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INNOVATION का PASSION

दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले और तेजी से आगे बढ़ रहे देश इंडिया की आज सबसे बड़ी दरकार हर फील्ड में इनोवेशंस की है। हालांकि डीएसटी, सीएसआइआर, आइसीएआर, डीआरडीओं, नेशनल इनोवेशन फंड, सीआइआइ, आइआइटी जैसे संस्थान युवाओं को नए प्लेटफॉर्म उपलब्ध करा रहे हैं,

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 18 Dec 2014 12:36 PM (IST)Updated: Thu, 18 Dec 2014 12:42 PM (IST)
INNOVATION  का PASSION

दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले और तेजी से आगे बढ़ रहे देश इंडिया की आज सबसे बड़ी दरकार हर फील्ड में इनोवेशंस की है। हालांकि डीएसटी, सीएसआइआर, आइसीएआर, डीआरडीओं, नेशनल इनोवेशन फंड, सीआइआइ, आइआइटी जैसे संस्थान युवाओं को नए प्लेटफॉर्म उपलब्ध करा रहे हैं, ताकि यूथ फोर्स को देश के डेवलपमेंट के साथ जोड़ा जा सके। लेकिन इतने बड़े देश के लिए सिर्फ इतना ही पर्याप्त नहीं। इनोवेशन के प्लेटफॉर्म को हर स्कूल-कॉलेज तक पहुंचाने की भी जरूरत है। टैलेंट को तलाश कर उसे इनोवेशन के लिए इनकरेज करना चाहिए, तभी हमारे देश को दुनिया में एक अलग पहचान मिलेगी। पिछले दिनों ग्रेटर नोएडा के इंडिया एक्सपो मार्ट में संपन्न इंडिया-यूएस टेक्नोलॉजी समिट में देश की आइआइटी सहित अन्य तमाम संस्थानों के युवाओं ने अपने इनोवेशंस पेश किए। प्रमुख इनोवेशंस पर आधारित एक्सक्लूसिव रिपोर्ट...

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पॉवर ऑफ टर्बाइन

दिल्ली के दो भाइयों नारायण भारद्वाज और बलराम भारद्वाज ने दो साल की रिसर्च के बाद खास किस्म की हाइड्रो टर्बाइन प्रणाली वरुण-3 विकसित की है, जिससे सस्ते दर पर बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। हाल ही में ग्रेटर नोएडा में आयोजित नॉलेज एक्सपो में दोनों भाइयों को उनको इनोवेशन के लिए प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सतह से होता संचालित

मैंने मुरादनगर, हरिद्वार,ऋषिकेश, अंबाला समेत आठ नहरों में इसका सफल ट्रायल किया है। दूसरे टर्बाइन के मुकाबले यह पानी के अंदर नहीं, बल्कि सतह पर से ही संचालित किया जा सकता है। इसे स्थापित करने या इसकी देख-रेख करने में ज्यादा खर्च नहीं आता। इस प्रणाली की खासियत यह है कि किसी भी गांव या शहर की तेज प्रवाह वाली नदियों, नालों से, उपयोग लायक ऊर्जा पैदा की जा सकती है। पहाड़ी या समुद्री क्षेत्रों में यह विशेष रूप से कारगर है। इसलिए इसे कॉमर्शियल स्केल पर डेवलप करने के लिए मैंने डीएसटी, सीएसआइआर में अप्लाई किया है।

टेक्नोलॉजी से लगाव

2011 में मैंने दिल्ली के जनकपुरी में मैकलेक टेक्निकल प्रोजेक्ट लेबोरेट्री शुरू की। यहां स्कू ल से लेकर बीटेक तक के स्टूडेंट अपना प्रोजेक्ट लेकर आते हैं। आइडिया उनका होता है। मैं उन्हें टेक्निकल गाइडेंस देता हूं। आज सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बल्कि कनाडा, ब्राजील जैसे देशों के स्टूडेंट्स भी हमसे गाइडेंस लेते हैं।

