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करियर के Sixers

वल्र्ड कप का फीवर दुनियाभर के क्रिकेट प्रेमियों पर दिख रहा है। नेशनल-इंटरनेशनल लेवल पर पहचान बनाने की चाहत रखने वाले किशोरों-युवाओं के लिए वल्र्ड कप, आइपीएल जैसे टूर्नामेंट बूस्टर का काम करते हैं। हाल के वर्षों में क्रिकेट में बैट्समेन, बॉलर्स और ऑलराउंडर्स के रूप में खूब मौके तो

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 18 Feb 2015 04:11 PM (IST)Updated: Wed, 18 Feb 2015 04:13 PM (IST)
करियर के Sixers

वल्र्ड कप का फीवर दुनियाभर के क्रिकेट प्रेमियों पर दिख रहा है। नेशनल-इंटरनेशनल लेवल पर पहचान बनाने की चाहत रखने वाले किशोरों-युवाओं के लिए वल्र्ड कप, आइपीएल जैसे टूर्नामेंट बूस्टर का काम करते हैं। हाल के वर्षों में क्रिकेट में बैट्समेन, बॉलर्स और ऑलराउंडर्स के रूप में खूब मौके तो सामने आए ही हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि अब उनके लिए भी अनेक आकर्षक अवसर सामने आ गए हैं, जो किसी कारण क्रिकेटर तो नहीं बन पा रहे, पर खेल के करीब रहना चाहते हैं। क्रिकेटर्स के साथ-साथ इससे जुड़े करियर ऑप्शंस पर केंद्रित एक्सक्लूसिव स्टोरी...

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अभिषेक बिहार के पूर्णिया जिले के रहने वाले हैं। बचपन से ही सचिन और सहवाग को चौके-छक्के मारते देखते बड़े हुए। मैच शुरू होते ही टीवी के सामने जम जाते थे और मैच खत्म होते ही बैट-बॉल लेकर चल देते थे फील्ड में और फिर दे दनादन चौकेे-छक्कों की बरसात। धीरे-धीरे मन में यह सपना जमने लगा कि तेेंदुलकर जैसा बनना है। स्कूल, डिस्ट्रिक्ट और फिर स्टेट लेवल पर खेला। जैसे-जैसे रन बनते गए, उनके हौसलों की उड़ान भी ऊंची होती गई। इसके साथ ही मैच देखने का उनका तरीका भी थोड़ा बदला। पहले मैच शुरू होने पर टीवी देखते थे, अब मैच शुरू होने से एक घंटे पहले ही जम जाते हैं। दोनों तरफ की टीमों की एनालिसिस देखते हैं। पिच रिपोर्ट देखते हैं। कौन-सा प्लेयर किस तरह से खेलता है, किसने कितने सिक्सर लगाए और किसने कितने विकेट लिए, इन सारी बातों में उन्हें इंट्रेस्ट आने लगा। धीरे-धीरे वह रणजी पहुंच गए, लेकिन फैमिली की जिम्मेदारियों की वजह से वह अपनी प्रैक्टिस पर ज्यादा वक्त नहीं दे पाते। नतीजा वह रणजी से आगे नहींबढ़ पाए।?पर, उन्होंने सही वक्त पर मौके का सही फायदा उठाया और कमेंटेटर का करियर अपना लिया। आज वह अपने इंट्रेस्ट के फील्ड यानी क्रिकेट से जुड़े भी हैं और अच्छी-खासी कमाई भी कर रहे हैं। अभिषेक की राह पर चलने वाले तमाम लोग हैं। दरअसल, कुछ साल पहले तक गार्जियंस अपने बच्चों को खेलने-कूदने में टाइम वेस्ट करने की बजाय पढ़ाई में मन लगाने को कहा करते थे। कोई बच्चा खेलता-कूदता था, तो उसे डांट-डपट कर पढऩे बैठा दिया जाता था। पर क्रिकेट का क्रेज बढऩे और स्पोट्र्स लीग आने के बाद खेलों के प्रति गार्जियंस का नजरिया भी बदल गया है। अब वे अपने बच्चों में भी तेंदुलकर और धौनी तलाश रहे हैं, लेकिन इस फील्ड में फ्यूचर ऑस्पेक्ट्स इससे कहींज्यादा हैं। क्रिकेटर के अलावा अब तमाम आकर्षक विकल्प सामने आ गए हैं। इन ऑप्शंस में पैसा भी है, ग्लैमर भी और अपने पैशन के पूरा होने का सेल्फ सटिस्फैक्शन भी। आइए जानते हैं इन तमाम विकल्पों और उनमें संभावनाओं के बारे में...

क्रिकेट का पहला ïवल्र्ड कप 7 जून 1975 को इंग्लैंड के लॉड्र्स मैदान पर भारत और

इंग्लैंड के बीच खेला गया था। पहला ओवर मदनलाल ने डाला था।

बल्लेबाजी का दम

उन्मुक्त चंद

बैट्समैन, रणजी टीम, दिल्ली

2012 के अंडर-19 विश्व कप क्रिकेट के हीरो रहे दिल्ली के उन्मुक्त चंद आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अपनी धुआंधार बल्लेबाजी और शतकीय पारियों से उन्होंने बेहद कम उम्र में क्रिकेट प्रशंसकों का दिल जीता है। उन्मुक्त फिलहाल दिल्ली रणजी टीम की ओर से खेलते हैं। उन्मुक्त सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं, लेखक भी हैं। उन्होंने स्काई इज द लिमिट नाम से एक किताब भी लिखी है, जिसमें उनके क्रिकेटर बनने से लेकर अंडर-19 वल्र्ड कप विजेता बनने तक की कहानी है।

बचपन से रहा फोकस्ड

मैंने चार-पांच साल की उम्र से क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। जब सात वर्ष का हुआ, तो पेरेंट्स ने कोचिंग के लिए नेशनल स्टेडियम भेजा। वहां कोच एम.पी.सिंह की गाइडेंस में खुद को तराशा। इसके बाद बाराखंभा स्थित मॉडर्न स्कूल में पढ़ते हुए इंटर स्कूल कॉम्पिटिशंस में हिस्सा लिया और कुछ समय बाद दिल्ली की स्टेट लेवल टीम में मेरा सलेक्शन हो गया। वहां से मुझे अंडर-16, अंडर-17 और अंडर-19 खेलने का अवसर मिला। अंडर-19 ने ही रणजी टीम में शामिल होने का रास्ता क्लियर किया। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जब मैं 12वीं में था, तभी आइपीएल में खेलने का न्योता आया। मैंने 2011 में दिल्ली डेयरडेविल्स से आइपीएल में आगाज किया। इसके बाद राजस्थान रॉयल्स की ओर से खेला हूं।

