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जॉब्स की जगमगाहट

दीपावली से पहले आए 'मेक इन इंडिया' मिशन से पूरे देश में उत्सव-उत्साह का माहौल है। कभी सपेरों का देश माने जाने वाले इंडिया के युवाओं ने जिस तरह 'माउस' से दुनिया को हिलाया, उसी तरह अब बारी उन सभी 25 सेक्टर्स की है, जिन्हें सरकार तेजी से आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। दुनिया भर की कंपनियों द्वारा भारत में मैन्युफैक्चरिंग यू

By Edited By: Published: Tue, 14 Oct 2014 12:13 PM (IST)Updated: Tue, 14 Oct 2014 12:13 PM (IST)
जॉब्स की जगमगाहट

दीपावली से पहले आए 'मेक इन इंडिया' मिशन से पूरे देश में उत्सव-उत्साह का माहौल है। कभी सपेरों का देश माने जाने वाले इंडिया के युवाओं ने जिस तरह 'माउस' से दुनिया को हिलाया, उसी तरह अब बारी उन सभी 25 सेक्टर्स की है, जिन्हें सरकार तेजी से आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। दुनिया भर की कंपनियों द्वारा भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने से देश में करोड़ों युवाओं को काम तो मिलेगा ही, इससे ग्लोबल मार्केट में इंडियन प्रोडक्ट्स को भी स्थापित करने में मदद मिलेगी। तो आइए, इस अभियान में शामिल होने के लिए खुद को स्किल्ड बनाने की राह पर आगे बढ़ें..

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भारत जैसे बड़े और प्रतिभा संपन्न देश के लिए इस तरह के मिशन की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी, लेकिन अब तक सरकारें कभी नारेबाजी से ऊपर नहीं उठ सकी थीं। इसका खामियाजा देश में बेरोजगारों की लंबी होती फौज के रूप में देखने को मिल रहा था। ऐसे में देश को एक विजनरी नेता मिला, जिसने मेक इन इंडिया कैम्पेन से देश के युवाओं को सुखद संदेश दिया है। इसके तहत चुने गए 25 सेक्टर्स में भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाए जाने की इच्छाशक्ति दिखाई गई है। साथ ही, दुनिया की जानी-मानी कंपनियों को अपने प्रोडक्ट भारत में बनाने के लिए इनवाइट किया गया है। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो देश में स्थापित होने वाले संयंत्रों में 2022 तक करीब 10 करोड़ स्किल्ड युवाओं को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा। सरकार की कोशिश यही है कि मेक इन इंडिया मिशन के तहत दुनिया में मेड इन इंडिया प्रोडक्ट भी अपनी पहचान बना सकें। इस प्रोजेक्ट के जरिए एंटरप्रेन्योर्स और प्रोफेशनल्स से अपील की गई है कि अपने टैलेंट और पैसे का इस्तेमाल इंडियन प्रोडक्ट्स बनाने में करें। इसके लिए एफडीआइ को भी बढ़ावा देने का प्रयास हो रहा है। इसका उद्देश्य दुनिया की जानी-मानी कंपनियों को मैन्युफैक्चरिंग के लिए भारत में पैसा लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। हालांकि इस मिशन के रास्ते में चुनौतियां तमाम हैं, लेकिन इनका समाधान खोजा जा सकता है..

ज्यादा निवेश, ज्यादा नौकरियां

-एइएस 15 अरब डॉलर

-सिटी ग्रुप 07 अरब डॉलर

-पेप्सिको 6.5 अरब डॉलर

-आइबीएम 06 अरब डॉलर

-गूगल 02 अरब डॉलर

-केकेआर 02 अरब डॉलर

-कैटरपिलर 01 अरब डॉलर

-जनरल इलेक्ट्रिक 50 करोड़ डॉलर

संभावनाएं

-तेल व गैस सेक्टर में 45 अरब डॉलर

निवेश की संभावना

-सड़क क्षेत्र में 400 अरब रुपये की

परियोजना मंजूर

-हाउसिंग सेक्टर में 100 स्मार्ट सिटी बसाने

और 2022 तक सबको घर देने की घोषणा

से विदेशी निवेश की संभावनाएं

-पावर सेक्टर में 3 साल में 200 अरब

डॉलर की जरूरत

-बीमा सेक्टर में 500 अरब रुपयों की

जरूरत

चुनौतियां

अकुशल श्रम शक्ति: 80 फीसदी वर्कर्स के पास मार्केट ओरिएंटेड स्किल्स नहीं है। 67 फीसदी एम्प्लॉयर्स को अपनी जरूरत के मुताबिक वर्कर्स नहीं मिलते।

इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी: पिछले दस साल के दौरान प्रतिदिन 3 किमी. सड़कें ही बन पाईं। स्किल्ड ट्रेनिंग सेंटर्स की कमी: 2022 तक 50 करोड़ लोगों को स्किल्ड बनाने का लक्ष्य

पुराने पड़ चुके लेबर लॉज: 44 श्रम कानून ऐसे हैं, जो पुराने पड़ चुके हैं। पीएम ऐसे कानूनों को समाप्त करने के पक्ष में हैं।

कड़े कर कानून: विदेशी कंपनियों को सबसे ज्यादा परेशानी टैक्स लॉज से होती है। उन पर कई बार बेवजह टैक्स बिल थोप दिए जाते हैं। इससे वे इन्वेस्ट करने से हिचकती हैं।

