यादा एक्सपेंसिव हो चुका है।

पार्ट टाइम जॉब हेल्पफुल

जो स्टूडेंट्स फुलटाइम कोर्स के लिए एब्रॉड जाते हैं, उन्हें एक वीक में करीब 20 घंटे काम करने की छूट दी जाती है। ये पार्ट टाइम जॉब्स कैंपस में हो सकते हैं या बाहर। कैंपस के अंदर लाइब्रेरी, यूनिवर्सिटी स्टोर और कैंटीन में काम करते हैं, तो कुछ स्टूडेंट्स अपने एक्सपेंसेज मैनेज करने के लिए रेस्टोरेंट्स, मॉल, गैस स्टेशंस या शॉप्स में भी काम करने से नहीं हिचकते हैं। मेलबर्न की स्विनबर्न यूनिवर्सिटी से 2010 में एमबीए करने के बाद ऑस्ट्रेलिया में ही जॉब कर रहे गौरव ने बताया कि अब से तीन साल पहले मुझे तीन साल की पढाई में 14 लाख रुपये के करीब लगे थे। एडमिशन लेने के तीन महीने के बाद मुझे पार्ट टाइम जॉब करने की परमिशन मिल गई थी। इससे मैंने लिविंग एक्सपेंस निकाल लिया। फ्रेंडस के साथ रहता था और खाना खुद बनाता था, तो रेंट के अलावा बाकी चीजें भी शेयर हो जाती थीं। अब तो रुपये की जो हालत हुई है, उससे यहां पढाई कर रहे स्टूडेंट्स को फाइनेंशियल इश्यूज से कोप-अप करना मुश्किल हो रहा है।

इनवेस्टमेंट को जस्टिफाई करें

इसी साल मई में यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस से वूमन एंड जेंडर स्टडीज में मास्टर्स करके इंडिया लौटीं नमिता कहती हैं, मैं पीएचडी करना चाहती थी, लेकिन अभी की सिचुएशन को देखते हुए प्लान एक साल के लिए पोस्टपोन कर दिया है। यूएस में वैसे ही यूनिवर्सिटी एजुकेशन काफी एक्सपेंसिव है। उस पर से यहां मास्टर्स लेवल पर काफी कम स्कॉलरशिप हैं। ऐसे में जो स्टूडेंट्स एब्रॉड स्टडीज के लिए जाना चाहते हैं, उन्हें पहले अपना ऑब्जेक्टिव तय करना चाहिए। जब लगे कि अपने इनवेस्टमेंट को जस्टिफाई कर सकते हैं, तभी एब्रॉड जाएं। नमिता कहती हैं, इस समय यूएस या यूके में भी वह कंडीशन नहीं है, जो आज से पांच साल पहले हुआ करती थी। यूनिसेफ में कंसल्टेंट के तौर पर काम कर रहे और पीएचडी के लिए एब्रॉड जाना चाह रहे प्रेम मिश्रा कहते हैं कि बहुत ज्यादा अनसर्टेनिटी है। यूके में काफी वीजा रिस्ट्रिक्शंस हो गए हैं। इसलिए जब तक यूनिवर्सिटीज से फुल स्कॉलरशिप नहीं मिलती, मैंने एब्रॉड जाने का प्लान छोड दिया है।

बढा फाइनेंशियल बर्डन

दिल्ली के पश्चिम विहार में रहने वाली पूनम बताती हैं कि भाई कमल ऑस्ट्रेलिया में रहकर होटल मैनेजमेंट की पढाई कर रहा है, तो बहन लंदन में रहकर एमबीए कर रही है। वह पिछले 4 साल से विदेश में हैं। जब एक डॉलर की कीमत 33 रुपये थी। आज अंतर लगभग दोगुने का है। लंदन की एक यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म की पढाई कर रही मेधा 2 महीने के लिए दिल्ली के एक अखबार में इंटर्नशिप करने आई हैं। मेधा बताती हैं कि लंदन में दो साल पहले जर्नलिच्म की पढाई के लिए दाखिला लिया था, तब पॉन्ड की कीमत 85-90 के बीच थी, लेकिन अब यह 100 को छू रहा है। ऐसे में आर्थिक बोझ बढना लाजमी है।

