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जुनून + स्मार्ट स्टडी = सफलता

जुनून और स्मार्ट स्टडी से बने सफल बंदूकों से खेलने वाले स्वतंत्र पर बचपन से ही पुलिस में जाने का जुनून सवार था। उन्होंने इंजीनियरिंग सिर्फ इसलिए छोड़ दी, क्योंकि उन्हें पुलिस अफसर बनना था, आखिरकार उनका जुनून रंग लाया। पुलिस अफसर बनने की प्रेरणा कैसे मिली ? मेरे इलाके में क्त्राइम का ग्राफ काफी ऊपर है। बचपन से ही देखता आया। म

By Edited By: Published: Mon, 21 Jul 2014 04:26 PM (IST)Updated: Mon, 21 Jul 2014 04:26 PM (IST)
जुनून + स्मार्ट स्टडी = सफलता

बंदूकों से खेलने वाले स्वतंत्र पर बचपन से ही पुलिस में जाने का जुनून सवार था। उन्होंने इंजीनियरिंग सिर्फ इसलिए छोड़ दी, क्योंकि उन्हें पुलिस अफसर बनना था, आखिरकार उनका जुनून रंग लाया।

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पुलिस अफसर बनने की प्रेरणा कैसे मिली ?

मेरे इलाके में क्त्राइम का ग्राफ काफी ऊपर है। बचपन से ही देखता आया। मन में यही घर कर गया कि क्त्राइम कंट्रोल के लिए मुझे पुलिस में भर्ती होना है। जिस स्कूल में पढ़ाई की, वह कोतवाली से लगा हुआ है। अक्सर पुलिस अफसरों को देखता था। इसके अलावा मेरे नाना गिरीश नंदन और कजन सुशील कुमार सिंह दोनों ही आइपीएस रहे हैं। इन लोगों से भी काफी प्रेरणा मिली।

बंदूकों से आपको काफी लगाव है, कोई खास वजह ?

मेरे घर में कई तरह की बंदूकें रखी हैं। नाना और पिताजी अक्सर तरह-तरह की बंदूकों के बारे में चर्चा करते रहते थे। इसी पारिवारिक माहौल की वजह से मुझे भी बंदूकों में काफी इंट्रेस्ट पैदा हो गया। धीरे-धीरे इनके बारे में जानकारी रखने का शौक डेवलप होता गया। इसीलिए बंदूकों के बारे में बुक्स और इंटरनेट के माध्यम से काफी नॉलेज गेन करता गया। धीरे-धीरे यह इंट्रेस्ट और बढ़ता गया। इंटरव्यू में भी इसके बारे में सवाल पूछे गए। बोर्ड मेरी इस हॉबी से काफी प्रभावित हुआ।

इंजीनियरिंग में एडमिशन लेकर छोड़ क्यों दिया ?

मैंने 10+2 साइंस स्ट्रीम से किया और उसके बाद मुंबई के डी वाई पाटिल कॉलेज में इंजीनियरिंग करने भी गया। लेकिन फ‌र्स्ट सेमेस्टर के बाद ही मेरा मन इंजीनियरिंग से उचट गया। मुझे लगा कि मुझे तो पुलिस अफसर बनना है, फिर यहां इंजीनियरिंग क्यों कर रहा हूं और मैंने इंजीनियरिंग छोड़ दी। परिवार ने काफी विरोध किया, लेकिन मैंने सबको समझाया कि मुझे इंजीनियर नहीं बनना, बल्कि पुलिस अफसर बनना है। इंजीनियरिंग छोड़कर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बीए में एडमिशन लिया।

सिविल सर्विसेज की तैयारी कब और कैसे शुरू की ?