ऑटोमोबाइल

ऑटो और ऑटो कम्पोनेंट सेक्टर तेजी से आगे बढ़ रहा है।?देश में हर साल 20 लाख से ज्यादा व्हीकल्स का उत्पादन हो रहा है।

भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऑटो मैन्युफैक्चरिंग केंद्र बन चुका है। ऑटो इंडस्ट्री में फिलहाल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करीब दो करो? लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

दुनिया की सभी प्रमुख ऑटो कंपनियां भारत आ चुकी हैं और ज्यादातर ने भारत में अपना कारखाना लगाया है।

इसके अलावा, दिग्गज ऑटो कंपनियां भारत में अपने आरऐंडडी सेंटर भी खोल रही हैं।

ऑटो सेक्टर में 100 फीसदी एफडीआइ की इजाजत है। भारत दुनिया भर में ऑटो कम्पोनेंट की आपूर्ति का भी केंद्र बनता जा रहा है।

सस्ते श्रम और स्टील की प्रचुर उपलब्धता भारत को इस बाजार में आगे बढ़ाने में योगदान कर रही हैं। भारतीय ऑटो कम्पोनेंट का कारोबार भी करीब 40 अरब डॉलर का है, जिसके वर्ष 2020-21 तक बढ़कर 115 अरब डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है।

जॉब प्रॉस्पेक्ट्स : ऑटो सेक्टर में करियर बनाने के लिए आप मेकैनिकल इंजीनियरिंग में बीई/बीटेक और एमटेक जैसे कोर्स कर सकते हैं। इसके अलावा दसवीं, बारहवीं के बाद कई तरह के डिप्लोमा कोर्स भी किए जा सकते हैं। आप गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, सत्यभामा यूनिवर्सिटी, चेन्नई, मानव रचना इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, फरीदाबाद, यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम ऐंड एनर्जी स्टडी देहरादून से स्डडी कर सकते हैं।

इलेक्ट्रिकल मशीनरी

पावर सेक्टर में 4.07 लाख नए लोगों की जरूरत है, 3.12 लाख टेक्निकल और बाकी नॉन-टेक्निकल।

रोटी-कपड़ा-मकान के बाद आज देश की पहली जरूरत बिजली हो चुकी है। मेक इन इंडिया के जरिए हर घर तक बिजली पहुंचाने के सपने को साकार करने की कोशिश है। यह सपना पूरा करने के लिए पावर प्लांट्स लगाए जाएंगे। जाहिर तौर पर इसके लिए हजारों स्किल्ड लोगों की जरूरत होगी। इंडस्ट्रीज की मैन्युफैक्चरिंग, रेफ्रिजरेटर, टेलीविजन, कंप्यूटर, माइक्रोवेब्स से जुड़ी इंडस्ट्रीज, एटमी प्लांट्स, हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट्स आदि के डेवलपमेंट में इलेक्ट्रिक इंजीनियर की भूमिका बढ़ने वाली है।

कोर्स : बीई या बीटेक

एलिजिबिलिटी : जेइइ या स्टेट लेवल इंजीनियरिंग परीक्षा क्वालीफाई करनी होती है। प्रवेश परीक्षा में स्टूडेंट को साइंस स्ट्रीम से अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होना जरूरी है। साइंस स्ट्रीम में फिजिक्स, केमेस्ट्री और मैथ जरूरी है।

इलेक्ट्रिक इंजीनियर्स के लिए तो तोहफा ही है। अगर हम इस सेक्टर में भी आत्मनिर्भर हो जाते हैं, तो हालात काफी अच्छे हो जाएंगे। हर घर, हर गांव रोशन हो जाएगा, बिजली से भी, रोजगार से भी।

राजीव कुमार डिप्टी मैनेजर,

एनटीपीसी, विंध्यनगर

इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम

2020 तक 1000 करोड़ डॉलर निवेश और 2 करोड़ 80 लाख लोगों को जॉब देने का लक्ष्य

आइबीएम 6 अरब डॉलर का निवेश करने जा रही है और भी दूसरी बड़ी-बड़ी कंपनियां कतार में हैं। ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में तो जैसे नौकरियों की बरसात होने वाली है। इंडियन टेलिफोन इंडस्ट्रीज, एमटीएनएल, नेशनल फिजिकल लेबोरेट्री, सिविल एविएशन डिपार्टमेंट, पोस्ट ऐंड टेलीग्राफ डिपार्टमेंट और बीईएल जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों में इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स के रूप में बेहतरीन अवसर खुलने जा रहे हैं।

कोर्सेज : इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में 4 साल का बीइ या बीटेक करके इस फील्ड में करियर की शुरुआत की जा सकती है।

एलिजिबिलिटी : फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स में 10+2 अच्छे अंकों के साथ पास होना चाहिए। इंजीनियरिंग कोर्स में प्रवेश के लिए जेइइ एग्जाम बेहतर रैंक अनिवार्य है।

मेक इन इंडिया से न सिर्फ जीडीपी कैपेसिटी बढ़ेगी, बल्कि हाई क्वालिटी प्रोडक्ट्स के साथ-साथ लंबे समय से हो रहे प्रतिभा पलायन पर भी काबू पाया जा सकेगा। इसके लिए स्किल डेवलपमेंट पर जोर देना होगा।

दीपक पवार प्रिंसिपल इंजीनियर,

ह्यूगेस सिस्टिक कॉरपोरेशन, गुड़गांव

आइटी ऐंड बीपीएम

इस सबसे बड़े प्राइवेट एम्प्लॉयर सेक्टर में 31 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। आइटी इंडस्ट्री आगे भी तरक्की करेगी..

