दर्द से बड़ा सपना
महज 25 सौ रुपये महीने की सैलरी से करियर की शुरुआत करके आज 22 करोड़ से ज्यादा टर्नओवर वाली कंपनी खड़ी करने तक की कहानी खुद बता रहे हैं लाइव टेक्निशियन के फाउंडर समय वशिष्ठ...
महज 25 सौ रुपये महीने की सैलरी से करियर की शुरुआत करके आज 22 करोड़ से ज्यादा टर्नओवर वाली कंपनी खड़ी करने तक की कहानी खुद बता रहे हैं लाइव टेक्निशियन के फाउंडर समय वशिष्ठ...
मैं फाइनेंशियली स्ट्रांग फैमिली से रहा हूं। मेरे पापा बिजनेसमैन हैं। मैं चाहता तो फैमिली बिजनेस में ही हाथ आजमा लेता और अच्छी-खासी अर्निंग करता, लेकिन मुझे वह ट्रेडिशनल बिजनेस अच्छा नहीं लगता था। इसी बात पर पापा से कई बार बहस भी हो जाया करती थी। इसी वजह से मैं 12वीं के बाद से ही नौकरी करने लगा। मेरी पहली नौकरी थी लोन देने वाली एक कंपनी में डॉक्यूमेंट कलेक्टर की। सैलरी थी महज 2500 रुपये प्रति महीने। मेरा काम होता था, कस्टमर्स के एड्रेस पर जाकर उनसे लोन के लिए जरूरी डॉक्यूमेंट्स कलेक्ट करना।
एक्सपीरियंस आगे बढ़ाता है
दरअसल, दो चीजें आगे बढ़ाती हैं, एक आपकी हिम्मत और दूसरा एक्सपीरियंस। लोनिंग कंपनी में काम करने के दौरान मैं बहुत से लोगों से मिला। सुबह से लेकर रात तक दिल्ली के हर गली-मोहल्ले में जाना हुआ। यह मेरे लिए अच्छा एक्सपीरियंस रहा। मैंने जाना कि दुनिया में किस-किस तरह के लोग होते हैं और वे अपनी आजीविका कैसे चलाते हैं।
पूरी ताकत आज ही झोंक दो
अर्निंग के साथ-साथ मैंने पढ़ाई भी जारी रखी। तीन महीने का सीसीएनए कोर्स पूरा किया। दिन भर सड़कों की खाक छानने के बाद घर आकर पढ़ाई करना बहुत मुश्किल होता था। पैरों में बहुत दर्द होता था। कई बार तबीयत भी काफी खराब हो गई, लेकिन आंखों में कुछ कर गुजरने का सपना था। उसी से हिम्मत मिलती थी और मैं करता गया। कई?बार टूट भी गया, लेकिन अंदर से आवाज आई, बैठकर करोगे क्या, तब भी घिसटते रहोगे, इससे अच्छा है अपनी पूरी ताकत आज ही झोंक दो।
फ्यूचर को पहचाना
विंडोज की तरह एक सॉफ्टवेयर मेन फ्रेम होता है। इसे ऑपरेट करने वाले प्रोफेशनल्स कम हैं, लेकिन इसकी क्वालिटी बहुत अच्छी है, इसलिए मैंने इस पर काम किया। मैंने 2006 में कंप्यूटर साइंसेज कॉरपोरेशन ज्वाइन किया। यह सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन सर्विस प्रोवाइड करती है। इसी सिलसिले में मुझे विप्रो, आइबीएम जैसी कंपनियों के लिए काम करने को मिला। धीरे-धीरे मैं टीम लीडर बन गया। इसके बाद मैंने बैंक ऑफ अमेरिका ज्वाइन कर लिया। जहां मैं पचास लोगों की टीम को लीड करता था। अमेरिका में मैंने सॉफ्टवेयर सर्विसेज की बारीकियां सीखीं। इस बीच अपनी खुद की कंपनी खोलने की इच्छा जग गई थी। बैंक ऑफ अमेरिका छोड़कर मैंने बेंगलुरु में एक्सा ज्वाइन कर लिया, लेकिन मेरा मन नौकरी में नहींलग रहा था। मैंने नौकरी छोड़ दी और दिल्ली आ गया।
उधार लेकर शुरू की कंपनी
मेरी सैलरी करीब आठ लाख रुपये थी, लेकिन अपनी लाइफ स्टाइल की वजह से मैं कुछ बचा नहींसका था। नौकरी छोड़ दी थी, इसलिए बैंक से लोन मिलता नहीं। इसलिए मैंने मौसी से साढ़े छह लाख रुपये लोन लिये। तीन लोगों के स्टाफ से यह कंपनी शुरू की। तीनों अनस्किल्ड लोग थे। मेरी मजबूरी यह थी कि मैं स्टाफ को ज्यादा सैलरी नहीं दे सकता था। दूसरी समस्या यह भी होती है कि एक्सपीरियंस्ड और स्किल्ड प्रोफेशनल्स एक कंपनी छोड़कर दूसरी कंपनी में स्विच करने में देर नहीं लगाते। मैंने तीनों को काम सिखाकर ट्रेन किया।
दिन-रात काम की धुन
एंटरप्रेन्योरशिप हर किसी के वश की बात नहीं है। अगर आप दिन-रात काम नहींकर सकते, तो आपको शुरुआत करने में बहुत दिक्कत आएगी। शुरू में इस प्रोजेक्ट में मेरे साथ मेरा पुराना दोस्त भूषण भी था, लेकिन उसे हर वक्त काम करना अच्छा नहीं लगता था। वह 10 से 6 वाली जॉब स्टाइल लाइफ जीने का आदी हो चुका था। दो महीने बाद ही उसने छोड़ दिया।
घाटा सहकर आगे बढ़ा
अक्टूबर 2011 में कंपनी शुरू हुई। अभी छह-सात महीने ही हुए थे। हम केवल अमेरिका और कनाडा के क्लाइंट्स को ही सर्विसेज दे रहे थे। उनसे पेमेंट मंगाने के लिए हम पेमेंट गेटवे पेकॉमर्स यूज कर रहे थे। शुरू में तो कंपनी काफी रिलायबल लग रही थी। तभी अचानक कंपनी बंद हो गई, हमारा लाखों का पेमेंट फंसकर रह गया। मुझ पर काफी कर्ज हो चुका था। मुझे फिर से करीब 10 लाख का लोन लेना पड़ा। मैंने फिर से सब कुछ शुरू किया। अबकी बार पहले से भी बड़ा ऑफिस लिया। मैं खुद रात-दिन लगा रहा। पहले साल कंपनी का टर्नओïवर 55 लाख रुपये रहा, दूसरे साल 6 करोड़, तीसरे साल 13 करोड़ और इस साल 22 करोड़ रुपये से भी ज्यादा रहने की उम्मीद है। अब भी मुझे लगता है कि बहुत आगे जाना है, बहुत मेहनत करनी है...।
-एजुकेशन: एमसीए, सीसीएनए, सीएलपी,
पीएमपी, आइटीआइएल
-एक्सपीरियंस: आइटी लीड, सीएससी, बैंक
ऑफ अमेरिका, एक्सा टेक्नोलॉजी सर्विसेज
-स्टार्ट-अप : 2011 में 6.5 लाख का लोन
लेकर लाइव टेक्निशियन की स्थापना की।
इंटरैक्शन : मिथिलेश श्रीवास्तव