कंपनीज में कॉस्ट कटिंग

डॉलर, पाउंड और रुपये के इस अप-डाउन का असर स्टूडेंट्स ही नहीं, कंपनियों पर भी पडा है। जो कंपनीज हर साल अपने एंप्लाइज को प्रोजेक्ट के सिलसिले में विदेश भेजती थीं। उन्होंने एंप्लाइज की संख्या के साथ विदेश दौरे भी घटा दिए हैं। अगर भेज भी रहे हैं, तो इकोनॉमी क्लास से ट्रैवल करने और टू या थ्री स्टार में रहने की नसीहत के साथ। कंसल्टिंग फर्म टॉवर्स वॉट्सन की हाल में आई एक रिपोर्ट बताती है कि मल्टीनेशनल कंपनीज के एग्जीक्यूटिव प‌र्क्स घट रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2008 में जहां 60 परसेंट कंपनीज अपने टॉप ब्रास को तीन प‌र्क्स देती थीं, वहीं 2013 में सिर्फ 33 परसेंट कंपनीज ऐसा कर रही हैं।

खुद की कुकिंग

डॉलर ही नहीं, इस समय पाउंड भी काफी महंगा हो चुका है, जिससे फीस और रहने-खाने का खर्च बजट को क्रॉस कर गया है। लंदन की कोवेंट्री यूनिवर्सिटी से एक साल का एमबीए करके लौटे संदीप सुमन कहते हैं, लंदन में पढाई करना या रहना काफी एक्सपेंसिव है। मैं घर में ही खाना बनाता था। इंडिया से सारी जरूरी मेडिसिन्स लेकर गया था। शेविंग कराने से लेकर ट्रांसपोर्टेशन तक काफी खर्चीला था। अब तो पाउंड की कीमत और भी बढ गई है। जब इसका रेट 45-50 रुपये के करीब था, तो मेरी स्टडीज पर 10 लाख रुपये का खर्च आया था। बैंक से लोन लिया था, जिसकी ईएमआई अभी भी चल रही है।

कैसी-कैसी प्रॉब्लम्स?

एब्रॉड स्टडीज के लिए जाने वाले स्टूडेंट्स के पास फिक्स्ड डेडलाइन होती है। उन्हें कम वक्त में बहुत कुछ करना होता है। वीजा डेट, फीस सबमिशन डेट फिक्स होता है। लेकिन लोन प्रॉसेस होने में टाइम लगने के कारण स्टूडेंट्स परेशान हो जाते हैं।

कॉलैट्रल सिक्योरिटी डिमांड

रुपये की कीमत घटने के कारण इन दिनों कुछ लेंडर्स स्टूडेंट्स से 100 परसेंट कॉलैट्रल गारंटी डिमांड कर रहे हैं, यानी अगर कोई तीस लाख रुपये के लोन के लिए अप्लाई कर रहा है, तो उसे इतनी ही कीमत की प्रॉपर्टी या एफडी कॉलैट्रल सिक्योरिटी के तौर पर दिखानी पड रही है। ज्यादा लोन लेने के लिए प्रॉपर्टी को मॉरगेज करना पड रहा है।

कंफ‌र्म्ड एडमिशन

ज्यादातर बैंक्स उन स्टूडेंट्स के ही लोन एप्लीकेशन ऐक्सेप्ट कर रहे हैं, जिनका एडमिशन कंफ‌र्म्ड है। जबकि अमेरिका जैसी कंट्रीज में यूनिवर्सिटीज फंड्स को लेकर पूरी तरह सैटिस्फाई होने के बाद ही एडमिशन कंफर्म करती हैं। इससे स्टूडेंट्स पसोपेश में पड जाता है।

डेस्टिनेशंस और भी हैं

एब्रॉड में स्टडीज के लिए कंट्री चूज करते समय सबसे पहले स्टूडेंट एजुकेशन क्वॉलिटी और उसके बाद अपने बजट को देखते हैं। बजट के बेस पर एजुकेशन क्वॉलिटी से थोडा-बहुत कंप्रोमाइज तो करना ही पडता है। आर्थिक उथल-पुथल के इस दौर में रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है। ऐसे में अमेरिका और यूरोपीय देशों के एजुकेशन हब्स में हायर एजुकेशन का ड्रीम देखने वाले बहुत से इंडियन स्टूडेंट उन देशों की ओर रुख करने की सोच रहे हैं जो ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका की तुलना में कुछ सस्ते हैं। हम यहां पर आपको ऐसे ही कुछ देशों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां हायर एजुकेशन लेकर आप अपना फ्यूचर ब्रॉइट कर सकते हैं, वह भी अपने बजट के दायरे में रहकर, क्योंकि इन देशों में लिविंग एक्सपेंसेज और ट्यूशन फीस कहीं कम है।

