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लीग से खुलते तरक्की के रास्ते

पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब! आज के समय में इस जुमले की दूसरी लाइन पूरी तरह से बदल गई है, यानी आज के यूथ 'खेलने कूदने से भी नवाब' बन रहे हैं। कुछ साल पहले तक गार्जियंस अपने बच्चों को खेलने-कूदने में टाइम वेस्ट करने की बजाय पढ़ाई में मन लगाने को कहा करते थे। कोई बच्चा खेलता-कूदता था, उसे डांट-डपट क

By Edited By: Published: Wed, 30 Apr 2014 11:24 AM (IST)Updated: Wed, 30 Apr 2014 11:24 AM (IST)
लीग से खुलते तरक्की के रास्ते

पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब,

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खेलोगे कूदोगे होगे खराब!

आज के समय में इस जुमले की दूसरी लाइन पूरी तरह से बदल गई है, यानी आज के यूथ 'खेलने कूदने से भी नवाब' बन रहे हैं। कुछ साल पहले तक गार्जियंस अपने बच्चों को खेलने-कूदने में टाइम वेस्ट करने की बजाय पढ़ाई में मन लगाने को कहा करते थे। कोई बच्चा खेलता-कूदता था, उसे डांट-डपट कर पढ़ने बैठा दिया जाता था। पर क्रिकेट का क्रेज बढ़ने और स्पो‌र्ट्स लीग आने के बाद खेलों के प्रति गार्जियंस का नजरिया भी बदल गया है। इंडियन प्रीमियर लीग के धूम-धड़ाके ने देश के दूसरे पॉपुलर खेलों में भी जान फूंक दी है। कॉरपोरेट घरानों और सेलिब्रिटीज द्वारा क्रिकेट के अलावा फुटबॉल, हॉकी, बैडमिंटन, कबड्डी, टेनिस जैसे खेलों में इंट्रेस्ट लिए जाने से अब इनमें भी चमकदार करियर की संभावनाएं बढ़ गई हैं। इससे शहरों के साथ-साथ गांव-कस्बों के होनहार खिलाड़ियों को भी खुद को साबित करने का प्लेटफॉर्म मिल गया है। सुविधाओं और प्लेटफॉर्म के अभाव में जिन खिलाडि़यों को गुमनामी और उपेक्षा का शिकार होना पड़ता था, उन्हें अब स्पो‌र्ट्स लीग के जरिए अपना टैलेंट दिखाने का भरपूर मौका मिलने लगा है। यही कारण है कि गलियों-मोहल्लों और गांवों में अपनी पसंद का खेल खेलने वाले बच्चे और किशोर उसमें कामयाबी की सीढि़यां चढ़ने के सपने देखने लगे हैं। खास बात यह है कि गार्जियंस भी अपने बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर या आईएएस बनाने की जिद छोड़ उन्हें अपनी पसंद की राह चुनने की आजादी दे रहे हैं और बच्चे भी उन्हें गौरवान्वित कर रहे हैं..

जुनून ने दिलाई कामयाबी

मोहित शर्मा क्रिकेटर, चेन्नई सुपर किंग्स

बचपन में जब सारे लड़के एग्जाम की टेंशन में किताबों में सिर गड़ाए होते थे. उस वक्त हरियाणा के बल्लभगढ़ के इस छोरे पर जुनून सवार था इंडियन क्रिकेट टीम के लिए खेलने का। रात-दिन बॉल और स्टंप यही शगल था। इंडियन टीम में विकेटकीपर रहे विजय यादव से क्रिकेट की बारीकियां सीखकर वह आगे बढ़ते गए। कई बार चोटिल भी हुए, लेकिन दर्द की परवाह किए बिना वह बस खेलते गए। आज चेन्नई सुपर किंग्स की ओर से आइपीएल सीजन 7 में खेल रहे हैं।

स्किल से मिली पहचान

2007 में हरियाणा की अंडर-19 क्रिकेट टीम में सलेक्शन होने के बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिसंबर 2011 में पहली बार नेशनल लेवल पर गुजरात के खिलाफ उन्होंने जीत दर्ज की। 2011-12 के रणजी ट्रॉफी में हरियाणा टीम की जीत हुई। 2012-13 रणजी ट्रॉफी के दौरान आठ मैचों में उन्होंने 37 विकेट चटकाए। अपनी बॉलिंग की बदौलत 2013 आइपीएल के लिए चेन्नई सुपर किंग्स टीम में उनका सेलेक्शन हो गया।

आइपीएल का कमाल

आइपीएल सीजन 6 मोहित के लिए लकी साबित हुआ। उन्होंने 15 मैचों में 20 विकेट लिए। इसके बाद वह जिंबाब्वे के खिलाफ इंडियन टीम के लिए भी सेलेक्ट कर लिए गए, जहां 10 ओवर में 26 रन देकर 2 विकेट उखाड़े। फिर तो उनकी पहचान इंटरनेशनल लेवल पर बन गई।

जज्बे की जीत

मोहित के कोच विजय यादव बताते हैं, अपने एक वनडे मैच के दौरान मोहित बड़े नर्वस और उतावले हो रहे थे। वजह थी तीन मैच हो गए थे, लेकिन उन्हें अभी तक खेलने को नहीं मिला था। विजय के समझाने पर उन्होंने कहा, मुझे बस एक चांस मिल जाए, मैं गुल्लियां बिखेर दूंगा। यही जच्बा आज उन्हें कामयाबी की राह दिखा रहा है।

मुश्किलों में बढ़े आगे

परवेज रसूल क्रिकेटर, सनराइज हैदराबाद

जम्मू-कश्मीर देश का वह राच्य है, जहां क्रिकेट के सिर्फ दो मैदान हैं, एक श्रीनगर में और दूसरा जम्मू में। सर्दियों में श्रीनगर में बर्फबारी होने के बाद छह महीने तक मैदान पर खेल नहीं सकते। उसके बाद केवल जम्मू का मैदान बचता है, वहां भी टर्फ और विकेट की हालत ठीक नहीं है। ऐसे राच्य से निकलकर पहले आइपीएल और बाद में इंडियन क्रिकेट टीम में जगह बनाई अनंतनाग जिले के क्रिकेटर परवेज रसूल ने।

संघर्ष से बनी राह

19 साल की उम्र में परवेज रसूल ने पहली बार हिमाचल प्रदेश के खिलाफ जम्मू-कश्मीर की टीम की ओर से खेला। 11 ओवर की बॉलिंग के बाद भी कोई विकेट नहीं ले पाए, हालांकि 68 गेंदों पर 40 रन जरूर बनाए। उनकी टीम जीत हासिल नहीं कर पाई।

आतंकवादी का आरोप

2009 में ही वह बेंगलुरु में सी के नायडू ट्रॉफी खेलने आए, तो उनके बैग में विस्फोटक होने के शक में उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया। रसूल के शब्दों में, मैं पूरी रात सो नहीं पाया।.दिमाग में यही बात आई कि क्रिकेट का फायदा ही क्या है, जब यही सब होना है। उनके कोच अब्दुल कयूम भी निराश हो उठे, लेकिन रसूल के माता-पिता और जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन ने उन्हें समझाया और इन सब बातों को इग्नोर करके क्रिकेट पर ध्यान देने को कहा।

