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नया साल नए रिजॉल्यूशन

उमंगों और उत्साह के साथ हम नए साल के स्वागत को तैयार हैं। इस नए साल में अपने सपनों को पंख लगाना चाहते हैं, तो मजबूत इरादों के साथ रिजॉल्यूशन लें और उन पर पूरी ईमानदारी से अमल करें। खुद को खंगालें, ताकि कमजोरियों को पहचान कर उन्हें दूर कर सकें। कदम आगे बढ़ाएं। गलतियों या असफलताओं से डरें नहीं, बल्कि उनसे सबक लेकर उन्हें जीत की सीढ़ी बनाएं। देश और दुनिया में अपने संकल्प और इनोवेशन से पहचान बना रहे कामयाब युवाओं के स्ट्रगल पर भी गौर करें और उनसे सीखें..

By Edited By: Published: Wed, 25 Dec 2013 11:29 AM (IST)Updated: Wed, 25 Dec 2013 12:00 AM (IST)
नया साल नए रिजॉल्यूशन

इस साल की आईएएस टॉपर हरिथा वी. कुमार की कामयाबी की कहानी बडी दिलचस्प है। केरल की इस होनहार स्टूडेंट ने अपनी शुरुआती नाकामयाबियों को ही सफलता की सीढी बना लिया। पहली तीन कोशिशों में लगातार असफल रहने वाली हरिथा ने चौथे और आखिरी प्रयास में अपना पूरा दम-खम लगा दिया। कामयाबी तो मिली ही, पूरे देश में टॉप करके उन्होंने साबित कर दिया कि अगर जीतने का जज्बा हो, तो मंजिल एक न एक दिन जरूर मिलती है। हालांकि इस जीत के पीछे अपनी तैयारी को लेकर हरिथा की ठोस रणनीति रही, जिसके चलते उन्हें चिडिया की आंख की तरह केवल अपना टारगेट दिखता था। उन्होंने अपनी पिछली असफलताओं से सबक लिया और बाधा बनने वाली सभी कमजोरियों को दूर किया।

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मजबूत इरादों से तय होती मंजिल

हरिथा के संघर्ष की तरह हरियाणा की पहलवान गीता फोगट के भी संघर्ष की अपनी कहानी है। गोल्ड मेडलिस्ट गीता को बचपन से ही कुश्ती का शौक था, लेकिन पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को इतनी आजादी नहीं है कि वे अपनी मर्जी से फैसले ले सकें। गीता के इरादे मजबूत थे। उन्होंने डिसाइड कर लिया था कि अब तो यही जीने का लक्ष्य होगा। गीता के जुनून को देखकर परिवार वालों ने हिम्मत दिखाई और उनके फैसले को सपोर्ट किया। शुरुआत में काफी दिक्कत हुई। लोगों के ताने भी सुनने पडे, लेकिन लोगों की बातें गीता को ताना नहीं लगीं। उनसे उन्होंने प्रेरणा ली। साल 2010 में जब कॉमनवेल्थ गेम्स हुए, तो उसमें गोल्ड मेडल जीतकर महिलाओं को कमजोर समझने वालों की जुबान पर ताला लगा दिया।

विल पॉवर हो स्ट्रॉन्ग

लाइफ में अक्सर ऐसे समय आते हैं, जब सक्सेस मिलने के बाद भी बार-बार नए सिरे से संघर्ष करना पडता है। क्रिकेटर युवराज सिंह इसके एग्जांपल है। युवराज अपने करियर के चरम पर थे, जब कैंसर से उनका सामना हुआ। फैंस को लगने लगा कि पता नहीं उन्हें युवराज की बल्लेबाजी दोबारा देखने को मिलेगी भी या नहीं। लेकिन युवराज ने न सिर्फ कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को मात दिया, बल्कि भारतीय क्रिकेट टीम में वापसी कर धमाकेदार शुरुआत की। ऐसे लोग पूरी सोसायटी के लिए एक प्रेरणा हैं, जो हमें जीवन में आगे बढते रहने का हौसला देते हैं।

खुद लें फैसला

आगे बढना है तो बिना वक्त जाया किए फैसले लें। ठीक समय पर लिया गया फैसला आपको सफलता के ऊंचे पायदान तक पहुंचा सकता है। जम्मू-कश्मीर की आइएएस रुवैदा सलाम ने भी एक फैसला लिया, जिसने उन्हें समाज में एक अलग मुकाम पर पहुंचा दिया। रुवैदा मेडिकल और सिविल सर्विस दोनों की तैयारी कर रही थीं। परिवार की तरफ से भी उन पर कई तरह का प्रेशर था, लेकिन रुवैदा ने न सिर्फ मेडिकल एग्जाम क्वालिफाई किया, बल्कि सिविल सेवा एग्जाम में भी क्वालिफाई कर दोहरी कामयाबी पाई। ऐसा कम ही होता है कि एक इंसान दो अलग-अलग लक्ष्यों की तैयारी कर रहा हो और वह दोनों में बाजी मार ले। लेकिन यह रुवैदा का जुनून ही था कि आज वह महिलाओं के लिए इंस्पिरेशन बन चुकी हैं।

स्वीकार करें चुनौतियां

चुनौतियां इंसान को अंदर से मजबूत बनाती हैं। जो सफलता चुनौतियों पर जीत हासिल करने के बाद मिलती है, वह लंबे समय तक कायम रहती है। इसलिए जीवन के अलग-अलग संघर्षो के दौरान जो कॉन्फिडेंस के साथ चैलेंजेज का सामना करते हैं, उनका उत्साह डिफिकल्ट सिचुएशन में भी कम नहीं होता है। वे पेशेंस के साथ आगे बढते हैं।

गलतियों से लें सबक

जो इंसान गलतियों से सबक लेकर आगे बढते हैं, वही लंबी रेस जीतते हैं। वहींजो अपनी गलतियों को दूसरों के सिर मढकर पल्ला झाडते हैं, वे पीछे छूट जाते हैं। यह फैसला आपको करना है कि आप अपनी गलतियों से सीख कर आगे बढेंगे या बार-बार उन्हें दोहराएंगे। दुनिया की सबसे युवा शक्ति वाले देश भारत के तमाम युवा अपनी नई सोच और इनोवेशन से कामयाबी की नई इबारत लिख रहे हैं। हालांकि उन्हें यह कामयाबी एक दिन में और बिना स्ट्रगल किए नहीं मिल गई। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती सफल लोगों से तो सीखा ही, लेकिन सबसे बडी बात यह रही कि उन्होंने अपनी गलतियों से भी सीखा और उन्हें सुधार कर आगे बढे।

बनाएं रिजॉल्यूशन

हमारे कामयाब युवाओं की सबसे बडी खासियत है, जीतने की जिद। हार मानना या थककर रुकना नई जेनरेशन को कहीं से गवारा नहीं। ऐसे कई कामयाब लोग हैं जो अपने इन्हींताकतों की बदौलत सफल लोगों में गिने जाते हैं। आप भी अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहते हैं, तो उनके जीवन, संघर्ष, असफलता-सफलता, गलतियों से सीख लेते हुए नए साल 2014 के रिजॉल्यूशन लें और उन पर पूरी दृढता से अमल करने की कोशिश भी करें। ऐसा करके आप भी कामयाबी की एक नई इबारत लिख सकते हैं और ऐसे सफल लोगों की फेहरिस्त में शामिल हो सकते हैं।

टीमवर्क से क्रिएशन

टीम को खुद पर कॉन्फिडेंस हो तो सक्सेस मिल ही जाती है..

