संस्कृति विश्वविद्यालय में स्पेशल बच्चों के लिए स्पेशल पाठ्यक्रम
संस्कृति विश्वविद्यालय ने स्पेशल बच्चों के लिए संस्कृति स्कूल आॅफ इंटिलेक्चुअल एंड डवलपमेंट डिसेबिलीटीज में डी.एड. (स्पेशल एजुकेशन) कोर्सेस में कई पाठ्यक्रमों की शुरूआत की है।
शिक्षा की मिसाल कायम कर चुके संस्कृति विश्वविद्यालय ने अपने क्षेत्र में स्पेशल बच्चों के लिए विशिष्ट शिक्षा पद्धति के तहत विशेष कोर्सेस की शुरूआत की है। विशेष बच्चों की जरूरत के हिसाब से स्पेशल क्लासेज जुलाई से शुरू हो चुकी हैं। संस्कृति विश्वविद्यालय के अधीन संस्कृति स्कूल आॅफ इंटिलेक्चुअल एंड डेवलपमेंट डिसेबिलीटीज में डी.एड. एवं बी.एड. कोर्स चलाए जा रहेे हैं। विशिष्ट बच्चों की शिक्षा के लिए चलाए जा रहे स्पेशल स्कूल यानि पुनर्वास केंद्र में फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी, क्लिनिकल-साईकोलोजी, काउंसलिंग के माध्यम से विशिष्ट छात्र-छात्राओं को शिक्षा दी जा रही है। पुनर्वास विद्यालय में प्रशिक्षित शिक्षकों की टीम अध्यापन कार्य करती है।
संस्कृति स्कूल आॅफ इंटिलेक्चुअल एंड डवलपमेंट डिसेबिलीटीज के बारे में संस्कृति यूनिवर्सिटी के प्रो.चांसलर श्री राजेश गुप्ता जी ने बताया कि संस्कृति विश्वविद्यालय ने स्पेशल बच्चों के लिए संस्कृति स्कूल आॅफ इंटिलेक्चुअल एंड डवलपमेंट डिसेबिलीटीज में डी.एड. (स्पेशल एजुकेशन) कोर्सेस में तमाम पाठ्यक्रम की शुरूआत की है। डी.एड. (स्पेशल एजुकेशन) पाठ्यक्रम में ए.सी.डी., सी.पी. एवं एम.आर कोर्स हैं तो बी.एड.(बैचलर आॅफ एजुकेशन) में एल.डी., एच.आई. और एम.आर. पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं। डी.एड. में प्रशिक्षण के लिए हिंदी या अंग्रेजी माध्यम से बारहवीं उत्तीर्ण होना आवश्यक है। इसी तरह बी.एड. (बैचलर इन एजुकेशन) के लिए अंग्रेजी या हिंदी माध्यम से किसी विषय से अभ्यर्थी को स्नातक उत्तीर्ण होना आवश्यक है। विश्वविद्यालय द्वारा संचालित स्कूल आॅफ इंटिलेक्चुअल एंड डवलपमेंट डिसेबिलीटीज में प्रशिक्षकों की टीम विद्यार्थी की जरूरतों को पहचान कर प्रशिक्षण का काम करती है। इस टीम में रोग विशेषज्ञ के साथ भौतिक मेडिसिन और पुनर्वास शिक्षक मौजूद रहकर उनकी शिक्षा में मदद करते हैं।
डी.एड. (डिप्लोमा इन एजुकेशन) कोर्सेस में चलाए जा रहे कोर्स में ए.एस.डी. (आॅटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्आॅर्डर) एक तरह से जटिल न्यूरो विकासात्मक विकारों का एक समूह है जिसमें पीड़ित व्यक्ति के विचार समाजीकरण, संचार और व्यवहार आदि शामिल हैं। इसी को मद्देनजर रखते हुए डी.एड.(डिप्लोमा इन एजुकेशन) कोर्स में ए.एस.डी. विकास से पीड़ित विद्यार्थियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। जिसमें मनोविज्ञान एवं सीखने के सिद्धांत, बाल विकास की प्रकृति, विकास के प्रमुख पहलू, अनुभूति एवं इंटेलीजेंस, व्यवहार की समस्याओं का प्रबंधन आदि पर प्रकाश डाला जाता है।
