पैसा बड़ा या पैशन !
हाल ही में आइआइटी बीएचयू और आइआइटी कानपुर के स्टूडेंट्स को बहुराष्ट्रीय और बड़ी इंडियन कंपनियों की ओर से काफी आकर्षक पैकेज ऑफर किए गए। ज्यादातर ने ऑफर स्वीकार कर लिए, तो कुछ स्टूडेंट्स ऐसे भी रहे, जिन्होंने बड़े पैकेज की नौकरियां ठुकरा दीं। वजह यह सामने आई कि नौकरी उनके
हाल ही में आइआइटी बीएचयू और आइआइटी कानपुर के स्टूडेंट्स को बहुराष्ट्रीय और
बड़ी इंडियन कंपनियों की ओर से काफी आकर्षक पैकेज ऑफर किए गए। ज्यादातर ने ऑफर
स्वीकार कर लिए, तो कुछ स्टूडेंट्स ऐसे भी रहे, जिन्होंने बड़े पैकेज की नौकरियां ठुकरा दीं। वजह यह सामने आई कि नौकरी उनके पैशन यानी पसंद के मुताबिक नहीं थीं। उन्हें मानसिक सुकून चाहिए था। उन्हें अपने मन मुताबिक काम करना था, इसलिए उन्होंने पैसे पर पसंद को तरजीह दी। काबिल युवाओं में अपनी पसंद की जॉब करने या स्टार्ट-अप शुरू करने के बढ़ते ट्रेन्ड पर फोकस जोश प्लस की एक्सक्लूसिव कवर स्टोरी...
गूगल, ओरेकल, याहू, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनीज इंडियन स्टूडेंट्स को मोटे सैलरी पैकेज का ऑफर दे रही हैं। बीएचयू आइटी के हालिया कैैंपस सलेक्शन के दौरान स्टूडेंट्स पर लाखों से करोड़ों रुपये तक के ऑफर की बरसात हुई है। यहां के कंप्यूटर इंजीनियरिंग के स्टूडेंट और प्लेसमेंट सेल के स्टूडेंट को-ऑर्डिनेटर पुलकित गोयल बताते हैं कि इस बार उनके कैैंपस के स्टूडेंट्स को ओरेकल ने 2 करोड़ रुपये, गूगल ने 1 करोड़ 63 लाख, माइक्रोसॉफ्ट ने 80 लाख, एपिक ने 75 लाख और व्हाट्सऐप ने 35 लाख रुपये एनुअल सैलरी पैकेज ऑफर किए हैं।
आइआइटी दिल्ली में भी कुछ ऐसा ही हुआ। प्लेसमेंट सेल के स्टूडेेंट को-ऑर्डिनेटर प्रतीक शर्मा बताते हैं, फेसबुक ने कंप्यूटर साइंस के दो स्टूडेंट्स को 1 करोड़ 42 लाख रुपये की एनुअल सैलरी ऑफर की है। उनमें से एक बीटेक का और दूसरा एमटेक का स्टूडेंट है। यही ऑफर आइआइटी मुंबई के तीन स्टूडेंट्स और आइआइटी खड्गपुर के दो स्टूडेंट्स को भी दिया गया है। एक दिसंबर से 20 दिसंबर तक चले कैैंपस प्लेसमेंट के दौरान पहले ही हफ्ते 600 से ज्यादा कंपनीज आईं, जबकि पिछले साल यह संख्या 570 ही रही थी। प्लेसमेंट का यह सिलसिला कई संस्थानों में अभी भी जारी है। हैरत की बात यह है कि आइआइटी दिल्ली के कुछ स्टूडेंट्स ने भी 77 लाख रुपये तक के सैलरी पैकेज के ऑफर ठुकरा दिए। आइआइटी कानपुर में भी कुछ ऐसा ही वाकया सामने आया। कैंपस प्लेसमेंट के लिए सैमसंग, ओरेकल, फ्लिपकॉर्ट जैसी कंपनीज आईं थी। चार स्टूडेंट्स को 1 करोड़ से ज्यादा सैलरी पैकेज का ऑफर किया गया, लेकिन चारों ने इसे ठुकरा दिया। इनमें से दो स्टूडेंट्स ने एक छोटी कंपनी में 50 लाख के सैलरी पैकेज पर काम करना स्वीकार कर लिया। चारों का यही कहना था कि हम सुकून का काम चाहते हैं।
1.8 करोड़ का ऑफर
गौरव अग्रवाल
आइआइटी, इंदौर
आइआइटी में कैपस प्लेसमेंट के पहले दौर में सैलरी पैकेज में औसतन 15 फीसदी की ग्रोथ देखी गई। पिछले साल के मुकाबले इस साल कंपनियों की संख्या भी काफी ज्यादा है, लेकिन रिजेक्शन रेट भी बढ़ गए हैं।
आइआइटी इंदौर के स्टूडेंट गौरव अग्रवाल को गूगल ने 1 करोड़ 80 लाख रुपये के सैलरी पैकेज की जॉब ऑफर की है। वह पढ़ाई पूरी करने के बाद मई 2015 में कैलिफोर्निया में गूगल ज्वाइन करेंगे।
कामयाबी का भरोसा