पढ़ाई के साथ खेल

हालांकि मैंने पढ़ाई को कभी हल्के में नहीं लिया। आठवीं तक मैं क्लास का टॉपर रहा। इस समय भी खेल के साथ-साथ सेंट स्टीफंस से बीए कर रहा हूं। जब भी समय मिलता है, तो डायरी लिखता हूं।

टीम इंडिया में जगह

हर किसी का सपना होता है टीम इंडिया में अपनी जगह बनाना। मेरा भी है। लेकिन मैं एक बार में एक ही चीज पर ध्यान देता हूं। इस समय पूरा फोकस रणजी पर है। अगर आप लगातार अच्छा परफॉर्म करते हैं, तो सलेक्टर्स खुद-ब-खुद इंप्रेस होते हैं। मैंने अपनी प्रैक्टिस में कोई कमी नहींआने दी है। सक्सेस के लिए डिसिप्लिन और डेडिकेशन का कोई विकल्प नहीं है। लाइफ में विजन और एजुकेशन की अपनी अहमियत है।

चाइनामैन बॉलर

कुलदीप यादव

लेग स्पिन बॉलर, केकेआर

इंडियन क्रिकेट मेें वीनू मांकड़, बिशन सिंह बेदी जैसे क्लासिक लेफ्ट हैंड स्पिनर्स हुए हैं, लेकिन 20 वर्षीय कुलदीप यादव को भारत के पहले चाइनामैन स्पिन गेंदबाज का खिताब हासिल है। 11 साल की उम्र में पहली बार क्रिकेट से नाता जुड़ा था। इस समय ये कोलकाता नाइट राइडर्स के अलावा यूपी की ओर से खेलते हैं।

करियर का पहला ट्विस्ट

पिता जी चाहते थे कि मैं पढ़ाई के साथ क्रिकेट भी खेलूं। मैं वसीम अकरम की तरह पेस बॉलर बनना चाहता था। लेकिन जब कोच के पास पहुंचा, तो उन्होंने मेरे अंदर छिपी प्रतिभा (चाइनामैन गेंदबाज) को पहचाना और मुझे स्पिन गेंदबाजी के लिए प्रेरित किया। शुरू मेें एक झटका-सा लगा, मगर मैंने उनकी बात मान ली।

लाइफ के टर्निंग प्वाइंट्स

मैं जब आठवीं में था, तो कानपुर के एक स्कूल में मेरा दाखिला करा दिया गया। वहां मैंने खेल के बेसिक्स सीखे। इसके बाद अंडर-15, अंडर-16 और अंडर-19 के मैचेज खेले। इसी दौरान नेशनल क्रिकेट एकेडमी में भी प्रशिक्षण लिया। 2012 में 17 साल की उम्र में पहली बार इंडिया की ओर से ऑस्ट्रेलिया में अंडर-19 टूर्नामेंट खेलने का मौका मिला। लेकिन लाइफ का टर्निंग प्वाइंट 2014 का अंडर-19 वल्र्ड कप रहा, जब मैंने दुबई में स्कॉटलैंड के खिलाफ हैट्रिक ली और कुल 14 विकेट्स झटके। इंडिया लौटने पर मुंबई इंडियंस ने मुझे अपनी टीम में शामिल कर लिया। वहां तेंदुलकर से 20 मिनट की बातचीत मेरे लिए लाइफ चेंजिंग मोमेंट रही।

सपना हुआ पूरा

मुंबई इंडियंस के बाद मैं कोलकाता नाइट राइडर्स में आ गया। फिर चैंपियंस लीग खेला। गौतम गंभीर और सुरेश रैना ने काफी सपोर्ट किया है। अक्टूूबर 2014 में मेरा वेस्ट इंडीज के खिलाफ ओडीआई सीरीज में चयन होना, एक सपने के पूरा होने जैसा था। हालांकि फील्ड में उतर नहींसका, लेकिन आगे के लिए उम्मीद नहीं खोई है।

नेशनल क्रिकेट एकेडमी

क्रिकेट में करियर के लिए सबसे जरूरी है खेल की बेसिक नॉलेज। अगर आप कोच, फिजियो, ट्रेनर या क्यूरेटर के रूप मेें करियर का आगाज करना चाहते हैं, तो बीसीसीआइ द्वारा संचालित नेशनल क्रिकेट एकेडमी, बेंगलुरु से ए, बी और सी लेवल के कोर्स कर सकते हैं। कोच के ए लेवल का कोर्स करने के लिए कैंडिडेट को इंटरनेशनल, नेशनल, स्टेट, डिस्ट्रिक्ट, यूनिवर्सिटी या क्लब लेवल का क्रिकेट खेला होना चाहिए। वहीं, बी लेवल कोर्स के लिए लेवल ए क्वालिफाइड कोच और कम से कम 12 महीने का कोचिंग एक्सपीरियंस होना चाहिए। जबकि सी लेवल कोर्स के लिए लेवल बी क्वालिफाइड कोच और 24 महीने का वर्क एक्सपीरियंस होना जरूरी है। आइपीएल और घरेलू क्रिकेट को प्रोत्साहन मिलने से इंडिया में बल्लेबाजी के अलावा गेंदबाजी और फील्डिंग के कोच भी हायर किए जाने लगे हैं। आप चाहेें तो नेशनल और स्टेट टीम्स के अलावा किसी एकेडमी के साथ भी अपना करियर शुरू कर सकते हैं।

खिलाडिय़ों का कोच

एक प्लेयर की काबिलियत की पहचान और उसकी प्रतिभा को निखारने वाला कोच होता है। क्रिकेट वल्र्ड में कोच की बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि वह अपने अनुभव से भविष्य की नींव तैयार करता है। दरअसल, एक खिलाड़ी की उम्र बहुत सीमित होती है। ऐसे में अपने पैशन को जीने के लिए वह कोचिंग का रास्ता चुन लेता है, यानी ज्यादातर पूर्व खिलाड़ी ही इस पेशे में आते हैं। लेकिन अब नए लोग भी ट्रेनिंग के बाद सीधे कोच के तौर पर करियर शुरू कर सकते हैं।

वर्क प्रोफाइल

एक काबिल कोच, खिलाड़ी का टीचर, मेंटर, गाइड और फ्रेंड सभी होता है। वह खिलाड़ी में सोशल स्किल डेवलप करता है। वह उन्हें बैटिंग, बॉलिंग, फील्डिंग और विकेटकीपिंग की सही तकनीक से अवगत कराता है। उनकी कमियों को दूर करने का रास्ता बताता है।

एलिजिबिलिटी

ए लेवल कोच बनने के लिए साइंस में बैचलर्स डिग्री के अलावा कैंडिडेट ने इंटरनेशनल, नेशनल चैंपियनशिप या यूनिवर्सिटी लेवल या इंटर-स्टेट लेवल चैंपियनशिप में हिस्सा लिया हो। इसके अलावा, उसने रणजी मैच खेला हो। इसके लिए कैंडिडेट कोलकाता स्थित एनएसएनआइएस में क्रिकेट कोचिंग का डिप्लोमा भी कर सकते हैं।

