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Career की लाइफलाइन

बचपन से ही आप डॉक्टर को देखते आए हैं। हॉस्पिटल, थर्मामीटर, स्टेथस्कोप, सिरींज और इंजेक्शन...ऐसी कई सारी चीजें हैं जो डॉक्टर की पहचान हैं। आज यह फील्ड यूथ की फस्र्ट च्वाइस बना हुआ है। अगर आप भी मेडिकल फील्ड में जाना चाहते हैं, तो बेशक तैयार हो जाएं, लेकिन पहले

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 01 Apr 2015 11:27 AM (IST)Updated: Wed, 01 Apr 2015 11:31 AM (IST)
Career  की लाइफलाइन

बचपन से ही आप डॉक्टर को देखते आए हैं। हॉस्पिटल, थर्मामीटर, स्टेथस्कोप, सिरींज और इंजेक्शन...ऐसी कई सारी चीजें हैं जो डॉक्टर की पहचान हैं। आज यह फील्ड यूथ की फस्र्ट च्वाइस बना हुआ है। अगर आप भी मेडिकल फील्ड में जाना चाहते हैं, तो बेशक तैयार हो जाएं, लेकिन पहले जान लें कि केवल डॉक्टर बनने और ऑपरेशन करने तक ही सीमित नहीं है यह करियर। इस फील्ड में और भी कई बेहतरीन ऑप्शन हैं...

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धरती का भगवान

डॉ संजीव गुप्ता, एमडी

संजीवनी हॉस्पिटल

मिडिल क्लास फैमिली से हूं। बचपन में करियर को लेकर काफी कंफ्यूजन थी। अक्सर जब डॉक्टर के पास जाता था, तो कान में आला लगाकर हार्टबीट चेक करने लगता था। बाद में अपने बड़े भाई, जो आज आइएएस हैं, के मार्गदर्शन में इंटरमीडिएट के बाद मेडिकल फील्ड में आने का फैसला किया। इलाहाबाद जाकर हम दोनों?भाइयों ने एक कमरे में रहते हुए तैयारी की। पीएमटी, सीपीएमटी, एएफएमसी सबमें सलेक्शन हो गया।

अर्र्निंग के साथ पब्लिक सर्विस

कानपुर के जीएसडीएम कॉलेज से एमबीबीएस किया। फिर गोरखपुर मेडिकल कॉलेज से एमडी कंप्लीट किया। उसी कॉलेज में पढ़ाया भी, लेकिन कुछ अलग और अपना काम शुरू करने की ख्वाहिश थी। उसी के चलते हॉस्पिटल खोला। आज के दौर में डायबिटीज, थायराइड जैसी बीमारियां आम हो गई हैं। मैंने खासतौर पर इन्हीं बीमारियों के खिलाफ एक तरह से मुहिम छेड़ रखी है।

जिंदगी बचाने का चैलेंज

डॉक्टर से लोगों को बहुत उम्मीदें होती हैं। दम तोड़ते हुए इंसान की जिंदगी बचाने की आखिरी उम्मीद डॉक्टर ही होता है। इसलिए लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना ही हमारी सबसे बड़ी चुनौती होती है।

डॉक्टर बनने का सीधा रास्ता

अगर आप डॉक्टर बनना चाहते हैं, तो इंटरमीडिएट के दौरान ही सीरियस हो जाएं। सेंट्रल लेवल पर पीएमटी और स्टेट लेवल पर सीपीएमटी के मेडिकल एग्जाम्स होते हैं। इनके जरिए आप एमबीबीएस, बीएचएमएस, बीडीएस, बीयूएमएस जैसी स्ट्रीम्स में एडमिशन लेकर डॉक्टर के रूप में करियर की शुरुआत कर सकते हैं। नॉर्मल फिजिशियन बनने के लिए यह डिग्री पर्याप्त है। इससे आगे एमडी या एमएस यानी मास्टर ऑफ मेडिसिन या मास्टर इन सर्जरी कोर्स करके स्पेशलिस्ट बन सकते हैं। इसके अलावा, एएफएमसी के जरिए सेना में भी डॉक्टर बनकर दोहरी भूमिका निभा सकते हैं।

