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एजुकेट योरसेल्फ प्रैक्टिकली

एजुकेशन का मतलब सिर्फ मोटी-मोटी किताबें और लंबी-लंबी थ्योरीज पढऩा नहीं, बल्कि प्रैक्टिकल नॉलेज है। पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के गुर बता रही हैं लंदन के बीपीपी यूनिवर्सिटी की डायरेक्टर (प्रोग्राम्स) डॉ. सैली एन्न ब्रुनेट...

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 15 Dec 2014 01:02 PM (IST)Updated: Mon, 15 Dec 2014 01:07 PM (IST)
एजुकेट योरसेल्फ प्रैक्टिकली

एजुकेशन का मतलब सिर्फ मोटी-मोटी किताबें और लंबी-लंबी थ्योरीज पढऩा नहीं, बल्कि प्रैक्टिकल नॉलेज है। पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के गुर बता रही हैं लंदन के बीपीपी यूनिवर्सिटी की डायरेक्टर (प्रोग्राम्स) डॉ. सैली एन्न ब्रुनेट...

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बचपन में मैं भी हर बच्चे की तरह करियर को लेकर कंफ्यूज्ड थी, लेकिन जैसे-जैसे बड़ी होती गई, कंफ्यूजंस दूर होती गईं। हमारा एजुकेशन सिस्टम ऐसा है, जिसमें टीचर्स, स्टूडेंट की प्रॉब्लम को अच्छी तरह सुनते हैं। कोई कंफ्यूजन होती है, तो उसे दूर करते हैं। मैं भी कंफ्यूज्ड थी कि रिसर्च करूं या जॉब ज्वाइन कर लूं। मैंने बहुत सोचा। अपने आस-पास के लोगों को देखा। लोग रिसर्च करके काफी बड़े-बड़े ओहदों पर चले जाते थे। ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और उसके बाद पीएचडी और फिर पोस्ट डॉक्टोरल करने के बाद उन्हें काफी सम्मान भी मिलता था और सम्मानजनक काम भी। फिर मुझे भी यही करियर ऑप्शन अच्छा लगा। हालांकि शुरुआत में मैंने फूड ऐंड ड्रिंक्स के फील्ड में काम किया, लेकिन उसके बाद मैं एकेडमिक फील्ड में आ गई।

लर्न बियांड द एंड

स्टूडेंट लाइफ वह पीरियड है, जिस पर पूरी लाइफ डिपेंड करती है। इसमें आप बन भी सकते हैं और बिगड़ भी सकते हैं। इसलिए खुद को अच्छी तरह परखें। अपने आस-पास की दुनिया को अच्छी तरह समझें, बारीकी से उसकी एनालिसिस करें। इस फेज में आपको सिर्फ सीखना है। जितना ज्यादा सीखेंगे, अपनी लाइफ में आप उतना ही बेहतर कर पाएंगे। यह केवल आपके सब्जेक्ट तक ही सीमित नहीं है। आपको हर पल सीखना होगा। चाहे वह आपकी लैब हो, क्लास हो या फिर जब आप सड़क पर घूम रहे हों।

प्रैक्टिकल पर ज्यादा फोकस

आमतौर पर इंडियन यूनिवर्सिटीज में थ्योरी पर ध्यान दिया जाता है। क्लासेज भी ट्रेडिशनल तरीके से चलती हैं। टीचर भी ट्रेडिशनल तरीके से पढ़ाते हैं। मैं पिछले दिनों आइआइएम कोलकाता गई थी। वहां पर मैंने यही देखा कि एक क्लास में करीब 300 स्टूडेंट्स हैं। उसमें भी ज्यादातर ध्यान थ्योरी पर था। थ्योरी समझना तब तक आसान नहीं होता, जब तक आप उसे प्रैक्टिकल न समझाएं।

पर्सनैलिटी पर हो ज्यादा ध्यान

ब्रिटेन में हम सामान्यतया 30 स्टूडेंट्स पर एक टीचर रखते हैं। इस तरह हर स्टूडेंट पर प्रॉपर तरीके से ध्यान दिया जाता है। एजुकेशन का मतलब केवल किताबी ज्ञान नहीं है। एजुकेशन का मतलब पूरी पर्सनैलिटी डेवलपमेंट है। सामान्य जानकारी से लेकर पर्सनैलिटी से जुड़ी क्वालिटीज, जैसे-डिसीजन मेकिंग, बॉडी लैंग्वेज, सेंस ऑफ रेस्पॉन्सिबिलिटी आदि ऐसी क्वालिटीज हैं, जो स्टूडेंट में डेवलप हों, तभी वह एक एजुकेटेड सिटीजन बन सकता है।

फील द रियल लाइफ

जरूरी नहीं कि हर वक्त पढ़ा जाए या हर वक्त गंभीरता का चोला ओढ़कर रहा जाए या हर वक्त आपके दिमाग में फिजिक्स या केमिस्ट्री के फॉर्मूले ही घूमते रहें। किताबी दुनिया से बाहर आकर रियल लाइफ देखें। फिजिक्स या केमिस्ट्री में जो फॉर्मूले आप पढ़ते हैं, दरअसल वे डेली लाइफ में एप्लीकेबल हैं, उनकी एनालिसिस करें। पढ़ाई के साथ-साथ दुनिया को जानना-समझना भी बेहद जरूरी है। तभी वाकई में आपका मानसिक विकास हो पाएगा। अगर केवल किताबी ज्ञान ही एजुकेशन होता, तो घर पर भी पढ़ाई हो सकती थी। स्कूल या कॉलेज इसीलिए होते हैं कि आप दुनिया देखें, समझें और खुद को डेवलप करें और आगे बढ़ते जाएं।

डॉ. सैली एन्न ब्रुनेट

-यूनिवर्सिटी कॉलेज कार्डिफ से ग्रेजुएशन, यूनिवर्सिटी कॉलेज वेल्स, कार्डिफ से फूड साइंस में पीएचडी

-यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ से हायर एजुकेशन मैनेजमेंट में डिप्लोमा, मैनचेस्टर मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी से टीचिंग क्वालिफिकेशन

-पोस्ट सेकंडरी एजुकेशन फील्ड में 18 साल का एक्सपीरियंस

-अप्रैल 1995 से अगस्त 1995 तक शेफील्ड हल्लाम यूनिवर्सिटी (यूके) में सीनियर लेक्चरर

-1995 से 2000 तक मैनचेस्टर मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी, (यूके) में प्रिंसिपल लेक्चरर

-2000 से 2004 तक कैंटरबरी क्राइस्ट चर्च यूनिवर्सिटी (कनाडा) में डायरेक्टर, सेंटर फॉर एंटरप्राइजेज ऐंड बिजनेस डेवलपमेंट

-2004 से 2006 तक कैंटरबरी क्राइस्ट चर्च यूनिवर्सिटी (कनाडा) में डायरेक्टर, ब्रॉडस्टेयर्स कैंपस

-2006 से 2008 तक लेकहेड यूनिवर्सिटी, कनाडा में डायरेक्टर, ओरिलिया कैंपस

-2011 से 2013 तक बीपीपी यूनिवर्सिटी, लंदन में डायरेक्टर, स्कॉलरशिप ऐंड रिसर्च

-2012 से 2013 तक बीपीपी यूनिवर्सिटी, लंदन में डिप्टी डीन, लर्निंग ऐंड टीचिंग

इंटरैक्शन : मिथिलेश श्रीवास्तव


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