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New Age ट्रेडिशनल कोर्सेज

वक्त के साथ बदलाव जरूरी है। लेकिन ये बदलाव एक तरफा न हों। एजुकेशन सिस्टम में आजकल कुछ ऐसा ही हो रहा है। हम स्टूडेंट्स में स्किल्स का रोना तो रो रहे हैं, लेकिन अपने कोर्सेज को अपडेट करने की कोई ठोस प्लानिंग नहीं है। ट्रेडिशनल कोर्सेज में पिछले कई सालों से कोई बदलाव नहीं दिख रहा है। प्रोफेशनल कोर्सेज में मार्केट की डिमांड के मुताबिक चेंजेज को लेकर गवर्नमेंट और एजुकेशन इंडस्ट्री हमेशा आवाज उठाती रही है, लेकिन ट्रेडिशनल कोर्सेज से पैदा होना वाले एकेडमिशियंस को क्या अपग्रेड करने की जरूरत नहीं है? एजुकेशन का बेसिक फलसफा तो जॉब ही है, हर कोई टीचर या आईएएस अफसर नहीं बन पाता। जरूरत है कि ट्रेडिशनल कोर्सेज की पॉपुलरिटी को कायम रखने के लिए इनके करिकुलम में आज के मुताबिक बदलाव हों ताकि स्टूडेंट कॉम्पिटेंट बन सकें और प्रोफेशनल कोर्सेज को टक्कर दे सकें

By Edited By: Published: Wed, 17 Jul 2013 12:47 AM (IST)Updated: Wed, 17 Jul 2013 12:00 AM (IST)
New Age ट्रेडिशनल कोर्सेज

इन दिनों प्रोफेशनल और जॉब-ओरिएंटेड कोर्स स्टूडेंट्स को खूब लुभा रहे हैं। आलम यह है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी समेत देश के तमाम डिमांडिंग इंस्टीट्यूशंस में पहली कट-ऑफ के बाद ही सीटें फुल हो जाती हैं। अगर सेकंड व थर्ड कट-ऑफ में किसी का नाम आ भी जाता है, तो एडमिशन मिल जाएगा इसकी भी कोई गांरटी नहीं है।

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जबकि ट्रेडिशनल कोर्सेज की सीटें खाली रह जा रही हैं। तो क्या माना जाए कि ट्रेडिशनल कोर्सेज का क्रेज खत्म हो रहा है या फिर यूपी, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों की यूनिवर्सिटीज में ज्यादातर स्टूडेंट्स के सामने यही कोर्स पढने की मजबूरी है? गवर्नमेंट सेक्टर को छोड दें, तो बदलते जमाने के अनुसार प्रोफेशनल व‌र्ल्ड में इन ट्रेडिशनल कोर्सेज की मार्केट वैल्यू लगातार कम होती जा रही है। ऐसे में इन कोसरें और सब्जेक्ट्स इंट्रेस्ट और करियर स्कोप पैदा करने के लिए इनके सिलेबस/करिकुलम को री-डिजाइन करने की जरूरत है। इतिहास, संस्कृति, सोसायटी, मूल्यों, संस्कारों, शासन-प्रशासन की व्यावहारिक पद्धतियों, मानव मन की उलझनों, एजुकेशन-करियर को लेकर होने वाले कन्फ्यूजन समेत डीप नॉलेज देने और पूरी पर्सनैलिटी को तराशने वाले इन कोर्सेज को करियर से जोडने के लिए नये सिरे से कवायद करने की जरूरत है। च्यादातर एजुकेशनिस्ट और स्टूडेंट भी यही मानते और चाहते हैं..

एजुकेशनिस्ट व्यू

चेंज जरूरी

व्यावसायिक बनाम ट्रेडिशनल कोर्स के इश्यू पर वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के सोशियोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड प्रो. रवि प्रकाश पांडेय का कहना है कि ट्रेडिशनल कोर्सेज जैसे सोशियोलॉजी में चेंज आना चाहिए। वह कहते हैं कि यह भी सच है कि इस सब्जेक्ट को प्रोफेशनल नहीं बनाया जा सकता है और यही वजह है कि टीचिंग, कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स के अलावा प्रोफेशनल कोर्सेज जैसी जॉब ऑप‌र्च्युनिटिज नहीं है। वह कहते हैं कि 40 परसेंट स्टूडेंट मजबूरी में इस सब्जेक्ट को चुनते हैं, जबकि 30 परसेंट स्टूडेंट्स कॅरियर को ध्यान में रखकर पढते है और 30 परसेंट स्टूडेंट्स के पास कोई ऑप्शन नहीं होते हैं। प्रो. पांडेय के मुताबिक बहुत कोशिशों के बाद ग्लोबलाइजेशन, मार्केट रिफा‌र्म्स, सिस्टम, व‌र्ल्ड कल्चर जैसे सब्जेक्ट्स सोशियोलॉजी में शामिल किए गए हैं, जो डिमांड बेस्ड हैं।