Chandan Gupta

CEO and Founder PhoneWarrior, New Delhi

2012 में शुरू हुए फोन वॉरियर स्टार्टअप की आठ लोगों की टीम युवा जोश से भरी है। वे सभी खुद पर भरोसा करते हैं और टीम वर्क की अहमियत समझते हैं। इसीलिए महज डेढ साल के अंदर इस वेंचर ने मोबाइल मार्केट में अपनी खास जगह बना ली है। कंपनी के फाउंडर और सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल चंदन गुप्ता मानते हैं कि टीम मेंबर्स के बीच जितना को-ऑर्डिनेशन होगा, उसका उतना अज्छा रिजल्ट सामने आएगा। फोन वॉरियर के सक्सेस का कारण भी यही रहा है। इसलिए जिन्हें टफ कॉम्पिटिशन के बीच अपनी जगह बनानी है, उन्हें स्ट्रॉन्ग टीम बनानी होगी।

टैलेंट को पहचानें

चंदन कहते हैं कि इंडियंस काफी टैलेंटेड होते हैं। दुनिया की 500 प्लस फॉर्चून कंपनीज को आईटी और दूसरी सर्विस वे ही प्रोवाइड कराते हैं। लेकिन खुद कोई टेक प्रोडक्ट कंपनी खडा करने की हिम्मत नहीं जुटाते। इसी वजह से शायद अब तक इंडिया से कोई गूगल या माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनी नहीं निकल पाई है। इंफोसिस और विप्रो जैसी कंपनियां जरूर हैं, जो ग्लोबल लेवल पर कंपीट करती हैं, लेकिन इंडियन टैलेंट बेस को देखते हुए टेक बेस्ड कंपनीज की काफी गुंजाइश है। इसी सोच के साथ वे बैंक ऑफ अमेरिका की जॉब छोडकर इंडिया लौटे और फोन वॉरियर वेंचर शुरू किया। यहीं से लोगों को हायर किया और आज उसी टीम ने क्लाउड सोर्सिंग और मशीन लर्निग पर आधारित एक ऐसा एंटी स्पैम फिल्टर डेवलप किया है जो ब्लैकबेरी, नोकिया और एंड्रॉयड मोबाइल एप पर अवेलेबल है और जिसे गूगल प्ले स्टोर से फ्री में डाउनलोड किया जा सकता है। इस ऐप की खासियत है कि एक बार कोई यूजर इसे इंस्टॉल कर ले तो, 90 परसेंट स्पैम कॉल्स और एसएमएस ब्लॉक हो जाते हैं।

वर्क विद कॉन्फिडेंस

फोन वॉरियर के मार्केट में कई कॉम्पिटिटर्स हैं, लेकिन टीम को खुद पर कॉन्फिडेंस था। इसलिए उनके प्रोडक्ट को सबने हाथों-हाथ लिया। बिना बडी मार्केटिंग स्ट्रैटेजी के इंडिया, इंडोनेशिया, यूके जैसे ग्लोबल मार्केट में फोन वॉरियर मोबाइल एप के लाखों बार डाउनलोड्स हो चुके हैं। वहीं, इस ऐप के जरिए अब तक 300 मिलियन से ज्यादा स्पैम एसएमएस और कॉल्स को ब्लॉक किया जा चुका है। आने वाले समय में चंदन का टारगेट अपने यूजर बेस को एक मिलियन से 10 मिलियन तक ले जाने का है। वे कहते हैं कि जिनके पास भी विजन है, उन्हें आगे आना चाहिए। फेल्योर को एक्सेप्ट करने के कारण ही आज यूथ रिस्क लेकर नया प्रोडक्ट बना रहा है।

स्मार्ट स्ट्रैटेजी से फेम

King Sidhartha

Web Developer and Designer Instamozo.com, Mumbai

क्यूरियस, इंट्रोस्पेक्टिव, रिबेलियन, इमोशनल, क्वालिटी कांशस के साथ-साथ सक्सेसफुल एंटरप्रेन्योर, वेब डेवलपर और स्पिरिचुअल स्पीकर। ये सारी क्वालिटीज किसी एक शख्स में हों, तो क्या कहेंगे? लेकिन यह सच है। इन्हीं सब खूबियों की वजह से 22 साल के किंग सिद्धार्थ इंडिया के टॉप यंग एंटरप्रेन्योर्स में शामिल किए जाते हैं। खुद को आउटलॉ एंटरप्रेन्योर कहलाना पसंद करने वाले सिद्धार्थ ने कम वक्त में बहुत नाम कमा लिया है। अपनी स्मार्ट स्ट्रैटेजी और टाइम मैनेजमेंट के बल पर वे जिस चीज में भी इनवॉल्व होते हैं, उसमें सक्सेस पक्की होती है। आज वे मुंबई के इंस्टामोजो डॉट कॉम में जॉब करने के साथ-साथ वेब डिजाइन, डेवलपमेंट और इंजीनियरिंग कॉलेजेज में स्पिरिचुअल स्पीच देते हैं। साथ ही, स्टूडेंट्स को मेडिटेशन के बेनिफिट्स बताते हैं।

खुद की सुनें

सिद्धार्थ ने लाइफ में जो भी किया है, उसके लिए किसी से परमिशन नहीं ली। दसवींके बाद ही फ्रीलांसर वेब डिजाइनर के तौर पर काम शुरू कर दिया था। हायर सेकंडरीके बाद भी एक साल ड्रॉप कर लोगों को स्टार्टअप शुरू करने में मदद की। इसके बाद फाइन आ‌र्ट्स में एडमिशन लिया। कॉलेज में पढाई की, लेकिन डिग्री लेने से पहले कॉलेज छोड दिया, यानी वह कभी किसी फिक्स्ड पैटर्न पर नहीं चले। फिर भी आज अज्छा अर्न कर रहे हैं और दूसरों को इंस्पायर भी। सिद्धार्थ कहते हैं कि रॉबिन हुड की तरह उनके भीतर भी एक रिबेलियन बसता है। सोसायटी क्या सोचती है, इस पर वह ध्यान नहीं देते हैं। उनकी खुद की खुशी सबसे इंपॉटर्ेंट है। किंग की यंगस्टर्स को सलाह है कि वे भी अपने दिल की सुनें, उसे फॉलो करें और किसी सवाल से परेशान न हों, बल्कि अपने काम पर फोकस करें।