खिलाडिय़ों की परख

कोच को हर खिलाड़ी की शारीरिक बनावट और साइकोलॉजी की समझ होनी चाहिए। उसे कभी पूर्वाग्रह से ग्रसित नहींहोना चाहिए। उसके और खिलाड़ी के बीच अच्छी बॉन्डिंग हो, तो अच्छे परिणाम आएंगे।

कपिल पांडे, कोच

1996 में खेले गए छठे वल्र्ड कप में पहली बार थर्ड अंपायर को शामिल किया गया। तब से

थर्ड अंपायर की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है।

फैसला आपके हाथ

अनिल चौधरी

अंपायर, आइसीसी

30-35 की उम्र तक क्रिकेट खेलने के बाद ही लोग अंपायरिंग के प्रोफेशन में आते हैं, लेकिन अनिल चौधरी ने 24 साल की उम्र में ही अंपायरिंग शुरू कर दी थी। वल्र्ड कप के फाइनल में अंपायर रहे एकमात्र भारतीय रामबाबू गुप्ता ने मुझे काफी प्रेरित किया और आज मैं आइसीसी के अंपायर पैनल में शामिल हो चुका हूं। बचपन में वॉलीबॉल खेलता था, तब जरा भी नहीं सोचा था कि कभी इंटरनेशनल अंपायर बनूंगा, लेकिन सही मौके पर सही डिसीजन ने मुझे यहां तक पहुंचा दिया।

कई लेवल पर होते हैं एग्जाम

स्टेट स्पोट्र्स अथॉरिटीज इसके लिए समय-समय पर रिटेन और प्रैक्टिकल एग्जाम करवाती हैं। आपको एग्जाम क्वालिफाई करना होता है। इसके बाद आप बीसीसीआइ के दो लेवल के एग्जाम के लिए एलिजिबल हो जाते हैं। बीसीसीआइ का एग्जाम क्वालिफाई करने के बाद आप हाई लेवल पर अंपायरिंग कर सकेंगे। आइसीसी में अंपायरिंग के लिए तीन लेवल के और भी एग्जाम देने होंगे।

कितनी सैलरी मिलती है

-नेशनल लेवल : 10,000 रुपये प्रति मैच

-लोअर लेवल : 800-1000 रुपये प्रति मैच

क्या-क्या स्किल्स चाहिए

-आपको क्रिकेट के सारे नियम पता होने चाहिए।

-क्रिकेट के हर पहलू की डीप नॉलेज होनी चाहिए।

-तुरंत डिसीजन लेने की क्षमता होनी चाहिए।

-अच्छा मैनेजर होना चाहिए।

-बहुत ज्यादा धैर्यवान होना चाहिए।

कहां से करें कोर्स

स्टेट अथॉरिटी द्वारा कंफर्म होने के बाद बीसीसीआइ की क्लासेज अटेंड कर सकते हैं।

खिलाड़ी से मेंटर तक

अमित भंडारी बॉलिंग कोच, रणजी टीम, दिल्ली

मदनलाल के बाद दिल्ली की ओर से 300 विकेट लेने वाले दूसरे गेंदबाज अमित भंडारी एक सीमर (सीम बॉलर) के तौर पर पहचाने जाते रहे हैं। 2011 में 32 साल की उम्र में फस्र्ट क्लास क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद इन्होंने कोच के तौर पर एक नई पारी की शुरुआत की और आज दिल्ली रणजी टीम के बॉलिंग कोच हैं। इसके साथ ही सहवाग क्रिकेट एकेडमी में बच्चों को खेल की बारीकियां सिखा रहे हैं।

खेल को वापस लौटाने की चाह

मैंने 1997-98 सीजन में पहली बार प्रथम श्रेणी क्रिकेट में डेब्यू किया था। इंडिया के लिए दो वन डे इंटरनेशनल के अलावा दिल्ली के लिए करीब 95 फस्र्ट क्लास मैचेज खेले। रणजी खेला और उसमें सफल भी रहा, लेकिन क्रिकेट को अलविदा कहते समय मैंने फैसला किया कि क्यों न उस खेल को कुछ वापस दूं, जिसने मुझे पहचान दी, और फिर मैंने बच्चों को कोचिंग देना शुरू कर दिया।

नई तकनीक से कोचिंग

कोचिंग में आज से 20 साल पहले इतने ऑप्शंस नहीं थे। लेकिन आइपीएल और रणजी जैसे टूर्नामेंट्स ने क्रिकेट कोचिंग में कई बदलाव लाए। अब मैच की सीडी बनाकर उसे दोबारा देखा जा सकता है। इससे खिलाडिय़ों को उनकी कमियों के अलावा दूसरे की टेक्निक की जानकारियां मिलती हैं, जो कोचिंग में भी काफी मददगार साबित होती हैं। जहां तक गेंदबाज बनने का सवाल है, तो वह आपकी शारीरिक बनावट, फिटनेस और स्टैमिना पर निर्भर करता है। इसलिए पहले आप स्किल सीखें, फिर गेम में उतरें।

1983 वल्र्ड कप में इंडियन टीम फाइनल मैच में लॉड्र्स के मैदान पर वेस्टइंडीज से जीतकर पहली बार चैंपियन बनी थी। मोहिंदर अमरनाथ को मैन ऑफ द मैच मिला था।

आंखों देखा खेल

सुधीर त्यागी

कमेंटेटर

मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि क्रिकेट कमेंटेटर बनूंगा। गली-मैदान में बल्ला घुमाते कब कमेंटेटर बन गया, पता ही नहीं चला।

कमेंट्री करो, छा जाओगे !

शुरुआत में मैंने एफएम रेनबो ज्वाइन किया। 7-8 साल तक वहीं काम किया। कई सारे क्रिएटिव शोज किए। वहां एक प्रोड्यूसर थे, संजय अग्रवाल। उन्हें मेरी आवाज, मेरा स्टाइल और मेरी कमेंट्री अच्छी लगती थी। वे अक्सर जोर देकर कहा करते थे, कहां फंसे हो, क्रिकेट कमेंट्री करो, छा जाओगे ! उनके बार-बार कहने का असर हुआ। मैंने आकाशवाणी में क्रिकेट कमेंट्री शुरू कर दी। 7-8 कमेंट्रीज करने के बाद मुझे फिर नोटिस किया गया। पहले जोनल और फिर नेशनल लेवल के मैचेज में कमेंट्री करने लगा।

कैसे बनें कमेंटेटर

टीवी की बजाय अगर रेडियो से शुरुआत करें, तो अच्छा रहेगा, खास तौर पर प्राइवेट एफएम चैनलों से। रेडियो प्रोग्राम्स के लिए एक-दो मिनट की स्क्रिप्ट लिखकर पढऩे से शुरुआत कर सकते हैं।