हर 3 साल में रीस्ट्रक्चरिंग

गोरखपुर के दिग्विजयनाथ पीजी कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. गीता दत्त कहती हैं कि जरूरी है कि कोर्सेज में लेटेस्ट टेक्नोलॉजी को भी शामिल किया जाना चाहिए, ताकि उन्हें रोचक और एक्सेप्टेबल बनाया जा सके। इसके अलावा वे कोर्सेज में स्थानीय जरूरतों को भी शामिल करने की बात पर भी जोर देती हैं। वह कहती हैं कि कोर्सेज की हर तीन साल में रीैस्ट्रक्चरिंग किए जाने की जरूरत है। इस दिशा में नेशनल लेबल पर एक मॉडल करिकुलम 2005 में तैयार किया गया था और यूनिवर्सिटीज को स्थानीय जरूरतों के मुताबिक 20 परसेंट बदलाव की सुविधा दी गई थी। वह कहती हैं कि एनशिएंट हिस्ट्री में टूरिज्म और डिफेंस स्टडी में डिजास्टर मैनेजमेंट को जोडा जाए तो मार्केट की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। इसी तरह अन्य सब्जेक्ट के साथ भी प्रोफेशनल टच देना जरूरी है। इससे ट्रेडिशनल कोर्स करने के बाद भी जॉब मिलने लगेगी।

कोर्सेज की हो मार्केटिंग

लखनऊ के कालीचरण डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. देवेंद्र सिंह कहते हैं कि चीन में ऑर्कियोलॉजिस्ट को बहुत खास माना जाता है, वहां से सीख लेकर इतिहास को एक करियर ओरिएंटेड सब्जेक्ट बनाया जा सकता है। इसके लिए इतिहास के करिकुलम में बदलाव के लिए इसे ऑर्कियोलॉजी से जोडना बेहतर होगा ताकि इसमें बेहतरीन करियर बन सके। इसके लिए होना ये चाहिए कि टूरिस्ट गाइड, पुरातत्व व धरोहर सुरक्षा के लिए नए आयाम बनाने चाहिए। इन सबके लिए मार्केटिंग भी जरूरी है, ताकि स्टूडेंट्स इतिहास का मतलब और उसका महत्व समझ सकें। इतिहास की पढाई करने के बाद बच्चे सिर्फ टीचर ही नहीं बल्कि आईटी और मैनेजमेंट में भी करियर बना सकते हैं।

कोर्सेज को कंप्यूटर से करें कनेक्ट

अब ट्रेडिशनल कोर्सेज को टेक्नोलॉजी से कनेक्ट करने की भी बात उठने लगी है। दीनदयाल उपाध्यांय गोरखपुर यूनिवर्सिटी की आ‌र्ट्स फैकल्टी के डीन प्रो. सुरेंद्र दुबे जोर देकर कहते हैं ट्रेडिशनल कोर्सेज के साथ टेक्नोलॉजी को भी कनेक्ट करना होगा। इससे स्टूडेंट्स में छात्रों में कोर्सेज के प्रति रुचि बढेगी।

जॉब नहीं, पर्सनैलिटी डेवलपमेंट

प्रो. सुरेंद्र दुबे कहते हैं कि हमारी सारा जोर बाजार, करियर और तकनीक पर होता जा रहा है, जिससे यूथ में एक गलाघोंटू स्पर्धा छिडी है। यूथ को बताया जाना चाहिए कि एजुकेशन जॉब के लिए नहीं है। उसे पर्सनैलिटी डेवलपमेंट का जरिया बनाया जाना चाहिए। खुले दिमाग और संतुलित व्यक्तित्व का व्यक्ति ही लाभ और जरूरत का अंतर समझ सकता है। ऐसे व्यक्तियों से एक स्वस्थ एवं सहिष्णु समाज का निर्माण होगा। चाहे उसे नौकरी मिले या न मिले।

