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PASSION से मिलती पहचान

आज की महिला कॉन्फिडेंट और निडर है। अब कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं, जिसमें उसे कमजोर समझा जाए। म्यूजिक, डांस, स्पोट्र्स, सिनेमा, लेखन जैसे सेक्टर्स में तो उन्होंने अपना लोहा मनवाया ही था, अब आर्मी, नेवी, एयरफोर्स से लेकर साइंस-टेक्नोलॉजी और यहां तक कि जोखिम व रोमांच वाले क्षेत्रों में

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 04 Mar 2015 03:28 PM (IST)Updated: Wed, 04 Mar 2015 03:32 PM (IST)
PASSION  से मिलती पहचान

आज की महिला कॉन्फिडेंट और निडर है। अब कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं, जिसमें उसे कमजोर समझा जाए। म्यूजिक, डांस, स्पोट्र्स, सिनेमा, लेखन जैसे सेक्टर्स में तो उन्होंने अपना लोहा मनवाया ही था, अब आर्मी, नेवी, एयरफोर्स से लेकर साइंस-टेक्नोलॉजी और यहां तक कि जोखिम व रोमांच वाले क्षेत्रों में भी वे अपना जौहर दिखा रही हैं। आज देश की शान बनीं ये महिलाएं अपने पैशन से बना रही हैं अलग पहचान और साथ ही देश की करोड़ों बेटियों को दे रही हैं पढऩे, आगे बढऩे और नई पहचान बनाने का संदेश ...

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देश के 66वें गणतंत्र दिवस समारोह में जब राजपथ पर थलसेना, वायुसेना और नौसेना की महिला टुकड़ी ने मार्चपास्ट किया, तो वहां मौजूद मेहमानों के अलावा पूरे राष्ट्र का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। हो भी क्यों न, भारत के इतिहास में यह पहला मौका था, जब सशस्त्र सेना में स्त्री शक्ति की इतनी सशक्त एवं दमदार उपस्थिति देखने को मिली। विंग कमांडर पूजा ठाकुर, कैप्टन दिव्या अजीत, लेफ्टिनेंट कमांडर संध्या चौहान और स्क्वाड्रन लीडर स्नेहा शेखावत सरीखी महिला ऑफिसर्स ने जिस आत्मविश्वास के साथ अपनी-अपनी टुकडिय़ों का नेतृत्व किया, वह बताता है कि कैसे 21वींसदी की भारतीय महिलाएं टफ माने जाने वाले क्षेत्रों में भी अपना परचम लहरा रही हैं। सिर्फ डिफेंस फोर्सेस में ही नहीं, बल्कि बतौर इंजीनियर, साइंटिस्ट, पुलिस ऑफिसर, बाइकर, ट्रेन ड्राइवर, कैब ड्राइवर, स्पोट्र्स पर्सन और एंटरप्रेन्योर भी महिलाओं ने खुद की काबिलियत को साबित किया है। वे उन रास्तों को तय कर रही हैं, जो नए एवं अनजान हैं। वे हारकर या थककर बैठती नहीं, बल्कि पूरे जोश के साथ फिर से अपनी मंजिल को ओर बढ़ चलती हैं। हालांकि कंपनी बोड्र्स?में भले ही अब भी महिलाओं की नुमाइंदगी कम है, लेकिन सीनियर मैनेजमेंट पदों पर वूमन पॉवर का रसूख और रुतबा दिखाई देने लगा है। एसबीआइ, एचसीएल, आइसीआइसीआइ आदि इसके उदाहरण कहे जा सकते हैं। दूसरी ओर, आम परिवारों से निकल रही नई पीढ़ी की महिलाएं खुद का बिजनेस शुरू करने के लिए मल्टीनेशनल कंपनीज की नौकरी तक को तिलांजलि देने लगी हंै, क्योंकि उन्हें अपने पैशन का मूल्य समझ में आ गया है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मिलते हैं, ऐसी ही कुछ चुनिंदा शख्सियतों से.....

