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BILINGUAL का डबल फायदा

हर इंसान को अपनी मातृभाषा से प्यार होता है। बचपन की तुतलाती जुबान से लेकर बड़े होने तक रिश्तों से लेकर अक्षर ज्ञान और दुनिया भर की बातें उसने इसी भाषा के जरिए समझी होती हैं, मदर लैंग्वेज हिंदी हो या भोजपुरी या फिर मैथिली, मगही, अवधी, ब्रज या कोई और, हम ज्यादा बेहतर तरीके से उसी में अपनी बात कह-सुन पाते हैं। लेकिन बदलते वक्त क

By Edited By: Published: Tue, 15 Apr 2014 10:53 AM (IST)Updated: Tue, 15 Apr 2014 10:53 AM (IST)
BILINGUAL का डबल फायदा

हर इंसान को अपनी मातृभाषा से प्यार होता है। बचपन की तुतलाती जुबान से लेकर बड़े होने तक रिश्तों से लेकर अक्षर ज्ञान और दुनिया भर की बातें उसने इसी भाषा के जरिए समझी होती हैं, मदर लैंग्वेज हिंदी हो या भोजपुरी या फिर मैथिली, मगही, अवधी, ब्रज या कोई और, हम ज्यादा बेहतर तरीके से उसी में अपनी बात कह-सुन पाते हैं। लेकिन बदलते वक्त के साथ जिस तरह दुनिया ग्लोबल हुई है, उसमें हमें भी खुद में बदलाव लाने और वक्त के साथ चलने की सख्त जरूरत है। बेशक मातृभाषा से हमारा लगाव कभी कम न हो, पर खुद की पहचान और बेहतर करियर बनाने के लिए बाइलिंग्वल होने की भी जरूरत है। यहां बाइलिंग्वल का मतलब ग्लोबल लैंग्वेज इंग्लिश से है। आप कोई भी कोर्स करें, उसके साथ इंग्लिश पर भी कमांड हासिल करने का प्रयास करें। इंग्लिश सीखने से झिझकें नहीं। आपमें लगन और खुद पर भरोसा है, तो कोई भी काम असंभव नहीं। और यह तो महज ऐसी लैंग्वेज सीखने की बात है, जो आपका कॉन्फिडेंस भी बढ़ाएगी और करियर की रेस में आगे भी रखेगी। सर्वे और रिसर्च से यह साबित हो गया है कि इंग्लिश लैंग्वेज पर कमांड रखने वालों को न सिर्फ सामान्य से डेढ़-दोगुना ज्यादा सैलरी मिलती है, बल्कि उन्हें प्रमोशन भी कहीं ज्यादा जल्दी-जल्दी मिलता है। और तो और, कॉन्फिडेंट होने के कारण बाइलिंग्वल लोगों की कम्युनिकेशन स्किल भी काफी बेहतर होती है, जिससे वे अपनी बात सीनियर्स, कलीग्स या क्लाइंट को अच्छी तरह समझा पाते हैं, तो इस इंग्लिश लैंग्वेज डे (23 अप्रैल) पर आप भी लें रिजॉल्यूशन कि बाइलिंग्वल का डबल फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे..

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इंग्लिश : सक्सेस की सीढ़ी

मोहित और सुंदरम ने एक ही इंस्टीट्यूट से एमबीए किया। दोनों साथ में ही एक कंपनी में इंटरव्यू के लिए भी गए, लेकिन जब जॉब का ऑफर सिर्फ सुंदरम को आया, तो मोहित को वजह समझ में आ गई। वजह थी इंग्लिश। मोहित की इंग्लिश उतनी स्ट्रॉन्ग नहीं थी। वह उसमें कॉन्फिडेंटली कम्युनिकेट भी नहीं कर पाते थे, जबकि सुंदरम के साथ ऐसा नहीं था। तेलुगू के अलावा, उनकी इंग्लिश भी अच्छी थी। इसलिए नौकरी उन्हें मिली और मोहित चूक गए। यह आज के ग्लोबल जॉब मार्केट की सच्चाई है, जहां बाइलिंग्वल के सामने अपॉ‌र्च्युनिटीज की भरमार है। रिटेल, ट्रांसपोर्ट, टूरिच्म, एडमिनिस्ट्रेशन, पब्लिक रिलेशन, सेल्स ऐंड मार्केटिंग, बैंकिंग, एकाउंटेंसी, टीचिंग जैसे तमाम सेक्टर्स में मौके ही मौके हैं। इसमें जिनकी इंग्लिश पर कमांड होती है, वे अपनी कम्युनिकेशन स्किल से आगे निकल जाते हैं। दरअसल, कैंडिडेट के सलेक्शन में आज इंग्लिश डिसाइडिंग फैक्टर बन चुका है। अंग्रेजी कॉरपोरेट व‌र्ल्ड की कम्युनिकेशन लैंग्वेज तो है ही, आईटी सेक्टर में भी इसकी भूमिका काफी अहम हो गई है। टेक्निकल के साथ-साथ इंग्लिश की नॉलेज रखने वालों को प्रेफरेंस मिलती है। उनके लिए सफलता की सीढ़ी चढ़ना काफी आसान हो जाता है।