जरूरी स्किल्स

-क्रिकेट की प्रैक्टिकल नॉलेज होनी चाहिए।

-क्रिकेट से जुड़े पुराने आंकड़े भी याद होने चाहिए और लेटेस्ट अपडेट्स भी पता होने चाहिए।

-बातचीत करने की कला होनी चाहिए।

-हंसमुख स्वभाव और फ्लुएंट जुबान होनी चाहिए।

-बोरिंग से बोरिंग मैच को भी अपने कमेंट्स से चुटीला बनाने का हुनर होना चाहिए।

-अपना अलग इंट्रेस्टिंग स्टाइल होना चाहिए।

-इंग्लिश-हिंदी पर एक्सीलेंट कमांड होनी चाहिए।

-आवाज में प्रोननसिएशन, डिक्शन, मॉड्यूलेशन और पिच सब सही और बैलेंस्ड होना चाहिए।

इंजरी से रखे दूर

डॉ. बद्रीनाथ प्रथी फिजियोथेरेपिस्ट, रणजी टीम, दिल्ली

स्पोट्र्स फिजियोथेरेपिस्ट किसी भी टीम की मां की तरह होता है। वह खिलाडिय़ों के चोट या इंजरी को ठीक कर, उन्हें दोबारा फील्ड पर उतरने के काबिल बनाता है। दिल्ली रणजी टीम के स्पोट्र्स टीम फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. बद्रीनाथ प्रथी भी बीते दस साल से खिलाडिय़ों के साथ जुड़े हुए हैं।

खेलों में थी दिलचस्पी

मुझे शुरू से ही क्रिकेट, बैडमिंटन जैसे खेलों में रुचि रही है। खुद एक एथलीट हूं। तमाम व्यस्तताओं के बावजूद आज भी दिल्ली हाफ मैराथन में हिस्सा लेने से नहीं चूकता। मैं समझता हूं कि एक स्पोट्र्स में किस तरह की डिमांड होती है, कैसी फिजिकल इंजरीज होती हैं? उन्हें समय पर ठीक करना कितना बड़ा चैलेंज होता है? इसलिए मैंने स्पोट्र्स फिजियोथेरेपी में करियर बनाने का फैसला किया। 2002 में मणिपाल यूनिवर्सिटी से डिग्री लेने के बाद शुरू में कुछ संस्थानों में फिजियोथेरेपी की क्लासेज ली। इसके बाद 2005 से दिल्ली रणजी टीम के साथ हूं।

हैंडल विद केयर

हर खिलाड़ी एक क्रिएटिव शख्सियत होता है। ऐसे में उसे बहुत ध्यान से हैंडल करना पड़ता है। मेरी कोशिश रहती है कि खिलाड़ी के इंजरी पैटर्न का जल्द से जल्द पता लगाकर उन्हें समय रहते आगाह कर सकूं। मैच से पहले खिलाड़ी का फिटनेस टेस्ट करना मेरी ही जिम्मेदारी होती है। एक फिजियो के लिए सबसे जरूरी है मानसिक रूप से स्ट्रॉन्ग रहना और एक खिलाड़ी के नजरिए से सोचना। यह एक रिजल्ट ओरिएंटेड प्रोफेशन है, इसलिए आपको धैर्य रखना होगा।

पिच का साइंटिस्ट

क्रिकेट के खेल का सबसे अहम हिस्सा होता है, ग्राउंड के मध्य स्थित 22 यार्ड की जगह जिसे पिच कहते हैं और यह तैयार करता है क्यूरेटर। क्यूरेटर वह शख्स है, जो मैच के लिए स्पोट्र्स ग्राउंड, खासकर पिच तैयार करता है। यह एक साइंटिफिक प्रोफेशन है, जिसमें मिट्टी और मौसम दोनों की अच्छी समझ रखना जरूरी है।

मौसम के अनुसार निर्माण

कोई भी पिच किसी इलाके के मौसम और आबोहवा को ध्यान में रखकर तैयार की जाती हैं। क्यूरेटर की पूरी कोशिश होती है कि वह स्पोर्टिंग पिच तैयार करे, जिससे बल्लेबाज और गेंदबाज, दोनों को बराबर का फायदा हो। एक पिच का बिहैवियर मुख्य रूप से पांच चीजों पर निर्भर करता है-मिट्टी, घास, नमी, रोल का साइज या वजन और मौसम।

बीसीसीआइ देता है ट्रेनिंग

क्यूरेटर बनने के लिए आपके पास प्रथम श्रेणी का क्रिकेट खेलने या फिर इंटरनेशनल क्रिकेट सेंटर्स में काम करने का अनुभव होना चाहिए। इसके बाद आप बीसीसीआइ से 15 दिन से लेकर तीन हफ्ते का सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं। इसके तहत मोहाली स्थित पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन के ग्राउंड में 75 सेशंस होते हैं। सेशंस पूरा होने पर आपको थ्योरी औऱ प्रैक्टिल एग्जाम देना होता है।

डिमांडिंग है जॉब

क्यूरेटर का जॉब काफी डिमांडिंग होता है। उसे हर नई टेक्नोलॉजी और टेक्निक से खुद को अपडेट रखना होता है। बीसीसीआइ भी समय-समय पर अपने 30 संबद्ध क्यूरेटर्स को ट्रेनिंग और मैन्युअल्स देता रहता है।

शिवकुमार, चीफ क्यूरेटर,

ग्रीन पार्क, कानपुर

खिलाडिय़ों का कोच

एक प्लेयर की काबिलियत की पहचान और उसकी प्रतिभा को निखारने वाला कोच होता है। क्रिकेट वल्र्ड में कोच की बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि वह अपने अनुभव से भविष्य की नींव तैयार करता है। दरअसल, एक खिलाड़ी की उम्र बहुत सीमित होती है। ऐसे में अपने पैशन को जीने के लिए वह कोचिंग का रास्ता चुन लेता है, यानी ज्यादातर पूर्व खिलाड़ी ही इस पेशे में आते हैं। लेकिन अब नए लोग भी ट्रेनिंग के बाद सीधे कोच के तौर पर करियर शुरू कर सकते हैं।

वर्क प्रोफाइल

एक काबिल कोच, खिलाड़ी का टीचर, मेंटर, गाइड और फ्रेंड सभी होता है। वह खिलाड़ी में सोशल स्किल डेवलप करता है। वह उन्हें बैटिंग, बॉलिंग, फील्डिंग और विकेटकीपिंग की सही तकनीक से अवगत कराता है। उनकी कमियों को दूर करने का रास्ता बताता है।