लाइफ से सीखें

सिद्धार्थ ने फॉर्मल एजुकेशन से ज्यादा लाइफ से सीखने में विश्वास रखा है। उनका मानना है कि लाइफ आपका सबसे बडा टीचर है। भगवद्गीता और बौद्ध सूत्रों से प्रेरणा लेकर आगे बढने वाले सिद्धार्थ कहते हैं कि हमें हमेशा सवाल करते रहना चाहिए, सोचते रहना चाहिए। इसके अलावा कभी कुछ सीखने में संकोच नहींकरना चाहिए क्योंकि इससे आपके सोचने का दायरा बढेगा और आप कामयाबी की राह पर चल सकेंगे। वैसे, सक्सेस को वह एक ऐसा सफर मानते हैं जो चलता रहता है। बस जरूरी है कि आप कुछ पल रुकें, लाइफ के बारे में सोचें, हमेशा खुश रहें। खुद सिद्धार्थ का यह रिजॉल्यूशन रहा है कि वे हर साल और ज्यादा क्रेजी, हैप्पी और क्रिएटिव बनेंगे।

पेशेंस से सक्सेस

Kuntal Mukherjee

कुंतल मुखर्जी एक ऑर्थोडॉक्स फैमिली से ताल्लुक रखते हैं, जहां पैरेंट्स के खिलाफ जाकर कोई डिसीजन लेने के लिए काफी हिम्मत की जरूरत होती है। कुंतल फिल्म मेकिंग और फोटोग्राफी में करियर बनाना चाहते थे। उन्होंने एफटीआइआइ का एग्जाम क्रैक भी किया। एनएसडी का एंट्रेंस टेस्ट भी क्लियर कर लिया, लेकिन पिता की इज्छा कुछ और थी। वे बेटे को एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते देखना चाहते थे। लिहाजा, कुंतल ने उनका मन रखने के लिए एमबीए किया। वे धैर्य के साथ अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटीज निभा रहे थे, लेकिन एक दिन उन्होंने स्ट्रॉन्ग्ली डिसाइड किया कि वे अपने ड्रीम को फॉलो करना चाहते हैं। इस निर्णय को लेने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा। आज 25 साल के कुंतल एक सक्सेसफुल फोटोग्राफर हैं।

लर्निंग विद फन

कुंतल कहते हैं कि जब आप कोई काम किसी के प्रेशर में करते हैं, तो उसमें ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाते। आपका फोकस कम होने लगता है। लेकिन जिस चीज में आपकी रुचि होती है, उसे सीखने में काफी मजा आता है। जैसे उनका सपना फिल्म बनाना है। इसलिए इससे जुडे फील्ड फोटोग्राफी से उन्होंने अपना करियर शुरू करने का फैसला किया। फोटोग्राफी के लिए कोई फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली। शुरुआत में कुछ स्टैब्लिश्ड फैशन फोटोग्राफर्स को असिस्ट किया। इस दौरान उन्होंने अपने काम को एंजॉय करने के साथ-साथ काफी कुछ सीखा भी। हमेशा कुछ नया और क्रिएटिव करने में विश्वास रखने वाले कुंतल ने इसके बाद बैंड फोटोग्राफर के तौर पर काम करना शुरू किया। पहले छोटे बैंड्स के लिए काम किया। धीरे-धीरे इनके काम की चर्चा होने लगी। लोगों को काम पसंद आया तो फिर आर्यन्स, यूफोरिया और इंडियन ओशन जैसे बडे बैंड्स ने कुंतल को मौका देना शुरू कर दिया। आज वे बैंड के अलावा वेडिंग फोटोग्राफर के तौर पर भी काफी सक्सेफुल हैं।

ट्रस्ट योरसेल्फ

कुंतल की लाइफ में कई तरह के फेज आए। कई बार निराशा भी हुई, लेकिन उन्हें अपनी काबिलियत पर भरोसा था। ऐसे में जैसे-जैसे लोगों ने उनके काम को सराहना शुरू किया, उन्हें अपने लक्ष्य को हासिल करने का मोटिवेशन मिला और वे आगे बढते गए। आप भी खुद में झांकें और अपनी खासियत को समझकर उसे निखारें।

हैव कॉन्फिडेंस इन यू

मार्केट के बडे प्लेयर्स से घबराएं नहीं, खुद पर भरोसा रखें..

Sandeep Jaiswal

Final Year Student Civil Engineering, IIT Madras

लीक से अलग हटकर काम करने में चैलेंज तो आते ही हैं, लेकिन जिनके इरादे मजबूत होते हैं, वे अंत में सफल जरूर होते हैं। आइआइटी मद्रास से सिविल इंजीनियरिंग की पढाई कर रहे संदीप जायसवाल ने भी ऐसे ही एक चैलेंज को एक्सेप्ट किया और फिर पूरे कॉन्फिडेंस के साथ उस चैलेंज को पूरा कर दिखाया।

क्लियर बिजनेस स्ट्रैटेजी

संदीप जायसवाल और उनके पार्टनर्स अक्षय रूंगटा और लंदन के मैनचेस्टर बिजनेस स्कूल से एमबीए कर चुके मिनहाज अमीन के सामने लोगों को सस्ते रेट पर साफ पीने का पानी अवेलेबल कराने का चैलेंज था। मार्केट में बडे प्लेयर्स से कॉम्पिटिशन के अलावा कस्टमर्स के बीच अपने प्रोडक्ट की विश्वसनीयता साबित करने का टफ टास्क था। कस्टमर्स मार्केट में पहले से मौजूद बडी कंपनियों के प्रोडक्ट का इस्तेमाल कर रहे थे। ऐसे में बाजार में अपने पांव जमाना कहीं से ईजी नहीं था। फिर भी संदीप को खुद पर कॉन्फिडेंस था। उन्होंने अमृतधारा नाम से वॉटर स्टेशन की शुरुआत की। इसके जरिए सार्वजनिक जगहों पर लोगों को किफायती रेट पर पीने का पानी मुहैया कराया जाने लगा। आज संदीप के वॉटर स्टेशन पुड्डुचेरी और चेन्नई में सफलतापूर्वक चल रहे हैं। इस काम में लोकल एडमिनिस्ट्रेशन भी उनकी काफी मदद कर रहा है। साफ है, उन्होंने ऐसी बिजनेस स्ट्रैटेजी प्लान की, जिससे वे मार्केट में एंट्री लेकर अपनी जगह बना सकते हैं।