वेदर की मॉनिटरिंग

चेन्नई की एसआरएम यूनिवर्सिटी के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के 15 स्टूडेंट्स के एक ग्रुप ने एक ऑटोनोमस वेदर मॉनिटरिंग कॉप्टर डेवलप किया है। इससे मौसम का अध्ययन करना पहले से कहीं 'यादा आसान हो जाएगा।

किफायती कॉप्टर

देश में बहुत समय से प्लेन या वेदर बैलून की मदद से मौसम का आंकड़ा इक_ा किया जाता रहा है। इसमें इस्तेमाल होने वाला रेडियोसॉन्ड काफी महंगा होता है। इसके अलावा, बैलून का एक से अधिक बार उपयोग नहीं किया जा सकता है। लेकिन नया उपकरण स्वचालित होने के साथ-साथ कम खर्चीला है और इसे दोबारा इस्तेमाल में लाया जा सकता है। यह एरियल वेहिकल 2 किलोमीटर की ऊंचाई से तापमान, प्रेशर, आर्द्रता, कार्बन डिपॉजिट के अलावा विभिन्न ऑल्टीट्यूड और लोकेशंस पर हवा की दिशा का पता लगा सकता है। इससे अलग-अलग इलाकों में बारिश की संभावनाओं का अध्ययन करना आसान हो जाता है।

भविष्य की योजना

इस समय स्टूडेंट्स का समूह डीआरडीओ के लिए एग्रीकल्चर और माइक्रोकॉप्टर पर भी काम कर रहे हैं। 50 ग्राम से भी कम वजन का माइक्रोकॉप्टर किसी भी एरिया का हवाई सर्विलांस कर वीडियो भेजेगा। वहीं, एग्रीकॉप्टर खेतों का सर्विलांस कर फसल की जानकारी देगा।

सीएफएल होगा रिपेयर

देश में सालाना 300 मिलियन सीएफएल बल्ब कचरा भराव क्षेत्र में डाल दिए जाते हैं, जिन्हें गलने में हजारों साल लग जाते हैं। ऐसे में दिल्ली स्थित नेशनल पॉवर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के इंजीनियरिंग थर्ड इयर के दो स्टूडेंट्स शुभम मनोचा और शिवेन्द्र सिंह चंडोक ने प्रोजेक्ट प्रज्ज्वल के तहत एक ऐसी एनवॉयर्नमेंट फ्रेेंडली टेक्नोलॉजी डेवलप की है, जिससे सीएफएल बल्ब को रिपेयर किया जा सकता है। इससे वह पहले से कम कीमत पर लोगों के लिए दोबारा उपलब्ध हो सकता है।

हॉस्टल में आया आइडिया

एक दिन हमारे हॉस्टल का सीएफएल बल्ब खराब हो गया। सबने कहा कि नया बल्ब खरीदना पड़ेगा। लेकिन तभी एक आइडिया आया कि क्यों न बल्ब को रिपेयर किया जाए। इसके बाद दिसंबर 2013 में इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू कर दिया और आखिर में उसे सफलतापूर्वक कंप्लीट किया। इस काम में यूनिलीवर और केपीएमजी ने हमें फंडिंग से लेकर हर तरह की मदद मुहैया कराई, जिसके बाद हम महज एक रुपये की लागत में पुराने या डिफॉल्ट बल्ब को ठीक करने में कामयाब हो सके। प्रज्ज्वल के इनोवेशन से आज एक मरम्मत किया हुआ 11 वाट का बल्ब कंज्यूमर को सिर्फ 35 रुपये में मिल सकता है, जिसकी एक साल की वारंटी भी होगी, यानी नए बल्ब से यह औसतन 80 परसेंट सस्ते में आएगा।

स्किल्ड फोर्स बनाने का इरादा

आज जिस तरह से हर शहर में मोबाइल रिपेयरिंग सेंटर्स खुल गए हैं, उसी तर्ज पर हम सीएफएल बल्ब की मरम्मत की ट्रेनिंग लोगों को देना चाहते हैं, ताकि सेकंड हैंड सीएफएल बल्ब का एक मार्केट क्रिएट हो सके।