राइजिंग जापान

अगर हम टेक्निकल एजुकेशन की बात करें, तो यहां जाने वाले इंडियन स्टूडेंट कम ही दिखाई देते थे, लेकिन अब डॉलर के आगे बढने से यह सीन कुछ चेंज होता दिखाई दे रहा है। जापान भी इसे समझता है। उसकी नजर इंडियन स्टूडेंट्स पर है, जिन्हें अट्रैक्ट करने के लिए वह कई तरह के प्रोग्राम इंडिया में चला रहा है। इंडियन स्टूडेंट्स भी इन प्रोग्राम्स में दिलचस्पी ले रहे हैं, जिससे लगता है कि अब शायद वे यूरोप की जगह टेक्निकल एजुकेशन के लिए जापान का रुख कर सकते हैं। टेक्निकल एरिया से रिलेटेड एजुकेशन में जापान किसी भी तरह का कोई कंप्रोमाइज नहीं करता है। डेवलप की गई हर नई टेक्नोलॉजी वहां के स्टूडेंट्स के सामने प्रैक्टिकल के लिए आ जाती है। हायर क्वॉलिटी फैकल्टी अपने गाइडेंस में इन चीजों को और भी डेवलप करने में स्टूडेंट्स की हेल्प करती है। वहां की हर यूनिवर्सिटी और इंस्टीट्यूट में एक नहीं, कई-कई सब्जेक्ट्स में रिसर्च वर्क कराए जा रहे हैं। हाल ही में जैपनीज एंबेसी द्वारा नई दिल्ली के ललित होटल में हाल में लगाए गए एजुकेशन एक्सपो में आए ज्यादातर स्टूडेंट्स इस बात पर पूरी तरह सहमत मिले कि वहां से टेक्निकल एजुकेशन हासिल करने के बाद किसी भी देश में अच्छी जॉब मिलना आसान हो जाता है।

स्कॉलरशिप्स से हेल्प

डॉलर के मजबूत होने से एब्रॉड स्टडीज के जो नए डेस्टिनेशन तेजी से सामने आ रहे हैं, उनमें जापान इसलिए भी आगे हो जाता है क्योंकि वहां स्कॉलरशिप्स की फैसिलिटी बहुत है। ज्यादातर इंस्टीट्यूट्स अपने स्टूडेंट्स को इसकी सुविधा देते हैं। विदेश से आए स्टूडेंट्स को इसमें प्रॉयरिटी भी मिलती है।

अमृतसर के धीरज शर्मा जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेना चाहते हैं। वे कहते हैं कि वहां एडमिशन आसान नहीं है। खर्चा भी है लेकिन स्कॉलरशिप फैसिलिटी से हेल्प मिल जाएगी।

सिक्योरिटी रीजन

एब्रॉड स्टडी के लिए जाने वाले स्टूडेंट्स के सामने सिक्योरिटी भी एक बडा इश्यू रहता है। ऑस्ट्रेलिया जाने वाले इंडियन स्टूडेंट्स की संख्या में आई गिरावट का रीजन सिक्योरिटी ही था। जापान इंडियंस के लिए पूरी तरह सेफ है। दिल्ली में रहने वाली प्रत्यूषा जो जापानी लैंग्वेज सीख चुकी हैं, जापान जाकर आगे की एजुकेशन करना चाहती हैं। वे और उनका परिवार जापान को हर लिहाज से सेफ और यूरोप की तुलना में सस्ता मानता है।

इटली में हायर स्टडीज

स्टूडेंट के लिए सबसे ज्यादा इंपॉर्टेट दो चीजें होती हैं। पहला क्वॉलिटी एजुकेशन और दूसरा सेटिस्फेक्शन वाला जॉब। ये दोनों चीजें इटली में एजुकेशन लेकर हासिल कर सकते हैं। विश्व की ओल्डेस्ट यूनिवर्सिटी का गौरव इटली के पास है। इस बात से समझा जा सकता है कि 99 परसेंट लिटरेसी वाला यह देश एजुकेशन को कितनी इंपॉर्टेस देता है। एजुकेशन सेक्टर में किए जा रहे डेवलपमेंट और फीस में कमी बाहरी स्टूडेंट्स को आकर्षित कर रही हैं। किसी भी सब्जेक्ट की एजुकेशन के लिए आप इटली जा सकते हैं, लेकिन इधर कुछ सालों से साइंस स्ट्रीम के स्टूडेंट वहां ज्यादा जा रहे हैं। साइंस एजुकेशन को इटली में प्रमोट भी किया जा रहा है।