प्रोफेशनल ग्रोथ में मददगार

भारत में बहुत सारे लोगों की इंग्लिश दूसरी और तीसरी भाषा है यानी हिंदी, तेलुगू, तमिल, मराठी, बंगाली जैसी मातृभाषा के अलावा, जो लोग इंग्लिश में कम्युनिकेट कर सकते हैं, उनके लिए किसी भी फील्ड में काम करने के दरवाजे खुले हैं। युवाशाला में कंटेंट राइटर के तौर पर काम कर रही शीरीन बंसल कहती हैं कि बाइलिंग्वल होने से आपमें क्रिएटिव थिंकिंग डेवलप होती है। शब्द का भंडार बढ़ता है। आप ओरिजनल कंटेंट क्रिएट करने के साथ किसी मल्टीनेशनल कंपनी की ब्रांडिंग में मदद कर सकते हैं। सबसे इंपॉर्र्टेट बात यह है कि आपको लैंग्वेज से प्यार होना चाहिए। मुझे इंग्लिश से प्यार है, इसलिए इंटेलेक्चुअल ग्रोथ के साथ-साथ प्रोफेशनल ग्रोथ में भी मदद मिलती है।

जॉब मार्केट में बोलबाला

जस्ट डायल की टेक्निकल टीम में ग्राफिक्स डिजाइनर गुंजन बिहार से दिल्ली आए हैं। थ्री-डी एनिमेशन में डिप्लोमा करने के अलावा पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है। वे कहते हैं कि दिल्ली में जहां कहीं भी जॉब के लिए जाता था, तकरीबन हर जगह इंग्लिश में ही बात की जाती थी। मेरा फील्ड क्रिएशन का है, फिर भी इसमें इनवॉल्व लोग इंग्लिश में बात करते हैं। दो-तीन साल तक मुझे इसी वजह से नौकरी के लिए भटकना पड़ा। धीरे-धीरे मैंने अपनी इंग्लिश इम्प्रूव की। फ्रेंड्स से काफी सपोर्ट मिला। अभी जो जॉब कर रहा हूं, उसमें मुझे अक्सर साउथ इंडियन और फॉरेनर्स से बात करनी पड़ती है। अब मैं कॉन्फिडेंस के साथ ऐसा कर पाता हूं। अगर यह मानकर सीखेंगे कि यह भी हिंदी की तरह एक लैंग्वेज है, तो आसानी से सीख जाएंगे। दरअसल, हिंदी मीडियम के स्टूडेंट्स के साथ माहौल की प्रॉब्लम होती है। स्कूल या कॉलेज में इंग्लिश एक सब्जेक्ट के रूप में पढ़ाई जाती है, लेकिन कस्टमर ओरिएंटेड इंडस्ट्री में काम करना है, तो इंग्लिश पर कमांड जरूरी है। आप तभी तरक्की भी कर सकते हैं।

एम्प्लॉयर पर जमता है इंप्रेशन

आपके पास कितने भी इनोवेटिव बिजनेस आइडियाज क्यों न हों, उसे एक्सप्रेस करने का तरीका अगर नहीं जानते हैं, तो पिछड़ने का खतरा बना रहेगा। मुमकिन है कि ऑफिस में कोई और आपके ही आइडिया से खेल जाए और आखिर में प्रमोशन भी उसका ही हो।