3-डी प्रिंटिंग में क्रांति

इंटरनेट क्रांति के बाद दूसरा टेक्नोलॉजिकल रिवॉल्यूशन डिजिटल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में होने जा रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए इंदौर के दो युवा इंजीनियर्स चारूविंद अत्रे औऱ जयन प्रजापति ने एक 3-डी प्रिंटर प्रोटोटाइप डेवलप किया है, जो पूरी तरह से भारत में निर्मित है यानी इसमें इस्तेमाल हुआ हर उपकरण मेड इन इंडिया है।

आइआइटी में पहला इनोवेशन

आइआइटी खडग़पुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग का इंटीग्रेटेड कोर्स करने के दौरान ही मैंने पहली बार 3-डी प्रिंटर डेवलप किया था। इसके बाद तय कर लिया था कि इसी को लेकर एंटप्रे्रन्योरशिप में जाऊंगा। खुशकिस्मती से आइआइटी के ही एक साथी जयन प्रजापति ने सिंगापुर में 3-डी प्रिंटर्स पर मार्केट रिसर्च किया था। उसे भी मेरा आइडिया पसंद आया और हमने आइआइटी की 10 लाख रुपये की सीड फंडिंग से ऐवलैंच ऑटोमेशन प्राइवेट लिमिटेड नाम से अपना स्टार्ट-अप रजिस्टर करा लिया। प्रोटोटाइप के डेवलपमेंट और इसके कॉमर्शियलाइजेशन के लिए हमने डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी और कुछ प्राइवेट कंपनीज से भी फंड के लिए संपर्क किया है।

बिना कंप्यूटर चलेगा प्रिंटर

हमारा प्रिंटर टैरेंट्यूला बिना कंप्यूटर के, इनबिल्ट एसडी कार्ड स्लॉट द्वारा संचालित होता है। इससे हाई क्वालिटी 3-डी प्रोटोटाइप कंपोनेंट क्रिएट कर सकते हैं। यह स्टैंडर्ड एसटीएल फाइल्स को सपोर्ट करने के साथ ही विंडोज और लाइनक्स पर ऑपरेट हो सकता है। प्रिंटर एक साल की वारंटी के साथ आता है। इसमे 480 वॉट ऊर्जा की खपत होती है।

एपिमेट्रिक्स यूजफुल ऐप

पुणे यूनिवर्सिटी के सिविल इंजीनियरिंग के तीन स्टूडेंट्स शुभम अमृतकर, कृष्णा क्षत्रिय और संकेत चांडक ने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर एपिमेट्रिक्स नाम से एक ऐसा डिजिटल एपिडेमिक मॉनिटरिंग प्लेटफॉर्म तैयार किया है, जो बीमारी के फैलने की जानकारी देता है। यह प्लेटफॉर्म मोबाइल ऐप से जुड़ा है, जिसके जरिए यूजर को उन लोकेशंस का एलर्ट मिल जाएगा, जहां बीमारी फैलने की आशंका होगी। पहली बार कुंभ मेले में इसका परीक्षण किया जाएगा।

कुंभ से आइडिया

कुंभ मेले के दौरान बीमारियों, मरीजों आदि की विस्तृत जानकारी डॉक्टरों को कागज पर दर्ज करनी पड़ती है, लेकिन एपिमेट्रिक्स के जरिए अब हमने उस प्रक्रिया को डिजिटल कर दिया है। अब डॉक्टरों को सिर्फ अपने मोबाइल फोन के लॉगिंग ऐप का इस्तेमाल करना होता है। इसके बाद पूरे डाटा को रियल टाइम में क्लाउड इनेबल्ड डाटाबेस में अपलोड कर दिया जाता है। फिर हेल्थ डैशबोर्ड के जरिए अथॉरिटीज को सीधे मैप पर संबंधित बीमारी के प्रसार क्षेत्र की जानकारी मिल जाती है।