एलिजिबिलिटी

ए लेवल कोच बनने के लिए साइंस में बैचलर्स डिग्री के अलावा कैंडिडेट ने इंटरनेशनल, नेशनल चैंपियनशिप या यूनिवर्सिटी लेवल या इंटर-स्टेट लेवल चैंपियनशिप में हिस्सा लिया हो। इसके अलावा, उसने रणजी मैच खेला हो। इसके लिए कैंडिडेट कोलकाता स्थित एनएसएनआइएस में क्रिकेट कोचिंग का डिप्लोमा भी कर सकते हैं।

खिलाडिय़ों की परख

कोच को हर खिलाड़ी की शारीरिक बनावट और साइकोलॉजी की समझ होनी चाहिए। उसे कभी पूर्वाग्रह से ग्रसित नहींहोना चाहिए। उसके और खिलाड़ी के बीच अच्छी बॉन्डिंग हो, तो अच्छे परिणाम आएंगे।

कपिल पांडे, कोच

1996 में खेले गए छठे वल्र्ड कप में पहली बार थर्ड अंपायर को शामिल किया गया। तब से

थर्ड अंपायर की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है।

फैसला आपके हाथ

अनिल चौधरी

अंपायर, आइसीसी

30-35 की उम्र तक क्रिकेट खेलने के बाद ही लोग अंपायरिंग के प्रोफेशन में आते हैं, लेकिन अनिल चौधरी ने 24 साल की उम्र में ही अंपायरिंग शुरू कर दी थी। वल्र्ड कप के फाइनल में अंपायर रहे एकमात्र भारतीय रामबाबू गुप्ता ने मुझे काफी प्रेरित किया और आज मैं आइसीसी के अंपायर पैनल में शामिल हो चुका हूं। बचपन में वॉलीबॉल खेलता था, तब जरा भी नहीं सोचा था कि कभी इंटरनेशनल अंपायर बनूंगा, लेकिन सही मौके पर सही डिसीजन ने मुझे यहां तक पहुंचा दिया।

कई लेवल पर होते हैं एग्जाम

स्टेट स्पोट्र्स अथॉरिटीज इसके लिए समय-समय पर रिटेन और प्रैक्टिकल एग्जाम करवाती हैं। आपको एग्जाम क्वालिफाई करना होता है। इसके बाद आप बीसीसीआइ के दो लेवल के एग्जाम के लिए एलिजिबल हो जाते हैं। बीसीसीआइ का एग्जाम क्वालिफाई करने के बाद आप हाई लेवल पर अंपायरिंग कर सकेंगे। आइसीसी में अंपायरिंग के लिए तीन लेवल के और भी एग्जाम देने होंगे।

कितनी सैलरी मिलती है

-नेशनल लेवल : 10,000 रुपये प्रति मैच

-लोअर लेवल : 800-1000 रुपये प्रति मैच

क्या-क्या स्किल्स चाहिए

-आपको क्रिकेट के सारे नियम पता होने चाहिए।

-क्रिकेट के हर पहलू की डीप नॉलेज होनी चाहिए।

-तुरंत डिसीजन लेने की क्षमता होनी चाहिए।

-अच्छा मैनेजर होना चाहिए।

-बहुत ज्यादा धैर्यवान होना चाहिए।

कहां से करें कोर्स

स्टेट अथॉरिटी द्वारा कंफर्म होने के बाद बीसीसीआइ की क्लासेज अटेंड कर सकते हैं।

खिलाड़ी से मेंटर तक

अमित भंडारी बॉलिंग कोच, रणजी टीम, दिल्ली

मदनलाल के बाद दिल्ली की ओर से 300 विकेट लेने वाले दूसरे गेंदबाज अमित भंडारी एक सीमर (सीम बॉलर) के तौर पर पहचाने जाते रहे हैं। 2011 में 32 साल की उम्र में फस्र्ट क्लास क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद इन्होंने कोच के तौर पर एक नई पारी की शुरुआत की और आज दिल्ली रणजी टीम के बॉलिंग कोच हैं। इसके साथ ही सहवाग क्रिकेट एकेडमी में बच्चों को खेल की बारीकियां सिखा रहे हैं।

खेल को वापस लौटाने की चाह

मैंने 1997-98 सीजन में पहली बार प्रथम श्रेणी क्रिकेट में डेब्यू किया था। इंडिया के लिए दो वन डे इंटरनेशनल के अलावा दिल्ली के लिए करीब 95 फस्र्ट क्लास मैचेज खेले। रणजी खेला और उसमें सफल भी रहा, लेकिन क्रिकेट को अलविदा कहते समय मैंने फैसला किया कि क्यों न उस खेल को कुछ वापस दूं, जिसने मुझे पहचान दी, और फिर मैंने बच्चों को कोचिंग देना शुरू कर दिया।

नई तकनीक से कोचिंग

कोचिंग में आज से 20 साल पहले इतने ऑप्शंस नहीं थे। लेकिन आइपीएल और रणजी जैसे टूर्नामेंट्स ने क्रिकेट कोचिंग में कई बदलाव लाए। अब मैच की सीडी बनाकर उसे दोबारा देखा जा सकता है। इससे खिलाडिय़ों को उनकी कमियों के अलावा दूसरे की टेक्निक की जानकारियां मिलती हैं, जो कोचिंग में भी काफी मददगार साबित होती हैं। जहां तक गेंदबाज बनने का सवाल है, तो वह आपकी शारीरिक बनावट, फिटनेस और स्टैमिना पर निर्भर करता है। इसलिए पहले आप स्किल सीखें, फिर गेम में उतरें।

1983 वल्र्ड कप में इंडियन टीम फाइनल मैच में लॉड्र्स के मैदान पर वेस्टइंडीज से जीतकर पहली बार चैंपियन बनी थी। मोहिंदर अमरनाथ को मैन ऑफ द मैच मिला था।

आंखों देखा खेल

सुधीर त्यागी

कमेंटेटर

मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि क्रिकेट कमेंटेटर बनूंगा। गली-मैदान में बल्ला घुमाते कब कमेंटेटर बन गया, पता ही नहीं चला।

कमेंट्री करो, छा जाओगे !

