जोश ब्लॉग
आशा का संचार अवि सिंह जोश प्लस का 15 अक्टूबर का अंक जबर्दस्त था। मेक इन इंडिया पर कवर स्टोरी पढ़ कर उम्मीदें जगी हैं। मुझे सबसे अच्छा ज्ञान कोश लगता है। इससे हमें भरपूर नॉलेज मिलती हैं और हम अप-टु-डेट रहते हैें। जोश टीम को धन्यवाद। मॉसकॉम पर स्टोरी दें उज्जवल पाठक जोश प्लस एक कम्पलीट मैगजीन है। काउंसलर कार्नर, संपादक की
आशा का संचार
अवि सिंह
जोश प्लस का 15 अक्टूबर का अंक जबर्दस्त था। मेक इन इंडिया पर कवर स्टोरी पढ़ कर उम्मीदें जगी हैं। मुझे सबसे अच्छा ज्ञान कोश लगता है। इससे हमें भरपूर नॉलेज मिलती हैं और हम अप-टु-डेट रहते हैें। जोश टीम को धन्यवाद।
मॉसकॉम पर स्टोरी दें
उज्जवल पाठक
जोश प्लस एक कम्पलीट मैगजीन है। काउंसलर कार्नर, संपादक की कलम से और एडमिशन एलर्ट जैसे रेगुलर कॉलम मुझे हमेशा से आकर्षित करते रहे हैं। किसी अंक में मॉस कम्युनिकेशन पर भी कवर स्टोरी दें, तो अच्छा रहेगा।
मात्र 1 रु. में बहुत कुछ
अक्षित सिंगला
मात्र 1 रुपये में यह लाजवाब मैगजीन है। हर क्लास के स्टूडेंट के लिए इसमें पर्याप्त कंटेंट होता है, वह भी बेहद रोचक अंदाज में। हम स्टूडेंट्स के लिए के लिए यह मित्र, मार्गदर्शक और शिक्षक का काम करती है। इन सबके बदले 1 रुपया कुछ भी नहींहै।
हर फील्ड की नॉलेज
विवेक
जोश प्लस हम जैसे स्टूडेंट्स का बहुत अच्छा मार्गदर्शक है। एजुकेशन, साइंस, एग्रीकल्चर, स्पोर्ट्स..हर फील्ड की नॉलेज बेहद कम समय में बहुत कम पन्नों में मिल जाती है। सक्सेस मंत्रा में आपके टिप्स हमारे लिए बहुत मददगार होते हैं। इसी तरह हमारा मार्गदर्शन करते रहें।
अफोर्डेबल ऐंड बेस्ट
शेख मुश्ताक
जोश प्लस अफोर्डेबल ऐंड बेस्ट मैगजीन है। हर नजदीकी एग्जाम का सिलेबस सहित स्ट्रेटेजी और प्रैक्टिस के लिए पेपर देकर आप हमारी बहुत हेल्प करते हैं। मैं और मेरे सारे दोस्त कभी भी यह मैगजीन मिस नहीं करते। खास तौर से दिलीप सर का संपादकीय तो जबर्दस्त लगता है।
जोश प्लस है जरूरी
संजय पासवान
जिस तरह पेट की भूख शांत करने के लिए भोजन किया जाता है, उसी तरह ज्ञान की भूख शांत करने के लिए जोश प्लस जरूरी है। किसी भी एग्जाम की तैयारी इस मैगजीन के बिना अधूरी है। इस मैगजीन में बेहद कम पन्नों में पर्याप्त मैटीरियल पढ़ने को मिल जाता है।
भारत के विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में रैंकिंग सिस्टम कितना जरूरी?
रैंकिंग सिस्टम हर कॉलेज में होना बेहद जरूरी है। इससे फायदा यह होता है कि अगर स्टूडेंट्स एक बराबर मार्क्स पाते हैं, तो उन्हें रैंक के हिसाब से अलग-अलग किया जा सकता है। इससे किसी तरह का कंफ्यूजन नहींरहता।
दिव्या झा
रैंकिंग सिस्टम से स्टूडेंट्स को अपनी क्वालिटीज ठीक से एनालिसिस करने का मौका नहीं मिल पाता। इससे स्टूडेंट खुद में सुधार नहींकर पाता। मार्क्स पता होने से स्टूडेंट को पता चल पाता है कि वह कितने पानी में है।
अभिषेक आनंद
मार्क्स सिस्टम से स्टूडेंट्स में कॉम्पिटिशन ज्यादा रहता है। एक-एक नंबर कीमती होता है, इसलिए स्टूडेंट जी-तोड़ मेहनत करता है, लेकिन रैंकिंग सिस्टम में वह बात नहीं होती। फिक्स क्राइटेरिया में मार्क्स मिल जाए, बस बहुत होता है।
नेहा पंत
ज्यादा नंबर पाने की होड़ ने बच्चों के स्वाभाविक विकास को रोक दिया है। वह केवल एग्जाम में अच्छे नंबर पाने के लिए पढ़ने लगा है। इसी दबाव की वजह से कई? बार बच्चे सुसाइड भी कर लेते हैं। इसलिए हर जगह रैंकिंग सिस्टम लागू होना जरूरी है
निशा मंगल
कमेंट्स
पहली बार पढ़ा और फैन हो गया।
शुभम गंगवार
इंडिया का नंबर 1 नॉलेज बैंक
उज्जवल कुमार
यह हमारे जोश को प्लस करता है
प्रिया कुमारी
जोश प्लस..नाम ही काफी है
रणविजय यादव
इसके बिना बुधवार अधूरा है
शिवम जायसवाल
15 अक्टूबर के अंक का सक्सेस मंत्रा बहुत अच्छा लगा।
पुष्पेंद्र शाक्य
जोश प्लस हमें नाकामी के गम से बाहर निकालता है और जोश भर देता है।
आशीष कश्यप
एक पेज हिस्ट्री का भी दें, जिसमें उस हफ्ते की हिस्ट्री डिटेल्स हो, तो अच्छा रहेगा।
दुर्गेश मिश्र
रीडर्स फोरम
क्या देश में साइंस एजुकेशन को बढ़ावा देने के लिए और ज्यादा प्रयासों की जरूरत है?
60 शब्द में अपनी राय दें:
मेल करें josh@jagran.com
या डाक से भेजें
जोश प्लस, दैनिक जागरण,
डी-210-211, सेक्टर-63, नोएडा (यूपी)-201301