एयरफोर्स की जांबाज

पूजा ठाकुर विंग कमांडर,

इंडियन एयरफोर्स

मेरे पिता कर्नल एस के ठाकुर आर्मी में कर्नल रहे हैं। उनको देखकर मुझे भी आर्मी ज्वाइन करने की प्रेरणा मिली। एयरफोर्स भा गया। इसकी तैयारी के लिए जो जरूरी चीजें थीं,वह मेरे पिता से ही मिलीं। डिसिप्लिन में रहना, टाइम मैनेजमेंट आदि की शुरू से अभ्यस्त रही हूं।

कमतर न समझें

साल 2000 से इस सर्विस में हूं। कभी नहीं लगा कि यह फील्ड बुरा है या इसमें नहीं आना चाहिए। आप चाहे जिस फील्ड को चुनें, उसमें पूरी तरह डूबना बेहद जरूरी है। बाद में जो प्रशिक्षण आपको दिया जाता है, उससे शेष जरूरतें पूरी हो जाती हैं। अक्सर कहा जाता है कि अमुक फील्ड लड़कियों के लिहाज से सही नहीं है, वास्तव में ये बातें कहने-सुनने की होती हैं। इसलिए महिलाएं खुद को महिला के रूप में कमतर मानना बंद करें, चीजें अपने आप आसान हो जाएंगी। ऐसा करके वे अपने स्वाभाविक गुणों को और निखार सकेंगी। वे खुद महसूस करेंगी कि उनमें वे सारी क्षमताएं हैं, जो किसी भी जोखिम भरे क्षेत्र में ढलने के लिए जरूरी हैं।

मेंटल टफनेस जरूरी

गणतंत्र दिवस परेड में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की अगवानी के अलावा पिछले साल जून में जब एयरफोर्स ने थ्री-डी वीडियो मोबाइल गेम कॉम्बैट लॉन्च कर इतिहास रचा था, तब भी मैं उसकी इंचार्ज थी। फिलहाल मैं एयरफोर्स में एडमिनिस्ट्रेटिव विंग में तैनात हूं। मेरा मानना है कि मेंटली टफ होने से फिजिकली जो भी आपकी सीमाएं हैं, वे कम या पूरी तरह खत्म हो जाती हैं। आप मुश्किल काम भी चुटकियों में कर लेते हैं।

पुलिस की पावर

शीला ईरानी

एडिशनल एसपी, बीएमपी-1

1980 के दशक में टेलीविजन पर आया उड़ान सीरियल वूमन एम्पावरमेंट पर आधारित छोटे पर्दे का शायद पहला शो होगा, जिसमें एक महिला के आइपीएस बनने के ख्वाब और उसके संघर्ष को दर्शाया गया था। इस एक शो ने बिहार के मुजफ्फरपुर की शीला ईरानी के जेहन पर कुछ ऐसा प्रभाव डाला कि उन्होंने पुलिस सेवा में जाने का निश्चय कर लिया।

वर्दी का फैसिनेशन

बचपन से ही मैं एडमिनिस्ट्रेशन में जाना चाहती थी, लेकिन पुलिस यूनिफॉर्म का फैसिनेशन कुछ ऐसा हुआ कि मैंने पुलिस सेवा में जाने का मन बना लिया। झारखंड के गिरीडीह जिले से स्कूली पढ़ाई

कं प्लीट करने के बाद मैं पटना वीमेंस कॉलेज आ गई। यहां से ग्रेजुएशन किया। फिर बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन की तैयारी शुरू की और पहले ही अटेम्प्ट में बीपीएससी परीक्षा में सफलता हासिल कर ली। पहली पोस्टिंग पटना ट्रैफिक डीएसपी की मिली। मैंने ठान लिया था कि ऑफिस में सिमट कर नहीं रहूंगी। फील्ड में निकली और शहर की ट्रैफिक-व्यवस्था को दुरुस्त करने में काफी हद तक कामयाब भी रही। इसके अलावा घरेलू हिंसा और लड़कियों की इव-टीजिंग जैसी समस्याओं से निपटने के लिए कई सफल अभियानों का संचालन किया।

बदल रही मानसिकता

मैं 2000 बैच की अकेली महिला ऑफिसर थी। वैसे तो कभी किसी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन महिला होने के नाते अक्सर आपको अपनी क्षमता साबित करनी पड़ती है। इससे कतई हताश नहीं होना चाहिए। आज उस समाज की मानसिकता भी बदली है, जो पुलिस सेवा जैसे पुरुष प्रधान पेशे में लड़कियों के आने को नामुमकिन समझते थे। आज बड़ी संख्या में महिलाएं कॉन्सटेबल, सब-इंस्पेक्टर जैसी भूमिकाएं निभा रही हैं।

