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फोकस+हार्ड वर्क सक्सेस है पक्की

इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस एग्जाम-2014 में 36वांरैंक हासिल करने वाले जम्मू के विपुल गोयल ने अपने हार्ड वर्क, डेडिकेशन और सेल्फ मोटिवेशन से कैसे पाई सफलता, जानते हैं उनकी जुबानी....

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 29 Apr 2015 02:51 PM (IST)Updated: Wed, 29 Apr 2015 02:55 PM (IST)
फोकस+हार्ड वर्क सक्सेस है पक्की

आइआइटी ग्रेजुएट को लेकर आम धारणा होती है कि वह किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करेगा या फिर विदेश चला जाएगा। 2012 में आइआइटी दिल्ली से सिविल इंजीनियरिंग करने के बाद मैंने भी कुछ समय प्राइसवाटरहाउसकूपर्स के साथ काम किया। फिर लगा कि इंजीनियरिंग के बाद फाइनेंस सेक्टर में क्यों समय बर्बाद कर रहा हूं। हमेशा से दिल की इच्छा गवर्नमेंट सेक्टर में काम करने की थी। इसलिए जॉब छोड़कर इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस की तैयारी की और उसमें सफल भी रहा। अपनी उम्मीदों पर इस तरह खरा उतरना निश्चय ही एक सुखद अनुभव रहा।

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रेलवे से होगी शुरुआत

आइइएस क्लियर करने के बाद मुझे रेलवे के साथ काम करने का मौका मिलेगा। वह रेलवे, जो इंडिया की लाइफ लाइन मानी जाती है। लेकिन जिसमें सुधार की बहुत गुंजाइश है, खासकर सिग्नल, ट्रैक, सेफ्टी, हॉस्पिटैलिटी आदि के मोर्चे पर। मेरी कोशिश होगी कि दी गई जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाऊं। वैसे, मैं बुलेट ट्रेन्स पर काम करना चाहता हूं। इससे रिलेटेड प्रोजेक्ट से जुडऩा मेरा एक सपना है। मेरा मानना है कि रेलवे में नई टेक्नोलॉजी के समावेश से सुविधा और रेवेन्यू दोनों जेनरेट होंगे। इसके साथ ही सेमी हाई स्पीड ट्रेनों की देश को काफी जरूरत होगी।

जागृति यात्रा ने दिया मकसद

मैंने आज अगर गवर्नमेंट सेक्टर में काम करने का फैसला लिया है, तो इसमें बड़ी भूमिका जागृति यात्रा की रही है। आइआइटी में पढ़ते हुए मुझे इस यात्रा पर जाने का मौका मिला था। इस दौरान देश की अनेक समस्याओं को जानने, युवा टैलेंट्स से मिलने और उनके साथ वैचारिक आदान-प्रदान करने का अवसर मिला। मैंने समाज को एक नए नजरिए से देखना शुरू किया और इस निर्णय पर पहुंचा कि ग्रेजुएशन के बाद सिर्फ अपनी फाइनेंशियल स्टेबिलिटी के बारे में नहींसोचना है, बल्कि देश निर्माण में अपना योगदान देना है।

मेहनत करने का जज्बा

मेरा बचपन जम्मू जैसे शहर में बीता है। स्कूल की शुरुआती पढ़ाई वहींसे पूरी की है। घर में कोई इंजीनियर नहींथा। पिता जी का अपना कारोबार है। लेकिन मेरी शुरू से मैथ्स और फिजिक्स में दिलचस्पी थी। इसलिए स्कूल के सीनियर्स से बात की और कोटा जाकर इंजीनियरिंग की तैयारी करने का फैसला किया। वहां बिल्कुल अलग माहौल देखने को मिला। स्टूडेंट्स के साथ टीचर्स भी कड़ी मेहनत करते थे। रात के डेढ़-दो बजे क्लासेज होती थीं। उनके इस जज्बे ने मुझे भी काफी प्रेरित किया। शुरू में थोड़ी मुश्किल हुई। जम्मू में कुछ स्टूडेंट्स ही 90 प्रतिशत लाते थे, जबकि यहां बहुत कम ही थे, जिन्हें 90 या 95 प्रतिशत स्कोर नहींआते थे। मैंने अपना लेवल बढ़ाया और दूसरे अटेम्प्ट में जेइइ क्लियर कर लिया।

इंटरव्यू में रहें कॉन्फिडेंट

इंटरव्यू को लेकर आमतौर पर स्टूडेंट्स में कई तरह का खौफ रहता है। लेकिन अगर आप मानसिक रूप से खुद को तैयार कर लेंगे, तो कोई दिक्कत नहींहोगी। मैंने ऐसा ही किया था। अपनी लैंग्वेज और सॉफ्ट स्किल्स को स्ट्रॉन्ग किया। मेरे इंटरव्यू पैनल में चार मेंबर्स थे। करीब 15 मिनट के इस इंटरव्यू में मुझसे रैपिड फायर क्वैश्चंस पूछे गए। कुछ क्रॉस-क्वैश्चनिंग भी हुई। मेरे पूर्व के जॉब एक्सपीरियंस, आइआइटी के फाइनल ईयर प्रोजेक्ट्स को लेकर सवाल किए गए। कुछ सवालों के जवाब नहींमालूम थे, लेकिन उनका भी कॉन्फिडेंटली जवाब दिया। इस तरह मुझे 200 में से 140 अंक मिले।

फोकस से सक्सेस

इंजीनियरिंग फील्ड में सफल होने के लिए प्रतिष्ठित संस्थान से पढ़ाई करने के अलावा आपका खुद का डेडिकेशन और फोकस बहुत जरूरी है। आइआइटी में देश भर के टैलेंटेड स्टूडेंट्स आते हैं। उनसे आप बहुत कुछ सीख सकते हैं। कॉलेज एनवॉयर्नमेंट के अलावा ïवहां के पीयर ग्रुप से आपके संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास होता है।

कैसे क्लियर करें आइइएस?

-अगर इंजीनियरिंग के चार साल का 60 से 70

प्रतिशत सिलेबस भी कवर कर लेते हैं, तो

एग्जाम क्लियर कर सकते हैं।

-प्रीवियस ईयर के क्वैश्चन पेपर्स सॉल्व करें।

-ज्यादा से ज्यादा रिवीजन करना होगा।

-शॉर्ट नोट्स और फॉर्मूला बुक बनाने से भी

मदद मिलेगी।

Vipul Goel

Profile

जन्म: 02 जून 1990

स्कूल : आर्मी स्कूल, कालूचक, जम्मू

कॉलेज: सिविल इंजीनियरिंग,

आइआइटी, दिल्ली (2012)

जॉब: पूर्व मैनेजमेंट कंसल्टेंट, प्राइसवाटरकूपर्स

पिता: नरेश गुप्ता, बिजनेसमैन, जम्मू

इंटरैक्शन : अंशु सिंह


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