मैंने शुरू से ही कड़ी मेहनत की थी। स्कूल में भी जो पढ़ाया जाता था, उसे ध्यान से पढ़ता था और फिर उसका रिवीजन कर लेता था। यही प्रैक्टिस कॉलेज में भी जारी रखी। गूगल के लिए इंटरव्यू देने से पहले भी मैंने अपनी नॉलेज को अपडेट कर लिया और गूगल द्वारा लिए गए पुराने इंटरव्यू की प्रैक्टिस की। दरअसल, मैं यह बात जानता था कि इंटरव्यू के दौरान एकेडमिक बैकग्राउंड जितना मायने रखती है, उतनी ही अहमियत टेक्निकल नॉलेज, कम्युनिकेशन स्किल, टीमवर्क और पुराने प्रोजेक्ट्स को भी दी जाती है। मैंने इन्हीं बातों पर ध्यान दिया।
बिना बैकग्राउंड शुरुआत
मेरे पिता सत्यपाल अग्रवाल छत्तीसगढ़ के भिलाई जिले में मेडिकल शॉप चलाते हैं। मां हाउस वाइफ हैं। परिवार या दोस्तों में कोई भी इस फील्ड में नहीं है। स्कूल के दिनों में जब मैंने कंप्यूटर पर काम करना शुरू किया, तो धीरे-धीरे मेरा रुझान इस और बढऩे लगा। तब मैंने तय किया कि मुझे गूगल जैसी नामी कंपनी में ही काम करना है।
इंट्रेस्ट के साथ स्टडी
कंप्यूटर साइंस के क्षेत्र में और भी बेहतर अवसर युवाओं को मिल सकते हैं। अगर आप इस फील्ड में करियर बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपना इंट्रेस्ट इस फील्ड में डेवलप करना होगा। जो भी पढ़ें, उसे ध्यान से पढ़ें। इसके अलावा, टेक्निकल नॉलेज, कम्युनिकेशन स्किल और कॉलेज में बनाए प्रोजेक्ट्स पर पूरा ध्यान दें।
स्टार्ट-अप के लिए छोड़ी जॉब
हानी मोहन
फाउंडर, हेल्थएरा
आइआइटी बॉम्बे की ग्रेजुएट सुहानी मोहन ने 20 लाख रु. के पैकेज पर डोयचे बैंक ज्वाइन किया था, लेकिन 2 साल 8 महीने काम करने के बाद उन्होंने जॉब छोड़ दी और इस साल जून में हेल्थएरा स्टार्ट-अप की शुरुआत की।
डोयचे बैंक में काम करते हुए मेरी मुलाकात गूंज के फाउंडर अंशु गुप्ता से हुई थी। मुझे इंडिया के सैनिटेशन प्रॉब्लम की जानकारी मिली, जो बहुत गंभीर थी। फिर मैंने खुद यूपी, बिहार के अलावा पुणे के आसपास के गांवों में रिसर्च किया। स्थानीय सैनिटरी मैन्युफैक्चरर्स से मिली और आखिर में एक ऐसी मशीन डेवलप करने का फैसला किया, जो कम लागत पर सैनिटरी नैपकिंस का निर्माण करती हो। आने वाले 6 से 8 महीने में यह मशीन तैयार हो जाएगी। उसके बाद हेल्थएरा देश के अलग-अलग हिस्सों में कम लागत पर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स सेट- अप करेगी, जिसमें स्थानीय महिलाओं को रोजगार दिया जाएगा।
सटिस्फैक्शन है जरूरी
मेरी मां साइंटिस्ट हैं और बड़े भाई डॉक्टर। घर के एकेडमिक माहौल के कारण मुझे आठवीं-नौवीं में ही आइआइटी की जानकारी थी। लिहाजा, पहले ही अटेम्प्ट में एग्जाम क्लियर कर आइआइटी बॉम्बे में दाखिला ले लिया। मैं अपने करियर ग्राफ से काफी सटिस्फाइड हूं। मेरे जैसे ही बहुत सारे युवा आज बड़े ऑफर्स ठुकराकर या कॉरपोरेट जॉब छोड़कर रिस्क ले रहे हैं, क्योंकि उनके सामने सस्टेनेंस या फाइनेंस की समस्या नहीं है। वे रिस्क लेकर अपना पैशन फॉलो कर रहे हैं।
प्लेसमेंट में ऑफर
पैशन की बात करें, तो मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग ऐंड मैटीरियल साइंस में बीटेक करने के दौरान मेरे मन में सबसे पहले पीएचडी करने का ख्याल आया था, लेकिन इंडिया और कनाडा में इंटर्नशिप करते हुए मुझे एहसास हुआ कि अगले पांच साल तक मैं अपने कोर फील्ड में काम नहीं कर पाऊंगी। लिहाजा मैंने प्लेसमेंट में शामिल होने का निर्णय लिया। डोयचे बैंक का एप्टीट्यूड टेस्ट दिया। रिटेन क्वालिफाई करने पर, मेरा चार राउंड इंटरव्यू हुआ। इसमें एचआर, फाइनेंस, पजल से जुड़े सवाल किए गए थे।
कमिटमेंट की परख
कोई भी कंपनी कैंडिडेट में यही देखती है कि वह उनके सिस्टम में कितना फिट बैठता है। मेरा फाइनेंस बैकग्राउंड नहीं था, लेकिन अपने एप्टीट्यूड, प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल, प्रॉबेबिलिटी और मैथ्स के सवालों को हल कर, मैं रिक्रूटर्स को इंप्रेस करने में सफल