रंग लाई मेहनत

2012-13 रणजी के दौरान रसूल ने 7 मैच में रिकॉर्ड 594 रन बनाए। उनकी मेहनत रंग लाई और उनका सलेक्शन इंडिया ए टीम में हो गया। 6 जनवरी 2013 को इंग्लैंड के खिलाफ इस इंडियन टीम की ओर से खेलने वाले रसूल जम्मू-कश्मीर के पहले क्रिकेटर बन गए। फरवरी 2013 में आइपीएल की पुणे वॉरियर्स टीम में शामिल हुए। यहीं से रसूल का करियर परवान चढ़ा। रसूल को आईपीएल से उम्मीद है कि उन्हें काफी फायदा मिलेगा और वह एक बेहतर क्रिकेटर के रूप में खुद को स्थापित कर पाएंगे।

आगे आएं बड़े खिलाड़ी

चेतन चौहान पूर्व क्रिकेटर

नए खिलाड़ियों को प्लेटफॉर्म देने के लिए स्थापित खिलाड़ियों को ही आगे आना होगा, तभी उनका भला हो पाएगा। एक के बाद एक स्पो‌र्ट्स लीग बन रही हैं। आइपीएल के बाद इंडियन बैडमिंटन लीग, इंडियन बॉक्सिंग लीग और अब प्रो कबड्डी बनी। फुटबॉल लीग में सचिन और सौरव पैसा लगा रहे हैं। यह भारतीय खेलों के लिए शुभ संकेत है। इससे खिलाड़ियों के साथ-साथ दूसरी फील्ड के यूथ को भी इसका बहुत फायदा होगा।

खुल रहे रास्ते

संजय शुक्ला सीईओ

परसेप्ट स्पो‌र्ट्स ऐंड ऐंटरटेनमेंट

इंडियन क्रिकेट लीग की सक्सेस ने बाकी स्पो‌र्ट्स में भी लीग्स को बढ़ावा दिया है। इससे यंगस्टर्स स्पो‌र्ट्स में करियर बनाने की सोचने लगे हैं। लीग में अव्वल तो उन्हें अपने फेवरेट स्टार के साथ ड्रेसिंग रूम शेयर करने और उनसे खेल की बारीकियां सीखने का मौका मिलता है। दूसरा, आमतौर पर जो उभरते हुए प्लेयर्स महंगे इक्विपमेंट्स, स्पो‌र्ट्स एक्सेसरीज अफोर्ड नहीं कर सकते थे, उन्हें अब वे चीजें लेने के लिए सोचना नहीं पड़ता है। सबसे बड़ी बात, लीग ने उन्हें एक ऐसा प्लेटफॉर्म दिया है जहां कम समय में काबिलियत को पहचान मिलती है। खेल उम्दा रहा, तो इंडियन टीम में जगह पक्की करना भी मुश्किल नहीं होता है।

आइपीएल

2008 में शुरुआत हुई

सीजन-7 में 8 टीमें खेल रही हैं

सबसे सफल चेन्नई सुपर किंग्स

पहली बार यू ट्यूब पर लाइव

प्रो कबड्डी

4लीग में 8 टीमें हिस्सा लेंगी

4प्रत्येक टीम में 12 खिलाड़ी होंगे

4हैदराबाद, बेंगलुरु, दिल्ली, चेन्नई, मुंबई, जयपुर

और भोपाल की टीमें हिस्सा लेंगी।

4अभिषेक बच्चन ने ली जयपुर टीम की फ्रेंचाइजी

खेल में अच्छा करियर हो सकता है। आइपीएल के बाद देश में क्रिकेटरों की संख्या बढ़ी है। कबड्डी लीग शुरू होने के बाद इस पारंपरिक खेल के प्रति भी यूथ का इंट्रेस्ट बढ़ेगा।

अभिषेक बच्चन, अभिनेता

दोहा एशियन गेम्स की कमेंट्री के दौरान यह आइडिया आया कि गांव-कस्बों में बेहद लोकप्रिय कबड्डी में भी दूसरे खेलों की तरह जबरदस्त स्कोप है। प्रो कबड्डी के जरिए हमारी ऐसी ही कुछ कोशिश है।

चारु शर्मा, डायरेक्टर, मशाल स्पो‌र्ट्स

सुपर लीग फुटबॉल

दोहा एशियन गेम्स की कमेंट्री के दौरान यह आइडिया आया कि गांव-कस्बों में बेहद लोकप्रिय कबड्डी में भी दूसरे खेलों की तरह जबरदस्त स्कोप है। प्रो कबड्डी के जरिए हमारी ऐसी ही कुछ कोशिश है।

चारु शर्मा, डायरेक्टर, मशाल स्पो‌र्ट्स

सुपर लीग फुटबॉल

फुटबॉल लीग के लिए 8 टीमें घोषित।

टीम ओनर्स : सलमान खान, रणबीर कपूर, सचिन, सौरव गांगुली, सलमान, जॉन और रणबीर जैसे सेलिब्रिटीज ने फ्रेंचाइजी खरीदी

लीग की शुरुआत इस साल सितंबर से

फुटबॉल को मिलेगी नई पहचान

फुटबॉल प्रीमियर लीग से भारतीय प्लेयर्स को एक नई पहचान मिलेगी। फुटबॉल दुनिया के ज्यादातर देशों में खेला जाने वाला गेम है और प्रीमियर लीग के शुरू हो जाने से यहां के खिलाड़ियों को व‌र्ल्ड वाइड अपना टैलेंट दिखाने का मौका मिलेगा। बच्चों में फुटबॉल को लेकर काफी क्रेज है, लेकिन स्कोप कम होने की वजह से वे बीच में ही खेलना छोड़ देते हैं। फुटबॉल में भी बड़े-बड़े लोगों ने फ्रेंचाइजी खरीदी है। अनादि बरुआ

कोच, भारतीय महिला फुटबॉल टीम

कबड्डी के लिए कुछ भी

राकेश कुमार कैप्टन, इंडियन कबड्डी टीम

मैंने कभी नहीं सोचा कि आगे क्या होगा? मैं किस लेवल पर खेलूंगा, मुझे नौकरी मिलेगी या नहीं? कोई मेडल मिलेगा या नहीं, बस खेलता गया। कई बार चोटें आई, लेकिन दर्द की परवाह किए बिना खेलता गया। यही पैशन मुझे यहां तक लेकर आया।

कबड्डी ही जिंदगी है

दिल्ली के निजामपुर गांव का रहने वाला हूं। बचपन में अपने आस-पास के लोगों को कबड्डी खेलते देखता था, तो मैं भी कबड्डी खेलने लगा। मेरे बड़े भाई नारायण सिंह भी कबड्डी के प्लेयर हैं। पिताजी किसान हैं, उन्होंने हमेशा हम दोनों भाइयों का हौसला बढ़ाया। बड़े भाई के दोस्तों से ढेर सारे दांव-पेंच सीखता गया और गांव के खेल में उन्हें ही पटखनी देता गया। गांव में खासकर कबड्डी, कुश्ती जैसे खेलों का माहौल है। इसी माहौल में हम बढ़ते हैं। दूध-दही खाना और जमकर खेलना ही मेरा बचपन था। पैसों की कभी परवाह नहीं की। मिला तो ठीक, नहीं मिला तो भी ठीक।