के टु के बाइकराइडर

रोशनी शर्मा

सॉफ्टवेयर इंजीनियर, बेंगलुरु

26 साल की सॉफ्टवेयर इंजीनियर रोशनी ने कंप्यूटर का माउस छोड़कर बाइक की एक्सेलरेटर पकड़ी और चल दीं एक रिकॉर्ड बनाने, पहली फीमेल अलोन लांग डिस्टेंस बाइकराइडर का। 28 जून 2014 की सुबह 8 बजे कन्याकुमारी से निकलीं रोशनी बेंगलुरु, हैदराबाद, नागपुर, झांसी, आगरा, दिल्ली, पानीपत, मनाली होते हुए 4100 किलोमीटर की यात्रा अपनी अवेंजर बाइक से करके 7 जुलाई की शाम लेह पहुंची थीं।

अ जर्नी बियांड बिलीफ

मुझे बचपन से ही बाइक पर घूमने का बहुत शौक था। कभी चेन्नई निकल जाती, तो कभी मुंबई। फिर मैंने एक दिन सोचा, क्यों न अब लांग जर्नी पर चला जाए। उस समय तक मैंने ज्यादा से ज्यादा 850 किलोमीटर की जर्नी की थी। मैंने काफी रिसर्च किया। स्पांसर ढूंढ़े, लेकिन कोई मिला नहीं। खुद की सेविग्स के पैसे जोड़े। बाइक की सर्विसिंग कराई और निकल पड़ी एक लंबी यात्रा पर।

लाइफटाइम एक्सपीरियंस

मैं सुबह 6 बजे निकलती थी और शाम 8 बजे तक ड्राइव करती रहती थी। उसके बाद ही आराम करती थी। शहर-दर-शहर?घूमना अपने-आप में बेहद रिफ्रेशिंग था। हालांकि इसमें करीब 1 लाख 20 हजार रुपये खर्च हो गए, लेकिन यह लाइफटाइम एक्सपीरियंस था।

सुरक्षा का पूरा इंतजाम

मैं जानती थी, इतना लंबा सफर अकेली लड़की के लिए, वह भी बाइक पर, सेफ नहीं है। इसलिए मैंने इसका पूरा इंतजाम कर रखा था। किस जगह पर कहां और कब ठहरना है, सब फिक्स्ड कर रखा था। हमेशा अपने साथ पेपर स्प्रे रखती थी। लोकैलिटी के बारे में भी काफी रिसर्च किया था। फिर भी अगर कहींकोई?दिक्कत हुई, तो पुलिस के पास चली गई। इतना सब काफी था सुरक्षा के लिए।

आर यू पाइलेट्स फिट?

नम्रता पुरोहित

स्टॉट पाइलेट्स इंस्ट्रक्टर

15 साल की छोटी सी उम्र में हॉर्स राइडिंग के दौरान वह गिर पड़ीं। घुटने बुरी तरह चोटिल हो गए। डॉक्टरों ने कहा, स्पोट्र्स छोड़ दो। वह नहींमानीं। सारी कोशिशें बेकार हो गईं। जो लड़की स्क्वैश और फुटबॉल की नेशनल लेवल प्लेयर रही हो, सर्टिफाइड स्कूबा डाइवर रही हो, उससे कहा जाए कि तुम कभी खेल नहीं पाओगी, यह उसके लिए बहुत बड़ा सदमा था। लेकिन उनके बुलंद हौसलों और पाइलेट्स के साइंटिफिक एक्सरसाइज ने उनके घुटनों में जान डाल दी। नम्रता न केवल ठीक हो गईं, बल्कि दुनिया की सबसे यंग सर्टिफाइड स्टॉट पाइलेट्स इंस्ट्रक्टर बन गईं। आज उनके क्लाइंट्स में अमीषा पटेल, जैकलीन फर्र्नांडिस जैसी बॉलीवुड और क्रिकेट जगत की कई सारी सेलिब्रिटीज हैं।

लाइफ मौका देती है

जिस उम्र में लोग कॉलेज लाइफ एंज्वॉय कर रहे होते हैं, उस उम्र में मैं करीब 6-7 घंटे पाइलेट्स की ट्रेनिंग देती हूं। आज यही मेरा पैशन बन चुका है। एक्सीडेंट के बाद इसी की वजह से मुझे नई जिंदगी मिल सकी। इसलिए मेरी कोशिश है कि हमारे देश के लोग भी एक्सरसाइज की इस नई विधा का फायदा उठाएं।