रही। इसके अलावा कमिटमेंट,
इंटरपर्सनल और कम्युनिकेशन
स्किल ने भी मुझे ऑफर दिलाने
में मदद की।
पसंद के लिए ठुकराया ऑफर
दिसंबर में कैैंपस प्लेसमेंट के दौरान फेसबुक ने आइआइटी दिल्ली के दो, आइआइटी बांबे के तीन और आइआइटी खड्गपुर के दो स्टूडेंट्स को 1 करोड़ 42 लाख रुपये सैलरी पैकेज का ऑफर दिया।
अंकुर तुलस्यान
प्रोडक्ट मैनेजर, हैंकेल, पुणे
शिक्षा वह नहीं, जो सिर्फ किसी जॉब के लिए स्किल्ड बनाए, बल्कि वह है जो आपके अंदर जिज्ञासा पैदा करे। कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित करे और आपके व्यक्तित्व विकास में मददगार हो। यही वह सिद्धांत है, जिस पर यकीन कर आइआइटी बॉम्बे से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने वाले अंकुर तुलस्यान आगे बढ़े। आज वह पुणे स्थित एक जर्मन कंपनी हैंकेल में प्रोडक्ट मैनेजर हैं।
आइआइटी ने दिखाई राह
परिवार में ऐसा कोई प्रेरणास्रोत नहीं था। सिर्फ पिता जी चाहते थे कि मैं आइआइटी से पढ़ाई करूं और इंजीनियर बनूं। मैं उनका सपना पूरा करने में सफल रहा। परिवार का पहला इंजीनियर बना।
आइआइटी बॉम्बे में मेरे विजन का विस्तार हुआ। आत्मविश्वास आया। जैसे मैंने मैकेनिकल डिपार्टमेंट के न्यूजलेटर का संपादन किया। स्टूडेंट्स का मेंटर बना। फ्रेशमेन नाम से एक ऑनलाइन फोरम शुरू किया, जहां आइआइटी में दाखिला लेने वाले फ्रेशर्स को गाइड किया जाता था।
बदला नजरिया
फाइनल ईयर में ही मेरे पास अन्स्र्ट ऐंड यंग का ऑफर था, लेकिन उसी दौरान इलेक्टिव कोर्स के तहत आने वाले ह्यूमैनिटीज में मेरी दिलचस्पी बढ़ी। मुझे जागृति यात्रा में जाने का अवसर मिला। मैंने जिंदगी को एक नए नजरिये से देखना शुरू कर दिया। इसी समय मुझे यंग इंडिया फेलोशिप प्रोग्राम की जानकारी मिली। मैंने जॉब की बजाय एक साल के इस प्रोग्राम में एनरोल कराना उचित समझा। इसके लिए मुझे फुल स्कॉलरशिप मिली थी। मैं जान पाया कि लीडरशिप के सही मायने क्या हैं?
सक्सेस-सैलरी आकस्मिक
किसी भी इंटरव्यू से पहले कंपनी के बारे में पूरी रिसर्च करना मेरा शगल रहा है। आप भी एक बात हमेशा याद रखें, सक्सेस और सैलरी दोनों ही आकस्मिक होते हैं। उन पर अधिक ध्यान देने की बजाय हमेशा अपने मन की सुनने का प्रयास करना चाहिए।
पैशन के आगे सवा करोड़ बेकार
अजय चतुर्वेदी
फाउंडर, हारनेसिंग वैल्यू (हार्वा)
किसी को केवल रोजगार दे देना ही काफी नहीं है, जरूरी है उसे सेल्फ डिपेंडेंट बनाना, ताकिवह दूसरों को भी सपोर्ट दे सके। यही सोचकर मैंने सवा करोड़ रुपये सालाना की नौकरी छोड़ दी। मैंने 1997 में बिट्स पिलानी से बीटेक किया। कैंपस प्लेसमेंट के दौरान टाटा से मिले ऑफर को मैंने छोड़ दिया।
पैसे से नहींमिलती संतुष्टि
मुझे आगे पढ़ाई करनी थी। मैं अमेरिका के पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी से एमबीए करने चला गया। इसके बाद वहीं सिटी बैंक में जॉब लग गई। मेरी लाइफ में सब कुछ अच्छा था, लेकिन कहीं न कहीं मैं सटिस्फाइड नहीं था। अपने आस-पास के लोगों को अपने देश के बारे में बातचीत करते सुनता, तो अच्छा फील नहीं होता था। लगता था कि क्या मेरा जन्म इसी काम के लिए हुआ है? मैं इसी बात से थोड़ा परेशान भी रहने लगा। अपने देश के लिए कुछ करना चाहता था, लेकिन सही रास्ता नहीं मिल रहा था। इसी रास्ते की खोज में मैं एक दिन हिमालय के लिए निकल पड़ा।
हिमालय में मिला रास्ता
हिमालय की यात्रा मेरे लिए बहुत ही अच्छी रही। सारी उलझनें जैसे सुलझ गईं और उम्मीदों की किरणों ने मुझे नया और सही रास्ता दिखा दिया। मुझे महात्मा गांधी की एक बात याद आई कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। देश का विकास करना है, तो गांवों का विकास करना होगा। मैं भी गांव की ओर चल पड़ा।