शुरुआत में मैंने एफएम रेनबो ज्वाइन किया। 7-8 साल तक वहीं काम किया। कई सारे क्रिएटिव शोज किए। वहां एक प्रोड्यूसर थे, संजय अग्रवाल। उन्हें मेरी आवाज, मेरा स्टाइल और मेरी कमेंट्री अच्छी लगती थी। वे अक्सर जोर देकर कहा करते थे, कहां फंसे हो, क्रिकेट कमेंट्री करो, छा जाओगे ! उनके बार-बार कहने का असर हुआ। मैंने आकाशवाणी में क्रिकेट कमेंट्री शुरू कर दी। 7-8 कमेंट्रीज करने के बाद मुझे फिर नोटिस किया गया। पहले जोनल और फिर नेशनल लेवल के मैचेज में कमेंट्री करने लगा।

कैसे बनें कमेंटेटर

टीवी की बजाय अगर रेडियो से शुरुआत करें, तो अच्छा रहेगा, खास तौर पर प्राइवेट एफएम चैनलों से। रेडियो प्रोग्राम्स के लिए एक-दो मिनट की स्क्रिप्ट लिखकर पढऩे से शुरुआत कर सकते हैं।

जरूरी स्किल्स

-क्रिकेट की प्रैक्टिकल नॉलेज होनी चाहिए।

-क्रिकेट से जुड़े पुराने आंकड़े भी याद होने चाहिए और लेटेस्ट अपडेट्स भी पता होने चाहिए।

-बातचीत करने की कला होनी चाहिए।

-हंसमुख स्वभाव और फ्लुएंट जुबान होनी चाहिए।

-बोरिंग से बोरिंग मैच को भी अपने कमेंट्स से चुटीला बनाने का हुनर होना चाहिए।

-अपना अलग इंट्रेस्टिंग स्टाइल होना चाहिए।

-इंग्लिश-हिंदी पर एक्सीलेंट कमांड होनी चाहिए।

-आवाज में प्रोननसिएशन, डिक्शन, मॉड्यूलेशन और पिच सब सही और बैलेंस्ड होना चाहिए।

इंजरी से रखे दूर

डॉ. बद्रीनाथ प्रथी फिजियोथेरेपिस्ट, रणजी टीम, दिल्ली

स्पोट्र्स फिजियोथेरेपिस्ट किसी भी टीम की मां की तरह होता है। वह खिलाडिय़ों के चोट या इंजरी को ठीक कर, उन्हें दोबारा फील्ड पर उतरने के काबिल बनाता है। दिल्ली रणजी टीम के स्पोट्र्स टीम फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. बद्रीनाथ प्रथी भी बीते दस साल से खिलाडिय़ों के साथ जुड़े हुए हैं।

खेलों में थी दिलचस्पी

मुझे शुरू से ही क्रिकेट, बैडमिंटन जैसे खेलों में रुचि रही है। खुद एक एथलीट हूं। तमाम व्यस्तताओं के बावजूद आज भी दिल्ली हाफ मैराथन में हिस्सा लेने से नहीं चूकता। मैं समझता हूं कि एक स्पोट्र्स में किस तरह की डिमांड होती है, कैसी फिजिकल इंजरीज होती हैं? उन्हें समय पर ठीक करना कितना बड़ा चैलेंज होता है? इसलिए मैंने स्पोट्र्स फिजियोथेरेपी में करियर बनाने का फैसला किया। 2002 में मणिपाल यूनिवर्सिटी से डिग्री लेने के बाद शुरू में कुछ संस्थानों में फिजियोथेरेपी की क्लासेज ली। इसके बाद 2005 से दिल्ली रणजी टीम के साथ हूं।

हैंडल विद केयर

हर खिलाड़ी एक क्रिएटिव शख्सियत होता है। ऐसे में उसे बहुत ध्यान से हैंडल करना पड़ता है। मेरी कोशिश रहती है कि खिलाड़ी के इंजरी पैटर्न का जल्द से जल्द पता लगाकर उन्हें समय रहते आगाह कर सकूं। मैच से पहले खिलाड़ी का फिटनेस टेस्ट करना मेरी ही जिम्मेदारी होती है। एक फिजियो के लिए सबसे जरूरी है मानसिक रूप से स्ट्रॉन्ग रहना और एक खिलाड़ी के नजरिए से सोचना। यह एक रिजल्ट ओरिएंटेड प्रोफेशन है, इसलिए आपको धैर्य रखना होगा।

पिच का साइंटिस्ट

क्रिकेट के खेल का सबसे अहम हिस्सा होता है, ग्राउंड के मध्य स्थित 22 यार्ड की जगह जिसे पिच कहते हैं और यह तैयार करता है क्यूरेटर। क्यूरेटर वह शख्स है, जो मैच के लिए स्पोट्र्स ग्राउंड, खासकर पिच तैयार करता है। यह एक साइंटिफिक प्रोफेशन है, जिसमें मिट्टी और मौसम दोनों की अच्छी समझ रखना जरूरी है।

मौसम के अनुसार निर्माण

कोई भी पिच किसी इलाके के मौसम और आबोहवा को ध्यान में रखकर तैयार की जाती हैं। क्यूरेटर की पूरी कोशिश होती है कि वह स्पोर्टिंग पिच तैयार करे, जिससे बल्लेबाज और गेंदबाज, दोनों को बराबर का फायदा हो। एक पिच का बिहैवियर मुख्य रूप से पांच चीजों पर निर्भर करता है-मिट्टी, घास, नमी, रोल का साइज या वजन और मौसम।

बीसीसीआइ देता है ट्रेनिंग

क्यूरेटर बनने के लिए आपके पास प्रथम श्रेणी का क्रिकेट खेलने या फिर इंटरनेशनल क्रिकेट सेंटर्स में काम करने का अनुभव होना चाहिए। इसके बाद आप बीसीसीआइ से 15 दिन से लेकर तीन हफ्ते का सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं। इसके तहत मोहाली स्थित पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन के ग्राउंड में 75 सेशंस होते हैं। सेशंस पूरा होने पर आपको थ्योरी औऱ प्रैक्टिल एग्जाम देना होता है।

डिमांडिंग है जॉब

क्यूरेटर का जॉब काफी डिमांडिंग होता है। उसे हर नई टेक्नोलॉजी और टेक्निक से खुद को अपडेट रखना होता है। बीसीसीआइ भी समय-समय पर अपने 30 संबद्ध क्यूरेटर्स को ट्रेनिंग और मैन्युअल्स देता रहता है।

शिवकुमार, चीफ क्यूरेटर,

ग्रीन पार्क, कानपुर

प्लेयर्स का हेल्थ मैनेजमेंट

क्रिकेट जैसे खेल में अनुभवी स्पोट्र्स या एथलेटिक थेरेपिस्ट्स और मेडिकल मसाज एक्सपट्र्स की हमेशा जरूरत होती है। खासकर इंडिया में जैसी दीवानगी है और जितना क्रिकेट यहां खेला जाता है, उसे देखते हुए आप सही क्वालिफिकेशन के साथ इस सेक्टर में करियर बना सकते हैं।

वर्क प्रोफाइल

किसी भी प्लेयर की परफॉर्मेंस को इंप्रूव करने में जिस मेडिकल नॉलेज का इस्तेमाल किया जाता है, उसे स्पोट्र्स मेडिसिन यानी एथलेटिक थेरेपी कहते हैं। इसके तहत खिलाडिय़ों को ट्रेनिंग की साइंटिफिक तकनीक बताई जाती है, जिससे वे चोटिल होने पर भी दोबारा से वापसी और अपनी परफॉर्मेंस बेहतर कर सकें। एक एथलेटिक थेरेपिस्ट का काम किसी भी घायल खिलाड़ी को तुरंत राहत और सपोर्ट उपलब्ध कराना होता है।