बदलें टीचिंग स्टैंडर्ड

लखनऊ यूनिवर्सिटी में सोशियोलॉजी के एचओडी डॉ. राजेश मिश्र कहते हैं कि प्रोफेशनल कोर्सेज को टक्कर देने के लिए टीचिंग की पारंपरिक शैली बदलनी होगी। इसके अलावा करिकुलम बदलने के लिए हर बार इस दिशा में ऐसी जानकारियां जोडने के साथ नई रिसर्च को शामिल करना चाहिए। वह कहते हैं कि एनजीओ, रिसर्च और विदेश में रिसर्च की पॉसिबिलिटीज के बावजूद ट्रेडिशनल कोर्स इन दिनों सिर्फ खानापूर्ति बन कर रह गए हैं।

विजन बनाते हैं ट्रेडिशनल कोर्सेज

इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवसिर्टी के प्रो. एमपी दुबे कहते हैं यूनिवर्सिटीज का काम जॉब के लिए स्टूडेंट्स को तैयार करना नहीं है, बल्कि ट्रेडिशनल नॉलेज बढाने के साथ नई नॉलेज की खोज के लिए होते हैं। वह कहते हैं कि यूनिवर्सिटीज का काम है नॉलेज को अमल में लाने के मे थड्स को लोगों तक पहुंचाना। इन सभी के लिए ट्रेडिशनल कोर्सेज ही कारगर हैं। इनकी आज भी डिमांड है और कल भी रहेगी।

एलिमेंट्री लेवल पर हो शामिल

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के फिलॉसफी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. सभाजीम सिंह यादव कहते हैं कि फिलॉसफी प्रोफेशनल कोर्स नहीं है, यह जीवन मूल्यों से जुडा सब्जेक्ट है। लेकिन इसे एलिमेंट्री एजुकेशन से ही पढाने की जरूरत है। वह कहते हैं कि फिलॉसफी को यूपीएससी तरह अन्य कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स में शामलि करके इसे और सशक्त बनाया जाए।

स्टूडेंट्स व्यू

मार्केट से करें कनेक्ट

वाराणसी से काशी विद्यापीठ में बीए थर्ड ईयर के स्टूडेंट सूरज कुमार चौधरी कहते हैं कि प्रोफेशनल कोर्स की तरह अब ट्रेडिशनल कोर्स को मार्केट डिमांड के साथ जोडा जाना चाहिए। मतलब उस विषय की पढाई से पैसा कमाने का भी रास्ता दिखाना चाहिए। वे सवाल उठाते हुए कहते हैं कि अगर ऐसा नहीं होता है, तो हमें इतिहास को क्यों पढना चाहिए। वह कहते हैं कि कोई ऐसा विषय नहीं जिसका कोई मोल न हो, किंतु उस विषय को जिंदा रखना है तो निश्चित एक मार्केट होना चाहिए।

गोरखपुर यूनीवर्सिटी में बीए फाइनल ईयर की स्टूडेंट समीक्षा सिंह भी ट्रेडिशनल कोर्सेज को मार्केट की डिमांड से कनेक्ट करने पर जोर देती हैं। उनका कहना है कि प्रोफेशनल कोर्स और ट्रेडिशनल कोर्स का अपना अलग-अलग महत्व है। बावजूद इसके बदलते समय के साथ ट्रेडिशनल कोर्स में बदलाव आवश्यक है।

टारगेट फिक्स करें

इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में मास कम्युनिकेशन के स्टूडेंट आदित्य पांडेय कहते हैं कि अगर लक्ष्य निर्धारित कर लिया जाए तो फिर कोई भ्रम नहीं रहता। लक्ष्य बडा है तो उसे हासिल करने का एक जरिया भर है।

साथ में करें प्रोफेशनल कोर्स

इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के त्रिनाथ कहते हैं कि ट्रेडिशनल सब्जेक्ट्स की पढाई से क्रिएटिविटी डेवलप होती है। वहीं प्रोफेशनल कोर्स किसी कार्य विशेष के लिए जॉब देते हैं। वह कहते हैं कि फ्यूचर में जॉब की पॉसिबिलिटीज के मद्देनजर ग्रेजुएशन की पढाई के साथ-साथ एक प्रोफेशनल कोर्स करना चाहिए।