नॉस्कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक आइटी सेक्टर में हर साल 55 हजार लोगों की जरूरत बढ़ जाती है। 90 फीसदी कंपनियां अपने मौजूदा एम्प्लॉइज और नए कैंडिडेंट्स तक पहुंचने के लिए इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया का उपयोग करती हैं। माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी कंपनियां जिस तरह इंडियन मार्केट में निवेश कर रही हैं, उसने आइटी और बीपीएम फील्ड को यूथ की बेस्ट करियर च्वाइस बना दिया है।

वर्क प्रोफाइल : प्रोग्रामर, सॉफ्टवेयर डेवलपर, सिस्टम एनालिस्ट, डाटा बेस एडमिनिस्ट्रेटर, एथिकल हैकर, सोशल मीडिया मैनेजर आदि।

कोर्सेज : ट्रेडिशनल कोर्सेज के अलावा डोएक से ओ, ए, बी और सी लेवल के कोर्सेज काफी काम के हैं। प्राइवेट संस्थानों में एनआइआइटी एथिकल हैकिंग जैसे शॉर्ट टर्म कोर्सेज करा रही है।

अब हमें अच्छे आइटी प्रोफेशनल्स तैयार करने के लिए पहले से ज्यादा अपडेट रहना होगा और ज्यादा मेहनत करनी होगी। इससे हमारे स्टूडेंट्स के लिए ज्यादा एम्प्लॉयमेंट क्रिएट होगा।

विजय थडानीे सीइओ, एनआइआइटी

ऑयल ऐंड गैस

प्राइस वाटर हाउस कूपर्स की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 तक ऑयल ऐंड गैस फील्ड में 4 लाख जॉब्स क्रिएट होने की उम्मीद है।

इस सेक्टर में एक्सप्लोरेशन, प्रोडक्शन और एक्सप्लॉयटेशन, रिफाइनिंग, मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन जैसे काम आते हैं।

वर्क स्कोप : जियोफिजिसिस्ट, इन्वेंशन मैनेजर, ऑयलवेल पंपर, पाइपलाइन इंजीनियर, गैस सप्लाई मैनेजर, रेट एनालाइजर, ऑयल वेल-लॉग एनालिस्ट, ऑयल ड्रिलिंग इंजीनियर, ऑयल रिजर्वायर इंजीनियर।

कोर्सेज : पेट्रोलियम /केमिकल इंजीनियरिंग/जियोलॉजी/जियोफिजि-क्स/ में एमएससी/बीटेक/एमटेक

एलिजिबिलिटी : जियोलॉजी, पेट्रोलियम, पेट्रोकेमिकल, केमिकल, मैकेनिकल, पॉलिमर साइंस आदि में ग्रेजुएशन। 12वीं के बाद माइनिंग, मेटलर्जी, पेट्रोलियम, पेट्रोकेमिकल में बीटेक किया जा सकता है।

मेक इन इंडिया स्टूडेंट्स के लिए एक उम्मीद जगाता है। जब अपने देश में ही ज्यादा प्रोजेक्ट्स होंगे, अच्छी सैलरी मिलेगी, तो कोई विदेशी कंपनियों में जॉब करने क्यों जाएगा।

अदिति शर्मा इंजीनियर, Schlumberger

माइनिंग

सीआइआइ की ग्लोबल समिट में पेश एक रिपोर्ट के मुताबिक माइनिंग सेक्टर में करीब 7 लाख लोग काम करते हैं। 2020 तक इनकी संख्या 23 लाख हो जाएगी।

इंडियन स्कूल ऑफ माइंस, धनबाद के स्टूडेंट्स की एवरेज सैलरी 7.6 लाख से बढ़कर 10 लाख रुपये से ज्यादा हो गई है। ऑस्ट्रेलियाई कंपनी रियो टिंटो ने 45 लाख रुपये की सैलरी ऑफर की है।

वर्क स्कोप : धरती के भीतर खनिज पदार्थो की मौजूदगी का पता लगाना और सुरक्षित तरीके से उनकी खुदाई कर धरती से बाहर निकालना।

जरूरी स्किल्स : चुनौतियों का सामना करने की क्षमता, खोजी प्रवृत्ति और एडवेंचरस नेचर का होना जरूरी है।

कोर्सेज : माइनिंग इंजीनियरिंग के ग्रेजुएट कोर्सेज की अवधि तीन से पांच वर्ष फिक्स्ड है। इसके बाद स्टूडेंट दो साल के पोस्ट ग्रेजुएशन यानी एमटेक या एमई में एडमिशन के लिए एलिजिबल हो जाते हैं।

गार्जियंस अपने बच्चों को सिर्फ सेक्योर जॉब्स के लिए एनकरेज करते हैं। रिस्क के फील्ड वर्क में विदेशी निवेश होने से सैलरी भी बढ़ रही है। देखना होगा कि अब इस दृष्टिकोण में क्या बदलाव आता है।

प्रो. डीसी पाणिग्रही डायरेक्टर, आइएसएम, धनबाद

इंडियन रेलवे

भारतीय रेलवे देश का सबसे बड़ा एम्प्लॉयर है। केंद्रीय बजट प्रस्ताव के अनुसार, इसमें आने वाले समय में करीब डेढ़ लाख नई नौकरियां आने वाली हैं।

