खुद को करें मोटिवेट
सिर्फ 1 रुपये सैलरी लेने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू के वाइस चांसलर और भारत में जेनेटिक फिंगर प्रिंटिंग के जनक डॉ. लालजी सिंह के टिप्स.. मैं भी आप लोगों की ही तरह एक आम लड़का था। जौनपुर के एक छोटे से गांव में पैदा हुआ। पिताजी किसान थे। बहुत ज्यादा पैसे नहीं थे, लेकिन पिताजी हम बच्चों को खूब पढ़ाना चाहते थे।
सिर्फ 1 रुपये सैलरी लेने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू के वाइस चांसलर और भारत में जेनेटिक फिंगर प्रिंटिंग के जनक डॉ. लालजी सिंह के टिप्स..
मैं भी आप लोगों की ही तरह एक आम लड़का था। जौनपुर के एक छोटे से गांव में पैदा हुआ। पिताजी किसान थे। बहुत ज्यादा पैसे नहीं थे, लेकिन पिताजी हम बच्चों को खूब पढ़ाना चाहते थे। हम भी मन लगाकर पढ़ाई करते थे। आठवीं के बाद घर से 6 किलोमीटर दूर रोज पैदल चलकर पढ़ने जाता था। फीस 10-15 रुपये महीने थी, जो उस वक्त भी ठीक-ठाक रकम थी। गवर्नमेंट एड वाला कॉलेज था। टीचर अच्छे थे। मुझे खुद जूलॉजी में इंट्रेस्ट था। कॉलेज के बाहर भी हम लोग मेढक पकड़कर उसका डिसेक्शन किया करते थे। घर आने पर बहुत डांट पड़ती थी, लेकिन अपने मन के काम में मजा आता था।
खुद की मेहनत
इंटरमीडिएट के बाद कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं? साइंस बैकग्राउंड का था और जूलॉजी में काफी इंट्रेस्ट था, इसलिए कई लोगों ने कहा कि एमबीबीएस कर लो। मैंने भी सोचा, एमबीबीएस करना चाहिए, लेकिन सवाल था- कहां से? कुछ लोगों से पता चला कि कानपुर में एडमिशन हो रहा है। मैं कानपुर पहुंचा, लेकिन तब तक वहां एडमिशन खत्म हो चुका था। पिताजी ने जौनपुर के ही टीडी कॉलेज में एडमिशन लेने को कहा, लेकिन मुझे गवारा नहीं हुआ। किसी से बीएचयू के बारे में सुना, तो वहीं एडमिशन लेने की ठान ली और आखिरकार मेरी मेहनत रंग लाई, बीएससी में एडमिशन हो गया।
माहौल के हिसाब से ढलें
अपने मां-बाप और भाइयों से दूर पहली बार गया था। रोज शाम को कमरे में बैठकर रोता था। सिर में तेल लगाने की आदत थी। इस पर सीनियर्स और शहरी क्लासमेट्स खूब चिढ़ाते थे। अपनी भड़ास मैं मेस के महाराज से मिलकर निकाला करता था। पूरी पढ़ाई इंग्लिश में थी और गांव के कॉलेज में इंग्लिश ठीक से पढ़ नहीं पाया था। इस वजह से काफी मुश्किल आई। आज भी वह दिन अच्छी तरह याद है। इसलिए बीएचयू का वीसी बनने के बाद मैंने यहां फ्री इंग्लिश स्पोकेन क्लासेज शुरू करा दी। गांव के लड़के पिछड़े माहौल की वजह से टेक्निकली उतने स्ट्रॉन्ग नहीं होते। इसको ध्यान में रखते हुए मैंने यहां फ्री कंप्यूटर क्लासेज भी शुरू कराए।
पढ़ाई का जुनून
बीएचयू का वाइस चांसलर बनने के बाद एक दिन मैंने कुछ स्टूडेंट्स को स्ट्रीट लाइट्स के नीचे पढ़ते देखा। मैंने ड्राइवर से पूछा, ये सब यहां क्यों पढ़ रहे हैं, अपने कमरे में जाकर क्यों नहीं पढ़ते? उसने कहा, इन्हें हॉस्टल नहीं मिल पाया। बीएचयू से बाहर अक्सर बिजली गुल रहती है और पीने का पानी भी नहीं मिल पाता। इसलिए ये यहां बैठकर पढ़ रहे हैं। पढ़ाई का ऐसा जुनून देखने के बाद मैंने बीएचयू की लाइब्रेरी 24 घंटे हर स्टूडेंट के लिए खुलवा दी।
गांव-गांव पहुंचे बेहतर शिक्षा
एजुकेशन की दिशा में पहला स्कूल फैमिली ही होता है। परिवार में आपने जो सीख लिया, जिंदगी भर वह सीख काम आती है। पैरेंट्स अगर बच्चे पर बार-बार अच्छे मार्क्स के लिए प्रेशर डालते हैं, तो इसका गलत असर पड़ता है। स्टूडेंट्स को वही स्ट्रीम या सब्जेक्ट पढ़ने देना चाहिए, जिनमें उनका वाकई इंट्रेस्ट हो। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि पैरेंट्स भी चाहते हैं कि उनका बच्चा अपने इंट्रेस्ट की पढ़ाई करे, लेकिन गांव-कस्बे में ऑप्शंस ही नहीं होते। इसलिए यह भी बहुत जरूरी है कि बेहतर शिक्षा गांव-गांव तक पहुंचे।
खुदी को कर बुलंद इतना..
लाइफ में टार्गेट, प्लान, स्ट्रेटेजी जैसे शब्दों के बहुत ज्यादा मायने हैं, लेकिन ये सब तभी सार्थक हैं, जब आप उस दिशा में लगातार कोशिश करते रहें, जो आप हासिल करना चाहते हैं। बार-बार अगर आपको नाकामी हाथ लगती है, तो इसका दोष अपने परिवार, गांव या स्कूल के माहौल को न दें, खुद को ही इस तरह डेवलप करें कि आप दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाएं।
Profile @ glance
-जन्म : 05 जुलाई,1947 जौनपुर (यूपी)
-बीएससी: बीएचयू
-एमएससी (जूलॉजी): बीएचयू
-पीएचडी इन साइटोजेनेटिक्स : बीएचयू
-रिसर्च : एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी, लंदन
-1974 से 1987 तक एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल जेनेटिक्स में रहे
-एक्सपीरियंस : करीब 45 साल रिसर्च और टीचिंग फील्ड में
-219 रिसर्च पेपर्स पब्लिश हो चुके हैं
-सेंटर फॉर सेलुलर ऐंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी, हैदराबाद में सीएसआइआर के भटनागर फेलो के रूप में जुड़े और 2009 तक डायरेक्टर रहे
-खोज : डीएनए फिंगर प्रिंटिंग तकनीक
-डिपार्टमेंट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी के तहत सेंटर फॉर डीएनए फिंगर प्रिंटिंग और डायग्नोस्टिक्स की स्थापना कराई
-2004 में पद्मश्री सम्मान
-2010 में 97वें इंडियन साइंस कांग्रेस में बीपी लाल मेमोरियल अवॉर्ड से सम्मानित
इंटरैक्शन : मिथिलेश श्रीवास्तव