सर्विस फॉर सोसायटी

संदीप बॉटल के पानी को 15 से 20 रुपये में बेचने को इथिकली सही नहीं मानते हैं। 20 रुपये में लोग कम से कम एक वक्त का खाना खा सकते हैं, लेकिन फ्रेश वॉटर न मिलने के कारण उन्हें मजबूरी में पानी की बॉटल खरीदनी पडती है। इसके अलावा ब्रांडेड कंपनियां सिर्फ 20 परसेंट बॉटल को ही रीसाइकिल करती हैं, जिससे पानी की प्योरिटी पर सवाल खडे होने लगते हैं। लोगों के विश्वास के साथ गलत होता है सो अलग। जबकि उनके प्रोजेक्ट के साथ ऐसा नहीं है। संदीप की कोशिश है कि देश के बाकी हिस्सों में भी लोगों को इसका फायदा मिल सके। संदीप को सोसायटी के प्रति अपनी जवाबदेही का पूरा अहसास है। वह आइआइटी में सिर्फ पढाई नहींकर रहे, बल्कि रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट में शामिल होकर सोसायटी को कुछ देने की कोशिश भी कर रहे हैं।

सही वक्त सही फैसला

Shekhar Khetan (IRS)

Assist. commissioner, Central Excise and Service Tax, Bolpur (W.B.)

सही समय पर जो लोग सही फैसला लेते हैं, टाइम मैनेज करके चलते हैं, सक्सेस ऐसे लोगों के पीछे-पीछे चलती है। भागलपुर के शेखर खेतान ने इसी फलसफे को अपनी जिंदगी में उतारा। सही वक्त पर सही फैसला लिया, टाइम मैनेज किया और लक्ष्य हासिल कर दिखाया। हालांकि इस दौरान उनकी लाइफ में कई उतार-चढाव आए। मन में निराशा भी आई। कुछ समय के लिए लक्ष्य का पीछा करना भी छोड दिया, लेकिन फिर नए जोश और जज्बे के साथ उसे पाने में जुट गए। आखिरकार मंजिल मिल गई।

टाइम मैनेजमेंट है जरूरी

दिल्ली के किरोडीमल कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के अलावा शेखर सिविल सर्विसेज की तैयारी भी कर रहे थे। खूब मेहनत की थी। साल 2007 में पहली बार आइएएस एग्जाम में शामिल हुए, लेकिन पूरी तैयारी के बावजूद एग्जाम देने से चूक गए। वजह सुनकर शायद आप चौंक जाएं। वह एग्जाम सेंटर पहुंचने में लेट हो गए। शेखर बताते हैं, परीक्षा वाले दिन वह नॉर्थ दिल्ली के कमला नगर से ऑटो से निकले। ट्रैफिक से बचने के लिए उन्होंने मेट्रो से जाने का फैसला किया। मेट्रो लेट हो गई। रास्ते में कुछ और घटनाएं घटीं, जिससे उन्हें सेंटर पर रिपोर्ट करने में दस मिनट की देर हो गई। शेखर को एग्जाम देने से रोक दिया गया। इससे वह काफी डिप्रेस्ड हो गए और तैयारी बंद करने का ही फैसला कर लिया। बीती बातों को याद करते हुए शेखर कहते हैं कि अगर वे लाइफ में थोडी स्ट्रैटेजी के साथ टाइम मैनेजमेंट पर ध्यान देते, तो शायद ऐसा फैसला तब नहीं लिया होता।

समय पर लें सटीक निर्णय

शेखर मुंबई के एक बैंक में जॉब कर रहे थे, लेकिन पैरेंट्स को यह बात मालूम नहीं थी कि उन्होंने सिविल सर्विसेज की तैयारी बंद कर दी है। ऐसे में मां ने बेटे को समझाया कि वे निराश न हों, बल्कि कोशिश करें। कामयाबी जरूर मिलेगी। उनके पारिवारिक गुरु केदारनाथ शर्मा ने भी खुद पर भरोसा रखने की प्रेरणा दी। इसी विश्वास ने शेखर को सही डिसीजन लेने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने बैंक की नौकरी छोड दी और आइएएस की तैयारी में जी-जान से जुट गए।

सबके पास 24 घंटे ही होते हैं

हर किसी के पास दिन में चौबीस घंटे ही होते हैं। इन्हीं चौबीस घंटों को मैनेज करके कोई शहंशाह बन जाता है, कोई फकीर रह जाता है। शेखर ने बस अपने चौबीस घंटों को मैनेज किया। सब्जेक्ट स्टैटिस्टिक्स पर कमांड बनाई। अर्जुन की तरह चिडिया की आंख यानी आइएएस पर निशाना साधा। नतीजा जोरदार रहा। 2009 के सिविल सर्विसेज एग्जाम में उन्होंने सफलता हासिल की और आइआरएस बनने में सफल हो गए। इस तरह उन्होंने हारी बाजी जीत ली।

फॉलो योर हार्ट ऐंड ड्रीम

न् vinash Tripathi

Assistant Professor, HNB Degree College, Naini, Allahabad (U.P.)

अगर लाइफ में सक्सेस होना है, तो वही करें जो आपका दिल कहे। वही करियर चुनें, जिसमें काम करने के बाद आत्मसंतुष्टि मिले। अविनाश त्रिपाठी को पेड-पौधों से काफी लगाव था। वे बज्चों में साइंटिफिक टेंपरामेंट भरना चाहते थे। उनमें साइंस के प्रति रुचि जगाना चाहते थे। इसीलिए बॉटनी यानी वनस्पति विज्ञान में उज्च शिक्षा हासिल की और आज इलाहाबाद के नैनी में हेमवती नंदन बहुगुणा कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वे स्टूडेंट्स को एक सीख जरूर देते हैं, जबरदस्ती पढोगे या कुछ करोगे, तो उसमें कभी कामयाबी नहीं मिल पाएगी। सक्सेस तभी मिलती है, जब काम में दिलचस्पी हो और आप उस पर फोकस कर सकें।

इंटरेस्ट ने दिलाई कामयाबी

अविनाश को फूलों और पेड-पौधों से कुछ इस तरह का लगाव रहा है कि उन्होंने अपने छोटे से घर में पूरी बॉटनी लैब बना रखी थी। यहां वे नए कॉन्सपेप्ट्स पर काम करते, एक्सपेरिमेंट्स करते। धीरे-धीरे उनका यही शौक उन्हें आगे ले गया। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बॉटनी में एमएससी के अलावा काफी रिसर्च वर्क किया। एमएससी कम्प्लीट करने के साथ ही उन्होंने सीएसआइआर से उन्हें जूनियर रिसर्च फेलो (जेआरएफ) और सीनियर रिसर्च फेलो (एसआरएफ) मिली। इसके बाद कई जगह उनका जॉब के लिए सेलेक्शन हुआ। उन्होंने जो भी एग्जाम दिया, ज्यादातर में क्वालिफाई भी किया, लेकिन जब डिसीजन लेने की बारी आई, तो उन्होंने अपने दिल की सुनी। अविनाश ने इलाहाबाद गवर्नमेंट इंटर कॉलेज में बॉटनी टीचर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। अविनाश बताते हैं, वह हर रोज कोशिश करते हैं कि अपनी नॉलेज स्टूडेंट्स में बांट सकें। गवर्नमेंट इंटर कॉलेज के बाद अविनाश ने राज्य शिक्षा संस्थान का रुख किया। वहां भी उन्होंने एससीइआरटी के लिए ऐसा सिलेबस सजेस्ट करने की कोशिश की, जिससे बज्चों का मन पढाई में लग सके। वे इसे बोझिल न समझें।