गांव से की शुरुआत
अमेरिका से मेरी पोस्टिंग बेंगलुरु हुई। उसके बाद मैं सिटी बैंक की सवा करोड़ की जॉब छोड़कर हरियाणा चला गया। वहां सोहना में प्रोजेक्ट हारनेसिंग वैल्यू यानी हार्वा शुरू किया। इसके जरिए मैंने गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना शुरू किया। शुरू-शुरू में मेरी बात किसी को पसंद नहीं आई। फिर उनके बीच घुलने-मिलने के लिए मैंने किसानों के साथ खेतों में काम भी किया।
मुश्किलों ने बढ़ाया हौसला
समस्याएं बहुत आईं। इंटरनेट की जरूरत महसूस हुई, लेकिन इंटरनेट तो दूर, सड़कें और बिजली भी नहीं थी। कनेक्शन देने को कोई कंपनी तैयार नहीं हुई, तो घर पर ही कनेक्शन ले लिया और पूरे गांव में पहुंचाया।
धीरे-धीरे सपोर्ट मिलने लगा और आज हार्वा में 600 से ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं। 2011 में हार्वा का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉड्र्स में भी दर्ज किया गया।
पैसा भी पैशन भी
प्रियांशु झा
सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट इंजीनियर, माइक्रोसॉफ्ट
दिसंबर में हुए कैैंपस प्लेसमेंट के दौरान आइआइटी कानपुर में चार स्टूडेंट्स को 1 करोड़ से ज्यादा सैलरी के ऑफर मिले, जिन्हें उन्होंने ठुकरा दिया और कम सैलरी वाले अपनी पसंद के ऑफर्स को स्वीकार कर लिया।
मेरी स्कूलिंग अहमदाबाद के शाहीबाग में हुई है। मेरा एडमिशन आइआइटी में नहीं हो पाया। मैंने मेहसाणा में गणपत यूनिवर्सिटी के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक किया था। लास्ट ईयर में कैैंपस सलेक्शन के लिए विप्रो, टीसीएस जैसी कंपनीज आई थीं, लेकिन मैंने कैैंपस सलेक्शन में हिस्सा ही नहींलिया।
यही करना चाहता था
मुझे माइक्रोसॉफ्ट या गूगल जैसी किसी बड़ी कंपनी में काम करना था। मुझे लगता था कि मैं जिस तरह का हूं, मेरे लिए यही कंपनीज बेहतर प्लेटफॉर्म साबित हो सकती हैं। उसके बाद मैंनेे नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में एमटेक किया। तब मुझे माइक्रोसॉफ्ट से 1 करोड़ 10 लाख सैलरी का ऑफर मिला।
क्रिएटिविटी दिलाती है पैसा
ये बड़ी कंपनीज इतना बड़ा सैलरी ऑफर इसीलिए देती हैं, ताकि आप फ्री होकर अपनी पूरी क्रिएटिविटी दिखा सकेें। नई चीज बनाने में ज्यादा दिमाग लगता है। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल जैसी कंपनीज की बात करें तो हम अनजाने फील्ड में काम करते हैं। यहां क्रिएटिव और इनोवेटिव होना बहुत जरूरी होता है। उसके बिना आपको ऑफर मिलने वाला नहीं है और अगर मिल भी गया तो आप यहां ज्यादा दिनों तक सरवाइव नहींकर पाएंगे। इन कंपनीज में क्वालिटी वर्क पर ध्यान दिया जाता है, चाहे उसके लिए कितना भी खर्च करना पड़े।
इंडियंस हैं फस्र्ट च्वाइस
अमेरिका में आइटी इंडस्ट्री बूम पर है। कंपनीज को सॉफ्टवेयर के फील्ड में ज्यादा से ज्यादा इंजीनियर्स की जरूरत है। इन कंपनीज की फस्र्ट च्वाइस इंडियन स्टूडेंट्स हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि यहां इस स्ट्रीम में स्टडी करने वाले स्टूडेंट्स बहुत कम हैं। इसीलिए आइआइटीज सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स हायर करने के मामले में इन कंपनीज के लिए बेस्ट प्लेटफॉर्म
बनती जा रही हैं और खुलकर सैलरी
दे रही हैं।
पैशन को एक्सप्लोर करना जरूरीसिद्धार्थ शाह
गांधी फेलोशिप