भारत का कुल रेल नेटवर्क करीब 65,000 किलोमीटर है और इसे दुनिया के सबसे बड़े रेलवे सिस्टम का दर्जा हासिल है। रेलवे का मौजूदा वर्कफोर्स करीब 13 लाख है। यह 17 जोन में विभाजित है, जिन्हें 19 रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड मैनेज करता है। आरआरबी ही अलग-अलग जोन्स के लिए टेक्निकल और नॉन-टेक्निकल स्टाफ की भर्ती रिक्रूटमेंट एग्जाम के तहत करतें हैं। कुछ पदों पर नियुक्ति यूपीएससी के जरिये भी होती है।

जॉब प्रॉस्पेक्ट्स : रेलवे में आप अपनी योग्यता के अनुसार, ग्रुप ए, ग्रुप बी, ग्रुप सी और ग्रुप डी के लिए सलेक्ट किए जा सकते हैं। ग्रुप ए के तहत इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ इंजीनियर्स, मैकेनिकल इंजीनियर्स, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स, सिग्नल इंजीनियर्स के अलावा इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस, मेडिकल सर्विस, पर्सोनेल सर्विस, स्टोर सर्विस आते हैं। वहीं, ग्रुप बी के पद अपग्रेडेट पोस्ट होते हैं जबकि ग्रुप सी के तहत एएसएम, ड्राइवर, मोटरमैन, गार्ड, सिग्नल ऐंड मैकेनिकल इंस्पेक्टर बनते हैं। इनकी नियुक्ति रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड करता है। वहीं ग्रुप डी के अंतर्गत पोर्टर, गेटमैन, पार्सल पोर्टर, हेल्पर, ट्रैकमैन, गैंगमैन, सफाईवाले, खलासी आदि आते हैं। इनकी नियुक्ति फिजिकल एफिशिएंसी टेस्ट और रिटेन टेस्ट के आधार पर होती है।

रोड ऐंड ट्रांसपोर्ट

देश में करीब 48 लाख किमी. लंबा रोड और हाइवे नेटवर्क है।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इंफ्रास्ट्रक्चर पर करीब 1 लाख करोड़ डॉलर खर्च होंगे।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के दौरान देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास पर करीब 1 लाख करोड़ डॉलर खर्च करने की योजना है, जिसकी 20 फीसदी रकम सड़कों के विकास पर खर्च होगी।

वर्ष 2017 तक नेशनल हाइवे की लंबाई एक लाख किमी. तक करने का लक्ष्य रखा गया है। मार्च 2014 तक पीपीपी मॉडल के तहत 100 रोड प्रोजेक्ट पूरे हुए हैं और अभी ऐसे 165 प्रोजेक्ट चल रहे हैं। अगले पांच साल में नेशनल हाइवेज में 31 अरब डॉलर का निवेश होने की उम्मीद है।

जॉब प्रॉस्पेक्ट्स : रोड और हाइवे सेक्टर में 100 फीसदी एफडीआइ की इजाजत है। इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए जरूरी करोड़ों डॉलर की रकम को देखते हुए ही सरकार ने इसे विदेशी निवेश के लिए खोला है। इसके अलावा, इस सेक्टर में पीपीपी यानी पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप पर भी काफी जोर दिया जा रहा है, इसकी वजह से ही इसमें नौकरियों की अच्छी संभावना दिख रही है।

इकोनॉमी के विकास के साथ ही सड़कों का विकास भी तेजी से हो रहा है। ट्रांसपोर्ट सेक्टर में रोड ट्रांसपोर्टेशन मैनेजर, रोड ट्रांसपोर्ट क्लर्क, ट्रैफिक मैनेजर, लोकोमोटिव इंजीनियर, रेलवे इंजीनियर, कस्टम आफिसर्स जैसे तमाम पदों पर जॉब मिल सकती है।

बायोटेक्नोलॉजी

दुनिया के शीर्ष 12 बायोटेक डेस्टिनेशंस में भारत भी है। इस इंडस्ट्री में 20 हजार से ज्यादा साइंटिस्ट्स को मिला है रोजगार।

ग्लोबल बायोटेक इंडस्ट्री में इंडियन बायोटेक इंडस्ट्री की हिस्सेदारी करीब 2 प्रतिशत है। एक अनुमान के तहत, भारत में लगभग 400 बायोटेक कंपनियां हैं। वहीं, साल 2020 तक इस इंडस्ट्री के करीब 73.73 बिलियन यूएस डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। इसके साथ ही जेनेटिकली मोडिफाइड जीएम क्रॉप के उत्पादन में भारत का दुनिया में चौथा स्थान है। ह्यूमन टैलेंट के मामले में भी यह सेक्टर काफी समृद्ध है।

स्किल : बायोटेक्नोलॉजी में बीएससी, बीइ या बीटेक करने वाले इस फील्ड में प्रवेश कर सकते हैं।

वर्क स्कोप : बायोफार्मास्युटिकल्स, बायोसर्विस, बायोएग्रीकल्चर, बायो इंडस्ट्री औऱ बायोइंफॉर्मेटिक्स जैसे सेक्टर्स के साथ ही रिसर्च ऐंड एकेडेमिक्स में अच्छा स्कोप है।

यह नॉलेज, रिसर्च और टेक्नोलॉजी बेस्ड सेक्टर है। इसमें एकेडेमिक्स के अलावा रिसर्च के फील्ड में काम करने का मौका है। जेएनयू में सुपर स्पेशलाइज्ड फैकल्टी के अलावा व‌र्ल्ड क्लास रिसोर्सेज हैं।