बांटने से बढती है नॉलेज

अविनाश का मानना है कि अगर इंसान अपनी नॉलेज किसी से शेयर करता है, तो इससे उसकी खुद की जानकारी भी बढती है। इसीलिए वह हर रोज यह कोशिश करते हैं कि अब तक जितना कुछ सीखा है, उसे अपने स्टूडेंट्स को बता सकें। अपने स्टूडेंट्स को हमेशा कुछ नया बताने के लिए अविनाश आज भी हर समय सीखने और नया जानने को तत्पर रहते हैं।

न रुकें न थकें

Aditya Pratap Singh

Plant Head, Sudarshan Textile, Kolhapur (Maharashtra)

रुके न तू थमे न तू,

चले सदा थके न तू,

चाहे हो पाषाण खण्ड,

चाहे हो वनों का झुण्ड,

तू डटा रहे वहां सदा,

डरे न तू हटे न तू

हरिवंश राय बच्चन की इन पंक्तियों से ही ताकत पाकर आदित्य प्रताप सिंह रुके नहीं, थके नहीं। बस चलते रहे। गीता के सबसे विख्यात श्लोक कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन को अपना आदर्श माना। स्वामी विवेकानंद के गुरुमंत्र उत्तिष्ठ, जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत को आत्मसात किया और यूपी के बलिया जिले से आदित्य निकल पडे दुनिया को यह दिखाने कि पिछडे इलाके का होने या गरीबी की वजह से कोई पिछड नहीं जाता। बतौर ट्रेनी अपने करियर की शुरुआत करने वाले आदित्य प्रताप सिंह महज सात साल में ही आज एक कंपनी के कोल्हापुर प्लांट के हेड बन चुके हैं।

नदी की तरह बहना है जिंदगी

अपने मां-बाप के इकलौते बेटे आदित्य को न कोई राह दिखाने वाला मिला, न ही आर्थिक मदद के लिए कोई आगे आया। बचपन में आदित्य ने अपने मां-बाप के साथ खेतों में जमकर काम किया। गांव से जब कई युवक पढने के लिए शहर के कॉलेज में एडमिशन लेने लगे, तो आदित्य ने भी ले लिया। उतने पैसे नहीं थे तो ट्यूशन पढाकर अपने खर्च पूरे किए। साथ के कई लडके ग्रेजुएशन के लिए इलाहाबाद, वाराणसी, लखनऊ या दिल्ली चले गए, लेकिन वह नहीं जा सके। कुछ घर की जिम्मेदारी थी, कुछ आर्थिक मजबूरी। लेकिन अब भी आदित्य के मन में यह साफ नहीं हो पाया था कि जिंदगी में क्या करना है। वह बस चुपचाप अपना काम किए जा रहे थे। एमएससी करने के बाद दूसरे युवाओं की तरह उन्हें आइएएस की तैयारी का भूत सवार हुआ, लेकिन उसमें मन नहीं रमा।

रंग लाई दिन-रात की मेहनत

अचानक आदित्य को नागपुर की एक जींस मैन्युफैक्चर फैक्ट्री से नौकरी का ऑफर मिला। आदित्य ने ट्रेनी के रूप में वह नौकरी ज्वाइन कर ली। सब कुछ नया था आदित्य के लिए, लेकिन आदित्य के मन में जुनून था, जज्बा था कुछ कर गुजरने का, चाहे वह कुछ भी हो। आदित्य ने इस चैलेंज को स्वीकार किया और दिन-रात एक करके मेहनत की। शिफ्ट से ज्यादा काम किया। आदित्य की मेहनत रंग लाई। उन्हें प्रमोट करके सुपरवाइजर बनाकर अंबाला भेज दिया गया। फिर उन्हें कोल्हापुर में जींस मैन्युफैक्चरिंग फैक्ट्री के प्लांट हेड बना दिया गया। कभी स्कूल फीस के लिए परेशान रहने वाला एक लडका न सिर्फ एक कंपनी का प्लांट हेड है, बल्कि खुद के कमाए पैसों से जौनपुर में एक मोबाइल सर्विस सेंटर भी चला रहा है।

हार से सबक

Pradeep Paliwal

Founder and Director, Maati Earthing Wear, Azamgarh (U.P.)

हर नाकामी कहीं न कहीं आपकी कामयाबी की इबारत लिखती है। अपनी एक ऐसी ही हार से सबक लेकर आज सफलता की सीढियां चढ रहे हैं, आजमगढ के प्रदीप सिंह पालीवाल। प्रदीप ने भी दूसरों की तरह आइएएस बनने का सपना देखा था। इलाहाबाद से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने दिल्ली में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी की, लेकिन चार बार किस्मत ने उनके साथ आंखमिचौली खेली। साल भर अज्छी तरह पढाई करने के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिल पाई, जिसकी उन्हें उम्मीद थी। हालांकि उन्होंने कोशिश जारी रखी और जुटे रहे।

उम्मीद ने बढाया आगे

हार का गम सबको होता है, प्रदीप को भी हुआ, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। शायद जिंदगी ने उनके लिए कुछ और सोच रखा था। प्रदीप दिल्ली से वापस घर चले गए। लोगों ने मजाक भी उडाया। कुछ दिनों तक प्रदीप घोर अकेलेपन का शिकार हुए। किसी से मिलना-जुलना उन्हें अज्छा नहीं लगता था। हर किसी के चेहरे में जैसे उन्हें कई सारे सवाल दिखाई देते थे, जिनके जवाब उनके पास नहीं थे। उन्हीं सवालों के जवाब तलाशते-तलाशते प्रदीप ने नई उम्मीद जगाई सोशल एंटरप्रेन्योरशिप के तौर पर।