रेलवे की शान बने

26 अप्रैल, 2004 को रेलवे में टिकट कलेक्टर की जॉब लगी थी, आज सीटीआई (चीफ टिकट इंस्पेक्टर) हूं। पहले के जमाने में लोग पढ़ने-लिखने को ही सब कुछ मानते थे, अब वो जमाना गया। आज आप खेल-कूद से भी लाइफ बना सकते हैं। स्पो‌र्ट्स कोटे के लिए ढेर सारी गवर्नमेंट जॉब्स की वैकेंसीज निकलती हैं। बस जरूरत है, आपके अच्छे परफार्र्मेस की।

इसमें भी लगेगी बोली

अभी तक क्रिकेट के अलावा और किसी खेल की पूछ नहीं होती थी, लेकिन अब दूसरे खेलों में भी प्रीमियर लीग बनने से खिलाड़ियों के लिए उनमें करियर बनाने की गुंजाइश बढ़ गई है। उम्मीद है कि आइपीएल की तरह कबड्डी लीग के जरिए इसके खिलाड़ियों को भी अच्छा पैसा मिलेगा। भले यह करोड़ों में न हो, लेकिन इतना भी बहुत है हम जैसों के लिए।

फुटबॉल जुनून है मेरा

रॉबिन सिंह फुटबॉल प्लेयर

फुटबॉल मेरा जुनून है। आज मैं जो कुछ भी हूं इसके पीछे दिन रात की कड़ी मेहनत है। लोगों के मना करने के बाद भी मैं हताश नहीं हुआ। आज नतीजा सबके सामने है। कॉरपोरेट कंपनीज ने इस गेम को बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया है।

शॉकिंग था पहला तजुर्बा

फ‌र्स्ट टाइम चंढीगढ़ फुटबॉल एकेडमी जाने का मौका मिला। यह मेरा पहला एक्सपीरियंस था फैमिली से अलग होने का। वहां की कंडीशन काफी डिफरेंट थी। न खाने का कोई अरेंजमेंट था और न रहने का। पिता ने अलग से डाइट का इंतजाम किया, जिस पर एकेडमी ने एतराज किया। यही नहीं, वहां मुझसे कहा गया कि तुम फुटबॉल नहीं खेल सकते। यह सुनकर शॉक लगा, लेकिन सोचा कि एक दरवाजा बंद होने से सारे दरवाजे नहीं बंद हो जाते। उसके बाद टाटा फुटबॉल एकेडमी (टीएफए) की तरफ से खेलने का मौका मिला। मुझे शुरुआत में जितना ज्यादा चैलेंज मिला, उतना ज्यादा मैं मजबूत होता गया।

लीग से मिलेगा मौका

फॉरेन में फुटबॉल प्लेयर्स को जो फैसेलिटीज दी जाती हैं वह अपने इंडिया में नहीं उपलब्ध हैं। क्रिकेट की तरह फुटबॉल में लीग शुरू हो जाने से यंगस्टर्स को मौका मिलेगा। पैसे के साथ अच्छी ट्रेनिंग और कोच से गाइडेंस मिल सकेगा। अब लोगों के पास टाइम नहीं है कि वे कई घंटे किसी गेम में दे सकें। टाइम कम होने की वजह से क्रिकेट में टवेंटी-20 का क्रेज बढ़ा है। फुटबॉल 90 मिनट का गेम है। फ्यूचर में यह गेम कहीं ज्यादा चर्चा में होगा।

फैमिली ने किया सपोर्ट

फुटबॉल के लिए फैमिली ने पूरा सपोर्ट किया। फुटबॉल खेलने के दौरान घर के और पड़ोसियों के खिड़की के शीशे तोड़ने पर मां से हमेशा डांट पड़ी। जब मैं 13 साल का था, तब पिता ने कहा कि तुम इस गेम को जारी रखो। आज भी जहां मैच होता है फैमिली का कोई न कोई मेंबर साथ जरूर होता है।

लाइफ का पंच

अखिल कुमार बॉक्सर

बॉक्सर का एक पंच उसकी जिंदगी बदल देता है। अखिल कुमार के जीवन में इसका बहुत महत्व है। अखिल को जब रिंग में अपना पंच दिखाने का मौका मिला, तो वह पहला बॉक्सिंग मैच हार गए। इस हार से वह मायूस नहीं हुए। ज्यादा मजबूत इरादों के साथ आगे बढ़े और अपने हौसले का अहसास कराया। अखिल मानते हैं कि जब लोग आपकी आलोचना शुरू कर दें तो समझिए आप सक्सेस की ओर बढ़ रहे हैं।

बॉक्सिंग इज ए आर्ट

बॉक्सिंग सेल्फ डिफेंस का एक आर्ट है, लेकिन इसमें सफलता काफी कड़ी मेहनत के बाद ही मिलती है। इंडिया में बॉक्सिंग का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। यूथ में बॉक्सिंग को लेकर पिछले कुछ सालों में ज्यादा जोश देखने को मिला है। विजेंद्र सिंह और मैरीकाम जैसे बॉक्सर्स ने इसमें काफी योगदान दिया है। मीडिया ने भी इस खेल को पूरा समर्थन दिया है। लीग शुरू होता है, तो यकीनन बहुत से नए बॉक्सर्स सामने आएंगे। नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर बॉक्सर्स को पहचान मिल सकेगी।

लीग से मिलेगा चांस

दूसरे खेलों की तर्ज पर अगर बॉक्सिंग में भी लीग की शुरुआत होती है, तो बहुत से नए खिलाड़ी सामने आएंगे। बॉक्सिंग में जितना कॉम्पिटिशन बढ़ेगा खिलाड़ियों को उतने ज्यादा मौके मिलेंगे। उनकी बॉक्सिंग में उतना ही ज्यादा निखार आएगा। इंटरनेशनल बॉक्सर्स से सीखने का मौका मिलेगा। इसके साथ फाइनेंशियल सपोर्ट भी मिलेगा। जितना ज्यादा प्रमोशन बॉक्सिंग का होगा, उतना ज्यादा फायदा होगा।

दूसरे खेलों में भी स्कोप

आज स्पो‌र्ट्स में भी करियर है। कुछ समय पहले तक हम सिर्फ एक गेम पर फोकस करते थे, लेकिन धीरे-धीरे दूसरे स्पो‌र्ट्स में भी यूथ की दिलचस्पी बढ़ी है। अब युवा दूसरे खेलों में भी अपना हुनर दिखाना और पहचान बनाना चाहते हैं।