राकेश भटनागर, डीन,एसओबी, जेएनयू

फूड प्रोसेसिंग

2012 तक ऑर्गेनाइज्ड फूड प्रोसेसिंग सेक्टर में 6.05 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिला था। इसमें एंटरप्रेन्योर्स के लिए भी मौके हैं।

फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री ने 2012-13 में 8.4 प्रतिशत सालाना की दर से ग्रो किया है। सीआइआइ की एक रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले दस सालों में इस सेक्टर में 0.9 करोड़ लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है।

स्किल : किसी अच्छे इंस्टीट्यूट से फूड प्रोसेसिंग या फूड टेक्नोलॉजी में ग्रेजुएशन होना जरूरी है। इसके अलावा, न्यूट्रीशन, डाइटिक्स, फूड साइंस, प्रिजर्वेशन आदि में सर्टिफिकेट कोर्स करके भी एंट्री ली जा सकती है।

वर्क स्कोप : आपके लिए रिसर्च साइंटिस्ट, फूड टेक्नोलॉजिस्ट, सप्लाई चेन मैनेजर, नेटवर्किंग स्पेशलिस्ट, फूड सेफ्टी इंजीनियर, बायोकेमिस्ट आदि के रूप में काम कर सकते हैं। वहीं, रिसर्च लैबोरेटरी, होटल, सॉफ्ट ड्रिंक फैक्ट्री, डिस्टिलरीज, पैकेजिंग यूनिट्स, रेगुलेटरी बॉडी में भी कई अवसर हैं।

फूड प्रोसेसिंग एक मल्टीडिसिप्लिनरी फील्ड है। फिलहाल इंडिया में स्किल्ड मैनपॉवर की काफी शॉर्टेज है। इसलिए फूड टेक्नोलॉजी, सप्लाई चेन, फूड इंजीनियरिंग, सेफ्टी के एक्सप‌र्ट्स की जरूरत है।

शालिनी सहगल, एसो.प्रो.बीसीएएस, डीयू

कंस्ट्रक्शन

रोजगार के मामले में कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री एग्रीकल्चर के बाद दूसरे नंबर पर है। इसने 35 मिलियन लोगों को रोजगार दे रखा है।

इंडियन कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री करीब 126 बिलियन डॉलर्स की है। यह करीब 7 से 8 प्रतिशत सालाना की दर से ग्रो कर रही है। प्लानिंग कमीशन के अनुसार, इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत एक ट्रिलियन डॉलर के इनवेस्टमेंट की उम्मीद है।

स्किल : इस फील्ड में इंजीनियरिंग के अलावा कॉमर्स ग्रेजुएट एंट्री कर सकते हैं। आइटीआइ या वोकेशनल डिग्री वाले के लिए भी इसमें आ सकते हैं।

वर्क स्कोप : आप डिजाइनर, साइट इंजीनियर, क्वांटिटी एस्टिमेटर, बिल्डिंग इंफॉर्मेशन ऐंड मॉडलिंग, प्रोजेक्ट मैनेजर, सिविल इंजीनियर, डिजाइन इंजीनियर, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर, आर्किटेक्ट, अर्बन प्लानर, बिल्डर, कॉन्ट्रैक्टर, वॉटर सप्लाई, सीवेज, सैनिटेशन, वेस्ट मैनेजमेंट एक्सपर्ट के रूप में काम कर सकते हैं।

कंस्ट्रक्शन फील्ड में इनोवेटिव आइडिया और सोच रखने वाले युवाओं की डिमांड है, जो मॉडर्न अप्रोच के साथ काम कर सकें। इस समय टेक्निकल और इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स के लिए यहां अच्छा स्कोप है। जयराम पंच, एमडी, टीसीसी (इंडिया)

फार्मास्युटिकल

फार्मा सेक्टर 13-14 फीसदी सालाना की दर से ग्रो कर रहा है। 2014 में यहां करीब 45 हजार नए जॉब क्रिएट होने की उम्मीद है।

2020 तक इंडिया के फार्मास्युटिकल मार्केट के 140 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। फिलहाल यह करीब 79 हजार करोड़ रुपये की इंडस्ट्री है। यहां युवा रिसर्चर, साइंटिस्ट, प्रोजेक्ट मैनेजर, फार्मासिस्ट के तौर पर अपनी पहचान बना रहे हैं।

स्किल : फार्मा एक नॉलेज बेस्ड इंडस्ट्री है, इसलिए फार्मेसी में बीएससी या पोस्ट ग्रेजुएशन करना आवश्यक होगा। आप डिप्लोमा करके भी इसमें प्रवेश कर सकते हैं।

वर्क स्कोप : आप मैन्युफैक्चरिंग केमिस्ट, फैक्ट्री मैनेजर, क्वालिटी कंट्रोल मैनेजर, एनालिस्ट आदि के तौर पर लैबोरेटरी, हॉस्पिटल, ड्रग कंपनी में काम कर सकते हैं। इसके अलावा, मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, जनरल मैनेजर के रूप में फार्मास्युटिकल मार्केटिंग से जुड़ सकते हैं।

एंटीबायोटिक्स का असर कम होने से नई दवाओं के रिसर्च एवं निर्माण की जरूरत महसूस की जा रही है। ऐसे में फार्मा सेक्टर में रिसर्च के अलावा कई नए अवसर पैदा होने की उम्मीद है।

डी पाठक, निदेशक, डीआइओएफसीआर, दिल्ली

लेदर इंडस्ट्री

भारतीय लेदर इंडस्ट्री करीब 11 अरब डॉलर की हो चुकी है। इसमें काम करने वाले 55 फीसदी लोग 35 साल से कम उम्र के हैं..