पहला इनोवेशन

फिलहाल, भारत में इस तरह का कोई दूसरा प्रोडक्ट नहीं बना है। यूएस के एमआइटी मीडिया लैब द्वारा आयोजित कुंभाथॉन में भी हमारे प्रोजेक्ट को शामिल किया गया था, जिसके बाद से एमआइटी के कैमेरा कल्चर ग्रुप से हमें सराहनीय सहयोग मिल रहा है।

यूजर फ्रेेंडली हैंडपंप

ग्रेटर नोएडा के द्रोणाचार्य कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के बीटेक के चार स्टूडेंट्स श्यामनारायण गुप्ता, सज्जन कुमार शाह, विभव कुमार चौबे और शिवांग भारद्वाज ने एक ऐसा डबल सिलेंडर हैंडपंप बनाया है, जो हर स्ट्रोक में पानी देता है। यह 50 स्ट्रोक में 18 लीटर पानी निकलता है, जबकि नॉर्मल हैंडपंप से सिर्फ नौ लीटर पानी निकलता है।

समय की बचत

हम अक्सर देखते थे कि एक नॉर्मल सिंगल एक्टिंग हैंडपंप से पानी निकालने में लोगों का कितना 'यादा वक्त जाया होता था। इसे ध्यान में रखते हुए थर्ड इयर में हमने एक ऐसा हैंडपंप बनाने की सोची, जिसमें कम ऊर्जा लगाकर 'यादा पानी हासिल किया जा सके। हमारा मोडिफाइड डबल सिलेंडर हैंडपंप इस लिहाज से न सिर्फ एफिशिएंट है, बल्कि यूजर फ्रेेंडली भी है। इसका वजन भी आम हैंडपंप से कम है। डिजाइन सिंपल है और आसानी से रिपेयर या मेनटेन किया जा सकता है।

आसान असेंबल

मोडिफाइड हैंडपंप को नॉर्मल हैंडपेंप के कल-पुर्जों की मदद से आसानी से असेंबल किया जा सकता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा, शहरों में नलकूपों की जगह यूज हो सकता है। शहरों में जहां अक्सर पानी की किल्लत बनी रहती है, वहां ऐसे हैंडपंप लगाने से लोगों को फायदा होगा। फिलहाल मार्केट रिसर्च कर जानने की कोशिश कर रहे हैं कि कहां इस हैंडपंप की ज्यादा जरूरत है।

न्यू एज श्रवण

मुंबई के जर्मन स्कूल के स्टूडेंट्स ने श्रवण नाम का एक ऐसा डिवाइस बनाया है, जिसकी मदद से सीनियर सिटीजन बड़े आराम से सीढिय़ां चढ़ सकते हैं। इंडिया-यूएस टेक्नोलॉजी समिट में इन्हें यंगेस्ट इनोवेटर अवॉर्ड मिला।

बुजुर्र्गों के लिए

हमारे स्कूल में हमेशा कुछ न कुछ नया करने को सिखाया जाता है। एक बार हम लोग फस्र्ट लेगो लीग यानी एफएलएल रोबोटिक्स कॉम्पिटिशन में पार्टिसिपेट करने गए। उसमें हमें बुजुर्गों के लिए कुछ नया और यूजफुल बनाने को कहा गया। काफी रिसर्च किया। 'यादातर लोगों ने यही कहा कि अगर कोई ऐसी डिवाइस बन जाए जो उन्हें कम से कम मेहनत में सीढिय़ां चढ़ा दे, तो उनके लिए बहुत सहूलियत हो जाएगी। बस फिर हमने एक डिवाइस बनाई, जिसका नाम श्रवण रखा।

ऐसे काम करता है

श्रवण का प्लेटफॉर्म हमेशा सीधा रहता है। जब व्हीलचेयर प्लेन फर्श पर होता है, तब यह पीछे की ओर नीचे होता है। जब सीढ़ी चढऩी होती है, तो श्रवण अपने-आप व्हील चेयर के ऊपर आ जाता है और यूजर को ऊपर सीढिय़ों पर ऑटोमेटिकली ले जाता है।