दूसरों का संवारा भविष्य

प्रदीप ने अपने आस-पास उन गरीबों को देखा, जो दिन-भर पसीना बहाते हैं, लेकिन अंत में उन्हें सुकून की नींद भी नहीं मिल पाती। प्रदीप ने अपने गांव के कुम्हारों को देखा। जो गांव छोड-छोडकर दिल्ली-मुंबई चले जाते थे और दिन भर 100-100 रुपये के लिए ठेकेदारों की डांट और गालियां सुनते थे। इसके बावजूद शिद्दत से काम कर रहे हैं, यह जानते हुए भी कि उनका कोई भविष्य नहीं। प्रदीप ने देखा, किस तरह चाय की दुकानों पर मिलने वाली कुल्हड की जगह प्लास्टिक के कप या ग्लास ने ले ली थी। उन्होंने जाना कि कैसे ये प्लास्टिक के कप पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। फिर क्या था। प्रदीप को मिल गया, अपनी जिंदगी का मकसद। उन्होंने लोगों से सवाल पूछे- क्या वे जिस प्लास्टिक के कप में चाय पी रहे हैं, उन्हें अज्छा लगता है? या वे कुल्हड वाली चाय मिस कर रहे हैं ? करीब 97 फीसदी लोगों ने जवाब दिया कि वे कुल्हड वाली चाय मिस कर रहे हैं। इसके बाद प्रदीप ने कुम्हारों से संपर्क किया। उनमें से कई को दिल्ली-मुंबई से वापस अपने गांवों में बुलाया। दुकानदारों से बात की और फिर शुरू कर दिया कुल्हड का बिजनेस। कुम्हारों को भी रोजगार दिया, चाय की दुकानों से प्लास्टिक को भी निकाल बाहर किया। उन्हें खुद की आमदनी का जरिया भी मिल गया। अब प्रदीप का अगला निशाना पॉलीथिन की थैलियां हैं।

जिंदगी एक प्रयोगशाला

जिंदगी से बेहतर हमें कोई दूसरा कुछ नहींसिखा सकता। जिंदगी हर कदम सीखने का नाम है..

Surabhi Sinha

Founder and Director, Nexzen Pro , Blood Group India, New Delhi

जिंदगी एक प्रयोगशाला है, जिसमें हर रोज आप कुछ न कुछ नया सीखते हैं। कभी आप नाकाम होते हैं, तो कभी आप कुछ ऐसा कर जाते हैं कि दुनिया सलाम करती है, लेकिन सही मायनों में वही इंसान अपनी असफलता और सफलता को एंजॉॅय कर पाता है, जो दोनों ही परिस्थितियों में बस सीखता जाए और अपना काम करता जाए।

जिंदगी सब सिखा देती है

पटना की रहने वाली सुरभि सिन्हा जिओलॉजी में एमएससी करके 1994 में ही अपना घर बसा चुकी थीं। खुद उन्हें भी नहीं मालूम था कि कुछ सालों बाद वह मार्केटिंग की दुनिया में तहलका मचाने वाली हैं। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि बिहार की राजधानी से उठकर वह देश की राजधानी आ जाएंगी और एक मार्केटिंग कंपनी की हेड बन जाएंगी। सुरभि यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने ब्लड ग्रुप इंडिया नाम से संगठन बनाकर अपने सामाजिक सरोकार भी जाहिर कर दिए। यह संगठन उन जरूरतमंदों की मदद करता है, जो ब्लड के अभाव में पहले दम तोड देते थे।

सीखते जाएं बढते जाएं

सुरभि ने एमएससी करने के बाद दूसरे स्ट्रगलर्स की तरह कॉल सेंटर में काम किया। एयर डेक्कन में टिकटिंग के बिजनेस डेवलपमेंट का काम किया। सुरभि बताती हैं, जिंदगी उनके लिए प्रयोगशाला की तरह है। वह हर रोज कुछ न कुछ सीखती हैं। हर जगह जहां उन्होंने कुछ काम किया, वहां से कुछ न कुछ सीखा, जिसे उन्होंने अपनी आगे की लाइफ में अप्लाई किया और नतीजा बहुत पॉजिटिव निकला।

हर किसी से सीखें

सुरभि बताती हैं, मार्केटिंग फील्ड में हर रोज नए और अलग तरह के कस्टमर्स से मिलना होता है। यह अपने आप में बहुत बडा एक्सपीरियंस है। हर कस्टमर से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। ऐसे में आप सिर्फ अपनी ही लाइफ से नहीं सीखते, दूसरों की लाइफ से भी बहुत कुछ जानने को मिलता है। सुरभि के इस सफर में हर कदम पर पति संजय सिन्हा और उनका परिवार साथ खडे रहे। उनके सहयोग के बिना इतना सब पाना मुमकिन नहीं हो पाता। उनका कहना है कि जब आप कोई काम शुरू करते हैं, तो असफलताओं से सामना होता है, लेकिन जब मन में विश्वास और इरादा पक्का हो, तो बडे से बडे चैलेंज का हल निकल ही आता है। बस अपने एक्सपीरियंस से सीखते रहें।

विल पॉवर से पाएं जीत

फेल्योर से कभी निराश न हों , बल्कि दृढ निश्चय से टारेगट को करें हासिल..

U med Rawat

Painter and Sculptor, New Delhi

उमेद रावत को बचपन से ही फोटोग्राफी और पेंटिंग का शौक था। बडे होने पर उन्होंने नेहरू युवा केंद्र में स्टैब्लिश्ड आर्टिस्ट्स की मदद से इस कला की और भी बारीकियां सीखीं। इसके बाद फैसला किया कि वे आर्ट फील्ड में ही करियर बनाएंगे। वह 1990 का दौर था। उमेद ने दिल्ली कॉलेज ऑफ आ‌र्ट्स के बीएफए का एंट्रेंस दिया, लेकिन सक्सेस नहीं मिली। हालांकि वह कोशिश करते रहे और आखिरकार तीन बार नाकाम होने के बाद उन्हें सफलता मिल ही गई। वे कहते हैं, मैंने ठान लिया था कि जब तक दिल्ली कॉलेज ऑफ आ‌र्ट्स में एडमिशन नहीं मिलेगा, तब तक कोशिश करता रहूंगा। उमेद का यह दृढ निश्चय काम आया। उनकी क्रिएटिविटी और कला के प्रति समर्पण को देखते हुए कॉलेज में उन्हें बीसी सान्याल अवॉर्ड से नवाजा गया। इस तरह शुरुआती रिजेक्शन के बाद सीनियर्स से जो तारीफ मिली, वह उनके लिए किसी सक्सेस से कम नहीं थी।