कल नहीं, आज ही करें

कल किसने देखा है, इसलिए कुछ भी करना हो, इंतजार न करें, आज ही शुरू कर दें। बस आपको अपना टाइम मैनेज करना है। सारे काम टाइम पर हो जाएंगे।

फिटनेस का मतलब

फिटनेस का मतलब आपका अच्छा लुक नहीं है। इसका मतलब है स्ट्रेन्थ, फ्लेक्सिबिलिटी, स्टेमिना, एंड्यूरेंस, हाई एनर्जी लेवल और भी बहुत कुछ।

KISSS

मेरा फिटनेस मंत्र है किस्स। इसका मतलब है

Keep in Safe, Simple and Smart

एंटरप्रेन्योर्स की गाइड

संगीता देवनी

सीइओ, स्टार्ट-अप फ्रीक डॉट कॉम

बेंगलुरु की संगीता देवनी एक ऐसी एंटरप्रेन्योर हैं, जिन्होंने विप्रो की नौकरी छोड़कर उन लोगों की मदद करने की ठानी जिन्हें एंटरप्रेन्योरशिप में आने के लिए कोई राह दिखाने वाला नहीं था। इस तरह 2012 में संगीता ने महज दो लाख रुपये के शुरुआती इनवेस्टमेंट से स्टार्ट-अप फ्रीक डॉट कॉम लॉन्च किया।

एंटरप्रेन्योर्स को बढ़ावा

मैसूर से इंस्ट्रूमेंटेशन टेक्नोलॉजी में बीटेक करने के बाद मैंने आइआइएम बेंगलुरु से एंटरप्रेन्योरशिप का एक साल का कोर्स किया था। फिर विप्रो में जॉब। 2009 में वह भी छोड़ दी। कुछ समय ऑनलाइन मार्केटिंग करने के बाद अपना स्टार्ट-अप शुरू किया। इस पर हम एंटरप्रेन्योरशिप से संबंधित आर्टिकल्स पोस्ट करते हैं। लोगों को पोर्टल के लीगल रजिस्ट्रेशन से लेकर बिजनेस स्ट्रेटेजी और फंड रेजिंग के बारे में बताते हैं। एंटरप्रेन्योर्स को ऑनलाइन कनेक्ट होने का मौका देते हैं। इस तरह के इंटरैक्शन से वे एक-दूसरे से अपने चैलेंजेज और प्रॉब्लम्स के बारे में कंसल्ट कर, सॉल्यूशन निकाल पाते हैं। बदले में हम कुछ कमीशन लेते हैं।

बनें टेक्नो-फ्रेंडली

मैंने एक महिला एंटरप्रेन्योर होने के नाते कभी किसी बड़े चैलेंज का सामना नहीं किया, बल्कि लोगों ने मुझ पर पूरा विश्वास जताया। हां, इंजीनियरिंग बैकग्राउंड होने से अधिक परेशानी नहीं हुई। मैंने अपनी वेबसाइट खुद डेवलप और डिजाइन की। सब कुछ ऑनलाइन सीखा, वह भी महज दो महीने में। इसीलिए बाकी महिलाओं को यही सलाह दूंगी कि वे टेक्नो-फ्रेंडली बनें। अब तो नैसकॉम ने भी गल्र्स इन टेक्नोलॉजी नाम से एक प्रोग्राम लॉन्च कर दिया है। गूगल के सहयोग से शुरू इस इनिशिएटिव के तहत महिला एंटरप्रेन्योर्स को बढ़ावा दिया जाएगा।

टेबल टेनिस की स्टार

सुवर्णा राज

पैरा टेबल टेनिस प्लेयर

डेढ़ साल की उम्र में पोलियो ने उन्हें अपना शिकार बनाया। लेकिन वह जिंदगी या हालात से हारीं नहीं। हिम्मत एवं जज्बे के साथ पढ़ाई और खेलों में आगे बढ़ती रहीं। आज उनकी झोली में पैरा टेबल टेनिस टूर्नामेंट्स के कई गोल्ड मेडल्स के अलावा एम्पावरमेंट ऑफ पर्सन्स विद डिसएबिलिटीज का नेशनल अवॉर्ड भी आ चुका है। इनका नाम है सुवर्णा राज।