रोबोटिक्स का सपना

हमारे ग्रुप के स्टूडेंट्स रोबोटिक्स इंजीनियर बनना चाहते हैं। अमेरिका के मैसा'युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जाकर पढऩा चाहते हैं, ताकि इंडिया वापस आकर उसे इम्प्लीमेंट कर सकेें।

मोबाइल हियरिंग टेस्ट

केरल के साराभाई इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी की रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट यूनिट ने मोबाइल फोन आधारित एक ऑडियोमेट्रिक टेस्ट सिस्टम डेवलप किया है, जिससे लोगों की सुनने की क्षमता का पता लगाया जा सकता है।

सोशल इम्पैक्ट

रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट यूनिट से जुड़े सुजीत कुमार ने बताया कि इंडिया में बहुत बड़ी आबादी को सुनने में दिक्कत होती है। इसके लिए उन्हें ऑडियोमेट्रिक टेस्ट कराना पड़ता है, जिस पर अ'छा-खासा खर्च होता है। लेकिन मोबाइल फोन आधारित ऑडियोमेट्रिक टेस्ट सिस्टम पोर्टेबल होने के साथ-साथ यूजर फ्रेेंडली है। इस पर खर्च भी काफी कम आता है। आप अपने स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर इससे आसानी से लोगों की सुनने की क्षमता माप सकते हैं।

टेस्टिंग हुई आसान

अगर आपके पास स्मार्ट मोबाइल फोन और एक हेडसेट है, तो वह ऑडियोमेट्रिक टेस्ट एनालाइजर सिस्टम के रूप में काम कर सकता है। इसकी मदद से लोगों की हियरिंग डिफिशिएंसी का पता आसानी से लगाया जा सकता है। मेडिकल कैंप्स या स्कूल में लगने वाले मेडिकल चेकअप्स में ये काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं। किसी को स्क्रीनिंग टेस्ट के लिए हॉस्पिटल जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस सिस्टम में मरीज का डाटाबेस भी तैयार हो जाएगा।

कंस्ट्रक्शन वेस्ट से निर्माण

इंडिया की कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री बूम पर है, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि हर साल करीब 14.5 मिलियन टन कंस्ट्रक्शन मैटीरियल वेस्ट हो जाता है। यही नहीं, देश की करीब 60 प्रतिशत आबादी को सुरक्षित छत तक नसीब नहीं है। इसे देखते हुए ही महाराष्ट्र के औरंगाबाद के रोहित सदाफल ने एक इको-फ्रेेंडली सॉल्यूशन निकाला है। इस इनोवेशन से कंस्ट्रक्शन वेस्ट के द्वारा समाज के निचले तबके के लोगों के लिए कम खर्च पर मकान बनाये जा सकते हैं।

इकोनिर्मिती का आगाज

मैं लार्सन ऐंड टूब्रो लिमिटेड के कंस्ट्रक्शन डिवीजन में सीनियर प्लानिंग इंजीनियर के तौर पर काम कर रहा था। मेरी हमेशा यह कोशिश रहती थी कि कैसे सोसायटी की रिहायश संबंधी समस्याओं का निपटारा किया जाए? इसलिए दो साल पुरानी नौकरी छोड़ इकोनिर्मिती की शुरुआत की। यह एक वेस्ट ट्रांसफॉर्मेशन प्रोजेक्ट है, जिसके तहत हम कंस्ट्रक्शन वेस्ट को स्ट्रक्चरल एलिमेंट में तब्दील करते हैं। इसके अलावा, कंपनियों को वेस्ट मैनेजमेंट सॉल्यूशंस प्रोवाइड कराते हैं, ताकि कंस्ट्रक्शन की वेस्ट सामग्री कचराघर न भेजकर, उसका इस्तेमाल घरों को बनाने में किया जा सके।

कार्बन फुटप्रिंट में कमी

आज कोई भी कंपनी पर्यावरण के प्रति अपनी जवाबदेही से किनारा नहीं कर सकती है। यही कारण है कि अपनी बिजनेस एक्टिविटीज को बढ़ाने के साथ ही, वे कार्बन फुटप्रिंट कम करने की दिशा में भी गंभीर प्रयास कर रही हैं। हमने मुंबई के कई रेजिडेंशियल मेगा-प्रोजेक्ट्स के साथ अपने प्रोजेक्ट को जोड़ा है।