कम पैसे और सीमित संसाधन में जीवन का अनुभव लेने के लिए आइआइटी मुंबई के सिद्धार्थ शाह ने साढ़े आठ लाख रुपये का पैकेज ठुकरा दिया और आज 14 हजार रुपये के स्टाइपेंड पर काम कर रहे हैं।
सिद्धार्थ शाह ने आइआइटी बॉम्बे से इसी साल बीटेक (इंजीनियरिंग फिजिक्स) किया है। उन्हें अहमदाबाद स्थित एजुकेशन इनिशिएटिव्स नामक कंपनी का ऑफर था, जिसे ठुकराकर उन्होंने गांधी फेलोशिप के तहत उदयपुर के गांवों में काम करना स्वीकार किया।
लक्ष्य था क्लियर
मैं कभी भी जॉब ओरिएंटेड नहीं था, बल्कि लाइफ में कुछ सटिस्फैक्शन वाले काम करना चाहता था। मुझे शुरू से मालूम था कि आइआइटी जाने से ही दूरदर्शिता आएगी, आइडियाज को हकीकत में बदलने का हुनर सीख सकूंगा। इसलिए वडोदरा में रहकर ही आइआइटी की तैयारी की और 624 रैंक हासिल कर आइआइटी बॉम्बे में दाखिला लिया। फिजिक्स में बीटेक करने का फैसला भी मेरा खुद का था।
स्किल ने दिलाया ऑफर
प्लेसमेंट के दौरान हम करीब 200 स्टूडेंट्स ने एक रिटेन टेस्ट दिया था, जिसमें मैथ्स औऱ साइंस के मल्टीपल च्वाइस क्वैश्चंस थे। रिटेन में 50 स्टूडेंट्स का ही सलेक्शन हुआ और उन्हें इंटरव्यू के लिए कॉल किया गया। मेरा इंटरव्यू दो राउंड का हुआ। पहला टेक्निकल और दूसरा पर्सनल। मुझे अपनी प्रॉब्लम सॉल्विंग टेक्निक्स औऱ एनालिटिकल स्किल्स पर भरोसा था। आखिर में इसी ने मुझे कंपनी से जॉब ऑफर दिलाया।
फेलोशिप से एक्सप्लोरेशन
दरअसल, फाइनल ईयर में ही मेरे पास कई ऑप्शंस थे। जॉब के अलावा आइआइएम-लखनऊ से एग्री बेस्ड मैनेजमेंट करने का ऑफर था। लेकिन साथ ही एक औऱ मौका था- गांधी फेलोशिप। मुझे लगा कि गांव में रहना और वहां की जिंदगी को एक्सप्लोर करना एक चैलेंज होगा, जिसे मैंने स्वीकार कर लिया। गांधी फेलोशिप दो साल का टीचर ट्रेनिंग और स्कूल डेवलपमेंट प्रोग्राम है, जिसके तहत मुझे एक चेन एजेंट के रूप में काम करना है। मेरे ऊपर पांच गांवों की जिम्मेदारी है, जहां के स्कूल प्रिंसिपल्स, टीचर्स और स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर एजुकेशन सिस्टम को बेहतर बनाना है। स्कूल के मुखिया में लीडरशिप विकसित करनी है, जिससे कि संस्थान का बेहतर संचालन हो सके। साधन कम हैं, लेकिन बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है।
पसंद नहींआया कोई ऑफर
साक्षी श्रीवास्तव
स्टूडेंट, लुंबा
पैसा लोगों की सबसे बड़ी जरूरत है, लेकिन इससे भी बड़ी चीज है मानसिक संतुष्टि, ऐसा मानना है लखनऊ यूनिवर्सिटी एमबीए (लुम्बा) के कुछ स्टूडेंट्स का
लग्जरी लाइफ को देखते हुए इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि पैसा सबसे बड़ी जरूरत बन चुका है, लेकिन इससे भी बड़ी चीज है आत्मसंतुष्टि और मानसिक शांति। जब तक आप मानसिक तौर पर संतुष्ट नहीं होंगे, तब तक आप अपनी कंपनी को ऊंचाइयों तक नहीं पहुंचा सकेंगे। कुछ ऐसा ही मानना है लखनऊ यूनिवर्सिटी एमबीए (लुम्बा) के लास्ट सेमेस्टर बैच के स्टूडेंट्स का।
फेवरेट जॉब की तलाश
लुम्बा के फाइनल सेमेस्टर बैच की स्टूडेंट साक्षी श्रीवास्तव कहती हैं कि वह अपनी पसंद के जॉब ऑफर का इंतजार कर रही हैं। मूल रूप से वाराणसी की रहने वाली साक्षी कहती हैं, मेरी फील्ड फाइनेंस है और अब तक जितने भी ऑफर मिले हैं वे मेरी जॉब प्रोफाइल से मैच नहीं करते। इसलिए मैंने अभी तक किसी कंपनी को ज्वाइन नहीं किया है।
मैं अपने इंट्रेस्ट एरिया के मुताबिक काम करना पसंद करूंगी, क्योंकि किसी कंपनी को आप तभी फायदा पहुंचा सकते हैं, जब आप खुद अपने काम से संतुष्ट होंगे और उसे पूरी ईमानदारी और इंट्रेस्ट के साथ करेंगे।
डेलॉयट कंपनी में काम करने का मेरा सपना है। फिलहाल, मैंने एचडीएफसी बैंक में इंटर्नशिप की है और अगर फाइनेंस सेक्टर में अच्छा ऑफर नहीं मिला तो बैंकिंग सेक्टर में जाऊंगी।