कॉरपोरेट फील्ड का अनुभव रखने वाले और फिलहाल एजुकेशन सेक्टर से जुड़े क्षितिज

मेहरा का कहना है कि अक्सर काम के दौरान प्रेजेंटेशन देनी होती है। इसके लिए काफी रिसर्च वर्क भी करना होता है। अच्छा मैटीरियल इंग्लिश में मिलता है। इंटरनेट पर भी आधे से ज्यादा कंटेंट इंग्लिश में ही होते हैं। ऐसे में जो भी एम्प्लॉयी बखूबी अपना प्रेजेंटेशन देता है, उसका सीनियर्स पर अच्छा इंप्रेशन जमता है। उसकी एक अलग पहचान बनती है। ऐसा भी देखा गया है कि कंपनी में डाउनसाइजिंग के समय, समान टेक्निकल स्किल और काम करने वाले दो कैंडिडेट्स में से उसे रीटेन किया जाता है, जिसकी इंग्लिश में कम्युनिकेशन स्किल अच्छी हो। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि आज इंटरनेशनल लेवल पर टॉप की इंडस्ट्रीज में जिस तरह से यंग इंडियंस अपनी पहचान बना रहे हैं, उसमें इंग्लिश का रोल काफी अहम माना जा सकता है।

कम्युनिकेशन है ज्यादा इंपॉर्र्टेट

किसी भी फील्ड में आगे बढ़ने के लिए कम्युनिकेशन स्किल बेहतर होना बहुत जरूरी है। कम्युनिकेशन हिंदी और इंग्लिश दोनों में हो सकता है, लेकिन जिस फील्ड में हमारा इंटरैक्शन ऑडियंस से होता है, उसमें इंग्लिश जरूरी है। इन्वेस्टमेंट बैंकिंग, कॉरपोरेट कंसल्टिंग और मल्टीनेशनल कंपनीज में इंग्लिश बहुत जरूरी है। इंग्लिश आने से इंडिविजुअल का कॉन्फिडेंस लेवल हाई हो जाता है। जो झिझक होती है वह इंग्लिश से काफी हद तक दूर हो जाती है। इंग्लिश नोइंग प्रोफेशनल्स की आज मल्टीनेशनल कंपनीज में सबसे ज्यादा डिमांड है।

सुमित सिंह

सीनियर वॉइस प्रेसिडेंट, नौकरी डॉट कॉम

इंग्लिश लैंग्वेज डे

823 अप्रैल, 2010 को पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ के यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक ऐंड कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन द्वारा इंग्लिश लैंग्वेज डे मनाया गया था। इसी दिन अंग्रेजी के महान साहित्यकार विलियम शेक्सपियर का जन्मदिवस भी है।

8करीब 1500 साल पहले ये तीन जनजातियों की लैंग्वेज थी, लेकिन आज यह लगभग 2 बिलियन से ज्यादा लोगों की भाषा है।

8यह दुनिया के करीब 70 से अधिक देशों में बोली जाती है।

8इंग्लिश के दो रिटेन फॉ‌र्म्स हैं : ब्रिटिश इंग्लिश और अमेरिकन इंग्लिश।

8इंग्लिश ग्लोबल कम्युनिकेशन लैंग्वेज बन

चुकी है।

प्रोग्रेस के लिए जरूरी

आइटी इंडस्ट्री से लेकर मल्टीनेशनल कंपनी तक, सभी जगह वेस्टर्न व‌र्ल्ड से काफी ज्यादा प्रोफेशनल इंटरैक्शन होता है। इसके लिए इंग्लिश की नॉलेज कंपल्सरी है। इसी तरह रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट वर्क या टेक्नोलॉजी से अपडेट होने के लिए इंग्लिश पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए। प्राइवेट सेक्टर के अलावा, गवर्नमेंट जॉब में भी आज

इंग्लिश जानने वाले ही प्रोग्रेस कर पाते हैं। बिजनेस व‌र्ल्ड में अक्सर प्रेजेंटेशन देना होता है। क्लाइंट्स से निगोशिएट और नॉलेज शेयरिंग करनी होती है। रिपो‌र्ट्स, प्रस्ताव, मेमो, नोटिस लिखने पड़ते हैं। इन दिनों वैसे भी ई-मेल के जरिए ही ज्यादातर ऑफिशियल वर्क होते हैं। ऐसे में अगर इंग्लिश ठीक नहीं होगी, तो प्रमोशन के चांसेज भी कम हो जाते हैं। व‌र्ल्ड बैंक के अध्ययन के अनुसार, जिन लोगों की इंग्लिश स्ट्रॉन्ग होती है, उन्हें वेतन भी दूसरों के मुकाबले अधिक मिलता है।