लर्रि्नग हैबिट

उमेद कहते हैं, किसी भी शख्स को फेल्योर से निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि अपने हुनर को और तराशने की कोशिश करनी चाहिए। आप जितना नया सीखेंगे, एक्सपेरिमेंट करेंगे, आपकी उतनी स्ट्रॉन्ग पहचान बनेगी। इसलिए बीएफए एंट्रेंस में मिली नाकामी के बीच भी उन्होंने फोटोग्राफी, एनिमेशन और दूसरे क्रिएटिव आर्ट सीखे। इसका उन्हें फायदा भी मिला। आज वह मिक्स मीडिया में पेंटिंग और स्कल्प्चर दोनों करते हैं। ब्रास, वुड, फाइबर ग्लास, एल्युमिनियम में एक्रेलिक और ऑयल के इस्तेमाल से इन्होंने कई खूबसूरत कलाकृतियां बनाईं हैं। इनके एग्जीबिशंस, ग्रुप और रोड शोज को काफी अज्छा रिस्पॉन्स मिलता रहा है। हालांकि कुछ स्ट्रगल अब भी करना पड रहा है, लेकिन भविष्य को लेकर उम्मीदें कम नहींहुई हैं।

कंसर्न फॉर सोसायटी

कला के अलावा समाज को कुछ देने में विश्वास रखने वाले उमेद कहते हैं कि पेंटिंग तो हर कोई करता है, लेकिन अगर आप सोसायटी के लिए भी कुछ कर पाते हैं, तो इससे अज्छी कोई बात हो नहीं सकती है। उमेद कॉलेज के दिनों से ही अंडरप्रिविलेज्ड बज्चों को पेंटिंग और दूसरे आर्ट की ट्रेनिंग दे रहे हैं और उनकी कैनवास में अपनी कूची से जिंदगी के रंग भर रहे हैं।

जुनून हो तो ऐसा

डर के आगे जीत है, यह कभी न भूलें। पूरे आत्मविश्वास से लडें तभी सफलता मिलेगी..

Yuvraaj Singh

Indian Cricketer

युवराज सिंह को तो आप जानते ही होंगे। जी हां, वही आलराउंडर क्रिकेट जिन्होंने अपने जुनून से कई बडे इंटरनेशनल टूर्नामेंट देश के नाम दर्ज कराए हैं। खेल का मैदान हो या फिर निजी जिंदगी, युवराज ने अपने जुनून से हार को जीत में बदलकर दिखाया। उन्होंने कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी को अपने स्ट्रॉन्ग विल पावर से पराजित कर क्रिकेट की दुनिया में शानदार वापसी की।

युवराज का यही जुनून हम सबको प्रेरणा देता है कि मुसीबतों और अनहोनियों से डर कर कभी भी भागें नहीं। अपनी सारी शक्तियों और आत्मविश्वास के साथ इन परिस्थितियों से लडें। डर के आगे जीत है, इस बात को कभी न भूलें। युवराज सिंह के इस जज्बे से युवा सीख ले सकते हैं। इससे उन्हें किसी भी मुश्किल हालात से लडने में मदद मिल सकती है।

दृढ निश्चय

युवराज सिंह में बचपन से प्रतिभा थी। उनकी इस प्रतिभा को पिता ने पहचाना और क्रिकेट में नाम रोशन करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने यह भी सिखाया कि जो अंत समय तक जीत के लिए कोशिश करते हैं, हार उनसे कोसों दूर रहती है। पिता से मिली इस प्रेरणा से युवराज ने डिसाइड किया कि वे हर हाल में एक अज्छा क्रिकेटर बनकर दिखाएंगे। युवराज जानते थे कि उनकी मंजिल आसान नहीं है। इसमें काफी चुनौतियां हैं। उन्होंने निश्चय किया कि वे इस रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों को ध्वस्त कर आगे बढते रहेंगे। टीम में एंट्री के बाद युवराज ने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा।

कैंसर के कुछ-कुछ लक्षण दिखने के बावजूद वे मैदान पर जलवे दिखाते रहे। इतना ही नहीं, 2011 के व‌र्ल्ड कप में मैन ऑफ द टूर्नामेंट भी बनकर दिखा दिया। बीमारी का पता चलने के बाद भी खेल को लेकर उनका जुनून कम नहीं हुआ। वापसी की जिद ने ही उन्हें कैंसर पर जीत दिला दी।

जीतने का जुनून

उनके भीतर जीत का जुनून मैदान पर हमेशा दिखता रहा है। टीम को जब रनों की जरूरत होती है, तो वे ताबडतोड रनों की बौछार कर देते हैं। एक ओवर में लगातार छह छक्के लगाने का अविश्वसनीय रिकॉर्ड इसका सुबूत भी है। युवराज टीम के स्थायी बॉलर नहीं रहे हैं, लेकिन इंडियन टीम को जब विकेट की जरूरत होती है, तो वे पीछे नहीं हटते।

फैसले पर अडिग

अपनी क्षमता को पहचानें, अपने फैसले पर अडिग रहें और हौसला रखें, सफलता आपके कदम चूमेगी ..

Ruvaida Salaam

First IAS Topper (2012) from Kupwada, Kashmir

आपके फैसले ही आपकी जीत की राह तय करते हैं। आपकी जिंदगी किस ओर जाएगी, यह आपके सही या गलत फैसले ही तय करते हैं। अगर आप अपने डिसीजन अपनी कैपेसिटी, एबिलिटी और रिसोर्सेज के आधार पर लेते हैं, तो वे कभी भी गलत नहीं होते। बस जरूरत है, अपने डिसीजन पर अडिग रहने की। चाहे हालात कितने भी खराब क्यों न हो जाएं, आपके हौसले अगर बुलंद हैं और आप अपने फैसले पर कायम रहने का माद्दा रखते हैं, तो सफल होने से आपको कोई नहीं रोक सकता।

ऐसी ही एक शख्सियत हैं कश्मीर के कुपवाडा की रुवैदा सलाम, जिन्होंने तमाम तरह के विरोध और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सिविल सर्विस एग्जाम में शानदार सफलता हासिल की।

विपरीत हालात को बनाएं ताकत

कश्मीर घाटी के आतंकवाद प्रभावित कुपवाडा जिले से ताल्लुक रखने वाली रुवैदा सलाम ने काफी पहले तय कर लिया था कि वह आइएएस ही बनेंगी। इस सपने को वह हर वक्त जीने लगीं। सोते-जागते हर वक्त बस यही सोचती थीं। कभी भी इस सपने को अपनी आंखों से दूर नहीं होने दिया, लेकिन घर वाले उनके इस फैसले के खिलाफ थे। जैसे ही रुवैदा ने मेडिकल की पढाई कंप्लीट की, रिश्तेदार शादी करने के लिए दबाव बनाने लगे, लेकिन रुवैदा को खुद पर पूरा भरोसा था।?उन्होंने आइएएस की तैयारी बंद नहीं की। मेहनत रंग लाई और 2012 के एग्जाम में उन्हें सफलता मिल ही गई।

फैसले बनाते हैं तकदीर

रुवैदा अज्छी तरह जानती थीं कि उन्हें सिविल सेवा परीक्षा में कामयाबी मिल जाएगी। इसमें कुछ देर तो हो सकती है, लेकिन मंजिल हासिल करना मुश्किल नहीं होगा। रुवैदा की तरह हर किसी के अंदर क्षमता होती है, सिर्फ उसे पहचानने की जरूरत है। जिस तरह रुवैदा ने लाख विरोध के बावजूद अपनी तैयारी जारी रखी, लोगों के तानों तक कि परवाह नहींकी, बस अपने फैसले पर कायम रहकर सपने को पूरा करने के लिए जी-जान से जुटी रहीं। अगर आप ऐसा करने में सफल होते हैं, तो जिंदगी में वह सब हासिल कर सकते हैं, जिसकी आपने खुद से उम्मीद की है।

सक्सेस बैरियर्स

सक्सेसके रास्ते में कई बैरियर्स सामने आते हैं। अगर इनसे बचा न जाए, तो मंजिल पर पहुंचना दुश्वार हो जाता है..