देसी मिट्टी का पहलवान

योगेश्वर दत्त ओलंपिक विजेता, कुश्ती

आठ साल की छोटी सी उम्र में अखाड़े में उतरे पहलवान योगेश्वर दत्त आज भारत के एक सफल रेसलर हैं। भारत का यह पारंपरिक खेल लगभग खत्म सा हो गया था, लेकिन इसे फिर से जिंदा करने में सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, नरसिंह यादव, अनुज चौधरी जैसे खिलाड़ियों ने बड़ा रोल प्ले किया है। आज इन्हीं पहलवानों को देखकर युवाओं में इस­­ खेल के प्रति क्रेज बढ़ा है और वह भी पहलवानी के परंपरागत खेल में पूरे जोश के साथ आगे बढ़ रहे हैं।

आसान नहीं पहलवानी

आज जो फैसेलिटीज कुश्ती करने वाले पहलवानों को दी जाती है पहले उन्हें नहीं उपलब्ध थीं। न खाने के लिए प्रॉपर डाइट थी और न ही एक्सरसाइज के लिए जिम। अखाड़े की मिट्टी और साथी पहलवानों के साथ जोर-आजमाइश ही जिम का काम करती थी। जबकि विदेशों में पहलवानों को हमसे अच्छी ट्रेनिंग और फैसेलिटीज दी जाती है। इसके बावजूद भारतीय पहलवान विदेशी पहलवानों से कम नहीं थे।

काफी चेंज आया है

समय के साथ-साथ इस खेल में भी तेजी से बदलाव आया है। प्रैक्टिस का तरीका भी हाइटेक हुआ है। लोगों के साथ गवर्नमेंट ने भी खिलाड़ियों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। खिलाड़ियों को सरकारी नौकरियों में भी पहले की तुलना में अब ज्यादा मौके मिल रहे हैं।

अच्छा भविष्य है

लीग के शुरू होने से न सिर्फ क्रिकेट को फायदा हुआ है, बल्कि कई दूसरे खेलों का भी भविष्य बेहतर हो गया है। नेशनल और इंटरनेशनल खेलों में सिर्फ टॉप के प्लेयर्स को ही मौका मिलता था, लेकिन लीग में अब उन खिलाड़ियों को भी हिस्सा लेने का चांस मिलेगा जो शुरुआत कर रहे हैं। लीग के शुरू होने से खिलाड़ियों के पास पैसा भी आएगा। इससे उन्हें बेहतर ट्रेनिंग लेने में काफी हेल्प मिलेगी। आज काफी संख्या में युवा पहलवान इस खेल की तरफ आकर्षित हुए हैं। इन तमाम कोशिशों से यकीनन कुश्ती का भविष्य अच्छा होगा।

बॉक्सिंग में भी जल्द बने लीग!

बॉक्सिंग में अगर लीग की शुरुआत होती है तो बॉक्सर्स को बहुत मदद मिलेगी। जितनी ज्यादा टीमें बनेंगी, उतने ज्यादा नए बॉक्सर्स सामने आएंगे। कॉम्पिटिशन बढ़ने से रिजल्ट भी अच्छा होगा। पहले के मुकाबले इंडिया में अब जगह-जगह बॉक्सिंग कैंप्स लग रहे हैं। इन कैंप्स में यूथ बढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। पहले के मुकाबले ज्यादा यूथ ट्रेनिंग के लिए उनके पास आते हैं।

जयदेव बिष्ट

हेड कोच, रेलवे

पहल का है इंतजार..

इंडियन बॉक्सिंग फेडरेशन ने इंडियन प्रीमियर लीग (आइपीएल) की तर्ज पर इंडियन बॉक्सिंग लीग (आइबीएल) 2011 में शुरू करने का प्लान बनाया था। चार टीमों का भी चयन किया जाना था, लेकिन इंटरनेशनल बॉक्सिंग फेडरेशन द्वारा सपोर्ट न मिल पाने के कारण?उस समय बॉक्सिंग में लीग की शुरुआत नहींहो सकी।

कुश्ती पर ध्यान देने की जरूरत

पहले भारत में कुश्ती की हालत अच्छी नहींथी, पर सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त की जीत के बाद परिस्थितियां बदली हैं। क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों पर भी ध्यान दिया जा रहा है। यह अच्छी बात है। लेकिन अब भी कुश्ती पर उतना ज्यादा?खर्च नहींकिया जा रहा, जबकि क्रिकेट में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है। इसलिए दूसरे खेलों की तरह कुश्ती पर और भी ध्यान देने की जरूरत है, ताकि इसका भी विकास हो सके। लीग शुरू होने से प्लेयर्स को मौका मिलेगा।

सतपाल सिंह

कोच, कुश्ती

रेसलिंग

4रेसलिंग लीग की शुरुआत इस साल नवंबर से

4कुल छह टीमें लीग में हिस्सा लेंगी।

4कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स में हिस्सा

लेने वाले खिलाड़ी इसमें खेलेंगे।

बैडमिंटन लीग से हैं प्लेयर्स को उम्मीदें

इंडियन बैडमिंटन लीग ने प्लेयर्स को नई उम्मीद दी है। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म बना है, जहां खिलाड़ियों को अपॉ‌र्च्युनिटी के अलावा अच्छा पैसा भी मिल रहा है। उभरते प्लेयर अब इसमें करियर बनाने की सोचने लगे हैं, क्योंकि अब उन्हें अपना फ्यूचर इसमें सिक्योर नजर आने लगा है। इससे नए लोकल टैलेंट्स को एक्सपोजर मिल रहा है। नेशनल और इंटरनेशनल प्लेयर्स के साथ खेलने का एक्सपीरियंस मिल

रहा है।

आशीष चड्ढा सीईओ, स्पोर्टी सॉल्यूशंस

बैडमिंटन लीग

414 अगस्त 2013

को शुरू

4विजेता को मिलते हैं 3.5 करोड़ रुपये

4कुल छह टीमों ने लिया हिस्सा

42013 में हर टीम में थे 11 खिलाड़ी (6

इंडियन, 4 विदेशी, 1 लोकल)

4मलेशिया के ली चॉन्ग थे सबसे महंगे खिलाड़ी 4मुंबई मास्टर्स ने 1,35,000 डॉलर में खरीदा

इंटरनेशनल प्लेयर्स का साथ

स्पो‌र्ट्स लीग्स से खिलाड़ियों के खेलने का स्टैंडर्ड बढ़ा है। सीनियर्स और इंटरनेशनल प्लेयर्स के साथ कंपीट करने का एक अलग ही अनुभव होता है। अब महेश भूपति के इनिशिएटिव पर टेनिस में भी इंटरनेशनल लीग की शुरुआत होने जा रही है। हालांकि फिलहाल ज्यादा इंडियन प्लेयर्स को इसमें मौका नहीं मिल रहा है, लेकिन इस कोशिश को सराहा जाना चाहिए। जहां तक टैलेंट की बात है, इंडिया में उसकी कोई कमी नहीं है। न प्लेयर्स के लेवल पर और न ट्रेनर्स के।