पर्सनैलिटी डेवलपमेंट को करें शामिल

लखनऊ यूनिवसिर्टी से बीए कर रहे साहिल वर्मा कहते हैं कि ज्यादातर प्रोफेशनल कोर्सेज में पर्सनैलिटी डेवलपमेंट की क्लास होती है, उसे ट्रेडिशनल कोर्स में जोडकर बेहतर किया जा सकता है। वह कहते हैं कि सब्जेक्ट और पढाने की शैली को बदलना चाहिए ताकि ट्रेडिशनल के साथ हम टेक्निकल भी हो सकें।

एक्सपर्ट स्पीक

ट्रेडिशनल कोर्स पुरानी चाशनी जैसे बदलते परिवेश में प्रोफेशनल व‌र्ल्ड में इन ट्रेडिशनल कोर्सेज की मार्केट वैल्यू थोडी कम जरूर हुई है। जिसकी वजह है जल्द से जल्द वित्तीय आत्मनिर्भरता पाने की बढती चाह। ट्रेडिशनल कोर्सेज का क्रेज खत्म हो रहा है, सही नहीं है। स्टूडेंट्स के बीच ट्रेडिशनल कोर्स पुरानी चाशनी की तरह हैं, जिसकी मिठास कभी कम नहीं होती है। वह कहते हैं कि डिपार्टमेंट्स में स्टूडेंट्स की लंबी लाइन इस ओर संकेत दे रही है। इसी सेशन में यूनिवसिर्टी के आ‌र्ट्स फैकल्टी के दर्जन भर कोर्सेज की करीब 1950 सीटों के लिए 21 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स ने एंट्रेस टेस्ट दिया है। कुछ यही स्थिति यूजीसी नेट एग्जाम के दौरान देखने को मिली। साल में दो बार होने वाली इस परीक्षा में हर बार स्टूडेंट्स की संख्या बढती ही जा रही है।

प्रो. पीसी त्रिवेदी, वीसी, गोरखपुर यूनिवर्सिटी

मजबूरी नहीं हो ट्रेडिशनल कोर्स

कुछ स्टूडेंट्स के साथ ट्रेडिशनल कोर्स का करना मजबूरी होता होगा, लेकिन यह उस पर निर्भर करता है कि वह मजबूरी का रोना रोता है या उसी में अच्छा भविष्य तलाशता है। कोई भी कोर्स अच्छा या खराब नहीं होता, बल्कि उसमें आपकी रुचि मायने रखती है। वह कहते हैं कि पहले स्वयं तय कर लें कि हमें ट्रेडिशनल कोर्स करना है या प्रोफेशनल। साथ ही वह ट्रेडिशनल कोर्स के करिकुलम बदलने पर भी जोर देते हैं। वह कहते हैं कि निश्चित तौर पर इसमें बदलाव होना चाहिए। वह यह भी कहते हैं कि रोजना नए-नए जॉब ऑप्शन खुल रहे हैं। बदलते वक्त के मुताबिक इन कोर्सेज के करिकुलम में भी चेंज हो। सोशियोलॉजी हो या सोशल वर्क इन सभी कोर्स करने के बाद एनजीओ व सामाजिक संस्थाओं से जुडकर काम किया जा रहा है।

डॉ. एलएन भगत, वीसी, रांची यूनिवर्सिटी

आईटी सेक्टर आगे आए

लखनऊ यूनिवर्सिटी में संस्कृत के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. ब्रिजेश शुक्ला कहते हैं कि सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री भी ये जानती है कि संस्कृत कंप्यूटर के लिए आसान भाषा है। इसे हाइलाइट करके इसमें स्टूडेंट्स को आने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसके अलावा आईटी कंपनी को भी चाहिए कि ऐसे स्टूडेंट्स को प्रिफरेंस दें, जो संस्कृत के अच्छे जानकार हैं। साथ ही वे कहते हैं कि ट्रेडिशनल कोर्सेज में परिवर्तन और प्रोफेनशल कोर्सेज को टक्कर देने योग्य बनाने के लिए इसमें नए-पुराने लोगों के साथ नए राइटर्स को भी कनेक्ट करना चाहिए। साथ ही प्रोफेशनल कोर्स के कुछ कंटेंट को इन कोर्सेज में शामिल किया जाए।