स्पेशलिस्ट्स इन डिमांड

डॉ. अमित सिंघल

आई स्पेशलिस्ट, दिल्ली

मैंने कभी सोचा नहींथा कि डॉक्टर बनूंगा। मेडिकल प्रोफेशन में आऊंगा। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से 12वींकरने के बाद लगा कि एक कोशिश करनी चाहिए। मैं दिल्ली आ गया और यहां एक साल कोचिंग करने के बाद मेडिकल की तमाम एंट्रेंस परीक्षाएं दीं। आखिर में मणिपाल में एमबीबीएस में दाखिला मिला। एमबीबीएस के बाद मैंने वहींसे मास्टर्स और आई में स्पेशलाइजेशन किया। इस तरह पढ़ाई के दरम्यान ही इस प्रोफेशन में दिलचस्पी बढ़ती गई और आज मैं इसे पूरी तरह एंज्वॉय करता हूं।

ओरिएंटेशन होने पर ही आएं

मेडिकल एक बहुत ही नोबेल प्रोफेशन है। जब इसके प्रति झुकाव या ओरिएंटेशन हो, तब ही इसमें आएं। पहली कोशिश एंट्रेंस एग्जाम के जरिये मेडिकल कॉलेज में दाखिले की होनी चाहिए। मेडिकल एंट्रेंस के क्वैश्चंस 12वीं के सिलेबस से बिल्कुल अलग होते हैं। इसलिए स्कूली पढ़ाई के साथ-साथ मेडिकल के पुराने क्वैश्चन पेपर्स सॉल्व करना अच्छा रहता है। इसी तरह एनसीइआरटी के अलावा दूसरे रेफरेंस बुक्स को भी फॉलो करना सही रहेगा। एम्स और एएफएमसी के एग्जाम्स में साइंस के अलावा इंग्लिश और जनरल नॉलेज से संबंधित प्रश्न भी होते हैं।

स्पेशलाइजेशन से बढ़ेंगे ऑप्शन

पब्लिक हेल्थ सर्विस में स्पेशलिस्ट्स की काफी डिमांड है। आई की बात करें, तो यहां कैटेरैक्ट, कॉर्निया, रेटिना, ग्लुकोमा आदि कुल 7 ब्रांचेज में सुपर स्पेशलाइजेशन कर आप गवर्नमेंट या प्राइवेट सेक्टर में काम कर सकते हैं। जूनियर पोस्ट्स के लिए अखबारों में वैकेेंसी आती रहती है।

डेंटिस्ट फैलाए मुस्कान

आजकल हर कोई सुंदर और स्वस्थ दिखना चाहता है, चाहे वो आंखें हों या दांत, सभी स्वस्थ होने चाहिए। लेकिन गौर करने की बात यह है कि लोगों को अपने दांतों और मसूढ़ों को स्वस्थ रखने के लिए जिस अनुपात में डॉक्टरों की जरूरत है, उतने हैं ही नहीं। ऐसे में डेंटिस्ट एक अच्छा करियर ऑप्शन है।

एलिजिबिलिटी

फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के साथ कम से कम 50 फीसदी अंकों के साथ 12वीं पास।?

एंट्रेंस एग्जाम

सीबीएसई की ओर से आयोजित नीट यानी नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट

पीएमटी और सीपीएमटी

स्पेशलाइजेशन

स्पेशलाइजेशन और गहन जानकारी के लिए एमडीएस किया जा सकता है। इसके लिए भी एंट्रेंस एग्जाम होता है। स्पेशलाइजेशन कई तरह के हैं। इंडोडोंटिक्स, ओरल ऐंड मैक्सिलोफेशियल पैथोलॉजी, ओरल सर्जरी, ऑर्थोडोंटिक्स, पेडोडोंटिक्स, पेरिडोंटिक्स और प्रोस्थोडोंटिक्स जैसे फील्ड शामिल हैं।