एलिजिबिलिटी

एथलेटिक थेरेपिस्ट बनने के लिए आपके पास स्पोट्र्स मेडिसिन (एमबीबीएस), स्पोट्र्स फिजिकल थेरेपी में मास्टर्स डिग्री होनी चाहिए। साथ ही, एक्सरसाइज फिजियोलॉजी औऱ एथलेटिक ट्रेनिंग में अतिरिक्त सर्टिफिकेट होने से फायदा मिलेगा। स्टूडेंट्स के पास फस्र्ट एड और लाइफ सपोर्ट में सर्टिफिकट होना अनिवार्य है।

स्पोट्र्स थेरेपी में मौके

टी-20 जैसे फॉर्मेट के लोकप्रिय होने और विभिन्न स्टेट एवं सिटी लेवल टूर्नामेंट्स के आयोजन से एथलेटिक थेरेपिस्ट्स की डिमांड बढ़ी है। स्पोट्र्स में डिग्री या डिप्लोमा रखने वाले यंगस्टर्स इसका फायदा उठा सकते हैं।

डॉ. राणा चेनगप्पा, डायरेक्टर,

स्पोर्ट्स मेडिसिन, एक्टिवऑर्थो

टेलीविजन के अलावा इंडिया में पहली बार आइपीएल के मैचों का लाइव ब्रॉडकास्ट

यू-ट्यूब के जरिये किया गया था।

मीडिया भी स्पोट्र्स भी

श्वेता सिंह स्पोट्र्स जर्नलिस्ट

बचपन में मैं काफी स्टूडिअस थी। 10+2 में तो ऑल इंडिया मेरिट लिस्ट में मेरा नाम था। मेरिटोरियस होने की वजह से मेरे पिताजी को भी मुझसे बहुत उम्मीदें थीं। बिहार में आइएएस का जबरदस्त करियर ट्रेंड है। मेरे पिताजी भी चाहते थे कि मैं आइएएस बनूं, लेकिन मेरे लिए पांच साल तक इंतजार करना बहुत मुश्किल था। इसलिए मैंने 12वीं पास करने के बाद ही पत्रकारिता शुरू कर दी थी। शुरू-शुरू में अखबार के लिए लिखा। प्रोडक्शन हाउस के लिए भी काम किया। धीरे-धीरे मेरा इंट्रेस्ट इस फील्ड में बढ़ता गया।

इंट्रेस्ट होना चाहिए

मुझे बैडमिंटन खेलना बहुत अच्छा लगता था। इसके अलावा टेनिस भी खेलती थी। निशानेबाजी, खास तौर डबल ट्रैप मुझे बहुत पसंद था, लेकिन टीवी पर क्रिकेट मैच कभी नहीं छोड़ती थी। हम सभी फैमिली के साथ मैच देखतेे थे। इसलिए बचपन से ही क्रिकेट में इंट्रेस्ट जम गया। आगे चलकर जब स्पोट्र्स जर्नलिज्म में जाने का मौका मिला, तो मैंने इसे एक बेहतरीन शुरुआत के रूप में लिया। 2003 में क्रिकेट वल्र्ड कप कवर करने को मिला। यह मेरे लिए बहुत अच्छा एक्सपीरियंस रहा। मैंने क्रिकेट ज्यादा खेला तो नहीं है, लेकिन देखा बहुत है। इसका मुझे बहुत फायदा मिला।

जॉब नहीं, पैशन है

आज स्पोट्र्स जर्नलिज्म का फील्ड काफी ब्राइट है। अकेले क्रिकेट ही नहीं, दूसरे गेम्स में भी लीग मैच होने लगे हैं। ऐसे में इस फील्ड में ढेरों संभावनाएं हैं। अखबार और टीवी चैनल्स तो हैं ही, पीआर एजेंसीज में भी आपके लिए बेहतरीन अपॉच्र्युनिटीज हैं। जरूरत है तो बस इन्हें एनहैंस करने की। अगर आप वाकई इंट्रेस्टेड हैं।

जरूरी स्किल्स

-क्रिकेट हो या कोई और स्पोर्ट आपको उसकी अच्छी नॉलेज होनी चाहिए।

-हर दिन आपको न्यूज से अपडेट रहना होगा।

-लिखने और बोलने दोनों में आपको फ्लुएंट होना होगा।

सीखें क्रिकेट ऑनलाइन

अगर आप क्रिकेट की बारीकियां सीखना चाहते हैं, लेकिन कोई सिखाने वाला नहीं है, जिससे आप अपने क्रिकेट को और डेवलप कर सकेें, तो निराश न हों, आपके लिए ऑनलाइन क्लासेज उपलब्ध हैं।

श्रीकांत से सीखिए क्रिकेट के गुर

क्रिकेट की बारीकियां सिखा रहे हैं भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कैप्टन कृष्णामाचारी श्रीकांत। आपको बस www.cricketstrokes.com पर क्लिक करना है। इस वेबसाइट पर बैट पकडऩे से लेकर सिक्सर लगाने तक की टेक्निक्स सिखाई जाती है। यहां केवल थ्योरी ही नहीं है, प्रैक्टिकल भी है। फोटोग्राफ्स के साथ और वीडियो के जरिए आपको हर एक शॉट की जानकारी दी जाती है। यही नहीं, यहां अपनी परफॉर्मेंस भी वीडियो एनालिसिस के जरिए डॉइग्नोस कर सकते हैं। इसमें श्रीकांत और दूसरे कई कोच के साथ इंटरैक्शन भी कर सकते हैं।

क्रिकेट स्कूल का ट्यूटोरियल

सीनियर इंग्लिश क्रिकेट बोर्ड कोच जिमेली अलदारजी ने इस ऑनलाइन कोचिंग स्कूल की शुरुआत की है, जो संभवत: दुनिया का पहला ऑनलाइन क्रिकेट कोचिंग ट्यूटोरियल है। इसकी वेबसाइट है : http://thecricketschool.net

यू-ट्यूब पर क्रिकेट स्कूल के चैनल को सबस्क्राइब करके भी आप इसके कोचिंग क्लासेज का लाभ उठा सकते हैं।

वेंगसरकर एकेडमी से लें एजुकेशन

भारतीय क्रिकेट के एक और पूर्व कैप्टन दिलीप वेंगसरकर ने भी क्रिकेट एकेडमी खोली है। एकेडमी की वेबसाइट पर फील्डिंग, बॉलिंग और बैटिंग की ऑनलाइन वीडियो के जरिए क्लासेज चलती हैं। यही नहीं, आप वेंगसरकर से एक फिक्स्ड टाइम में ऑनलाइन एडवाइस भी ले सकते हैं। वेबसाइट है:

vengsarkarcricketacademy.com

कुल 6 भाषाओं में स्टार के 12 चैनल्स पर वल्र्ड कप क्रिकेट-2015 का लाइव प्रसारण किया जा रहा है। चैनलों में स्पोट्र्स के अलावा रीजनल चैनल्स शामिल हैं।