स्पेन भी बना अट्रैक्शन

स्पेन की सल्मेंसा यूनिवर्सिटी एशियाई स्टूडेंट्स के बीच आकर्षण का केन्द्र रही है। सल्मेंसा के अलावा और भी कई यूनिवर्सिटीज हैं, जहां विदेशी स्टूडेंट्स ठीक-ठाक संख्या में हैं। स्पेन में रहने का खर्चा बहुत नहीं है और यहां के फीस स्ट्रक्चर में इटली से सिमिलरिटी दिखाई देती है, यानी यहां फीस ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों से कहीं कम है। स्पेन में इन दिनों इंटरनेशनल सिचुएशन को देखते हुए मार्केटिंग और बिजनेस एजुकेशन को प्रमोट किया जा रहा है। इससे रिलेटेड कोर्सेज में यूनिवर्सिटीज स्टूडेंट्स के लिए इंटरनेशनल लेवल की फैकल्टी अप्वॉइंट कर रही हैं।

डेनमार्क भी है सस्ता

इंटरनेशनल बिजनेस और पॉलिटिक्स में पॉजिटिव रोल अदा करने वाला डेनमार्क भी सस्ता होने के कारण फॉरेन स्टूडेंट्स का फेवरेट डेस्टिनेशन बनता जा रहा है। आप चाहें तो यहां से भी हायर एजुकेशन ले सकते हैं।

न्यूजीलैंड का बढा क्रेज

रिसर्च वर्क, प्लेसमेंट और किफायती दाम पर स्टूडेंट्स को दी जाने वाली फैसिलिटीज के मामले में न्यूजीलैंड बहुत आगे है। इन्हीं चीजों से आकर्षित होकर विदेशी स्टूडेंट अब बडी संख्या में न्यूजीलैंड की ओर रुख करने लगे हैं। न्यूजीलैंड की यूनिवर्सिटीज में स्टूडेंट्स की डिमांड को देखते हुए कोर्स बनाए गए हैं और उनके सिलेबस में चेंज भी किया गया है। वहां ट्रेडिशनल कोर्सेज के अलावा बायोटेक्नोलॉजी, फॉरेंसिक साइंस, फिल्म मेकिंग, मैरिन इंजीनियरिंग आदि के कोर्स काफी पॉपुलर हैं।

चीन है किफायती

फॉरेन स्टूडेंट्स के मामले में चीन ने यूरोप के बडे-बडे देशों को चौंका दिया है। एक अनुमान के अनुसार वहां फॉरेन स्टूडेंट्स की संख्या 20 फीसदी सालाना की दर से बढ रही है। इसकी मेन वजह किफायती क्वॉलिटी एजुकेशन और रिसर्च वर्क में हर तरह का सहयोग है। हालांकि चीन में जितने भी विदेशी स्टूडेंट्स हैं, उनमें से अधिकतर एशियाई देशों के ही हैं। एजुकेशन हो या फिर कोई और सब्जेक्ट, चीन के लोग कम्युनिकेशन अपनी लैंग्वेज मंदारिन में करना पसंद करते हैं। फॉरेन स्टूडेंट्स की सुविधा को देखते हुए अब वहां की यूनिवर्सिटीज में इंग्लिश में भी कोर्स शुरू किए गए हैं।

रूस में मेडिकल एजुकेशन

रुपये के मुकाबले डॉलर की कीमतों में बढोतरी होने से ब्रिटेन और अमेरिका जाकर मेडिकल एजुकेशन की चाह रखने वाले इंडियंस अब रूस की ओर देख रहे हैं।

मॉस्को के इंस्टीट्यूट्स विदेशी स्टूडेंट्स की पहली पसंद हैं। मेडिकल एजुकेशन के लिए तो इंडियन स्टूडेंट्स रूस की ओर रुख करते ही थे, लेकिन इधर अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी में सभी चीजों का खर्च तेजी से बढने के पीछे कुछ स्टूडेंट रूस के इंस्टीट्यूट्स से इंजीनियरिंग की पढाई के लिए भी वहां जा रहे हैं। इंजीनियरिंग एजुकेशन को प्रमोट करने का काम भी रूस में शुरू किया जा चुका है। इंडियन्स को सेफ्टी और गवर्नमेंट की ओर से मिलने वाली फैसिलिटीज भी रूस को भारतीयों के लिए अच्छा एब्रॉड स्टडी सेंटर बना देती हैं।