आदित्य सचदेवा, टेनिस कोच

टेनिस लीग

4टेनिस स्टार महेश भूपति का ब्रेनचाइल्ड

428 नवंबर 2014 को सिंगापुर में होगा शुरू

4पहले सीजन में कुल चार टीमें लेंगी हिस्सा

4टीमें: मुंबई, सिंगापुर, दुबई और बैंकॉक

फ‌र्स्ट च्वाइस बैडमिंटन

सायना नेहवाल बैडमिंटन प्लेयर

मेरे पैरेंट्स बैडमिंटन खिलाड़ी थे, इसलिए बैडमिंटन मेरी पहली च्वाइस थी। मैं एक खिलाड़ी बनना चाहती थी। ये कभी नहीं सोचा कि कौन सा खेल ग्लैमरस है और कौन सा पॉपुलर। मेरा गोल पहले एक स्पो‌र्ट्सपर्सन बनना रहा। 2002 में इंडिया की जूनियर बैडमिंटन चैंपियन बनी। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर देखना नहीं हुआ। समय-समय पर कुछ इंजुरीज हुई, लेकिन वे सभी खेल का हिस्सा होती हैं। इसलिए अपनी डेली एक्टिविटीज और फिटनेस का पूरा ध्यान रखती हूं। हफ्ते के छह दिन रोजाना सुबह और शाम मिलाकर 6 घंटे प्रैक्टिस करती हूं। गोपी सर (पुलेला गोपीचंद) के साथ ट्रेनिंग लेती हूं। किरण फिजियोथेरेपी की एक्सरसाइज कराते हैं। मेरे लिए व‌र्ल्ड रैंकिंग खास मायने नहीं रखती है। व‌र्ल्ड के बेस्ट प्लेयर्स मुझसे आगे हैं। मैं उनमें शामिल होने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हूं।

स्पो‌र्ट्स मैनेजमेंट जरूरी

स्पो‌र्ट्स मैनेजमेंट फ‌र्म्स के साथ टाई-अप करने के कई फायदे हैं। इससे प्लेयर्स को इंडोर्समेंट्स मिलते हैं। कॉरपोरेट्स भी इनवेस्ट करते हैं, जिससे खिलाड़ी और मैनेजमेंट फर्म दोनों को ही बेनिफिट मिलता है। मुझे लगता है कि हर स्पोर्ट को गवर्नमेंट के साथ कॉरपोरेट सपोर्ट भी मिलना चाहिए। स्कूल्स में स्टडी के अलावा खेलों को भी इंपॉर्टेस देनी चाहिए। अगर आप अपने स्पो‌र्ट्स में बेस्ट हैं, तो स्पॉन्सर्स मिलने में दिक्कत नहीं होगी।

लीग से टैलेंट को बढ़ावा

इंडियन बैडमिंटन लीग का अभी सिर्फ पहला सीजन हुआ है, लेकिन उसका काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला। व‌र्ल्ड के कई टॉप प्लेयर्स को भारतीय जमीन पर खेलते देखने का मौका मिला। उम्मीद है कि क्रिकेट की तरह इस लीग से भी इंडिया के यंग टैलेंट्स को खुद को साबित करने का भरपूर अवसर मिलेगा। आईबीएल से यंगस्टर्स में उत्साह पैदा होगा।

टेनिस में स्पार्क

यूवी भांबरी टेनिस खिलाड़ी

बचपन में बहनों को टेनिस खेलते हुए देखता था। दोनों प्रोफेशनल टेनिस प्लेयर्स हैं। पैरेंट्स चाहते थे कि मैं भी स्पो‌र्ट्स (टेनिस) में दिलचस्पी लूं। मैं क्रिकेट खेलता था। सचिन मेरे फेवरेट प्लेयर थे। एक बार सिरी फोर्ट स्टेडियम में मैच देख रहा था, तो लगा कि मुझे टेनिस सीखना चाहिए। वसंत कुंज में शेखर सर से ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी। इस तरह छह साल की उम्र में टेनिस से जो जुड़ा, तो जुड़ता चला गया। फ्रेंच, यूएस जूनियर ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट्स में एक के बाद हुई हार से कई सबक मिले।

प्रैक्टिस से मिलेगी जीत

आज इंटरनेशनल टेनिस सर्किट में अमेरिकन और ईस्ट यूरोपियन कंट्रीज के प्लेयर्स का दबदबा है। ज्यादातर वही खिलाड़ी ग्रैंड स्लैम जीतते हैं, जिनका फिजिकल और मेंटल एंड्योरेंस लेवल काफी स्ट्रॉन्ग होता है। दरअसल, बीते कुछ सालों में टेनिस में कई सारे बदलाव आए हैं। फिटनेस के अलावा टेक्निक, मेंटल अप्रोच पर काफी ध्यान देना पड़ता है।

अच्छा कोच जरूरी

अच्छे कोच के अंडर में ट्रेनिंग जरूरी होती है। आदित्य सर के साथ बीते सात-आठ साल से जुड़ा हूं। फ्लोरिडा के निक बोलिटिएरी टेनिस एकेडमी भी ट्रेनिंग के लिए जाता हूं। आंद्रे अगासी के ट्रेनर से प्रशिक्षण लिया है।

उम्मीदें बहुत हैं

इंटरनेशनल टूर्नामेंट्स में पार्टिसिपेट करने के लिए अक्सर विदेश जाना होता है, जिसे अफोर्ड करना हरेक प्लेयर के बस की बात नहीं है। मुश्किल यह है कि टेनिस में उस तरह का कॉरपोरेट इनवेस्टमेंट नहीं हो रहा, जैसा क्रिकेट में। हां, आईपीएल की तर्ज पर इंटरनेशनल प्रीमियर टेनिस लीग लॉन्च हुई है, यह उम्मीद जरूर की जा रही है कि धीरे-धीरे इंडियन प्लेयर्स को भी मौका मिलेगा क्योंकि लीग्स से स्पो‌र्ट्स को लेकर काफी अवेयरनेस क्रिएट होती है।

वन टाइम गेम

संदीप सिंह हॉकी खिलाड़ी

बचपन से ही हॉकी से जबरदस्त लगाव था। रोज दोपहर में भी घर से भाग कर खेलने चला जाता था। वजह थी कुरुक्षेत्र का माहौल। पूरे हरियाणा में हॉकी, कुश्ती, कबड्डी जैसे खेलों का जबरदस्त क्रेजहै। बड़े भाई विक्रमजीत सिंह भी हॉकी खिलाड़ी हैं और इंडियन ऑयल के लिए खेलते थे। अपने गुरु और बड़े भाई की ट्रेनिंग में प्रैक्टिस की। नतीजा ये हुआ कि महज 18 साल की उम्र में क्वालालंपुर में सुल्तान अजलान शाह हॉकी में खेलने का मौका मिला।

वन टाइम गेम

लाइफ गेम है, जहां आप केवल एक ही बार खेल सकते हैं। यहां दूसरा मौका नहीं मिलता, लेकिन मुझे लाइफ ने दूसरा मौका दिया। अगस्त 2006 की बात है। 6 सितंबर को जर्मनी में व‌र्ल्ड कप होना था। हम नेशनल टीम को च्वाइन करने शताब्दी एक्सप्रेस से जा रहे थे। दो दिन बाद जर्मनी के लिए रवाना होना था। ट्रेन में अचानक गोलियां चलने लगीं, जिसमें मैं बुरी तरह जख्मी हो गया। दो साल तक व्हील चेयर पर रहना पड़ा। आप सोच सकते हैं, एक खिलाड़ी के लिए व्हील चेयर पर होना कितना मुश्किल है।