बचपन का शौक

मैं चौथी या पांचवीं कक्षा में थी, तब से एथलेटिक्स में रुचि रही है। स्पोट्र्स एवं डांसिंग के अलावा पढ़ाई का शौक था, इसलिए नागपुर से बीकॉम और एमकॉम किया। बाद में दिल्ली से लेबर एवं सोशल वेलफेयर में मास्टर्स। मुझे किसी मोड़ पर इस सच का आभास नहीं हुआ कि कुछ कमी है। मैंने हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण रखा। शादी के बाद मेरी लाइफ ने नया मोड़ लिया। पावर लिफ्टिंग करना मुश्किल होने लगा, तो मैं टेबल टेनिस पर ध्यान देने लगी। इसमें पति प्रदीप राज ने पूरा सहयोग दिया। 2013 में बैंकॉक में आयोजित थाइलैंड ओपन में मैंने टीम स्पर्धा में एक गोल्ड और एकल प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता।

बनाने होंगे रोल मॉडल्स

देश का प्रतिनिधित्व करना मुझे संतोष देता है। उन लोगों को जवाब भी मिल पाता है, जो डिसएबल्ड लोगों को कम कर आंकते हैं। मेरा एक ही सपना है, विदेशों की तरह भारत में भी डिसएबल्ड आबादी को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना। उनके हक के लिए आवाज उठाना। यह तभी संभव होगा, जब समाज में कुछ और नए रोल मॉडल्स तैयार होंगे।

बॉक्सिंग का दम

सरिता देवी बॉक्सर

मणिपुर के मयांग इंफाल की एक किसान फैमिली में जन्मी आठ भाई-बहनों में से छठे नंबर की सरिता देवी ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वह इंटरनेशनल बॉक्सर बनेंगी, लेकिन परिवार के साथ लकडिय़ां काटते और खेती करते-करते एक दिन उनके मुक्के का डंका पूरी दुनिया में बजने लगा।

बॉक्सिंग ही मेरी लाइफ

लकड़ी काटने और खेती के काम करने से मैं बचपन से ही काफी फिट और टफ होती गई। मोहम्मद अली की बॉक्सिंग मुझे बहुत अट्रैक्ट करती थी। तभी से मुझे बॉक्सिंग का क्रेज हो गया। धीरे-धीरे मैंने तगड़ी प्रैक्टिस करनी शुरू की। पढ़ाई के दौरान स्कूल-कॉलेज की टीम में खेला। 2000 में पहली बार बड़ा ब्रेक मिला। बैंकॉक में एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप के दौरान सिल्वर मेडल मेरे लिए मील का पत्थर साबित हुआ। फिर तो मैं एक के बाद किले फतह करती गई।

कदमों में होगी दुनिया

जब एशियन गेम्स में पदक लौटाया तो पूरी दुनिया सब देख रही थी कि मैं गलत थी या सही। कुछ ने गलत कहा, पर ज्यादातर मेरे साथ थे। उस वक्त मैं भावुक हो गई थी, नियम के विरुद्घ काम किया, इसलिए निश्चित तौर पर यह गलत था, लेकिन भावनाएं बुरी तभी तक ही होती हैं, जब उसका मकसद गलत होता है। लड़कियों का यह स्वाभाविक गुण है, जो कभी-कभी भारी पड़ जाता है। पर इससे नहीं डरना चाहिए। कोई भी क्षेत्र हो, अपनी काबिलियत और ताकत पर भरोसा रखें, तो पूरी दुनिया होगी आपके कदमों में।

डेयर टु मिशन मार्स

श्रद्धा प्रसाद

स्टूडेंट, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, कोयम्बटूर कॉलेज

19 साल की उम्र में क्या कोई लड़की मंगल ग्रह पर जाने के सपने देख सकती है? शायद नहीं, लेकिन मुंबई में पली-बढ़ी केरल के पलक्कड की रहने वाली श्रद्धा प्रसाद ने देखा है। उनके इस सपने को पंख लगाया नीदरलैंड बेस्ड मार्स वन यूनिवर्सिटी ने।

नॉर्मल टु एबनॉर्मल

मुझे बचपन से ही स्पेस साइंस में बहुत इंट्रेस्ट था। एक दिन अचानक अखबार में मार्स वन यूनिवर्सिटी कॉम्पिटिशन के बारे में पढ़ा। लिखा था, मंगल ग्रह पर भेजा जाएगा। वहां इंसानी बस्तियां बसाने का प्रोजेक्ट है। मुझे बहुत इंट्रेस्टिंग लगा। मैंने अप्लाई कर दिया। शुरुआत में मम्मी-पापा ने अप्लाई करने से मना किया और कहा कि कुछ गड़बड़ है, लेकिन फिर भी मैंने पार्टिसिपेट किया।