हर्ष मेहता

डायरेक्टर,

कम्युनिकेशन ऐंड पब्लिक अफेयर्स,

बॉम्बार्डियर ट्रांसपोर्टेशन

बूस्ट योर कॉन्फिडेंस

मिर्जापुर में एक बार रोहित और कुछ फ्रेंड्स सोशल टॉपिक पर डिबेट कर रहे थे। सभी दोस्तों ने इंग्लिश मीडियम से सीबीएसई बोर्ड की पढ़ाई की थी। बहस शुरू हुई। इसी बीच वहां हिंदी मीडियम से पढ़ाई करने वाला यूपी बोर्ड का एक और साथी आया। वह इंग्लिश बोलने में कंफर्टेबल नहीं था। ज्यादातर हिंदी में ही बोल रहा था। शायद इसीलिए कॉन्फिडेंट भी नहीं था। नतीजतन, रोहित की टीम उस पर भारी पड़ी।

इंडस्ट्री की डिमांड

हिंदी हममें से ज्यादातर की मातृभाषा के साथ राष्ट्रभाषा भी है। उस पर पकड़ होना भी लाजिमी है, लेकिन ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में इंग्लिश की नॉलेज न हो, तो कई दरवाजे बंद हो जाते हैं। अगर स्टूडेंट हिंदी मीडियम से पढ़ाई करते भी हैं, तो उन्हें अंग्रेजी में लिखना-बोलना आना चाहिए। इससे जॉब मार्केट में वे नए मौकों का फायदा उठा सकेंगे। उनकी पर्सनैलिटी डेवलप होगी, सो अलग। इंडस्ट्री में वही सक्सेसफुल है, जो खुद की प्रेजेंट करने का हुनर जानता हो।

बेधड़क बोलें इंग्लिश

हिंदी मीडियम के स्टूडेंट्स इंग्लिश ग्रामर पर ज्यादा ध्यान देते हैं। इससे बोलते वक्त अटकते हैं, क्योंकि उन्हें डर लगा रहता है कि कहीं कुछ गलत न बोल दें। जबकि इंग्लिश मीडियम के स्टूडेंट्स बेधड़क इंग्लिश बोलते हैं। ऐसा प्रैक्टिस से ही संभव है। बिना डरें या संकोच किए दोस्तों के साथ इंग्लिश में बात करें।

माहौल से होता है फायदा

इंग्लिश सीखने के लिए आपकी सराउंडिंग्स, आपके

दोस्त और फैमिली मेंबर्स के सपोर्ट की जरूरत होती है। अगर आपके दोस्तों और फैमिली में इंग्लिश बोलने का माहौल नहीं है, तो आप इंग्लिश में जब भी बात

करेंगे, कुछ देर बात उन्हें अटपटा लगने लगेगा और आप अगली बार से नहीं बोलेंगे। इसलिए ज्यादा जरूरी है आपकी सराउंडिंग में इंग्लिश बोली जाए।

हॉलीवुड फिल्मों से सीखें

मैंने इंग्लिश इम्प्रूव करने के लिए कई सारे तरीके आजमाए। फ्रेंड्स के साथ इंग्लिश में ग्रुप डिस्कशन किया। इंग्लिश नॉवेल्स, न्यूज पेपर्स और आर्टिकल्स पढ़ने से वोकेबुलरी डेवलप होती है। इसके अलावा, मैं हॉलीवुड की फिल्में भी देखता हूं। जहां मैं काम करता हूं, वहां हर दिन यूरोपियन कंट्रीज के क्लाइंट्स से बात-चीत करनी पड़ती है, तो इंग्लिश की उन्हीं की एक्सेंट में बोलना पड़ता है।

बनती है पर्सनैलिटी

इंग्लिश आज की ग्लोबल लैंग्वेज है। इसकी इंपॉटर्ेंस को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। आज इंडियन कंपनीज फॉरेन कंपनीज के साथ टाइअप करके काम कर रही हैं। ऐसे में आपको अपनी बात मजबूती के साथ कम्युनिकेट करनी होती है और क्लाइंट को कनविंस करना होता है। इंग्लिश ऐसी लैंग्वेज है, जिसके जरिए आप वेस्टर्न क्लाइंट से बात कर सकते हैं। अक्सर क्लाइंट के साथ मीटिंग होती है। उस वक्त पूरा कनवर्सेशन इंग्लिश में ही होता है। यही नहीं, आजकल ऑफिस में काम के दौरान सभी इंग्लिश में ही बात करना पसंद करते हैं। ऐसे में हमें खुद को प्रूव करना होता है। शुरू में काफी प्रॉब्लम होती थी, लेकिन धीरे-धीरे खुद को अपडेट किया। डेली इंग्लिश के न्यूजपेपर पढ़ना शुरू किया। अब प्रॉब्लम नहीं होती है। इंग्लिश आने से अपने आप में एक कॉन्फिडेंस भी आता है।