डिप्लोमा इन एजुकेशन में चलाए जा रहे सी.पी. (सेरेब्रल पाल्सी) कोर्स में प्रशिक्षण प्राप्त भाषा शिक्षक के द्वारा पाठ्यक्रम के अनुरूप छात्र-छात्राओं को शिक्षण दिया जाता है। डी.एड. विशेष शिक्षा में (सेरेब्रल पाल्सी) पाठ्यक्रम का लक्ष्य और उद्देश्य न्यूरोलाॅजिकल विकलांग बच्चों को शिक्षित करना है। जिसके लिए स्थापित पुनर्वास विद्यालय में समुदाय आधारित पुनर्वास कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
इसी तरह डी.एड. कोर्स में एम.आर. (मेंटल रिटार्डेशन) पाठ्यक्रम में एडमीशन का दौर चल रहा है, जिसमें विशिष्ट जरूरतों में मानसिक मंदता की उम्र, सामाजिक परिवेश और पारिस्थिति में छात्र-छात्राओं को शिक्षण के लिए ढालकर शिक्षा दी जाती है।
स्नातक कर चुके युवाओं के लिए संस्कृति विश्वविद्यालय में शैक्षिक स्नातक के लिए बी.एड. पाठ्यक्रम शुरू किया गया है। एल.डी. (लर्निंग डिसेबिलिटीज) से पीड़ित छात्र-छात्राओं की मानसिक एवं याद्दाश्त की स्थिति पर पैनी नजर रखते हुए उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें खुद सीखने के साथ अन्य को प्रशिक्षित करने योग्य अभ्यर्थी बनाया जा सके।
एच.आई. (हियरिंग इम्पेयर्ड) पाठ्यक्रम के तहत बी.एड. करने वाले छात्र-छात्राओं के लिए श्रवण माध्यम के साथ अन्य विकल्पों में डीफ एंड डंब शिक्षा पद्धति के तहत इशारों की भाषा समझने की शिक्षा दी जाती है।
एम.आर. (मेंटल रिटार्डनेस) के अंतर्गत ऐसे अभ्यर्थी शिक्षा के लिए आते हैं, जिनकी मानसिक स्थिति में भूलने और याद करने की स्थिति बिल्कुल क्षीण हो चुकी होती है। यूनिवर्सिटी में बच्चों की बढ़ती जरूरतों के हिसाब से इस कोर्स का पाठ्यक्रम डिजाईन किया गया है।
संस्कृति यूनिवर्सिटी के चांसलर श्री सचिन गुप्ता जी ने कहा कि सामाजिक विकास में स्पेशल बच्चों के लिए भी शिक्षा बेहद जरूरी है, इसीलिए संस्कृति यूनिवर्सिटी में ऐसे स्पेशल बच्चों की शिक्षा के लिए स्पेशल पद्धति के तहत शिक्षा का पूरा इंतजाम किया गया है।
आॅटिज्म रोगियों के लिए ऐसे काफी सारे क्लासेज-प्रोेग्राम होते हैं जो उनमें सामाजिक व्यावहारिक व भाषा समस्याओं को दूर करने में मदद करते हैं। कुछ कार्यक्रम रोगियों में व्यावहारिक समस्याओं को कम करने के साथ ही उन्हें नए गुण भी सिखाते हैं। इसके अलावा बच्चों को लोगों से बात करने के गुण सिखाए जाते है, जिससे वे आसानी से सामाजिक स्थितियों को सामना कर सकें। शिक्षा देने वाले लोगों में विशेषज्ञों को रखा गया हैं जो उन्हें हर तरह की शिक्षा देते हैं। इस थेरेपी के दौरान बच्चों द्वारा ऐसी कई गतिविधियां कराई जाती हैं जिससे उनकी शैक्षिक क्षमता में वृद्धि होती है। इस दौरान विशेष थेरेपी दी जाती है जिससे बच्चे सीखने के साथ ही समाज मे विकास की धारा में चलने के काबिल बनते हैं। बी.एड. (बैचलर आॅफ एजुकेशन) एवं डी.एड. (डिप्लोमा इन एजुकेशन) के प्रत्येक कोर्स में सीमित सीटों की संख्या 25 है जिसमें प्रवेश शुरू हो चुके हैं।