लेदर उत्पादों की दुनिया भर में तो मांग बढ़ ही रही है, खुद घरेलू बाजार में भी इनकी खपत बढ़ती जा रही है। वर्ष 2013-14 में करीब 6 अरब डॉलर के लेदर प्रोडक्ट्स का निर्यात हुआ था। घरेलू बाजार भी अगले पांच साल में बढ़कर दोगुना हो जाने की उम्मीद है। खासकर फैशन इंडस्ट्री, फुटवियर, फर्नीचर एवं इंटीरियर डिजाइन और ऑटो इंडस्ट्री में लेदर उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है।

जॉब प्रॉस्पेक्टं्स : लेदर इंडस्ट्री में हर समय जॉब के पर्याप्त मौके रहते हैं। आप इस इंडस्ट्री में टेक्निकल डिजाइनर, स्टाइलिस्ट डिजाइनर, क्वालिटी कंट्रोल चेकर आदि के रूप में जॉब पा सकते हैं। एक्सपोर्ट हाउसेज, सरकारी संगठनों, लेदर कंपनियों आदि में नौकरी मिलने की अधिक संभावना रहती है।

कोर्सेज : लेदर इंडस्ट्रीज में जॉब के लिए आप बैचलर ऑफ लेदर डिजाइन, बीटेक इन लेदर टेक्नोलॉजी, डिप्लोमा इन लेदर गुड्स ऐंड एसेसरीज डिजाइन, डिप्लोमा इन फुटवियर डिजाइनिंग ऐंड प्रोडक्शन, कंप्यूटर एडेड शू डिजाइनिंग आदि कोर्स कर सकते हैं। इसके लिए स्टडी सेंट्रल लेदर रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएलआरआइ), चेन्नई

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नो- लॉजी (एनआइएफटी), नई दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु और चेन्नई

सेंट्रल फुटवियर ट्रेनिंग सेंटर आदि इंस्टीट्यूटंस से की जा सकती है।

टेक्सटाइल

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टेक्सटाइल मैन्युफैक्चरर है। इस उद्योग में 4.5 करोड़ लोगों को सीधे रोजगार मिला हुआ है..

ऑर्गनाइज्ड रिटेल से बढ़ती मांग और लोगों की बढ़ती आय की वजह से टेक्सटाइल उत्पादों के बाजार में लगातार तेजी आ रही है। भारत में कुल औद्योगिक उत्पादन में 14 फीसदी हिस्सा टेक्सटाइल सेक्टर का है।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना के तहत वर्ष 2017 तक इंटीग्रेटेड स्किल डेवलपमेंट स्कीम के तहत समूचे टेक्सटाइल सेक्टर में 26.75 लाख लोगों को ट्रेनिंग देने की योजना है।

जॉब प्रॉस्पेक्ट्स : ज्यादातर टेक्सटाइल और क्लोदिंग कंपनियां टेक्सटाइल और अपैरल इंडस्ट्री में एंट्री लेवल की पोजीशन पर भर्ती करती हैं। इनमें प्रोडक्ट डेवलपमेंट, मर्चेन्डाइजिंग, मार्केटिंग, प्रोडक्शन, टेस्टिंग, क्वालिटी कंट्रोल, टेक्निकल सर्विसेज, टेक्सटाइल डिजाइन जैसे तमाम फील्ड शामिल हैं। हालांकि, इनमें आप निचले स्तर से शुरुआत करके भी अपनी स्किल और काबिलियत के दम पर काफी आगे बढ़ सकते हैं।

कोर्सेज : टेक्सटाइल सेक्टर में रोजगार पाने के लिए टेक्सटाइल डिजाइनिंग, टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी में बीटेक, अपैरल डिजाइन एवं फैब्रिकेशन में डिप्लोमा, अपैरल एवं फैशन टेक्नोलॉजी में बीएससी आदि कोर्स किए जा सकते हैं। इनके लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली, पीएसजी कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी, कोयम्बटूर

आचार्य पॉलीटेक्निक, बेंगलुरु जैसे संस्थानों में स्टडी की जा सकती है।

स्पेस सेक्टर

भारत का स्पेस प्रोग्राम दुनिया के सबसे किफायती प्रोग्राम में शुमार है। इसकी वजह से ही भारत ने अब तक 19 देशों के 40 सैटेलाइट लॉन्च कराए हैं..

भारत के करीब 30 अंतरिक्ष यान विभिन्न कक्षाओं में स्थापित हैं। सफल मंगल मिशन का लोहा दुनिया ने माना है। पिछले चार दशकों में दुनिया के दूसरे कई देशों ने भारतीय स्पेस प्रोग्राम में रुचि दिखाई है जिससे इसका विकास और तेज हुआ है। हाल के वर्षो में चंद्रयान और मंगल पर मिशन भेजने की सफलता से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की प्रतिष्ठा और बढ़ गई है। भारत ने अब तक 19 देशाें के 40 सैटेलाइट लॉन्च कराए हैं और यह अब दुनिया का लॉन्चपैड बनता जा रहा है।

भारतीय स्पेस प्रोग्राम द इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) की अगुवाई में चलाए जाते हैं, जिसकी स्थापना अगस्त 1969 में हुई थी।