खुद पर कॉन्फिडेंस

आपको खुद पर जितना भरोसा होगा आपका सेल्फ कॉन्फिडेंस भी उसी अनुपात में बढ़ेगा। मुझे भी खुद पर बहुत भरोसा था। इसी कॉन्फिडेंस ने मुझे दो साल बाद फिर से खड़ा किया। 2009 में मलेशिया में फिर अजलान शाह हॉकी खेलने गया। सबसे ज्यादा गोल किए और मैन ऑफ द टूर्नामेंट का खिताब जीता। फिर तो मैं कभी नहीं रुका। आज इसी की बदौलत एसपी की नौकरी भी है।

लीग से ग्लैमर आया

पिछले साल हॉकी इंडिया लीग शुरू होने से हॉकी में भी क्रिकेट की तरह ग्लैमर और पैसा आया है। अब पहले के मुकाबले खिलाड़ियों को ज्यादा सुविधाएं मिल रही हैं। अगर मेहनत करे, तो कोई भी खिलाड़ी अच्छा कर सकता है।

हार्ड वर्क से चैंपियन

दीपिका कुमारी तीरंदाज

बचपन से ही मेरा निशाना काफी अच्छा था। 2007 में जब अपनी कजिन को देखकर तीरंदाजी करना शुरू किया, तो बांस (बैंबू) के धनुष और तीर से शुरुआत की। फैमिली कंडीशंस ऐसी नहीं थी कि मॉडर्न इक्विपमेंट्स खरीद सकूं। फिर टाटा आर्चरी एकेडमी में ट्रेनिंग ले रही कजिन ने ही मेरे टैलेंट को पहचाना और उसकी मदद से 2008 में जमशेदपुर की टाटा आर्चरी एकेडमी में सेलेक्शन हुआ। एकेडमी में मैंने मॉडर्न इक्विपमेंट्स की मदद से ट्रेनिंग ली। सुबह साढ़े आठ से साढ़े ग्यारह, फिर दोपहर में तीन घंटे और रात में एक से डेढ़ घंटे की ट्रेनिंग औऱ प्रैक्टिस करती थी। एकेडमी में मुझे स्टाइपेंड मिलता था। 2009 में जब मैं अंडर-16 कैटेगरी में इंडिया की पहली आर्चरी व‌र्ल्ड चैंपियन बनी, 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड और 2012 में तुर्की में हुए व‌र्ल्ड कप में गोल्ड मेडल (रिकर्व कैटेगरी) जीता, तो लगा कि थोड़ी मेहनत सफल हुई।

टेक्निक पर काम

मैं शुरू से जानती थी कि आर्चरी में काफी मेहनत करनी होती है। अपने बैक और शोल्डर्स पर काम करना होता है। उसे स्ट्रॉन्ग बनाना होता है। इसलिए कभी भी हार्ड वर्क से घबराई नहीं। मुझे अहसास था कि इंटरनेशनल लेवल पर कॉम्पिटिशन कितना टफ है। खासकर कोरिया जैसे दूसरी दिग्गज कंट्रीज के प्लेयर्स को हराना, जो पॉवर के अलावा टेक्निक में भी माहिर होते हैं। मैं लकी रही कि मुझे टाटा एकेडमी में सही गाइडेंस और कोचिंग मिली। 2012 के ओलंपिक से पहले कोरियाई कोच लिम वुंग से भी छह महीने का प्रशिक्षण लिया। अपने स्टैमिना को बढ़ाने के लिए दौड़ने और योगा करने से काफी इंप्रूवमेंट्स आया।

प्लेटफॉर्म की जरूरत

इंडियन आर्चरी प्लेयर्स फॉरेन प्लेयर्स से ज्यादा मेहनत करते हैं। उन्हें दरकार है, तो सिर्फ सही प्लेटफॉर्म की। जरूरत है ऐसे कोचेज की, जो प्लेयर्स का कॉन्फिडेंस बढ़ा सकें। अच्छी बात यह है कि बाकी स्पो‌र्ट्स में भी उम्दा खिलाड़ी सामने आ रहे हैं।

प्रतिभाओं को मिल रहे मौके

भारतीय खिलाड़ियों के दम-खम को पहचानने की जरूरत है। हमने पूरी दुनिया को सिखाया कि हॉकी कैसे खेली जाती है, इसलिए आज हमें दुनिया का मुंह देखने की जरूरत नहीं है। हॉकी इंडिया लीग और इस तरह के जितने भी लीग हो रहे हैं, उनसे खिलाड़ियों को ज्यादा मौका मिल रहा है, लेकिन विदेशी कोच या विदेशी खिलाड़ियों की बजाय देसी खिलाड़ियों और कोच को ज्यादा मौका देना चाहिए।

धनराज पिल्लै

पूर्व हॉकी खिलाड़ी

हॉकी

4इंडियन हॉकी लीग में छह

टीमों ने हिस्सा लिया।

4दूसरे सीजन (2014) में

दिल्ली वेवराइडर्स ने जीत हासिल की।

4दिल्ली के आकाशदीप का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा।

आर्चरी को मिले बढ़ावा

पहले के मुकाबले आर्चरी में नए खिलाड़ी आ रहे हैं। टाटा आर्चरी एकेडमी और आर्मी स्पो‌र्ट्स इंस्टीट्यूट में खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। आर्चरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया काफी प्रयास कर रहा है, लेकिन क्वालिटी की बात करें, तो अंतरराष्ट्रीय प्लेयर्स से हम पीछे हैं। इस खेल में यूज होने वाले इक्विपमेंट्स इतने महंगे हैं कि बिना स्पॉन्सरशिप या सरकारी मदद के खरीदना मुश्किल है। आर्चरी में क्रिकेट या दूसरे स्पो‌र्ट्स की तरह स्पॉन्सरशिप या कॉरपोरेट इनवेस्ट नहीं है। अगर यहां भी लीग की शुरुआत हो, तो तीरंदाजी में भी खिलाड़ी इंडिया काम नाम करेंगे।

धर्मेद्र तिवारी, तीरंदाजी कोच

आर्चरी

4आर्चरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया 8 अगस्त 1973 को अस्तित्व में आया।?

4दीपिका कुमारी, अभिषेक वर्मा, रतन सिंह और संदीप कुमार ने नर्ई पहचान दिलाई।

खुल रही हैं करियर की राहें

स्पो‌र्ट्स लीग्स से खिलाड़ियों को तो मौके मिल ही रहे हैं, साथ ही इससे जुड़े अनगिनत आकर्षक ऑप्शंस भी खुल रहे हैं। जानते हैं इन ऑप्शंस के बारे में..