इंट्रेस्ट का फील्ड चुनें
कानपुर के दिव्यांक गुप्ता का सिंगापुर की थर्ड आई एडवाइजरी कंपनी में तीन लाख रुपये के सालाना पैकेज पर सोशल मीडिया मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव पद के लिए सलेक्शन हुआ है।
वह बताते हैं, अपने करियर का चुनाव बहुत सोच-समझकर करना चाहिए और जिस फील्ड में आपका इंट्रेस्ट हो, उसी में जाना चाहिए।
एक फ्रेशर के लिए शुरू में पैसों से ज्यादा कंपनी में रहकर वहां के अनुभवों को हासिल करना अधिक मायने रखता है।
कंपनी के कंपटीटर की रखें जानकारी
कानपुर निवासी आकाश द्विवेदी का इंदौर की कैपिटल वाया कंपनी में चार लाख सालाना पैकेज पर एक्जीक्यूटिव ट्रेनी के लिए कैंपस सेलेक्शन हुआ है। आकाश के पिता बिजनेसमैन और मां गृहणी हैं, छोटा भाई कानपुर विश्वविद्यालय से बी-टेक कर रहा है। आकाश का मानना है कि किसी भी कंपनी में जॉब पाने और इंटरव्यू निकालने के लिए आपको खुद की काबिलियत के अलावा उस कंपनी का बैकग्राउंड और उसकी प्रतिद्वंदी कंपनी की पूरी जानकारी रखना भी जरूरी है। कहते हैं, कम्यूनिकेशन स्किल्स, पॉजिटिव एटीट्यूड और काम के प्रति मेरे डेडीकेशन को देख-परखकर ही मुझे जॉब ऑफर हुआ है। दूसरे स्टूडेंट्स भी इन्हीं बातों का ध्यान रखें और लीडर बनने की कोशिश करें। आकाश कहते हैं कि उनके जॉब प्लेसमेंट में लविवि के डिपार्टमेंट ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन के हेड संजय मेधावी सर और फैकल्टी प्लेसमेंट कोआर्डिनेटर डॉ. ऋतु नारंग का बड़ा सहयोग रहा है। कानपुर के जयपुरिया स्कूल से प्राथमिक और जागरण कॉलेज से बीकॉम की शिक्षा ग्रहण की। कहते हैं, बचपन से इंजीनियर बनने का सपना था, लेकिन मैथ्स में कमजोर होने के कारण करियर की राह बदल ली। एक्स्ट्रोवर्ट आकाश की हॉबी है लोगों से कॉन्टैक्ट्स को मजबूत करना और संगीत सुनना।
सैलरी को बैरियर नहीं बनाना चाहिए
स्टूडेंट्स अगर आगे बढऩा चाहते हैं, तो, सैलरी को अपना बैरियर न बनाएं। पहले उस कंपनी में जाएं, वहां के माहौल को समझें और काम को सीखें फिर सैलरी की बात सामने रखें। यह कहना है, कैपिटल वाया में सालाना चार लाख के पैकेज पर मैनेजमेंट एक्जीक्यूटिव ट्रेनी के लिए चुने गए सौरभ गुप्ता का। सौरभ मूल रूप से लखनऊ के रहने वाले हैं। शुरुआती पढ़ाई फैजाबाद से और बीबीए लखनऊ के एक प्राइवेट कॉलेज से किया है। कारपोरेट जगत में कम्यूनिकेशन स्किल्स को महत्वपूर्ण मानते हैं सौरभ। कहते हैं, पढ़ाई खत्म होने के बाद जब स्टूडेंट का सेलेक्शन किसी कंपनी में होता है, तो सबसे पहले वह एक हैंडसम सैलरी पैकेज की डिमांड रखता है, लेकिन मेरा मानना है कि पहले आप खुद को स्टैबलिश करें फिर सैलरी की सोचें। हां, अपनी काबिलियत के अनुसार ही ऐसा कदम उठाएं।
करेंट अफेयर्स का ज्ञान जरूरी
मूल रूप से बलिया के रहने वाले रजनीश मिश्रा का मानना है कि एक अच्छी कंपनी में जॉब पाने के लिए बाकी बातों के अलावा करंट अफेयर्स की जानकारी भी जरूरी है। लुम्बा के लास्ट सेमेस्टर बैच के रजनीश का सेलेक्शन पांच लाख रुपए सालाना के पैकेज पर आइसीआइसीआइ बैंक में असिस्टेंट मैनेजर सेल्स की पोस्ट के लिए हुआ है। कहते हैं, छोटे शहरों और कस्बों के स्टूडेंट के लिए यह जरूरी है कि वह अपने आसपास और देश-दुनिया की खबरों जानकारी जरूर रखें। बताते हैं, पिता बिजनेसमैन और मां होम मेकर हैं।
असफलता को ताकत बनाएं
संजय मेधावी
डिपार्टमेंट हेड, लुम्बा
लखनऊ यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन के हेड संजय मेधावी बता रहे हैं कैसे बनाएं असफलता को ताकत..