कन्फ्यूजन

कन्फ्यूजन फेल्योर की मुख्य वजह है। इसके चलते हम काम शुरू ही नहीं करते या फिर उसमें इतनी देर कर देते हैं कि जिस परिणाम की हमें उम्मीद होती है, वह हमें नहीं मिल पाती। आरंभ कर देना ही आगे निकल जाने का रास्ता है।- सैली बर्जर

सैटिस्फैक्शन

सैटिस्फैक्शन हमें आगे प्रयास करने से रोक देता है। हम मान लेते हैं कि हमें जो मिला है, वही हमारी अंतिम मंजिल है। अब हमें इसके आगे कुछ और नहीं चाहिए।

सही राह पर होने के बाद भी यदि आप वहां बैठे रहेंगे, तो कोई गाडी आपको कुचलकर चली जाएगी।- विल रोजर्स

कैजुअल एटीट्यूड

कोई काम हमें सरल लगता है, तो हम बिना प्लानिंग किए ही उसे करना शुरू कर देते हैं। यह भी नहीं देखते कि उसे पूरा करने के लिए हमें किन चीजों की जरूरत पडेगी।

सही योजना बनाने में अगर हम एक मिनट लगाते हैं, तो काम के दौरान हमारे दस मिनट बचते हैं। - ब्राइन ट्रेसी

हताशा

उम्मीदें पूरी नहीं होती हैं, तो हम हताश हो जाते हैं। हम यह मान लेते हैं कि अब हमारे लिए संभावनाओं का अंत हो चुका है। हम आगे नहींबढ सकते।

दो व्यक्यिों ने एक ही सलाख से बाहर झांका, एक को कीचड तो दूसरे को तारे दिखाई दिए। - फ्रेडरिक लैंगब्रिज

ओवर कॉन्फिडेंस

अक्सर हमारी सोच बन जाती है कि इस काम को करने से पहले किसी भी तरह के अभ्यास की कोई जरूरत नहीं है।

आप अतीत की बुनियाद पर भविष्य की योजना नहीं बना सकते। - एडमंड बुर्के

जियो तो पूरे उत्साह से

Sahil Pratap Singh

B-Tech : J. Gupta Institute Of Engineering and Technology, Jaipur

खुद के लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन दूसरों को राह दिखाने में अपना जीवन समर्पित करने वाले लोग कम ही होते हैं। ऐसे ही चंद लोगों में से एक हैं साहिल प्रताप सिंह। साहिल बीटेक करने के साथ जिंदगी से हार मान चुके लोगों में जीने की नई उम्मीद जगा रहे हैं।

उम्मीद जगाने की काोशिश

साहिल अपने साथी यश जौहरी की मदद से जिंदगी सोसायटी नाम से सुसाइड हेल्पलाइन चलाते हैं। यह हेल्पलाइन ऐसे लोगों को राह दिखाती है, जो लाइफ से निराश होकर, हार मान लेते हैं। साहिल कहते हैं कि वे इन लोगों में उम्मीद और उत्साह जगाने के साथ, उन्हें बताते हैं कि जिंदगी कितनी अनमोल है और उसे कैसे अच्छे से जीना चाहिए। इस काम में मनोचिकित्सक भी उनकी मदद करते हैं।

समर्पण का जज्बा

दरअसल, साहिल के क्लासमेट ने अचानक सुसाइड कर लिया था। दोस्त के इस कदम से वह काफी आहत हुए। फिर उन्होंने डिसाइड किया कि वह ऐसे लोगों की मदद करेंगे जो जिंदगी से हार मान चुके हैं। अक्सर पढाई और दूसरे प्रेशर्स के कारण स्टूडेंट्स सुसाइड कर लेते हैं। साहिल कहते हैं कि रिसर्च के मुताबिक ज्यादातर सुसाइड रात में होती हैं, जब व्यक्ति अकेला होता है, अगर उस वक्त उनसे कोई बात कर सके, तो शायद सुसाइड न हो। साहिल कहते हैं कि उन्होंने और उनके दोस्तों ने फैसला किया कि वे पूरे समर्पण के साथ ऐसे लोगों की हेल्पलाइन के जरिये मदद करेंगे।

साहस से पाएंगे मंजिल

Geeta Phogat

Wrestler, Winner of Gold Medal in Common Wealth Games, FILA

आगे बढना है और कुछ अलग करना है, तो हिम्मत जुटानी होगी। लोगों की परवाह न करते हुए अपनी अंतरात्मा की आवाज सुननी पडेगी। हरियाणा के भिवानी के एक छोटे से गांव बलाली में जन्मी गीता फोगट का सपना भी कुछ अलग करने का था, लेकिन इसके लिए उन्हें तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पडा। हरियाणा जैसे पुरुष प्रधान राच्य में जहां बेटियों को ज्यादा आजादी नहीं है, वहां गीता ने किसी की परवाह न करते हुए कुश्ती को करियर बनाया और आज वह इंडिया की जानी-मानी पहलवान हैं।

डेडिकेशन का दम

कुश्ती की शौकीन गीता को अक्सर लोग ताने मारते, लेकिन उन्होंने किसी की भी परवाह नहीं की। बस लगी रहीं अपनी मंजिल को पाने की कोशिश में, ताकि एक दिन कुछ ऐसा कर दिखाएं कि ताने मारने वाले लोग ही उन्हें बधाई देने के लिए आएं। अंत में यही हुआ भी। गीता ने कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 में गोल्ड मेडल जीतकर यह साबित कर दिया कि सिर्फ लडके ही नहीं, लडकियां भी परिवार का नाम रोशन कर सकती हैं। इसके बाद 2012 में भी गीता ने फिला एशियन ओलंपिक क्वालिफिकेशन टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीतकर अपने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया।

कॉन्सेप्ट : मिथिलेश श्रीवास्तव, शरद अग्निहोत्री, अंशु सिंह, मो. रजा

जेआरसी टीम


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