आइपीएल जैसे इवेंट्स के बाद स्पो‌र्ट्स मैनेजमेंट हॉट करियर ऑप्शन बन गया है। यह ऐसा स्पेशलाइच्ड फील्ड है, जिसमें युवा स्पो‌र्ट्स मैनेजर के रूप में काम कर सकते हैं या फिर किसी स्पो‌र्ट्स मैनेजमेंट फर्म के साथ जुड़कर। स्पो‌र्ट्स मैनेजर का काम स्पो‌र्ट्सपर्सन, स्पॉन्सर्स के साथ मिलकर काम करना और कंपनी के लिए रेवेन्यू जेनरेट करना है। इसके अलावा, इवेंट की प्लानिंग, स्ट्रेटेजी बनाना, क्लाइंट सर्विस देखना, रिसर्च और प्रमोशन भी इनके जॉब प्रोफाइल का हिस्सा होता है। ऐसे में जिनके पास भी अलग-अलग स्पो‌र्ट्स की नॉलेज, नेटवर्किग स्किल्स, इनोवेटिव आइडियाज, कनविंस करने की क्षमता और लीडरशिप स्किल्स होंगी, वे सफल स्पो‌र्ट्स मैनेजर बन सकते हैं। स्पो‌र्ट्स मैनेजमेंट की डिग्री हासिल करने के बाद यंगस्टर्स किसी भी स्पो‌र्ट्स एकेडमी, क्लब या फिटनेस सेंटर में काम कर सकते हैं।

इवेंट मैनेजर

वर्क एरिया : स्पो‌र्ट्स इवेंट प्लान और उसे ऑर्र्गेनाइज कराने का जिम्मा इवेंट मैनेजर पर होता है।

स्किल्स : स्ट्रॉन्ग ऑर्गेनाइजेशनल स्किल्स और कम्युनिकेशन स्किल्स, प्लानिंग ऐंड मैनेजमेंट, प्रॉब्लम सॉल्विंग एबिलिटी।

एलिजिबिलिटी : इवेंट मैनेजमेंट, पीआर, टूरिच्म और हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट में डिग्री-डिप्लोमा, एक्सपीरियंस होल्डर को प्रेफरेंस।

सैलरी : 25,000 से शुरू।

सेलिब्रिटी मैनेजर

वर्क एरिया : किसी भी स्पो‌र्ट्स इवेंट के लिए बॉलीवुड, स्पो‌र्ट्स, पॉलिटिक्स या कॉरपोरेट व‌र्ल्ड से किसी सेलिब्रिटीज को मैनेज करना।

स्किल्स : एक्सीलेंट कम्युनिकेशन, इंटरपर्सनल, पीआर स्किल्स।

एलिजिबिलिटी : अंडरग्रेजुएट

सैलरी : 20,000 से शुरू।

ब्रांडिंग एक्सपर्ट

वर्क एरिया : स्पो‌र्ट्स इवेंट को अट्रैक्टिव और ब्रांड के तौर पर पेश करना।

स्किल्स : एक्सीलेंट मार्केट रिसर्च ऐंड एनालिसिस, ब्रांडिंग स्किल्स, मार्केटिंग ऐंड एडवरटाइजिंग की नॉलेज, एक्सीलेंट कम्युनिकेशन स्किल्स।

एलिजिबिलिटी : अंडरग्रेजुएट।

सैलरी : 20,000 से शुरू।

पब्लिक रिलेशन एग्जिक्यूटिव ऐंड मैनेजर

वर्क एरिया : प्लेयर या स्पो‌र्ट्स कंपनी की तरफ से मीडिया और पब्लिकेशंस को डील करना। जर्नलिस्ट से इंटरैक्ट करके कंपनी, प्लेयर्स और इवेंट्स को ज्यादा से ज्यादा प्रमोट कराना।

स्किल्स : प्लीजिंग पर्सनैलिटी, कम्युनिकेशन स्किल्स, इंटरपर्सनल इंटरैक्शन।

एलिजिबिलिटी : अंडरग्रेजुएट, मास कम्युनिकेशन, पब्लिक रिलेशन, मास्टर डिग्री या डिप्लोमा।

सैलरी : 15,000 से शुरू।

स्पो‌र्ट्स कमेन्टेटर

वर्क एरिया : लाइव स्पो‌र्ट्स इवेंट का एनालिसिस करना।

स्किल्स : स्पो‌र्ट्स की नॉलेज, एक्सीलेंट स्पीकिंग, राइटिंग, लिसनिंग, रिसर्च एबिलिटीज, मीडिया प्रोडक्शन स्किल्स, शॉर्प विजन ऐंड क्विक रिएक्शन एबिलिटी। इंग्लिश की अच्छी नॉलेज, सॉफ्टवेयर एडिटिंग ऐंड ब्रॉडकास्टिंग इक्पिमेंट्स के साथ-साथ टेलीकम्युनिकेशन सिस्टम्स ऑपरेट करने की नॉलेज।

एलिजिबिलिटी : ब्रॉडकास्टिंग, जर्नलिच्म, कम्युनिकेशन या अंग्रेजी में ग्रेजुएशन।

फिजियोथेरेपिस्ट

वर्क एरिया : स्पो‌र्ट्स इवेंट के दौरान किसी भी तरह की चोट या मोच आने पर तत्काल इलाज करना।

स्किल्स : फिजियोथेरेपी की अच्छी नॉलेज, ह्यूमन बॉडी स्ट्रक्चर की नॉलेज और तत्काल इलाज में एक्सपर्ट।

एलिजिबिलिटी : बैचलर ऑफ फिजियोथिरेपी

सैलरी : 30,000 से शुरू।

कैमरामैन ऐंड लाइटमैन

वर्क एरिया : स्पो‌र्ट्स इवेंट की डिफरेंट एंगल्स से वीडियो रिकॉर्डिग करना।

स्किल्स : डिजिटल फिल्म और एडिटिंग टेक्निक्स की अच्छी नॉलेज, लाइटिंग की नॉलेज, कैमरा एंगल्स ऐंड फोकस सेटिंग, वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी की पूरी टेक्निकल नॉलेज।

एलिजिबिलिटी : वीडियोग्राफी, कैमरा ऑपरेशन, वीडियो प्रोडक्शन में अंडरग्रेजुएट या बैचलर डिग्री। नॉलेज ऐंड एक्सपीरियंस को प्रेफरेंस।

सैलरी : 20,000 से शुरू।

डाइटिशियन ऐंड न्यूट्रिशियन

वर्क एरिया : प्लेयर्स की डाइट और न्यूट्रिशियन का ध्यान रखना, ताकि वे फिट रहें।

स्किल्स : बॉडी के हिसाब से डाइट और न्यूट्रिशन मील एनालिसिस।

एलिजिबिलिटी : बीएससी/एमएससी इन फूड साइंस ऐंड न्यूट्रिशन।

स्पो‌र्ट्स एजेंट

स्थापित हों या नए सभी खिलाड़ियों को पर्सनल मैनेजर या एजेंट की जरूरत पड़ती है। एजेंट या मैनेजर के रूप में आपको क्लाइंट के शिड्यूल का ख्याल रखना होता है। उनके करियर ग्रोथ, बिजनेस प्रमोशन और कभी-कभी मीडिया और पब्लिक रिलेशन को भी मैनेज करना होता है। अक्सर प्लेयर्स के बजटिंग, फाइनेंस और दूसरे लॉजिस्टिक काम भी देखने होते हैं।