सोलर एनर्जी से चलेगी कार

पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम और लगातार कम होते संसाधनों को देखते हुए आज सोलर एनर्जी की अहमियत काफी बढ़ गई है। इसे ही देखते हुए मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के स्टूडेंट जीत बनर्जी ने अपने दो साथियों अनुदीप और शिवभूषण रेड्डी के साथ मिलकर सोलर कार डिजाइन की है।

कुछ नया करने का जुनून

एमआइटी में एडमिशन से पहले ही मैंने सोचा था कि कुछ ऐसा करना है, जिससे हमारी लाइफ ईजी हो। दुनिया भर के लोगों के लिए अगर मैं कुछ ऐसा कर सकूं, जो हमारी लाइफ आसान कर दे, तो मुझे बहुत खुशी होगी। एडीसन, जेम्स वाट जैसे तमाम साइंटिस्ट्स ने यही किया था। मैं भी उनके नक्शे-कदम पर चलना चाहता था।

बल्ब, कुकर है तो कार क्यों नहीं

मैंने सोचा, जब सोलर एनर्जी से बल्ब जल सकता है, खाना बन सकता है, तो क्यों न इससे चलने वाली कार बनाई जाए। फिर मैं इस पर रिसर्च करने लगा। कई सारे एक्सपेरिमेंट्स किए। इनमें से कई फेल हो गए, लेकिन आखिरकार सफलता मिली।

एलुमिनीज ने किया सपोर्ट

शुरुआत में मैंने खुद यह प्रोजेक्ट शुरू किया। फिर इससे और भी स्टूडेंट्स को जोड़ता गया। अब हमारी एक टीम बन गई है। इंस्टीट्यूट के एलुमिनीज में कई लोगों ने फाइनेंशियली सपोर्ट किया। तब जाकर मेरा यह सपना साकार हो पाया। अब भी एक्सपेरिमेंट चल रहा है। कई कंपनीज ने फाइनेंशियली सपोर्ट किया है। इससे मुझे आगे काम करते जाने का हौसला मिला है।

जलदूत मोबाइल फिल्टर

साफ पानी आज हर किसी की जरूरत है, लेकिन मिलना बहुत मुश्किल। इसी मुश्किल को आसान किया है पुणे में रहने वाले और मैम्ब्रेन फिल्टर्स में आरऐंडडी मैनेजर भूषण आचार्य ने।

जरूरत का इनवेंशन

हम वाटर फिल्टरेशन पर ही काम करते हैं। एक बार हमने पुणे के पाबल गांव में फिल्टर टैंक लगा दिया। गांव की करीब-करीब सभी महिलाएं वहां जाकर पीने का साफ पानी भरकर लाने लगीं, लेकिन कुछ ही दिनों बाद उनकी संख्या काफी कम हो गई। हमने सर्वे किया, तो पता चला कि वे घर में काफी काम होने और फिल्टर टैंक काफी दूर होने की वजह से पानी लेने नहींजा पा रही थीं।

घर-घर पहुंचा वाटर फिल्टर

मैंने सोचा कि अगर फिल्टर टैंक लोगों के घर ही पहुंच जाए, तब तो उन्हें कोई प्रॉब्लम नहींहोगी। मैंने सर्वे भी कराया, लोगों को यह आइडिया पसंद आया। फिर मैंने जलदूत के नाम से मोबाइल वाटर फिल्टर लॉन्च कर दिया।

पीने योग्य बनाया पानी

जलदूत दरअसल तिपहिए वाहन पर रखा फिल्टर टैंक है। हम किसी भी गांव में जाते हैं, वहां नदी, तालाब या किसी भी जलस्रोत में पाइप से पानी खींचकर फिल्टर करके उसे पीने योग्य बनाते हैं। उसे टैंक में स्टोर करते हैं और जिस-जिस को जरूरत होती है, उसे सप्लाई कर देते हैं। इसकी पूरे देश से बहुत डिमांड आ रही है। अभी तक करीब 200 शहरों में हम सप्लाई कर चुके हैं।