अक्सर ऐसा होता है, स्टूडेंट बार-बार इंटरव्यू देते हैं, फिर भी उनका सलेक्शन नहीं हो पाता है। इससे वे खुद को नाकाम समझने लगते हैं। फेल्योर होना गलत नहीं है। यह लर्निंग प्रॉसेस का एक हिस्सा है। इससे आपको सीखने का मौका मिलता है।
जमाने के साथ चलें
हम अपने स्टूडेंट की कॉन्टेक्सटुएल लर्निंग पर ज्यादा जोर देते हैं। सिर्फ क्लास रूम की पढ़ाई पर ही नहीं टिके होते हैं, बल्कि हम उनकी तैयारी मॉडर्न टेक्नोलॉजी के जरिए कराते हैं। साथ ही, कंपनी का बैकग्राउंड देखते हुए स्टूडेंट की तैयारी कराते हैं। स्टूडेंट के लिए सॉफ्ट और कम्युनिकेशन स्किल्स बहुत मायने रखती है। पिछले दस साल में मशरूम की तरह एमबीए इंस्टीट्यूट तो खुल गए हैं, लेकिन हर जगह योग्य टीचर भी हों, यह जरूरी नहीं है। हमारे यहां वोकेशनल कोर्सेज की कमी है। जितने बीटेक कॉलेज खुलें, उसके चार गुना पॉलीटेक्निक कॉलेज होने चाहिए। हमारे यहां छोटे-बड़े और ग्रामीण अंचल से भी स्टूडेंट एमबीए करने आते हैं। ऐसे स्टूडेंट्स के लिए हमने कुछ ट्रेनिंग एजेंसीज से टाइअप किया है, ताकि उनकी कम्युनिकेशन स्किल्स स्ट्रांग हो सके।
साल भर चलता रहता है प्लेसमेंट का दौर
बीआइटी मेसरा में प्लेसमेंट का दौर साल भर चलता है, इसलिए स्टूडेंट्स को उसके लिए तैयार करने का भी सिलसिला हर समय चलता है। उन्हें कैसे इंटरव्यू देना है? कैसे प्रेजेंटेशन देना है? साथ ही, सीवी को कैसे तैयार करना है? इसके लिए उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है। कोशिश होती है कि उन्हें हर तरह से ट्रेनिंग दी जाए। बीआइटी मेसरा में प्लेसमेंट ट्रेनिंग स्टूडेंट्स के दूसरे साल में आते-आते शुरू हो जाती है। एक्सपर्ट और गेस्ट फैकल्टी उन्हें बारीकियां बताते हैं। हर साल करीब 70 से भी अधिक बड़ी कंपनीज यहां प्लेसमेंट के लिए आती हैं। ऐसे में स्टूडेंट्स का इंटरव्यू, रिटेन एग्जाम और ग्रुप डिस्कशन का दौर चलता रहता है।
राजीव अग्रवाल, इंचार्ज, प्लेसमेंट ऐंड ट्रेनिंग डिवीजन, बीआइटी मेसरा, रांची
प्लेसमेंट को हैं तैयार?
गूगल, फेसबुक जैसी मल्टीनेशनल कंपनीज में जॉब मिलना अपने आप में एक चैलेंज है, क्योंकि ये कंपनीज टैलेंट को प्रेफरेंस देती हैं। इंटरव्यू के दौरान आपको साबित करना होता है कि आप बेस्ट हैं। तो इस तरह की इंटरव्यू के लिए आप भी हो जाएं तैयार...