इम्प्रूव होती है पर्सनैलिटी

इंग्लिश प्रोफेशनल्स की पर्सनैलिटी को भी इम्प्रूव करती है। हमने जब सेल्स फील्ड में करियर शुरू किया था, तब हमें अपनी फील्ड की बहुत जानकारी नहीं थी, लेकिन इंग्लिश के कारण हमारी बहुत-सी कमियां छिप गई। बेहतर प्रेजेंटेशन के लिए खुद को और इम्प्रूव किया। सेल्स की फील्ड में आगे बढ़ने के लिए बेहतर कम्युनिकेशन स्किल होना भी बहुत जरूरी है।

आज की जरूरत है इंग्लिश

इंग्लिश आज की जरूरत है। हमें इसे समझना चाहिए। आज लगभग हर फील्ड में इंग्लिश प्रोफेशनल्स की अच्छी डिमांड है। मार्केट में उन्हीं लोगों को इंपॉर्र्टेस दी जाती है, जिन्हें अच्छी इंग्लिश बोलना और लिखना आता है। कंपनीज में इंटरनल कॉम्पिटिशन भी बहुत है और यह कॉम्पिटिशन दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। वैसे, आज के जॉब मार्केट में बने रहने के लिए खुद को अपडेट भी करते रहना होगा।

इंग्लिश है सक्सेस का फॉर्मूला

जब दुनिया एक ग्लोबल विलेज के रूप में तब्दील हुई, तो इंग्लिश लिंक लैंग्वेज के तौर पर सामने आई। आज यह ग्लोबल लैंग्वेज बन चुकी है। इसके बिना सर्वाइवल मुश्किल है। यही वजह है कि चीन और फ्रांस जैसे देश इंग्लिश पर जोर दे रहे हैं। सोसायटी और जॉब मार्केट में यह एक तरह की कनेक्टिंग लैंग्वेज बन गई है। आज सक्सेस का पहला फॉर्मूला इंग्लिश में स्किल्ड होना है। बेसिक स्टडी और रेगुलर प्रैक्टिस से इसमें खुद को इम्प्रूव किया जा सकता है।

डॉ. विक्रम सिंह,

एक्स. डीजीपी, यूपी

ग्रोथ इन करियर

आईटी फील्ड में तो इंग्लिश का रोल बहुत इंपॉर्टेट है। यहां सिर्फ बोलने नहीं, लिखने की भी जरूरत होती है। क्लाइंट के सटिस्फैक्शन के लिए बाइलिंग्वल होना जरूरी है। यूएस में बैठे क्लाइंट के साथ अक्सर ऑनलाइन डिस्कशन करना पड़ता है। कॉल्स के जरिए भी क्लाइंट से बातचीत होती है। यह बिना इंग्लिश के पॉसिबल नहीं है।

विदेश में काम करने का चांस

आज मल्टीनेशनल कंपनीज अपने एम्प्लॉयी को अक्सर फॉरेन विजिट, ट्रेनिंग या फिर पोस्टिंग पर भेजती हैं। ऐसा तभी मुमकिन हो पाता है, जब आपकी इंग्लिश पर कमांड हो। इसके लिए आपको प्रूव करना होता है कि आप दूसरों से बेहतर हैं। कई बार फॉरेन से भी डेलीगेशन आते हैं, जिसमें सभी को इंग्लिश की नॉलेज होती है। इसके अलावा, इंटरनल सेमिनार और मीटिंग्स भी होती है, जिसमें इंग्लिश में ही डिस्कशन होता है। जिन्हें ठीक से इंग्लिश नहींआती है, वे कई बार अपनी बात ठीक तरह से नहींरख पाते।

प्रमोशन के मौके

अच्छी कम्युनिकेशन स्किल प्रमोशन का भी जरिया बनती है। कंपनी उन लोगों को ज्यादा से ज्यादा प्रमोट करती है, जिनकी कम्युनिकेशन स्किल बेस्ट होती है। जॉब के दौरान ऐसे कई मौके आए जब बेहतर कम्युनिकेशन के कारण आगे बढ़ने का मौका मिला। सीनियर्स भी वर्क से सटिस्फाई रहते हैं। ज्यादा रिस्पॉन्सिबिलिटी दी जाती है। जैस-जैसे आगे बढ़ते जाते हैं, इंग्लिश की इंपॉर्टेस बढ़ती जाती है। सीनियर पोस्ट पर पहुंचने के बाद तो कलीग्स आपस में भी इंग्लिश में ही डिस्कशन करते हैं।

