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कम हो विदेशी मुल्कों पर निर्भरता..

आजादी के 67 साल बीत जाने के बाद भी सैन्य उपकरणों के मामले में दूसरे देशों पर निर्भरता हैरान करने वाली है। अचरज की बात यह है कि यह निर्भरता लगातार बढ़ते हुए 75 फीसदी तक पहुंच गई है। जाहिर है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में ही हम स्वदेशी रक्षा उत्पादन और डिजाइन के मोर्चे पर अपेक्षा के अनुरूप क्षमता ि

By Edited By: Published: Mon, 04 Aug 2014 12:49 PM (IST)Updated: Mon, 04 Aug 2014 12:49 PM (IST)
कम हो विदेशी मुल्कों पर निर्भरता..

आजादी के 67 साल बीत जाने के बाद भी सैन्य उपकरणों के मामले में दूसरे देशों पर निर्भरता हैरान करने वाली है। अचरज की बात यह है कि यह निर्भरता लगातार बढ़ते हुए 75 फीसदी तक पहुंच गई है। जाहिर है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में ही हम स्वदेशी रक्षा उत्पादन और डिजाइन के मोर्चे पर अपेक्षा के अनुरूप क्षमता विस्तार नहीं कर सके। ऐसे में नई सरकार द्वारा रक्षा क्षेत्र में एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने की घोषणा का स्वागत करने की बजाय विपक्षी दलों द्वारा आलोचना करना यही साबित करता है कि उन्हें शायद इस मामले में देश की आत्मनिर्भरता पसंद नहीं। उनका यह तर्क शायद ही किसी के गले उतरे कि विदेशी सैन्य निर्माता कंपनियों का भारत आना देश की सुरक्षा खतरे में डालना होगा। वे संभवत: यह भूल जाते हैं कि अभी हम जो विमान, टैंक, तोप या अन्य सैन्य उपकरण विदेश से मंगाते हैं, उनकी तकनीक तो वे देश अच्छी तरह जानते ही हैं। सवाल यह है कि क्या उनके बनाए उपकरण इस्तेमाल करने से हमारी सुरक्षा में सेंध नहीं लगती? सैन्य उपकरणों और तकनीक के मामले में आखिर हम कब तक दूसरे मुल्कों पर निर्भर रहकर उनका खजाना भरते रहेंगे? यह अलग बात है कि डीआरडीओ, इसरो, शिपयार्ड, आर्डिनेंस डिपो, एचएएल आदि अपनी क्षमता के अनुसार उन्नत मिसाइल, टैंक, हथियार, गोला-बारूद सहित अन्य सैन्य उपकरण बनाने में अनवरत जुटे हैं, लेकिन देश की रक्षा जरूरतों को देखते हुए क्या इतना ही पर्याप्त है?

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यह सुखद है कि नई सरकार एफडीआई के सहारे देश के सैन्य उपकरण संस्थानों को ज्यादा उत्पादक बनाकर दूसरे देशों पर निर्भरता घटाना चाहती है। भविष्य में इसके कई फायदे सामने आ सकते हैं। एक तो इससे देश का पैसा बाहर जाने के बजाय उल्टे दूसरे देशों का पैसा हमारे देश आएगा। दूसरे, रक्षा उपकरणों, लड़ाकू विमानों, युद्धक पोतों, तोपों आदि के मामले में हम आत्मनिर्भर होंगे और इससे हमारी सेनाएं ज्यादा मजबूत-सक्षम बनेंगी। इसके अलावा, एक फायदा यह भी होगा कि स्वदेश में रक्षा उत्पादन बढ़ाकर हम छोटे व जरूरतमंद देशों को उनकी बिक्री भी कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी है रक्षा उत्पादन से जुड़े अपने महत्वपूर्ण संस्थानों पर ध्यान देने की, ताकि वहां अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित शोध व विकास को बढ़ावा मिले। देसी रक्षा उत्पादक संस्थानों को मजबूत करके हम एक तरह से सीमा पर तैनात अपने जवानों को और ज्यादा ताकतवर ही बनाएंगे, क्योंकि ये संस्थान एक तरह से रक्षा क्षेत्र के बैकबोन की तरह ही हैं। इस मामले में दूसरे मुल्कों पर निर्भरता खत्म करके हम असली आजादी का आनंद भी उठा सकते हैं.. स्वतंत्रता पर्व पर शुभकामनाओं के साथ,

संपादक

दिलीप अवस्थी


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