ये लो से पढ़ लो

उदयपुर में तीन प्रोफेशनल्स मनीष, सौरभ और आलोक मिले। एक एचआर प्रोफेशनल और दो डिजाइनर, लेकिन जॉब की बजाय सोशल एंटरप्रेन्योर बनना चाहते थे। अपने प्रयास को उन्होंने नाम भी दिया प्रयास और बच्चों के लिए बनाया ये लो फोर इन वन बैग।

बचपन से मिली प्रेरणा

बचपन से लेकर अब तक हम छोटे-छोटे बच्चों को देखते आ रहे थे। प्राइमरी स्कूलों में या ऐसे स्कूलों में जहां डेस्क-बेंच नहीं होती, जमीन पर दरी बिछाकर पढ़ाई होती है या घर में ही जहां स्टडी के लिए टेबल-चेयर नहीं होती, वहां बच्चे झुककर किताब पढऩे को मजबूर होते हैं। इससे स्पाइनल कार्ड डैमेज होता है और बहुत जल्द पावर वाल चश्मा भी लग जाता है। खुद हमने भी ऐसी ही पढ़ाई की थी।

फोर इन वन बैग

मनीष कहते हैं सौरभ पुणे से थे और मैं उदयपुर से। एचआर में एमबीए करने के बाद मैं जॉब के दौरान सौरभ से मिला और बाद में सीतामढ़ी के रहने वाले आलोक से भी। फिर हमने प्रयास शुरू किया और ये लो नाम से फोर इन वन बैग बनाया। इसका यूज स्कूल बैग, राइटिंग डेस्क, एलइडी लाइट और सोलर पावर किट इन चार तरह से होता है। बच्चे इसमें अपनी किताबें-कापियां रखकर स्कूल ले जा सकते हैं। वहां इन्हें डेस्क की तरह यूज कर सकते हैं। घर पर एलइडी लाइट में आराम से 6 से 8 घंटे तक स्टडी कर सकते हैं।

एनआइएफ देगा सपनों को पंख

नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया (एनआइएफ) मार्च 2000 में शुरू हुआ था। यह संगठन ग्रासरूट स्तर पर टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन और बेहतरीन परंपरागत नॉलेज को मजबूत बनाने के लिए भारत सरकार की एक पहल है। इसका उद्देश्य भारत को एक क्रिएटिव और नॉलेज बेस्ड सोसायटी बनाने में मदद करना और ग्रासरूट स्तर पर टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन करने वालों को संस्थागत मंच मुहैया करना है। एनआइएफ ऐसे ग्रासरूट के इनोवेटर्स की तलाश में रहता है, जिन्होंने बिना किसी बाहरी मदद के मानव जीवन के लिए उपयोगी किसी भी फील्ड में कोई टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन किया हो। एनआइएफ ऐसे लोगों को इनोवेशन के लिए उचित प्रोत्साहन देता है और यह सुनिश्चित करता है कि उनके इनोवेशन को व्यावसायिक और गैर व्यावसायिक स्तर पर प्रोत्साहन मिल सके। एनआइएफ ने देश के 555 से ज्यादा जिलों से करीब दो लाख आइडियाज, इनोवेशन और परंपरागत नॉलेज प्रैक्टिस का एक डाटाबेस तैयार किया है। ऐसे इनोवेशंस से तैयार प्रोडक्ट्स को दुनिया भर में बिक्री के लिए उपलब्ध कराया जाता है।

ग्रिड्स

एनआइएफ ने ग्रासरूट इनोवेशंस को देश के प्रीमियर इंस्टीट्यूट से मदद दिलाने के लिए ग्रासरूट इनोवेशन डिजाइन स्टूडियो (ग्रिड्स) तैयार किया है। इसमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (अहमदाबाद), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (गांधी नगर), सृष्टि स्कूल ऑफ आट्र्स, डिजाइन और टेक्नोलॉजी (बंगलुरु) जैसे प्रमुख इंस्टीट्यूट अपने डिजाइन इनपुट से ऐसे ग्रासरूट इनोवेशन को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।