अपॉच्र्युनिटी

देश में डेंटल सर्जन की सार्वजनिक और निजी, दोनों फील्ड्स में काफी डिमांड है। सरकारी अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों के अलावा रेलवे और रक्षा क्षेत्रों द्वारा संचालित अस्पतालों में डेंटिस्ट की नियुक्तियां की जाती हैं। टूथपेस्ट बनाने और मसूढ़ों की देखरेख करने वाली कंपनियां अपने यहां ऐसे लोगों को बतौर विशेषज्ञ नियुक्त कर रही हैं।

इंस्टीट्यूट वॉच

-मौलाना आजाद डेंटल कॉलेज, नई दिल्ली

-जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली

-इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली

-आर्मी कॉलेज ऑफ डेंटल साइंस, सिकंदराबाद -गवर्नमेंट डेंटल कॉलेज, अहमदाबाद

-डेंटल कॉलेज, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

-डॉ. आर.अहमद डेंटल कॉलेज, कोलकाता

माइक्रोबॉयोलॉजी

कब, कहां, कौन-सा खाना किस तरह आपके लिए नुकसानदेह हो सकता है, यह पता लगा पाना हर किसी के वश की बात नहीं, लेकिन एक ऐसा भी फील्ड है, जहां स्पेशलिस्ट छोटे-से-छोटे मर्ज की भी जांच कर सकते हैं।

आम आदमी का खाना हो या कोई दवा, इनकी क्वालिटी चेक करने का काम माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट करता है। साइंस के इस ब्रांच के तहत उन बैक्टीरिया की स्टडी होती है, जिन्हें आंखों से देख पाना मुश्किल होता है।

अपॉच्र्युनिटी

इस फील्ड में बीएससी करने के बाद आप रिसर्च असिस्टेंट के रूप में लेबोरेटरी या ऐसे दूसरे संस्थानों में काम कर सकते हैं। एमएससी करने के बाद माइक्रो बॉयोलॉजिस्ट बनने के अच्छे मौके मिलते हैं।

कोर्स

इसमें बॉयोकेमिस्ट्री, सेल बॉयोलॉजी, बैक्टीरियोलॉजी और जेनेटिक्स की स्टडी की जाती है। बीएससी के बाद बॉयोटेक्नोलॉजी, बॉयोइंफॉर्मेटिक्स, मॉलिक्यूलर बॉयोलॉजी, बॉयो मेडिकल साइंस जैसी स्ट्रीम्स में कोर्स करके आगे बढऩे के और भी मौके मिलते हैं।

इंस्टीट्यूट वॉच

-दिल्ली विश्वविद्यालय

-जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली

-देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर

-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू

-एमएस विश्वविद्यालय, बड़ोदरा

मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन

मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन की भारत में शुरुआत 1997-98 में हुई थी। मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन के तहत डॉक्टरों के पे्रस्क्रिप्शन का रिकॉर्ड रखा जाता है। इन रिकॉड्र्स में मेडिकल हिस्ट्री व फिजिकल रिपोर्ट, क्लिनिकल रिपोर्ट, ऑफिस नोट्स, ऑपरेटिव नोट्स, कंसल्टेशन

नोट्स, डिस्चार्ज समरी, मनोचिकित्सक का आकलन, पैथोलॉजी-लैब रिपोर्ट और एक्सरे रिपोर्ट आदि शामिल हैं। विदेश के डॉक्टरों को अपने देश में यह काम कराना भारत की तुलना में काफी महंगा पड़ता है, इसलिए वे इसके लिए भारत की ओर रुख करते हैं।

एलिजिबिलिटी

किसी भी स्ट्रीम में बारहवीं पास यूथ मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन की ट्रेनिंग कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए इंग्लिश पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए।