बनाएं रखें ओरिजनलिटी

गोरखपुर की दीनदयाल उपाध्याय यूनिवसिर्टी के फिलॉसफी डिपार्टमेंट के हेड प्रो. चंद्रप्रकाश श्रीवास्तव कहते हैं कि ह्यूमनिटीज के कोर्सेज को बदलने से पहले ओरिजनलिटी को ध्यान में रखने की जरूरत है। प्रो. चंद्रप्रकाश कहते है कि न्यूटन या अरस्तू के जो भी सिद्धांत हैं, यह मूल होते हैं और उनका अनुप्रयोग लंबे समय तक होता है। वह हमेशा तात्कालिक लाभ के लिए उपयोगी हैं। इसलिए इस कोर्स को परोक्ष रूप से बाजार से जोडा जा सकता है। इन कोर्स को करने वाले स्टूडेंट्स के सामने सिर्फ टीचिंग व गवर्नमेंट जॉब का ही आप्शन बचता है, क्योंकि वर्तमान में लोगों पर कंप्यूटर एवं इंटरनेट हावी है।

मजबूरी है वजह

प्रो. चंद्रप्रकाश श्रीवास्तव इस बात को स्वीकारते हैं कि यह सच है कि बाहर न जाने वाले स्टूडेंट्स के सामने इन कोर्सेज को पढने की मजबूरी है, चाहे उनकी च्वाइस हो या ना हो। यही वजह है कि क्वॉॅलिटी स्टडी डेवलप नहीं हो पाती है, जबकि टैंलेटेड स्टूडेंट्स प्रोफेशनल या साइंटिफिक एजुकेशन को फ‌र्स्ट प्रिफरेंस देते हैं।

प्रोफेशनल कोर्स जरूरी

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में ज्योग्राफी में एमए सेंकेड ईयर के स्टूडेंट विजय भाष्कर ट्रेडिशनल कोर्स को अपनी मजबूरी बताते हैं। वह कहते हैं कि यूथ को प्रोफेशनल कोर्स की ओर रुख करना चाहिए। ट्रेडिशनल कोर्स अभी भी परंपरागत चीजों को ढो रहा है। इन पाठ्यक्रमों को बदलकर इसे मार्केट से जोडकर नवीनता लाने की कोशिश होनी चाहिए।

इंट्रेस्ट है जरूरी

रांची कॉलेज में हिस्ट्री में ग्रेजुएशन कर रहे विपुल कुमार कहते हैं कि वे इतिहास पढ कर आदिम जनजातियों पर रिसर्च करना चाहते हैं। विपुल का कहना है, वह जानते हैं कि उन्हें ज्यादा पैसे नहीं मिलेंगे, लेकिन बडी बात है कि इसमें मेरी रुचि है। कोर्स पूरा करने के बाद रिसर्च करके शौक पूरा होगा और फिर टीचिंग से जुडकर पैसे भी कमा लेंगे। वह कहते हैं कि कोर्स के करिकुलम में थोडा बदलाव हो जाए, तो शायद इस ओर भी स्टूडेंट्स की भीड होगी।

ट्रेडिशनल कोर्स चुनना मजबूरी

पटना यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में पीजी कर रहे राहुल कुमार कहते हैं कि वे इंटरमीडिएट करने के बाद प्रोफेशनल कोर्स करना चाहते थे। लेकिन बिहार में प्रोफेशनल कोर्स के स्तरीय संस्थानों का कमी है। यही कारण है कि उन्हें मजबूरी में ट्रेडिशनल कोर्स चुनना पडा। ट्रेडिशनल कोर्सेज के करिकुलम को जरूरत के अनुसार बनाया जाना चाहिए।

ट्रेडिशनल कोर्स में फ्यूचर सेफ

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनिवर्सिटी में एमए सेकेंड ईयर की स्टूडेंट शिवांगी त्रिपाठी कहती हैं कि रिसेशन के दौर में फ्यूचर ट्रेडिशनल कोर्स में प्रोफेशनल कोर्स के कंपरिजन में सेफ है। एजुकेशन को सिर्फ जॉब का ही सब्जेक्ट नहीं मानना चाहिए। एजुकेशन का आशय सवरंगीण विकास से है।

इनपुट: लखनऊ से दीपा श्रीवास्तव, पटना से बीरेन्द्र पाठक, रांची से विनय कुमार पांडेय, गोरखपुर से संजय मिश्रा, वाराणसी से जयप्रकाश पांडेय, इलाहाबाद से एसके दुबे

जेआरसी टीम


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