एक्स-रे मशीन

सर्वजीत सिंह वीडियो एनालिस्ट

स्कूल के दिनों से ही मैं क्रिकेट खेला करता था। बाद में इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी से एमटेक किया। 2006 की बात है। उन दिनों सरफराज सर के करीब 8 दिनों के कैंप में क्रिकेट के वीडियो एनालिसिस की हर बारीकी सिखाई गई। बाद में बीसीसीआई की तीन दिनों की ट्रेनिंग के लिए मुंबई जाना हुआ। ट्रेनिंग के दौरान स्पोट्र्स मैकेनिक्स की डीप और प्रैक्टिकल नॉलेज मिली।

मौके पर मारा चौका

एक दिन दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में दिल्ली और ओडिशा का मैच था। इत्तफाक से वीडियो एनालिसिस के लिए कोई अवेलेबल नहीं था। मैनेजिंग टीम की नजर मुझ पर पड़ी। उन्होंने कहा कि तुम्हें अकेले संभालना है। मैं थोड़ा नर्वस हुआ, लेकिन अकेले ही मैंने पूरे मैच की वीडियो एनालिसिस संभाल ली। फिर तो मुझे नॉर्थ जोन के हर मैच की कमान दे दी गई।

काम क्या होता है

वीडियो एनालिस्ट बीसीसीआइ और टीम दोनों के लिए काम करते हैं। बीसीसीआई के लिए काम करते वक्त क्रिकेट ग्राउंड की हर गतिविधि की बड़ी बारीकी से एनालिसिस करनी पड़ती है। टीम सपोर्ट में हम प्लेयर्स की एक-एक मूवमेंट की एनालिसिस करके रिपोर्ट बनाते हैं।

कैसे बनाएं करियर?

वीडियो एनालिस्ट को भर्ती करने के लिए बीसीसीआइ, नागपुर में रिटेन एग्जाम लेती है। इसमें क्रिकेट की बारीकियों के साथ-साथ एनालाइजर, कैमरा सेटिंग्स, इलेक्ट्रिकल सेटिंग्स आदि के अलावा सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के बारे में भी डिटेल क्वैश्चंस पूछे जाते हैं।

एलिजिबिलिटी

कम से कम कंप्यूटर में ग्रेजुएशन

सैलरी

-सीनियर वीडियो एनालिस्ट

7500 रुपये प्रतिदिन

-जूनियर वीडियो एनालिस्ट

3000 रुपये प्रतिदिन

सक्सेस की स्कोरिंग

जतिन सूद, स्कोरर

13 साल की उम्र से ही स्कोरिंग का काम करने लगा था। 16 साल की उम्र में पहली बार रणजी के लिए स्कोरिंग की। दिल्ली के पालम में पंजाब और सर्विसेज के बीच मैच हुआ था। तब से मैंने सोच लिया कि यही मेरा करियर है।

स्कोरिंग में ही स्कोर

मेरी स्कूलिंग सेंट कोलंबस स्कूल से हुई है। फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीकॉम किया, लेकिन क्रिकेट ही मेरी लाइफ थी। मैंने कई सारे मैच खेले भी, लेकिन अच्छा नहीं कर सका। पिताजी ने कहा, 'तेरे लिए स्कोरिंग ही बेस्ट है, तू इसी में स्कोर कर।' मैंने वही किया।

एग्जाम देना होगा

18 साल की उम्र में मैंने बीसीसीआइ के स्कोरर का एग्जाम क्लियर किया। इंदौर में हुए इस एग्जाम में दो लेवल थे। एक रिटेन एग्जाम और दूसरा प्रैक्टिकल। रिटेन एग्जाम में क्रिकेट, उसके तमाम नियमों और फैक्ट्स से जुड़े क्वैश्चंस पूछेे जाते हैं। आंसर्स डिस्क्रिप्टिव लिखने होते हैं। दूसरा लेवल प्रैक्टिकल का होता है। इसमें लाइव मैच की स्कोरिंग करनी होती है।

कैसे होती है स्कोरिंग

2007 में मैनुअल स्कोरिंग होती थी। 2008 से यह स्कोरिंग लैपटॉप और अब आइपैड से होने लगी है।

जरूरी स्किल्स

-क्रिकेट और उनके नियमों की अच्छी नॉलेज

-टेक्निकली साउंड होना जरूरी

सैलरी

-करीब 5000 रुपये प्रतिदिन

प्लेयर्स को रखें फिट

इंडिया में क्रिकेट एक जुनून बन चुका है। 6-7 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बच्चे क्रिकेट की कोचिंग शुरू कर देते हैं। लेकिन 18-19 वर्ष के बाद उनका ध्यान बॉडी फिटनेस पर जाता है। तब उन्हें एक ऐसे गाइड की जरूरत होती है, जो उन्हें खेल के अनुरूप फिजिकली तैयार कर सके। यह काम करता है फिटनेस ट्रेनर। इन दिनों क्रिकेट के बढ़ते मैचेज के साथ ट्रेनर्स की मांग भी बढ़ गई है।

वर्क प्रोफाइल

एक फिटनेस ट्रेनर खिलाड़ी का वर्कआउट प्लान क्रिएट करता है और उसे सुपरवाइज भी करता है। वह खिलाडिय़ों को मसल बनाने, बॉडी को टोन करने से लेकर वजन कंट्रोल करने तक में मदद करता है। वह प्लेयर्स को रेगुलर एक्सरसाइज कराता है।

एलिजिबिलिटी

आप फिजिकल एजुकेशन में बैचलर्स डिग्री हासिल करने के बाद नेशनल क्रिकेट एकेडमी से ओ लेवल का फिटनेस ट्रेनर कोर्स कर सकते हैं। इसके तहत कैंडिडेट्स को एनाटोमी, एक्सरसाइज फिजियोलॉजी और सेफ्टी की ट्रेनिंग दी जाती है। उन्हें वार्म-अप और वार्म-डाउन के बारे में बताया जाता है। आप स्पोट्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया, पटियाला स्थित एनआइएस से भी कोर्स कर सकते हैं।

स्किल्ड होना जरूरी

फिटनेस ट्रेनर बनने के लिए डिग्री के साथ-साथ ह्यूमन एनाटोमी और मूवमेंट की साउंड नॉलेज होनी जरूरी है। एक ट्रेनर को यह समझ होनी चाहिए कि बल्लेबाजी, गेंदबाजी या फील्डिंग के लिए कौन-से मसल्स को फिट रखना होता है।

गुरचरण सिंह, डायरेक्टर,

द्रोणाचार्य क्रिकेट फाउंडेशन, दिल्ली

कॉन्सेप्ट ऐंड इनपुट : अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव


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