लर्र्निंग कैपेसिटी
कैंपस इंटरव्यू के दौरान जब किसी फ्रेशर को हायर किया जाता है, तो कंपनी उसकी लर्र्निंग कैपेसिटी चेक करती है। यह देखती है कि वह किसी काम को सीखने में कितना टाइम लगाता है।
रिक्वॉयरमेंट के लिए रिक्रूटमेंट
कैैंपस सलेक्शन के लिए कंपनीज की अपनी रिक्वॉयरमेंट होती है। वे यही तलाश करती हैं कि कौन-सा कैैंडिडेट वह रिक्वॉयरमेेंट पूरी कर सकता है, उसी हिसाब से ऑफर भी दिया जाता है।
नो कॉम्प्रोमाइज विद क्वॉलिटी
कंपनी छोटी हो या बड़ी, कोई भी कंपनी अपनी क्वॉलिटी से कॉम्प्रोमाइज नहीं करती। हर कंपनी यही चाहती है कि सलेक्टेड एम्प्लॉयी ज्यादा से ज्यादा प्रॉफिट अर्न कराने में सहयोग दे।
साइकोलॉजिकल अप्रोच
इंटरव्यू के दौरान सलेक्शन बोर्ड यह चेक करता है कि कैैंडिडेट का एटीट्यूड कैसा है, किसी भी सिचुएशन को कैसे हैंडल करता है, कितना पॉजिटिव है, कितना इनोवेटिव है। कंपनी यह भी देखती है कि कैैंडिडेट ऑफर एमाउंट पर किस तरह रिएक्ट करता है।
सैलरी निगोसिएशन
यह इंटरव्यू का काफी अहम हिस्सा होता है। हर कंपनी यही चाहती है कि कम से कम एमाउंट में बेस्ट कैैंडिडेट हायर करे। बड़ी कंपनीज का फिक्स्ड सैलरी स्ट्रक्चर होता है, वे उसे ही फॉलो करती हैं। उनके साथ नेगोसिएशन की कोई जरूरत नहींपड़ती।
इंटरव्यू के दौरान आप खुद को एक प्रोडक्ट समझें। सलेक्शन के लिए आपको यही दिखाना होता है कि आप कंपनी की डिमांड पूरी तरह फुलफिल कर सकते हैं और आप ही उनके लिए बेस्ट च्वॉइस हैं।
कॉन्सेप्ट ऐंड इनपुट :
अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव
इनपुट : इंदौर से गजेंऌऌद्र शर्मा, लखनऊ से कुसुम भारती, जालंधर से वंदना वालिया, रांची से सौरभ सुमन
बढ़ रही संतुष्टि की चाहत
आज के यंगस्टर्स के लिए सैलरी नहीं, पैशन बड़ा हो गया है। उनकी प्राथमिकताएं बदल रही हैं। जॉब से सिर्फ पैसा नहीं, संतुष्टि की चाहत भी रख रहे हैं। उनका करियर प्लान लॉन्ग टर्म का सोच कर हो रहा है, क्योंकि वह पहले से कहीं अधिक कांशस हो गए हैं। इसलिए बड़े ऑफर्स भी आसानी से स्वीकार नहींकर रहे हैं। जहां तक प्लेसमेंट से रिलेटेड ग्रूमिंग का सवाल है, तो आइआइटी में स्टूडेंट्स को एकेडमिक्स के साथ कम्युनिकेशन जैसे सॉफ्ट स्किल्स और इंडस्ट्री की जरूरत के मुताबिक ट्रेन किया जाता है। उन्हें इस बात के लिए मोटिवेट किया जाता है कि वे अपने इंट्रेस्ट पर अधिक फोकस करें, न कि सैलरी या बड़े पे-पैकेज पर।
प्रो.सुधीर बरई, चेयरमैन, करियर डेवलपमेंट सेंटर, आइआइटी खडï्गपुर
प्रैक्टिकल प्रिपरेशन पर जोर
पटियाला की थापर यूनिवर्सिटी के 12 स्टूडेंट्स की प्लेसमेंट 23 लाख रुपये प्रतिवर्ष के पैकेज के साथ जापान की आइटी फर्म हिकारी सूशिन में हुई है। इनके अलावा डीई शॉ इंडिया ने भी यहां के एक स्टूड़ेंट को 18.5 लाख रुपये का पैकेज दिया है। इस प्लेसमेंट में अच्छे नतीजों के लिए यूनिवर्सिटी प्रैक्टिकल प्रिपरेशन पर अधिक जोर देती है।
स्पेशल लेक्चर्स से होती है ट्रेनिंग
कैम्पस रिक्रूटमेंट से पहले जुलाई-अगस्त में स्टूडेंट्स के लिए विशेष लेक्चर आयोजित किये जाते हैैं, जिनमें इंडस्ट्रियल एक्सपट्र्स को बुलाया जाता है, ताकि उनसे स्टूडेंट्स को रिएलिटी की नॉलेज हो सके। इसके अलावा मार्च-अप्रैल में फिर से बड़ी कंपनीज जैसे टाटा मोटर्स, माइक्रोसॉफ्ट आदि के एक्सपट्र्स, जैसे-वाइस प्रेसिडेंट एचआर को बुलाया जाता है जो स्टूडेंट्स को बताते हैैं कि इंडस्ट्री की उनसे क्या अपेक्षाएं हैं।
मॉक-ड्रिल से होती है तैयारी
हम स्टूडेंट्स को इस बात के लिए भी तैयार करते हैैं कि उन्हें किसी ग्रुप डिस्कशन में कैसे पार्टिसिपेट करना है? इंटरव्यू के लिए क्या और कैसी तैयारी करनी है? रिज्यूमे कैसे तैयार करना है? इन सभी के लिए मॉक ड्रिल करवायी जाती है। इस तरह की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग से न केवल स्टूडेंट्स में आत्मविश्वास बढ़ता है, बल्कि उन्हें किसी भी चुनौती में बिल्कुल सहज महसूस होता है।
एचएस बावा, इंडस्ट्रियल को-ऑर्डिनेटर और
हेड ऑफ इंडस्ट्रियल लायसन ऐंड प्लेसमेंट, थापर यूनिवर्सिटी, पटियाला