बीए में एडमिशन लेने के बाद मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के एएनझा हॉस्टल में आ गया। यह हॉस्टल कभी 'आईएएस फैक्टरी' कहा जाता था। आज भी वहां सिविल एस्पिरेंट्स के लिए बहुत अच्छा माहौल है। उस माहौल का मुझ पर काफी असर पड़ा। तैयारी कैसे करते हैं ? और सिविल सर्विसेज में कैसे सफल हो सकते हैं, यह समझ में आया। वहां से बीए करने के बाद सीनियर्स की सलाह पर दिल्ली चला आया और दिल्ली यूनिवर्सिटी में एमए में एडमिशन ले लिया। पहले सेल्फ स्टडी की और फिर कोचिंग में एडमिसन लेकर सीरियसली पढ़ाई करने लगा।

आपने यही सब्जेक्ट क्यों चुना ?

हिंदी साहित्य और इतिहास दोनों में ही मेरा बहुत इंट्रेस्ट है। इंजीनियरिंग छोड़कर ग्रेजुएशन में मैंने यही सब्जेक्ट्स लिए। बाद में हिंदी में तो मेरा इंट्रेस्ट इस कदर बढ़ा कि मैं इंग्लिश मीडियम के बैकग्राउंड का होने के बावजूद हिंदी मीडियम से सिविल सर्विस एग्जाम दिया और सफल रहा। इंग्लिश बैकग्राउंड होने की वजह से मुझे इंग्लिश की बुक्स पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं हुई और हिंदी अच्छी होने की वजह से हिंदी मीडियम में अपनी बात सही ढंग से लिख सका।

तैयारी में आपकी स्ट्रेटेजी क्या रही ?

प्री और मेन्स और इंटरव्यू के लेवल पर मैटेरियल्स को अलग-अलग छांट लेता था। हर तरह की बुक्स और नोट्स पढ़ता था, लेकिन सबसे ज्यादा भरोसा मुझे खुद के बनाए हुए नोट्स पर ही है। नोट्स भी सिनोप्निस के फॉर्म हों, तो आसानी से दोहराया जा सकता है। सही स्ट्रेटेजी के लिए कोचिंग की सहायता ली जा सकती है, लेकिन जरूरी नहीं है। अगर कोई सही मेंटर हो, तो सेल्फ स्टडी करके भी सफल हो सकते हैं।

क्या दिन-रात पढ़ते रहने से सफलता मिलती है ?

बिल्कुल नहीं। हार्ड वर्क नहीं, बल्कि स्मार्ट हार्ड वर्क जरूरी है। क्या पढ़ना है, इससे ज्यादा जरूरी है कि आप जानें कि क्या नहीं पढ़ना है। तभी आप अपने समय और मेहनत का सही यूज कर पाएंगे। माइंड फ्रेश और शॉर्प होना जरूरी है। अगर आप एंच्वॉय करते हुए पढ़ाई नहीं करेंगे, तो यह बोझ लगने लगेगा। इसलिए पढ़ाई के दौरान ब्रेक जरूर लें। मैं अक्सर कई दिनों की पढ़ाई के बाद घूमने निकल जाया करता था। तैयारी में सबसे ज्यादा योगदान किसका रहा ?

मेरे हॉस्टल और मेरी मां का। मां ने हर इमोशनल ब्रेक डाउन पर सहारा दिया। हर वक्त कांफिडेंस बढ़ाती थीं। जब रिजल्ट निगेटिव आता था, तो मां यही कहती थी, छोड़ो, अगली बार के लिए सोचो।

स्वतंत्र सिंह

(जौनपुर, उत्तर प्रदेश)

पीसीएस टॉपर, रैंक-26

Profile @?Glance

-बी.ए. : इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

-एम.ए. : दिल्ली यूनिवर्सिटी

-चौथे अटेम्प्ट में सेलेक्शन

-2008 में सीआरपीएफ मे असिस्टेंट कमांडेंट पद पर चयन

-2010 में राजनीति विज्ञान में नेट जेआरएफ क्वालीफाइ़ड

-2009 में पीसीएस मेन्स दिया, लेकिन क्वालीफाई नहीं

-2010 और 2011 में इंटरव्यू तक, लेकिन सेलेक्शन नहीं

-2011 और 2013 में आइएएस के इंटरव्यू राउंड तक

इंटरैक्शन : मिथिलेश श्रीवास्तव


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