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हौसला है, तो कुछ भी नहीं मुश्किल...

राजपथ पर प्रेसिडेंट और मुख्य अतिथि बराक ओबामा के सामने सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए देशवासियों ने जब पहली बार एक महिला विंग कमांडर पूजा ठाकुर को गार्ड ऑफ ऑनर देते हुए देखा, तो तमाम लोगों को सुखद आश्चर्य हुआ। इस बात का गर्व भी हुआ कि हमारी बेटियों

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 04 Mar 2015 01:09 PM (IST)Updated: Wed, 04 Mar 2015 01:11 PM (IST)
हौसला है, तो कुछ भी नहीं मुश्किल...

राजपथ पर प्रेसिडेंट और मुख्य अतिथि बराक ओबामा के सामने सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए देशवासियों ने जब पहली बार एक महिला विंग कमांडर पूजा ठाकुर को गार्ड ऑफ ऑनर देते हुए देखा, तो तमाम लोगों को सुखद आश्चर्य हुआ। इस बात का गर्व भी हुआ कि हमारी बेटियों ने भी अब देश की आन-बान और शान बढ़ाने की ठान ली है। तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद हमारी बेटियां अब न सिर्फ हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रही हैं, बल्कि जोखिम और रोमांच वाले क्षेत्रों तक में अपने पैशन का परिचय दे रही हैं। चाहे वह सिविलियन कामकाज हो या फिर कॉमर्शियल सहित फाइटर प्लेन उड़ाने या अग्नि जैसा मिसाइल डेवलप करने में योगदान की बात हो। आज की निर्भय नारी अगर अपनी पहचान पाने के लिए कोई भी जोखिम लेने को तैयार और तत्पर है, तो सिर्फ इसलिए कि उसमें इसका भरपूर पैशन है, जिद है। घर की देहरी और रसोई तक सीमित रहना उसे मंजूर नहीं। बेटे-बेटियों में फर्क न करते हुए उन्हें समान महत्व और समान अवसर उपलब्ध कराने की जागरूकता हमारे घर-परिवार और समाज में तेजी से आ रही है। घर-परिवार के भावनात्मक संबल और संसाधनों के समर्थन से हरियाणा जैसे राज्य की लड़कियां भी कॉन्फिडेंट होकर कुश्ती जैसे खेल में ग्लोबल पहचान बना रही हैं। किसी भी तरह की नौकरी हो या एंटरप्रेन्योरशिप और स्टार्ट-अप का मामला, एवरेस्ट फतह की बात हो या फिर आम्र्ड फोर्स और पैरा-मिलिट्री फोर्स में जौहर दिखाने का मामला, अपनी सोच और जुझारूपन से महिलाएं नए मुकाम बना रही हैं।

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आत्मविश्वास और आत्मबल से भरी कामयाब लड़कियां और महिलाएं पूरे देश में बेटियों को पढ़ाने और बढ़ाने का संदेश दे रही हैं। कुछ लोगों को बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने की बात आज भी भले ही नागवार लगती हो, लेकिन यही बेटियां जब अपनी उपलब्धियों से परिवार, समाज और देश का नाम रोशन करती हैं, तो जाहिर है कि सबसे ज्यादा खुशी भी उन्हें ही होती है। तब उन्हें अहसास होता है कि लड़कियों के आगे बढऩे की राह में रुकावट डालकर वे कितनी बड़ी गलती कर रहे थे। सुखद बात यह है कि बेटे-बेटियों में फर्क करने की यह संकीर्ण सोच अब तेजी से बदल रही है और अब लड़कियों को भी भरपूर प्यार-दुलार के साथ समान अवसर उपलब्ध कराये जाने लगे हैं। आज स्वात घाटी की नोबेल शांति विजेता यूसुफ मलाला को दुनिया इसीलिए जानती है, क्योंकि उसने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए तालिबानी आतंकवादियों तक की परवाह नहीं की। इसका नतीजा सामने है। आज उसे पूरी दुनिया सराह रही है। सोच में बदलाव लाने के लिए शिक्षा सबसे जरूरी है, इसलिए आज के माता-पिता अपने बच्चों, खासकर बेटियों को भी पढ़ाने और बढ़ाने पर खास ध्यान ध्यान दे रहे हैं। यह सुखद और स्वागत योग्य है। उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारी बेटियां आगे हमारा नाम और रोशन करेंगी...

संपादक

दिलीप अवस्थी


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