Move to Jagran APP

कैंसर के उपचार व रोकथाम के लिए होगा नैनो का उपयोग

दुनिया में अधिकतर व्यक्ति कैंसर से लड़ रहा है, लेकिन इसका पूर्ण रूप से इलाज अभी न तो अस्पतालों में ही मिला और न ही किसी भी संस्थान में। वर्शों से रिसर्च के बाद कोलकाता बोस इंस्टीट्यूट के इमिरेटस प्रो. एवं आईआईटी खरगपुर

By MMI TeamEdited By: Published: Fri, 10 Jun 2016 11:02 AM (IST)Updated: Fri, 10 Jun 2016 11:21 AM (IST)
कैंसर के उपचार व रोकथाम के लिए होगा नैनो का उपयोग

मथुरा। दुनिया में अधिकतर व्यक्ति कैंसर से लड़ रहा है, लेकिन इसका पूर्ण रूप से इलाज अभी न तो अस्पतालों में ही मिला और न ही किसी भी संस्थान में। वर्शों से रिसर्च के बाद कोलकाता बोस इंस्टीट्यूट के इमिरेटस प्रो. एवं आईआईटी खरगपुर के प्रोफेसर ने जीएलए विश्वविद्यालय में रिसर्च के बाद दावा किया है कि उनके इस रासायनिक प्रक्रिया से कैंसर का खात्मा को सकेगा।

prime article banner

कोलकाता बोस इंस्टीट्यूट के इमिरेट्स प्रो. मंजू रे एवं आईआईटी खरगपुर के प्रोफेसर पी प्रमाणिक इस समय जीएलए विश्वविद्यालय में मानद प्रोफेसर तथा डिस्टिंग्विस्ट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। अब तक पी प्रमाणिक के पास 280 एवं मंजू रे के पास 200 से अधिक नेशनल एवं इंटरनेशनल पब्लिकेशन हैं। यह प्रोफेसर विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को इस प्रकार तैयारी करा रहे हैं कि वह भी आगे चलकर बढ़ी से बढ़ी बीमारी का तोड़ निकालने के लिए ऐसी कोई रासायनिक प्रक्रिया की खोज करें, जो कि राष्ट्र की सेवा के लिए फायदेमंद साबित हो सके।

यह प्रोफेसर वर्षों से कैंसर किस कारण और क्यों होता है। इसे जड़ से खत्म करने के लिए क्या करना चाहिए। इस पर कार्य करते आ रहे हैं। वर्शों से रिसर्च के बाद आखिर पता चला कि व्यक्ति के अंदर होने वाला कैंसर ‘‘मिथाइल ग्लाइआॅक्जल‘‘ न होने के चलते शरीर के हिस्से पर अटैक करता है। उन्होंने दावा किया है कि व्यक्ति नैनो टेक्नोलाॅजी का उपयोग कर कैंसर के उपचार व रोकथाम का सबसे सस्ता व सरल तरीका है।

पी प्रमाणिक के साथ रिसर्च कर रहे जीएलए विश्वविद्यालय रसायन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डीके दास ने बताया है कि एक या दो महीने में शिला मैमोरियल कैंसर हाॅस्पीटल मथुरा, जादोंपुर यूनिवर्सिटी कोलकाता, पंजाब यूनिवर्सिटी चंढीगढ़, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय ओखला से (एमओयू) समझौता होते ही नैनोटेक्नोलाॅजी के रिसर्च में और तेजी आयेगी। इससे कैंसर पीड़ित मरीज कैंसर की बीमारी से मुक्त हो सकेंगे।
इस रिसर्च में कुलपति प्रो. दुर्ग सिंह चैहान, प्रतिकुलपति प्रो. ए.एम. अग्रवाल, निदेशक प्रो. अनूप कुमार गुप्ता, फार्मेसी विभाग के निदेशक प्रो. प्रदीप मिश्रा, कुलसचिव अशोक कुमार सिंह आदि पदाधिकारियों का सहयोग सराहनीय रहा है।

इंसेट
नैनो टेक्नोलॉजी क्या है?
नैनो का अर्थ है ऐसे पदार्थ, जो अति सूक्ष्म आकार वाले तत्वों (मीटर के अरबवें हिस्से) से बने होते हैं। नैनो टेक्नोलॉजी अणुओं व परमाणुओं की इंजीनियरिंग है, जो भौतिकी, रसायन, बायो इन्फॉर्मेटिक्स व बायो टेक्नोलॉजी जैसे विषयों को आपस में जोड़ती है। इस प्रौद्योगिकी से विनिर्माण, बायो साइंस, मेडिकल साइंस, इलेक्ट्रॉनिक्स व रक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है, क्योंकि इससे किसी वस्तु को एक हजार गुणा तक मजबूत, हल्का और भरोसेमंद बनाया जा सकता है। छोटे आकार, बेहतर क्षमता और टिकाऊपन के कारण मेडिकल और बायो इंजीनियरिंग में नेनौ टेक्नोलॉजी तेजी से बढ़ रही है। नेनौ टेक्नोलॉजी से इंजन में कम घर्षण होता है, जिससे मशीनों का जीवन बढ़ जाता है। साथ ही ईंधन की खपत भी कम होती है।
इंसेट
फाइटोकैमीकल्स से खेती में होगी अधिक पैदावार
जीएलए विश्वविद्यालय के रसायन विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. डीके दास ने बताया कि प्रो. प्रमाणिक के साथ एक हाॅर्मून रिसर्च किया गया है। जिसमें फाइटोकैमीकल्स की अहम भूमिका है। खेती में इस कैमीकल के उपयोग से फसलों की बम्पर पैदा हो सकेगी। अभी-अभी उन्होंने भिण्डी उत्पादन पर प्रयोग किया है जो कि सफल रहा है। बाजार में कैमीकल को आयात करने से पहले वह आलू पर रिसर्च करेंगे।









Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.
OK