स्किल्स

-इंग्लिश लैंग्वेज पर कमांड

-सुनने की अच्छी क्षमता

-अमेरिकन उच्चारणों की समझ

-मेडिकल टर्मिनोलॉजी, ग्रामर की नॉलेज

-कंप्यूटर नॉलेज और टाइपिंग की स्पीड

सैलरी

शुरुआत 9000-10,000 रुपये मासिक से

इंस्टीट्यूट वॉच

-इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन, नई दिल्ली

-मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन एजुकेशन सेंटर, दिल्ली

फॉर्मेसी से कमाएं

एक्सपट्र्स की राय में आने वाले समय में एजुकेशन और फॉर्मा, दो ऐसे फील्ड हैं जहां जॉब और करियर की सबसे ज्यादा संभावनाएं हैं। बुनियादी वजहें साफ हैं। न तो तो आप पढ़ाई छोड़ सकते हैं और न ही इलाज।

करियर स्कोप

दुनिया की तमाम बेहतरीन फॉर्मास्युटिकल कंपनियां अब भारत में या तो आ चुकी हैं या आने की तैयारी में हैं। नर्सिंग होम्स, अस्पतालों और कंपनियों में आपके लिए नौकरी के अच्छे अवसर हैं। ड्रग कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन और आम्र्ड फोर्सेज में भी काफी संभावनाएं हैं। सरकारी विभागों में भी एनालिस्ट और ड्रग इंस्पेक्टर आदि के रूप में मौके मिलते हैं।

वर्क प्रोफाइल

-ड्रग मैन्युफैक्चरिंग

- क्वालिटी कंट्रोल

-रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट

-क्लीनिकल रिसर्च

-फार्मासिस्ट

-सेल्स

कोर्स

अगर आपके पास डीफार्मा या बीफार्मा के साथ एमबीए की भी डिग्री हो, तो फिर आपकी सक्सेस पक्की है।

एलिजिबिलिटी

साइंस से 12वीं करने के बाद आप दो साल के डीफार्मा या चार साल के बीफार्मा में एडमिशन ले सकते हैं।

इंस्टीट्यूट वॉच

-जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली

-दिल्ली यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली

-बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रांची

-जाधवपुर यूनिवर्सिटी, पश्चिम बंगाल

-कॉलेज ऑफ फॉर्मास्युटिकल साइंसेज, उड़ीसा -कॉलेज ऑफ फॉर्मेसी, इंदौर

-डॉ. हरिसिंह गौर यूनिवर्सिटी, सागर

ऑडियोलॉजी में संभावनाएं

शिल्पी गर्ग, क्लीनिकल हेड, ऑडिकॉम

मुझे हमेशा से लोगों के साथ इंटरैक्ट करना अच्छा लगता था। इसलिए 12वीं के बाद मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी की। एमबीबीएस के अलावा मैंने पैरा-मेडिकल कोर्सेज के भी नेशनल एंट्रेंस एग्जाम दिए। मैं मैसूर स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ स्पीच ऐंड हियरिंग की प्रवेश परीक्षा में सलेक्ट हो गई। वहां से ऑडियोलॉजी ऐंड स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजी का चार साल का कोर्स करने के बाद मैंने पहले कुछ साल प्राइवेट सेक्टर में काम किया। इसके बाद गाजियाबाद में ऑडिकॉम नाम से अपना क्लीनिक शुरू कर दिया।

देश-दुनिया में काम के मौके

ऑडियोलॉजी में बैचलर्स के अलावा स्टूडेंट्स स्पीच पैथोलॉजी, ऑडियोलॉजी या फॉरेंसिक स्पीच पैथोलॉजी में मास्टर्स कर सकते हैं। जो हायर एजुकेशन में जाना चाहते हैं, वे पीएचडी भी कर सकते हैं। इसके अलावा यूएस, यूके, सिंगापुर आदि देशों में काम करने के लिए एयूडी, सीसीसीएलपी जैसे प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन एग्जाम होते हैं। इन्हेें क्लियर करने के बाद विदेश में काम करना आसान हो जाता है। इंडिया में जहां बैचलर्स के बाद गवर्नमेंट सेक्टर में 20 से 25 हजार रुपये में शुरुआत कर सकते हैं, वहींमास्टर्स के बाद 35 से 40 हजार रुपये महीने की आय आम बात है। एक्सपीरियंस होने पर सैलरी लाखों में पहुंच सकती है।