जर्मनी बना फेवरेट

इस समय जब स्टूडेंट्स, गार्जियंस एब्रॉड स्टडीज के बढते खर्च को लेकर परेशान हैं, तो उनके लिए एक अच्छी खबर है। जर्मनी में पढाई करना न केवल कम खर्चीला है, बल्कि वहां इस समय एकलाख इंजीनियर्स के जॉब की वैकेंसी भी है। आईएसओ सर्टिफाइड कंसल्टेंसी द कैलकुलस के चेयरमैन सुखजीत सिंह आनंद कहते हैं, जर्मनी में पढाई के लिए कोई फीस नहीं देनी पडती, क्योंकि यहां के कोर्सेज यूनिवर्सिटीज फंडेड हैं। स्टूडेंट्स को सिर्फ अपना लिविंग एक्सपेंस का इंतजाम करना होता है। इस समय रुपये की घटी कीमत के कारण लिविंग एक्सपेंस जरूर 15 परसेंट तक बढ गया है। लेकिन जब वह पढाई के लिए जर्मनी जाता है, तो वहां एजुकेशन के साथ पार्ट टाइम जॉब और पढाई पूरी होने पर फुल टाइम जॉब कर सकते हैं। यूरोप या यूएस की तरह यहां रिसेशन जैसा कुछ नहीं है। अगर कोई स्टूडेंट 2 साल के कोर्स के लिए जाता है, तो उसे 10 से 11 लाख रुपये खर्च करने होंगे। जबकि इसी पढाई के लिए अमेरिका में काफी खर्च करना होता है। दूसरी चीज कि जर्मनी में वीजा 18 महीने तक आसानी से बढाया जा सकता है, यानी जब तक जॉब न मिल जाए, स्टूडेंट वहां रह सकता है।

कल्चर मिलता हो

एब्रॉड स्टडीज के नए डेस्टिनेशंस में पेरेंट्स उन्हीं देशों को प्रॉयरिटी दे रहे हैं, जहां का कल्चर अपने इंडिया से मिलता है, जो उनके बच्चों के लिए सेफ है और जहां की एजुकेशन को वे अफोर्ड कर सकते हैं। जापान और रूस इस मामले में अच्छे दिखाई दे रहे हैं। दोनों देशों के साथ इंडिया के बेस्ट रिलेशंस हैं और इंडियन्स को वहां सेफ्टी परपज पर किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं है। मेरी बेटी भी जापान जाकर आगे की एजुकेशन करना चाहती है। मैं भी चाहता हूं कि वह जापान जाकर अपनी इस ड्रीम को पूरा करे।

प्रशांत, दिल्ली

जाना है तो जाना है

मैं फोटोग्राफी का कोर्स करने के लिए एब्रॉड जाना चाहता हूं। रुपये के मुकाबले डॉलर का लगातार मजबूत होना, स्टूडेंट्स के लिए अच्छा नहींहै। रुपया कमजोर होने का असर उनके सपने को कमजोर कर रहा है, लेकिन जाना है तो जाना है। एब्रॉड जाकर कोर्स करेंगे साथ ही, कोई जॉब भी कर लेंगे। अगर रुपया मजबूत होता, तो यह सिचुएशन नहीं आती और हम अपना पूरा ध्यान अपने कोर्स पर लगाते। यह प्रॉब्लम मुझ जैसे सभी स्टूडेंट्स के सामने आ गई है।

सौरभ चावला, दिल्ली

मैं जाऊंगा जापान

एब्रॉड में स्टडी बेटर फ्यूचर के लिए ही करते हैं। यहां यह भी देखना पडता है कि जिस डेस्टिनेशन को हम चूज कर रहे हैं, वह हमारे बजट में है कि नहीं। साथ ही इस बात पर भी फोकस रहता है कि जॉब का क्या सीन रहेगा? काफी सोच-विचार के बाद मैंने एब्रॉड स्टडी के लिए जापान को चुना है। जापान यूरोपीय कंट्रीज के कंपेरिजन में सस्ता दिख रहा है और वहां क्वॉलिटी भी है।

माईविश आनंद, अंबाला अंशु सिंह, शरद अग्निहोत्री, मिथिलेश श्रीवास्तव इनपुट : लखनऊ से दीपा श्रीवास्तव, जालंधर से वंदना वालिया, पटना से वीरेंद्र पाठक, कानपुर से शिवा अवस्थी और दिल्ली से अभिनव उपाध्याय।


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