एससीएआइ

स्टूडेंट्स क्लब फॉर ऑगमेंटिंग इनोवेशंस (एससीएआइ) एक देशव्यापी स्टूडेंट आंदोलन है, जिसके द्वारा देश के बेस्ट मैनेजमेंट और टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट्स ग्रासरूट के इनोवेटर्स और टे्रडिशनल नॉलेज होल्डर्स को प्रोडक्ट डेवपलमेंट, मेंटोरिंग और मॉनिटरिंग सपोर्ट मुहैया करते हैं।

एमवीआइएफ

सिडबी की मदद से अक्टूबर 2003 में स्थापित माइक्रो वेंचर इनोवेशन फंड (एमवीआइएफ) दुनिया में अपने तरह का अनूठा डेडिकेटेड रिस्क फंड है। इसके तहत ग्रासरूट इनोवेटर्स को वित्तीय मदद दी जाती है और इसके लिए किसी जमानत या गारंटर की जरूरत भी नहीं होती, बस एक सिंपल एग्रीमेंट पर एक जगह दस्तखत करना होता है।

टीपीपी

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) देश में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम चलाता है, जिसमें से प्रमुख है टेक्नोप्रेनर प्रमोशन प्रोग्राम यानी टीपीपी। इस प्रोग्राम के तहत कोई भी व्यक्तिगत इनोवेटर या 30 लाख रुपये से कम टर्नओवर वाले किसी स्टार्ट-अप कंपनी/इंडस्ट्री के मालिक अपना प्रपोजल समिट कर सकते हैं। किसी कंपनी, संगठन में काम करने वाला कोई व्यक्ति अलग से अपना इनोवेशन सबमिट कर सकता है।?

इग्नाइट

इग्नाइट एनआइएफ द्वारा चलाई जाने वाली एक सालाना नेशनल चैंपियनशिप है, जिसमें स्कूली बच्चों के इनोवेशन और आइडियाज को पुरस्कृत किया जाता है। इसके तहत ऐसे इनोवेशन/आइडिया को पुरस्कृत किया जाता है, जो लोगों के दैनिक जीवन में कामकाज को आसान बनाए। इस प्रतिस्पर्धा में किसी भी बोर्ड से जुड़े स्टूडेंट हिस्सा ले सकते हैं। आप अपनी एंट्री ई-मेल से या इग्नाइट के अहमदाबाद स्थित ऑफिस में भेज सकते हैं।

प्रिज्म

सरकार ने इंडिविजुअल इनोवेटर्स को बढ़ावा देने के लिए प्रिज्म (प्रमोटिंग इनोवेशन इन इंडिविजुअल्स, स्टार्ट-अप्स और एमएसएमईज) स्कीम शुरू की है। इसके तहत स्टूडेंट्स, संस्थाओं और इंडिविजुअल्स को 2 लाख से 50 लाख रुपये तक की फाइनेंशियल फंडिंग की जाती है।

इंक्लूजिव इनोवेशन फंड

इस साल की शुरुआत में भारत सरकार ने 5000 करोड़ के एक इंडिया इंक्लूजिव इनोवेशन फंड की स्थापना की है। सरकार द्वारा प्रमोटेड इस वेंचर कैपिटल फंड के द्वारा टेक्नोलॉजी इनोवेशन करने वाले कारोबारी समूहों की मदद की जाएगी।

इंडिया इनोवेशन इनिशिएटिव

सरकार के अलावा सीआइआइ, फिक्की , एसोचैम जैसे उद्योग संगठन भी देश में इनोवेशन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं। एआइसीटीई, डीएसटी, सीआइआइ और आइ4सी ने मिलकर इस साल एक इंडिया इनोवेशन इनिशिएटिव 2014 का आयोजन किया।

कॉन्सेप्ट ऐंड इनपुट : दिनेश अग्रहरि, अंशु सिंह,

अमित निधि, मिथिलेश श्रीवास्तव


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