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जमीनी अनुभवों से मिली ताकत

किसी कंपनी को रन कराना और उसे शिखर तक पहुंचाना आसान नहीं है। अगर रिस्क लेने, लीडरशिप क्वालिटी और प्रॉपर स्ट्रेटेजी के तहत काम करने की क्षमता है, तो आप जरूर सक्सेसफुल होंगे। डाबर ग्रुप के सीईओ सुनील दुग्गल से जानते हैं उनकी सफलता के सफर के बारे में.. एक्सपीरियंस बेकार नहीं जाता जब आप किसी कंपनी के शिखर प

By Edited By: Published: Mon, 14 Apr 2014 03:11 PM (IST)Updated: Mon, 14 Apr 2014 03:11 PM (IST)
जमीनी अनुभवों से मिली ताकत

किसी कंपनी को रन कराना और उसे शिखर तक पहुंचाना आसान नहीं है। अगर रिस्क लेने, लीडरशिप क्वालिटी और प्रॉपर स्ट्रेटेजी के तहत काम करने की क्षमता है, तो आप जरूर सक्सेसफुल होंगे। डाबर ग्रुप के सीईओ सुनील दुग्गल से जानते हैं उनकी सफलता के सफर के बारे में..

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एक्सपीरियंस बेकार नहीं जाता

जब आप किसी कंपनी के शिखर पर पहुंचने का सपना देखते हैं, तो हर छोटी-बड़ी चीज की जानकारी बहुत जरूरी है। मैंने अपने करियर की शुरुआत मार्केटिंग से की थी, लेकिन एक समय आया, जब मुझे फाइनेंस को समझने की जरूरत महसूस हुई, इसलिए मैंने फाइनेंस सीखा। इतना ही नहीं, यहां तक पहुंचने के लिए मैंने अलग-अलग फील्ड में काम करके जरूरी एक्सपीरियंस हासिल किया। शुरुआती दौर में जो एक्सपीरियंस मिला, वह आज तक मेरे काम आ रहा है।

रिस्क लेने की क्षमता

कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए रिस्क लेने की क्षमता भी होनी चाहिए, लेकिन रिस्क में सबसे जरूरी चीज यह है कि आप जो रिस्क ले रहे हैं, उसमें लॉस के चांसेज कम से कम हों। आपके रिस्क से कंपनी को बड़ा नुकसान न हो जाए, इस बात का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है।

लाइफ में स्ट्रगल

मेरी शुरुआती एजुकेशन चंडीगढ़ से हुई थी। बहुत अच्छा माहौल मिला, लेकिन जब जॉब की शुरुआत हुई, तो मुझे असम, बिहार और बंगाल के रूरल एरिया में भी काम करना पड़ा। वहां सुविधाओं का बहुत अभाव था। कई बार तो रेलवे के रिटायरिंग रूम में रात गुजारनी पड़ी। लेकिन इस दौरान काफी कुछ सीखने को भी मिला। मेरा मानना है कि प्रोफेशनल को सीखने का जो मौका फील्ड में मिलता है, वह ऑफिस में बैठने से नहीं मिलता। मैंने शुरुआती दिनों में फील्ड में जो काम किया, वह आज तक काम आ रहा है। लेकिन मेरे साथ जो लोग सीधे किसी कॉर्पोरेट हाउस से जुड़ गए थे, उनकी ग्रोथ उतनी तेजी से नहीं हुई। जमीनी एक्सपीरियंस से आपको फैसला लेने में किसी तरह की दिक्कत नहीं आती। आप अपने साथ काम करने वाले जूनियर्स की भी प्रॉब्लम्स समझ सकते हैं।

राइट डिसीजन

हमारी कंपनी ने जब इंटरनेशनल मार्केट में प्रोडक्ट लॉन्च करने के बारे में सोचा, तो यह कंपनी के लिए बड़ा चैलेंज था, लेकिन मैंने इनिशिएटिव लिया और इंटरनेशनल मार्केट में प्रोडक्ट की सक्सेसफुल लॉन्चिंग कराई। एक बार प्रपोजल आया कि क्या कंपनी को दूसरे प्रोडक्ट शुरू करने चाहिए? इसमें अवसर था और चुनौती भी, क्योंकि डाबर आयुर्वेद और हर्बल प्रोडक्ट में ही आगे था। लेकिन फाइनली डिसीजन लिया गया कि यह एक्सपेरिमेंट करना चाहिए। हमने फ‌र्स्ट टाइम फ्रूट जूस से शुरुआत की और सफल भी रहे। इस तरह की चुनौतियां लाइफ में अक्सर आती हैं, जिनका डिसीजन हमें बहुत सोच-समझकर लेना पड़ता है। एक बात याद रखनी चाहिए कि जब कंपनी ग्रोथ करेगी, तो वहां काम करने वाले एम्प्लॉयीज की भी ग्रोथ होगी।

लीडरशिप क्वालिटी

लीडरशिप क्वालिटी कहीं से सीखी नहीं जा सकती, बल्कि यह समय के साथ और खुद-ब-खुद डेवलप हो जाती है। आमतौर पर लोग सक्सेसफुल होने पर सारा क्रेडिट खुद ही ले लेते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। क्रेडिट अपने साथ काम करने वालों को भी देना चाहिए। यही नहीं, हर जगह खुद इनिशिएटिव न लेकर दूसरों को भी आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। सेल्फ डेवलपमेंट के अलावा, साथी एम्प्लॉयी का भी डेवलपमेंट मायने रखता है।

काम से होती है पहचान

आप अच्छी तरह काम करते हैं, तो कंपनी आपके काम को जरूर रिकग्नाइज करती है। हमें कई बार ऐसा लगता है कि हमारे काम को नजरअंदाज किया जा रहा है। कंपनी या सीनियर्स इंपॉर्टेस नहीं दे रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। कंपनी अपने अच्छे और काबिल एम्प्लॉयीज को हमेशा अपने साथ रखना चाहती है। इसलिए हमेशा कंपनी के इंट्रेस्ट के बारे में सोचना चाहिए।

इंटरैक्शन : मो. रजा


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