जॉब प्रॉस्पेक्ट्स : केंद्र की नई सरकार भी स्पेस कार्यक्रमों को तेज गति देने को प्रतिबद्घ है, जिसकी वजह से आने वाले दिनों में देश में स्पेस गतिविधियां बढ़ेंगी। बीई, बीटेक के अलावा दूसरी स्ट्रीम में पढ़ाई करने वाले लोग भी स्पेस सेक्टर में नौकरी पा सकते हैं।

साइंस के क्षेत्र में काम करना प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाला माना जाता है। इसलिए अगर आप साइंस के हायर रिसर्च में रुचि रखते हैं और स्पेस का अनंत विस्तार आपको आकर्षित करता है तो आपके लिए संभावनाएं भरपूर हैं।

एविएशन

भारत दुनिया का नौवां सबसे बड़ा सिविल एविएशन मार्केट है और 2020 तक इसके तीसरा सबसे बड़ा मार्केट बनने की उम्मीद है..

एविएशन मार्केट जिस तेजी से बढ़ रहा है उसे देखते हुए भारत 2020 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा एविएशन मार्केट बन सकता है। वर्ष 2013 में यहां करीब 16 करोड़ लोगों ने हवाई यात्रा की थी।

वर्ष 2017 तक यहां इंटरनेशनल पैसेंजर्स की संख्या बढ़कर 6 करोड़ तक पहुंच जाने की उम्मीद है।

वर्ष 2012-17 के बीच भारतीय एविएशन सेक्टर में कुल 12.1 अरब डॉलर का निवेश होने की उम्मीद है।

एविएशन में बढ़त के साथ ही यहां मेंटिनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल (एमआरओ) जैसी सुविधाओं का भी विस्तार हो रहा है।

भारत सरकार की योजना वर्ष 2030 तक देश में एयरपोर्ट की संख्या 250 तक पहुंचाने की है।

फिलहाल 16 अरब डॉलर के आकार के साथ यह दुनिया के शीर्ष दस बाजारों में शामिल है।

जॉब प्रॉस्पेक्ट्स : एविएशन सेक्टर में पायलट, को-पायलट, एयरक्राफ्ट मेंटिनेंस इंजीनियर, केबिन-क्रू, टेक्नीशियन, ग्राउंड ड़यूटी ऑफिसर्स जैसे कई पदों पर जॉब के अवसर होते हैं। एविएशन सेक्टर में एफडीआइ खोलने से कई विदेशी एयरलाइंस भी भारत में आ रही हैं, जिसकी वजह से नौकरियों की भरमार रहेगी।

रीन्यूएबल एनर्जी

सरकार ने 2022 तक यह लक्ष्य रखा है कि सालाना 20,000 मेगावाट बिजली सौर ऊर्जा से उत्पादित हो..

भारत सरकार ने वर्ष 2017 तक कुल रीन्यूएबल एनर्जी उत्पादन 155 गीगावॉट करने का लक्ष्य रखा है। इससे रीन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में निवेश की अच्छी संभावना है।

देश की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में रीन्यूएबल एनर्जी का योगदान अभी महज 31.7 गीगावॉट है। देश में सबसे बड़ा रीन्यूएबल एनर्जी सोर्स विंड एनर्जी है।

ऊर्जा संरक्षण और रीन्यूएबल एनर्जी के बढ़ते इस्तेमाल से इस सेक्टर में रोजगार सृजन और सोशल एंटरप्रेन्योरशिप की भारी संभावना है। कोयले की कमी से थर्मल पावर में विस्तार की गुंजाइश बहुत ज्यादा नहीं है, इसलिए सरकार इस सेक्टर को नजरअंदाज नहीं कर सकती।

जॉब प्रॉसपेक्ट्स : रीन्यूएबल एनर्जी के विकास पर सरकार के जोर देने की वजह से इस सेक्टर में नौकरियों की आगे भरमार रहेगी। इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी, साइंस और ह्यूमनिटीज जैसे लगभग सभी स्ट्रीम के ट्रेंड ह्यूमन रिसोर्सेज की बड़े पैमाने पर जरूरत होगी। कुछ प्रमुख संस्थानों से रीन्यू- एबल एनर्जी, एनर्जी स्टडीज, एनर्जी ऐंड एनवायर्नमेंट मैनेजमेंट आदि में में पीजी डिप्लोमा, एमएससी, एमटेक जैसे कोर्स कर सकते हैं। ये कोर्सेज लखनऊ यूनिवर्सिटी, कोटा यूनिवर्सिटी, पुणे यूनिवर्सिटी, आइआइटी, दिल्ली, तेजपुर यूनिवर्सिटी, देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी, इंदौर जैसे संस्थानों से कर सकते हैं।

थर्मल पावर

भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा बिजली उत्पादक और पांचवां सबसे बड़ा बिजली उपभोक्ता भी है..?

सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना 2012-17 के दौरान देश में 88.5 गीगावॉट अतिरिक्त उत्पादन का लक्ष्य बनाया है।

देश में औद्योगिक गतिविधियों के तेज होने से बिजली की मांग और बढ़ने की उम्मीद है। वैसे तो पावर सेक्टर कोयले की कमी जैसी तमाम चुनौतियों का सामना कर रहा है, लेकिन यह एक ऐसा सेक्टर है, जिसका विकास अपरिहार्य है।

बढ़ती जनसंख्या और प्रति व्यक्ति बिजली उपभोग बढ़ने से भी समूचे ऊर्जा सेक्टर को तेजी मिलने की उम्मीद है।

मार्च 2014 तक भारत की स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 245 गीगावॉट रही है।

जॉब प्रॉस्पेक्ट्स : बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने की दिशा में सरकार के प्रयास की वजह से पावर सेक्टर तेजी से विस्तार कर रहा है। दूसरी तरफ राज्यों के बिजली बोर्ड भी बदलती जरूरतों के मुताबिक अपने को पुनर्गठित कर रहे हैं। पावर सेक्टर में जेनरेशन और डिस्ट्रीब्यूशन कार्यो में निजी क्षेत्र की सक्रियता भी निरंतर बढ़ती जा रही है।

इन सबकी वजह से पावर सेक्टर के इंजीनियरिंग, फाइनेंस, कॉमर्स, लॉजिस्टिक, ह्यूमन रिसोर्स और लॉ आदि क्षेत्रों में प्रोफेशनल्स की जरूरत बढ़ती जा रही है। अब पावर मैनेजमेंट में एमबीए जैसे नए कोर्स भी काफी लोकप्रिय हो रहे हैं।

पोर्ट मैनेजमेंट

2020 तक 2500 MMT ट्रैफिक को हैंडल करने के लिए 3200 MMT कैपेसिटी वाले पो‌र्ट्स बनाने की योजना है..

पोर्ट मैनेजमेंट बंदरगाहों से जुड़े ट्रांसपोर्ट का आधार स्तंभ है। बतौर मैनेजर शिपिंग कंपनियों, एजेंसी हाउस, क्लियरिंग ऐंड फारवर्डिंग फ‌र्म्स, एक्सपोर्ट- इम्पोर्ट हाउस में भारी मांग रहती है।

विदेशी निवेशक : एपी मोलर मा‌र्स्क (डेनमार्क), पीएसए सिंगापुर (सिंगापुर), दुबई पो‌र्ट्स व‌र्ल्ड (यूएई), जन डेल नुल एनवी (बेल्जियम), ह्यूंडई इंजीनियरिंग ऐंड कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (साउथ कोरिया), रॉयल बॉस्कैलिस वेस्टमिनिस्टर एनवी (नीदरलैंड)।

वर्क प्रोफाइल : पोर्ट प्रशासन की देख-रेख, फ्लीट ऑपरेशन, फाइनेंशियल मैनेजमेंट, बेहतर दर्जे के टग्स, बारजेज, पायलट वैसल्स का इस्तेमाल और मरम्मत के अलावा मुरिंग, टोंइग-लोडिंग-डिस्चार्जिंग जैसे काम करने होते हैं।

कोर्सेज : दो साल के एमबीए कोर्स में पोर्ट सिक्योरिटी और इमरजेंसी सिक्योरिटी मैनेजमेंट, पोर्ट इंडस्ट्री में मार्केटिंग, ट्रैफिक मैनेजमेंट, पोर्ट पर कार्गो से संबंधित मैनेजमेंट शामिल है।

एलिजिबिलिटी : पोर्ट मैनेजमेंट में जाने के लिए 50 परसेंट मा‌र्क्स के साथ साइंस (मैथ्स)/कॉमर्स/कंप्यूटर साइंस /इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी/मरीन इंजीनियरिंग या नॉटिकल साइंस में ग्रेजुएशन डिग्री जरूरी है।

केमिकल इंडस्ट्री

केमिकल सेक्टर में इनोवेशन लाने के लिए पीपीपी मॉडल के अंतर्गत रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट फंड बनाने की घोषणा की गई है..

भारत एशिया की तीसरी, जबकि दुनिया की छठी सबसे बड़ी केमिकल इंडस्ट्री है। जीडीपी में इसका शेयर लगभग 2.11 प्रतिशत है। इसके अलावा, यह एग्रो केमिकल्स का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और पॉलिमर्स का भी तीसरा सबसे बड़ा कंज्यूमर है।

औद्योगीकरण, साइंटिफिक नॉलेज के विस्तार और साइंस के बढ़ते एप्लीकेशन से केमिकल इंडस्ट्री एक नॉलेज और कैपिटल इंटेंसिव इंडस्ट्री के रूप में सामने आई है। इसमें स्किल्ड साइंस प्रोफेशनल्स के लिए अनेक विकल्प हैं। आप केमिस्ट्स, साइंटिस्ट या केमिकल इंजीनियर्स के तौर पर केमिकल प्लांट्स की डिजाइनिंग, ऑपरेशन, मेंटिनेंस, कंस्ट्रक्शन के अलावा प्रोडक्शन सुधारने जैसे काम कर सकते हैं। इसके अलावा, वेस्ट मैनेजमेंट, एनर्जी कंजर्वेशन आदि से भी जुड़ सकते हैं।

स्किल : केमिकल इंजीनियरिंग में बीइ या बीटेक या डिप्लोमा कोर्स करके भी इस फील्ड में एंट्री ले सकते हैं।

वर्क स्कोप : आप केमिकल इंजीनियर्स पेट्रोकेमिकल प्लांट्स, पेट्रोलियम रिफाइनिंग प्लांट्स, फार्मास्युटिकल, मैन्युफैक्चरिंग, फर्टिलाइजर, डाइ, पेंट या लुब्रिकेंट इंडस्ट्री में सेवा दे सकते हैं।

कॉन्सेप्ट ऐंड इनपुट :

दिनेश अग्रहरि, अंशु सिंह,

मिथिलेश श्रीवास्तव


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