रिस्क वाला इंटरव्यू

इंटरव्यू के दौरान कई सारे राउंड्स हुए। वे यही देखने की कोशिश कर रहे थे कि हम रिस्क का सामना करने को तैयार हैं या नहीं। टीम स्पिरिट कैसी है। यात्रा और वहां रहने के दौरान खतरे उठाने के लिए हम कितने तैयार हैं।

आइ एम रेडी

जब पता चला कि बीस हजार से ज्यादा अप्लीकेंट्स में से 100 लोग चुने गए हैं और उनमें मैं भी हूं, तो मेरी फैमिली की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हालांकि जब बाद में पता चला कि जीतने वाला मंगल ग्रह पर जाएगा, फिर कभी धरती पर वापस नहींआएगा, तो फैमिली के लोग थोड़ा उदास हो गए। सोचकर ही बहुत डर लगता है। इस डर से फ्री होने के लिए मैं तैयार हूं। ट्रेनिंग लूंगी और खुद को तैयार कर लूंगी। हमें ट्रेंड किया जा रहा है। मार्स के एटमॉस्फियर की तरह का ही आर्टिफिशिएल एटमॉस्फियर तैयार करके स्पेशल यूनिट्स में रखा जा रहा है।

मिशन मार्स 2018

2011 में स्थापित इस मिशन ने 2013 में क्रू सलेक्शन किया। इस साल ट्रेनिंग शुरू कर रहे हैं और सलेक्टेड लोगों को 2018 में कॉसमैट मिशन के जरिए मंगल ग्रह पर भेजा जाएगा। इसके बाद हर दो साल में लोग भेजे जाएंगे।

डिस्ट्रिब्यूशन में पहचान

प्रियंका दुआ

सीइओ, जैक कंसल्ट, फरीदाबाद

अच्छा खाओ, अच्छा सोचो, अच्छा सर्व करो और अच्छा जीवन जियो। इसी मोटो के साथ फरीदाबाद की प्रियंका ने ऑर्गेनिक रेडी टू इट फूड सेगमेंट में कदम रखा और दुनिया को बताया कि डिस्ट्रिब्यूशन जैसे सेक्टर में भी महिलाएं पहचान बना सकती हैं।

नौकरी छोड़ बिजनेस

दिल्ली के गार्गी कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने काफी साल एयरलाइन इंडस्ट्री और ट्रैवल डोमेन में काम किया। लेकिन एक दिन तय किया कि मुझे अपना काम करना है। मैंने गुडग़ांव स्थित द एंटरप्रेन्योर स्कूल से एंटरप्रेन्योरशिप का कोर्स किया। जोधपुर में फैमिली का ऑर्गेनिक फूड का प्लांट था। मैंने पांच से सात लाख रुपये के इनवेस्टमेंट से जैक कंसल्ट नाम से एक डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी शुरू की। इस क्षेत्र में कम ही महिलाएं आती हैं। लिहाजा, शुरू में रिटेलर्स से संपर्क करने, उन्हें और उनके कस्टमर्स को ऑर्गेनिक फूड के बारे में अवेयर करना एक चुनौती रही। पहले तो वे कनविंस ही नहीं होते थे। इसमें समय लगा। लेकिन मैं सफल रही। फिर मैंने कॉरपोरेट हाउसेज और हॉस्पिटल्स को अप्रोच किया। उन्हें हेल्दी फूड का आइडिया पसंद आया।

रिटेलिंग में फ्यूचर

मैंने जॉब को बहुत समय दिया था, इसलिए जब कभी बिजनेस को बढ़ाने में 15-16 घंटे देने पड़े तो मुश्किल नहीं हुई। आने वाले समय में मैं मल्टीपल रिटेल आउटलेट के जरिये बड़े टारगेट तक पहुंचने की कोशिश करूंगी, क्योंकि आज की स्ट्रेस भरी जिंदगी में हेल्दी रहना बेहद जरूरी है, जो ऑर्गेनिक फूड से ही संभव है।

कॉन्सेप्ट ऐंड इनपुट : अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव, सीमा झा


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