हेल्प इन मेकिंग करियर

इंटरमीडिएट और ग्रेजुएशन के बाद बहुत से स्टूडेंट्स बिना किसी प्रोफेशनल डिग्री और कोर्स के कॉल सेंटर और दूसरी मल्टीनेशनल कंपनीज में सिर्फ इंग्लिश के दम पर काम कर रहे हैं। इनकी यूएसपी ही अच्छी कम्युनिकेशन स्किल होती है। इंग्लिश करियर मेकिंग में बहुत बड़ा रोल प्ले करती है। फिर वह कोई भी सेक्टर क्यों न हो। जहां कहीं भी आप इंटरव्यू देने जाते हैं, आपसे इंग्लिश में क्वैश्चंस पूछे जाते हैं और आपसे भी उम्मीद की जाती है कि आप उसका आंसर इंग्लिश में ही दें।

लैंग्वेज ऑफ बिजनेस

मेडिकल टर्म इंग्लिश में ही होते हैं। इन ट‌र्म्स को हिंदी में समझना मुश्किल होता है, जबकि इंग्लिश में यह काम बहुत आसान है। हम जब किसी डॉक्टर के पास या क्लाइंट के पास जाते हैं, तो वे हिंदी जानते हुए भी इंग्लिश में कनवर्सेशन करना पसंद करते हैं। इसलिए हमें भी इंग्लिश में ही रिप्लाई करना पड़ता है।

इंग्लिश से मिलती है प्रेफरेंस

आज मार्केट इस तरह से डेवलप हो रहा है, जहां इंग्लिश को इंपॉर्र्टेस दी जाती है। मेडिकल फील्ड में जब फ्रेशर के तौर पर शुरुआत की थी, तब कंपनी की डिमांड थी इंग्लिश की जानकारी। कुछ समय साउथ इंडिया में भी गुजारा, जहां ज्यादातर लोग या तो लोकल लैंग्वेज जानते थे या इंग्लिश में बात करते थे। वहां पर थोड़ी प्रॉब्लम आई, लेकिन धीरे-धीरे इंग्लिश पर कमांड होने लगा।

सरवाइव करना मुश्किल

आज मार्केट में बिना इंग्लिश के सरवाइव करना मुश्किल है। अगर इंग्लिश में कनवर्सेशन नहीं कर सकते, तो क्लाइंट इंप्रेस नहीं होता और तवच्जो भी नहीं देता। हमें क्लाइंट से जो प्रपोजल मिलने वाला होता है, वह रुक जाता है, लेकिन जब हम इंग्लिश में बात करते हैं, तो क्लाइंट इंप्रेस होता है और पूरी अटेंशन देता है। इस तरह हमें प्रपोजल आसानी से मिल जाता है।

बिजनेस लाने की जिम्मेदारी

कंपनी के लगभग हर एम्प्लॉयी के ऊपर बिजनेस लाने की रिस्पॉन्सिबिलिटी होती है और यह तभी मुमकिन हो पाता है, जब हम इंग्लिश में बेहतर तरीके से कम्युनिकेट कर पाते हैं। जिन एम्प्लॉयीज की इंग्लिश बहुत अच्छी नहीं होती है, उन्हें क्लाइंट से इंटरैक्शन करने से दूर रखा जाता है। बिजनेस के लिए उन्हीं को आगे किया जाता है जिनकी कम्युनिकेशन स्किल अच्छी होती है।

इंग्लिश की सेल्फ स्टडी

मैं हिंदी बैकग्राउंड से रहा हूं। करियर की शुरुआत में इंग्लिश में अच्छी तरह कम्युनिकेट नहींकर पाता था। फाइनेंस फील्ड का काम इंग्लिश में ही ज्यादा होता है। अभी जिस एमएनसी में काम कर रहा हूं, यहां जॉब पाने के लिए बहुत धक्के खाए। कई जगह सिर्फ इसलिए पीछे रह गया, क्योंकि इंग्लिश उतनी अच्छी नहींथी, जितनी इंडस्ट्री में डिमांड है। मैंने इंग्लिश की क्लासेज लीं, सेल्फ स्टडी की। फ्रेंड सर्किल में ग्रुप डिस्कशन किया, तब जाकर इंग्लिश इम्प्रूव हुई और अच्छी जॉब मिल सकी।

नीलमणि

कस्टमर एसोसिएट, जेनपैक्ट, गुड़गांव


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