स्टेबल पर्सनैलिटी

कोई भी स्टूडेंट साइंस स्ट्रीम से 12वींकरने के बाद इस फील्ड में करियर बना सकता है। गवर्नमेंट कॉलेजों में दाखिले के लिए नेशनल एंट्रेेंस एग्जाम क्लियर करना होता है। कई कॉलेज खुद की प्रवेश परीक्षा भी लेते हैं। मैसूर के अलावा दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद में कॉलेज हैं। लेकिन इस पेशे में आने के लिए आपके पास पैशन, पेशंस और केयरिंग एटीट्यूड का होना बेहद जरूरी है। आपको मरीजों के साथ-साथ उनके परिजनों की काउंसलिंग करनी होती है, इसलिए आपकी पर्सनैलिटी स्टेबल होनी चाहिए।

रेडियोलॉजी इन डिमांड

कई बीमारियां ऐसी हैं, जिनके बारे में पता लगाने के लिए एक्सरे, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड, एमआरआइ आदि का सहारा लिया जाता है। इस तरह के सारे काम मेडिकल इमेजिंग टेक्नोलॉजिस्ट करते हैं। अमेरिकन सोसाइटी ऑफ रेडियोलॉजी के अनुसार रेडियोलॉजिस्ट टेक्नीशियन की डिमांड 26 प्रतिशत की दर से बढऩे की संभावना है।

करियर स्कोप

रेडियोलॉजी कोर्स करने के बाद आप सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटल, नर्सिंग होम, क्लीनिक, मिलिट्री सर्विस, शिक्षा संस्थानों और रिसर्च लेबोरेटरी आदि में नौकरी पा सकते हैं।

वर्क प्रोफाइल्स

-रेडियोग्राफर

-रेडियोलॉजी टेक्नोलॉजिस्ट

-साइंटिफिक लेबोरेटरी असिस्टेंट

-क्लिनिकल असिस्टेंट

-एक्सरे टेक्नीशियन

-अल्ट्रासाउंड स्पेशलिस्ट आदि।

अगर आपके पास पूंजी है तो आप अपना खुद का काम भी शुरू कर सकते हैं।

कोर्सेज

-बीएससी इन रेडियोलॉजी (3 साल)

-सर्टिफिकेट इन रेडियोग्राफी (1 साल)

-डिप्लोमा इन एक्स-रे टेक्निशियन (1 साल)

-पीजी डिप्लोमा इन रेडियो थेरेपी टेक्नोलॉजी (2 साल)

इंस्टीट्यूट वॉच

-ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली

-जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी, हमदर्द नगर, दिल्ली

-बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

-महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज, झांसी

-पटना मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल, पटना

-मेडिकल कालेज, पटियाला, पंजाब

-बीजे मेडिकल कॉलेज, अहमदाबाद, गुजरात

-क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लूर, तमिलनाडु

ऑक्युपेशनल थेरेपी में ग्रोथ

रौशन दीपसिंह बग्गा ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट

मैं डॉक्टर बनना चाहता था, इसलिए मेडिकल एग्जाम्स की तैयारी की। सक्सेस नहींमिली। फिर पैरा-मेडिकल को एक्सप्लोर करने का फैसला किया। फिजियोथेरेपी के बारे में थोड़ा मालूम था। लेकिन कॉलेज में दाखिले से पहले कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि मुझे ऑक्युपेशनल थेरेपी कोर्स करना चाहिए, क्योंकि इसमें आगे बढऩे की काफी संभावनाएं हैं। मैंने एक प्राइवेट कॉलेज में दाखिला ले लिया। आज मैं दिल्ली के वसंत वैली स्कूल में कंसल्टेेंट के अलावा अपना क्लीनिक चलाता हूं।