स्पो‌र्ट्स एडमिनिस्ट्रेटर

प्राइवेट और गवर्नमेंट स्पॉन्सर्ड स्पो‌र्ट्स इंस्टीट्यूट्स मैनेजेरियल अफसरों को रिक्रूट करती हैं। सीनियर लेवल पर स्पो‌र्ट्स टीचर्स या कोच को रखा

जाता है, जो स्पो‌र्ट्स इवेंट मैनेज करने का एक्सपीरियंस रखते हों। स्पो‌र्ट्स एडमिनिस्ट्रेटर के रूप आपको समय-समय पर स्पो‌र्ट्स एक्टिविटीज और इवेंट्स प्लान करके ऑर्गेनाइज करने होते हैं।

प्रमुख इंस्टीट्यूट्स

शहीद भगत सिंह कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट ऐंड टेक्नोलॉजी, फरीदाबाद

www.ह्यढ्डह्यष्द्वह्ल.ष्श्रद्व

एमआईटी जनसंवाद कॉलेज, लातूर

www.द्वद्बह्लद्भष्.ष्श्र.द्बठ्ठ

एमआईटी इंटरनेशनल कॉलेज ऑफ ब्रॉडकास्टिंग एेंड जर्नलिच्म, पुणे

www.द्वद्बह्लद्बह्यढ्डद्भ.ष्श्रद्व

इंटरनेशनल स्कूल ऑफ स्पो‌र्ट्स मैनेजमेंट, मुंबई

www.द्बद्बह्यद्व.2श्रह्मद्यस्त्र.ष्श्रद्व

स्पो‌र्ट्स मैनेजमेंट

किसी स्पो‌र्ट्स इवेंट को ऑर्गेनाइज करने के लिए प्रमोशन, मार्केटिंग से लेकर ऑन द स्पॉट और बैकएंड मैनेजमेंट को ही स्पो‌र्ट्स मैनेजमेंट कहते हैं। पश्चिमी देशों में यह काफी लोकप्रिय है। भारत में भी एक के बाद एक स्पो‌र्ट्स लीग सामने आ रही हैं। ऐसे में यह करियर के बेहतरीन ऑप्शन के रूप में उभर रहा है।

सर्टिफिकेट कोर्स इन स्पो‌र्ट्स इकोनॉमिक्स एेंड मार्केटिंग

एलिजिबिलिटी : 10+2

डिप्लोमा इन स्पो‌र्ट्स मैनेजमेंट

एलिजिबिलिटी 10+2

पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री ऐंड डिप्लोमा

एलिजिबिलिटी : कम से कम 40 फीसदी मा‌र्क्स के साथ ग्रेजुएट और स्पो‌र्ट्स का एक्सपीरियंस

प्रमुख इंस्टीट्यूट्स

4इंदिरा गांधी इंस्टीट्य़ूट ऑफ फिजिकल

एजुकेशन ऐंड स्पो‌र्ट्स साइंस, दिल्ली

4श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज, दिल्ली

यूनिवर्सिटी, नॉर्थ कैंपस, नई दिल्ली।

4अलगप्पा यूनिवर्सिटी, कराईकुडी, तमिलनाडु

कोच: गलतियां सुधारने की चुनौती

नए स्पो‌र्ट्स लीग शुरू होने से उन बच्चों को ज्यादा फायदा होगा, जिन्हें पहले अवसर नहीं मिल पाता था।?हालांकि उन्हें सफल कोच बनने के लिए कोर्स करना भी जरूरी होगा।?बिना किसी कोर्स के भले ही आप किसी की गलतियां पकड़ सकते हैं, लेकिन उसे ठीक नहीं कर सकते। दो घंटे के सेशन को कैसे इंट्रेस्टिंग बनाएंगे, यह कोर्स के बाद ही पता चल पाता है।?जब आप स्पो‌र्ट्सपर्सन को खेल का वीडियो बनाकर उनकी खामियां दिखाएंगे, तो वे अपनी गलतियों से सबक लेंगे। स्टार खिलाड़ियों को हैंडल करना, उनमें भरोसा पैदा करना, ये सब कोच का ही काम है।?मैंने कोच बनने के लिए तीन स्तरों पर कोचिंग ली है।?पहले लेवल के लिए मैंने इंग्लैंड से और तीसरे लेवल के लिए ऑस्ट्रेलिया से कोर्स किया। ऑस्ट्रेलिया से कोर्स करने के बाद करियर की राह काफी आसान हो जाती है और आपकी डिमांड बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे देशों में होने लगती है।?वैसे, भारत में कोच के लिए बीसीसीआई कोचिंग देती है।?इसके लिए वह एग्जाम लेती है। कोर्स कर लेने के बाद आप अपने अनुभवों से निचले लेवल पर भी किसी को सिखा सकते हैं।

मदनलाल

पूर्व भारतीय क्रिकेटर और कोच

फिजियो की डिमांड

पहले फिजियोथेरेपिस्ट की मांग नहीं थी और न ही फिजियो के काम को लेकर कोई बहुत सीरियस था, लेकिन अब खेलों में ग्लैमर को देखते हुए छोटे शहरों और दूर-दराज के बच्चे भी फिजियो बनना चाह रहे हैं।?आज सारे खेलों में फिजियोथेरेपिस्ट रखे जा रहे हैं।?देश के किसी भी कोने के बच्चे इन लीग्स में एंट्री के लिए एसोसिएशंस से ईमेल या कॉन्टैक्ट में बने रहें, ताकि जब वैकेंसीज निकले, तो उन्हें बुलाया जा सके।?छोटे शहरों में कॉलेजों के खुल जाने से वहां के बच्चों के लिए कोर्स करना आसान हो गया है।?समाचारपत्रों या पत्रिकाओं में फिजियोथेरेपी पर अच्छे आर्टिकल्स लिखे जाएं, तो दूर-दराज के बच्चों को इस फील्ड में करियर बनाने में काफी मदद मिलेगी।?

दीपक सूर्या फिजियो,

दिल्ली क्रिकेट टीम ऐंड दिल्ली डेयर डेविल्स

सेल्फ मोटिवेशन कंपल्सरी

नए स्पो‌र्ट्स पर्सन्स को लीग्स शुरू होने का काफी फायदा हुआ है,?लेकिन यह निर्भर करता है स्पो‌र्ट्समैन पर कि वे इस अपॉच्र्युनिटी को किस तरह से भुना पाते हैं।?आज जिस तरह से नए लोगों को सुविधाएं मिल रही हैं, उस तरह की सुविधाएं पहले नहीं थीं।?कुछ बच्चों में टैलेंट इनबोर्न होता है और कुछ में नहीं।?जिन बच्चों में इनबोर्न टैलेंट नहीं होता, वे अपनी मेहनत से काफी आगे जा सकते हैं।?छोटी जगहों से भी बच्चे इस फील्ड में नाम रोशन कर सकते हैं, लेकिन उनमें इसके लिए सेल्फ मोटिवेशन होना चाहिए।

के. हरिहरन

पूर्व इंटरनेशनल क्रिकेट अंपायर

मिथिलेश श्रीवास्तव, मोहम्मद रज़ा,

अंशु ंिसंह और राजीव रंजन।


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