संख्या कम, डिमांड ज्यादा

इंडियन सोसायटी में करीब 50 प्रतिशत बच्चे ऑटिज्म के शिकार हैं। इसके अलावा वर्र्किंग प्रोफेशनल्स या स्पोट्र्सपर्सन को जिस तरह की मेंटल या फिजिकल इंजरीज से दो-चार होना पड़ रहा है, उसे देखते हुए ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट्स की काफी डिमांड है। लेकिन इसके बारे में ज्यादा जागरूकता न होने से ऐसे प्रोफेशनल्स की कमी है। इसलिए जो स्टूडेंट्स मेडिकल से जुड़े फील्ड में आना चाहते हैं, उनके लिए ऑक्युपेशनल थेरेपी एक बेहतर जरिया बन सकता है।

कोर्स ऐंड स्पेशलाइजेशन

ऑक्युपेशनल थेरेपी का बैचलर कोर्स करीब चार साल का होता है। इसके बाद छह महीने की इंटर्नशिप होती है। गवर्नमेंट कॉलेजों में दाखिले के लिए अप्रैल-मई में एंट्रेंस एग्जाम होते हैं। कई प्राइवेट कॉलेज भी इससे संबंधित कोर्स संचालित करते हैं। बैचलर्स के बाद अपनी पसंद की ब्रांच में स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं,?जैसे-ऑर्थोपेडिक, पेडिएट्रिक, गाइनोकोलॉजी, कार्डियोलॉजी, न्यूरोलॉजिकल थेरेपी आदि। इसके साथ ही एनडीटी, सेेंसरी इंटरैक्शन थेरेपी आदि में सर्टिफिकेशन भी कर सकते हैं। अगर आपने प्राइवेट कॉलेज से कोर्स करने के बावजूद एम्स आदि प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में इंटर्नशिप की है, तो ग्रोथ के चांसेज और भी बढ़ जाते हैं।

ओटी टेक्निशियन

पवन

ओटी टेक्निशियन

मैंने दसवींके बाद ही गुडग़ांव के एक प्राइवेट इंस्टीट्यूट से ऑपरेशन थियेटर टेक्निशियन का डिप्लोमा कोर्स किया था। इसके बाद एक निजी हॉस्पिटल में दो साल काम किया। इस ट्रेनिंग के पूरा होने पर उसी हॉस्पिटल में जॉब ऑफर हुई और मैंने वह ज्वाइन कर ली। चार साल वहां काम करने के बाद मैंने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के ब्रांच में दो साल काम किया और फिलहाल दिल्ली स्थित शार्प आई सेंटर के साथ हूं। एक ओटी टेक्निशियन के रूप में मेरी जिम्मेदारी ऑपरेशन थियेटर का प्रबंधन करना है। मैं ज्यादा खून नहींदेख सकता, इसलिए नेत्र विभाग की ओटी को मैनेज करता हूं। वहां सर्जरी में असिस्टेंस देने, इनपुट-आउटपुट पेशेंट्स को मैनेज करने से लेकर सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स का प्रबंध करना मेरा काम है। हर काम को बेहद सावधानी से निपटाना होता है, क्योंकि छोटी-सी चूक भी भारी पड़ सकती है। शुरुआत में एक ओटी टेक्निशियन को 15 हजार रुपये महीने मिल जाते हैं। वहीं, अनुभव होने पर प्राइवेट सेक्टर में 45 से 60 हजार रुपये तक कमा सकते हैं। जो लोग इस फील्ड में आना चाहते हैं, वे गवर्नमेंट या प्राइवेट इंस्टीट्यूट से डिप्लोमा कर सकते हैं। यूपी गवर्नमेंट द्वारा मान्यताप्राप्त इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज दो साल का डिप्लोमा कोर्स ऑफर करता है।

कॉन्सेप्ट ऐंड इनपुट :

अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव


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