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बचपन का विजन

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जब 14 साल की उम्र में लंदन के हैरो स्कूल में पढ़ने गए थे, उसी दौरान उन्होंने समाजवाद को नजदीक से जाना-समझा। शुरुआती दौर में ही समाजवाद और समानता के सिद्धांत ने उन्हें बेहद प्रभावित किया। किशोर उम्र में ही कई बातों को लेकर उनका विजन क्लियर हो गया था। हालांकि वे अच्छी तरह जानते-समझते थे कि अंग्रेज शासक भारतीयों के साथ जानबूझ कर भेदभाव करते हैं। पढ़ाई पूरी करके भारत लौटकर फ्रीडम स्ट्रगल से जुड़े और आजादी के बाद जब प्रधानमंत्री बने, तो उनके सबसे प्रसिद्ध भाषण ट्रायस्ट विद डेस्टिनी में स्वतंत्र भारत की आर्थिक नीतियों पर उनकी समाजवादी सोच और समानता के सिद्धांत की छाप स्पष्ट रूप से दिखी, जो आज तक जारी है। नेहरू जी मानते थे कि विजन को जितनी जल्दी डेवलप कर लिया जाए, व्यक्ति और समाज के विकास के लिए वह उतना ही बेहतर होता है..

By Edited By: Published: Wed, 13 Nov 2013 10:32 AM (IST)Updated: Wed, 13 Nov 2013 12:00 AM (IST)
बचपन का विजन

बनाएं करियर की राह

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सचिन ने दसवींऔर बारहवींसाइंस से किया। उसके बाद ग्रेजुएशन आर्ट से की। कुछ समय तक सचिन ने छोटे-मोटे कॉम्पिटिशन की तैयारी भी की, लेकिन सफल नहींहुआ। अब सचिन सोच में पड गया कि कौन-सा करियर सेलेक्ट करे ? सचिन जैसे हजारों स्टूडेंट्स के सामने इस तरह की समस्याएं आती हैं कि वे क्या करें? जिन बच्चों को शुरुआत में प्रॉपर गाइडेंस नहींमिलती, वे आगे चलकर ज्यादा परेशान होते हैं। बचपन में करियर की राह चुनना बडा मुश्किल होता है। समय के साथ चीजें बदलती जाती हैं और रुझान भी, लेकिन जो बच्चे बचपन में ही अपना लक्ष्य डिसाइड कर लेते हैं, उनके सफल होने के चांसेज कहीं ज्यादा होते हैं। अपने करियर के सपने को साकार करने के लिए बस जरूरत है, बीच-बीच में मोटिवेशन की। अपने सपने को अपना जुनून बना लें, सक्सेस खुद ब खुद आपको मिल जाएगी।

लक्ष्य डिसाइड करें

करियर काउंसलर जतिन चावला के मुताबिक जितनी जल्दी हो सके, अपने लक्ष्य को डिसाइड कर लें। इससे आपको तैयारी करने में आसानी होगी। बेहतर होगा कि 9वीं-10वीं क्लास से ही जिस फील्ड में जाना है, उसकी तैयारी शुरू कर दें। डॉक्टर, इंजीनियर, आर्मी, पुलिस, आइएएस, जिस भी फील्ड में आपका इंट्रेस्ट हो, सिर्फ उसी की तैयारी के बारे में सोचें। महसूस करें कि आप एक डॉक्टर हैं, आर्मी ऑफिसर हैं, पुलिस अधिकारी हैं। दूसरों के कहने पर अपना लक्ष्य चेंज न करें।

कॉम्पिटिशन में हिस्सा लें

आजकल कई तरह के कॉम्पिटिशन होते रहते हैं। उनमें हिस्सा लें। इससे आपको अपनी तैयारी और एजुकेशन लेवल का पता चलता रहेगा।

गवर्नमेंट स्तर पर स्टूडेंट्स के लिए किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना, नेशनल टैलेंट सर्च एग्जामिनेशन, मैथ्स ओलंपियाड जैसे कॉम्पिटिशन होते रहते हैं, उनमें हिस्सा लें। इससे कॉम्पिटिशन की भावना पैदा होगी और अपनी एबिलिटी का भी पता चलेगा। कुछ प्राइवेट ऑर्गेनाइजेशन भी कॉम्पिटिशन कराते हैं, जिनमें हिस्सा लेकर अपनी नॉलेज चेक कर सकते हैं।

बुक्स पढें

जिस फील्ड में आपको जाना है, उससे रिलेटेड बुक्स पढें। न्यूजपेपर या मैग्जीन में, जहां कहींआपको आर्टिकल नजर आए, उसे जरूर पढें। टेलीविजन में आपकी फील्ड से रिलेटेड अगर कोई प्रोग्राम आता है, तो उसे जरूर देखें। इंटरनेट पर सर्च कर अपनी फील्ड के बारे में जानकारी हासिल करें।

मोटिवेशनल वीडियो देखें

काउंसलर जतिन चावला के अनुसार यू-ट्यूब पर बहुत से मोटिवेशनल वीडियो हैं, उन्हें जरूर देखें। इससे आपको आगे बढने का इंस्पीरेशन मिलेगा। जिस किसी को आप अपना आदर्श मानते हैं, उसके बारे में पढें कि कैसे उसने एक ऊंचा मुकाम हासिल किया है, किस तरह की चुनौतियों का सामना कर वह सक्सेस हुए, यह सब जानने की कोशिश करें।

साइंटिफिक मेथड

अपनी तैयारी को परखने के लिए आप सांइटिफिक मेथड को भी अपना सकते हैं। अपनी तैयारी को प्लान करें। वीकली टारगेट तय करें और उसे पूरा करने की कोशिश करें। ग्राफ बनाकर भी आप तैयारी कर सकते हैं। अपने टीचर से तैयारी के बारे में पूछें। पैरामीटर बनाकर अपनी रैंकिंग चेक करते रहें। न्यूमेरिकल फॉर्म में अपने टीचर से इनपुट लें। जैसे, किसी सब्जेक्ट में आपकी नॉलेज कितनी है, टीचर से जानें कि आप उस सब्जेक्ट में कितना स्कोर कर सकते हैं। हो सकता है कि आपके मा‌र्क्स उस सब्जेक्ट में ज्यादा आए हों, लेकिन आपको उतनी नॉलेज न हो। टीचर से यह जानने की कोशिश करें किकैसे आप और अच्छास्कोर कर सकते हैं।

बेझिझक सवाल करें

जहां कहींभी आपको किसी प्रकार का कंफ्यूजन हो, अपने टीचर से या अपने सीनियर्स से सवाल करें। सवाल करने में किसी प्रकार की झिझक महसूस न करें। इससे आपका कॉन्फिडेंस बढेगा और आप करियर को लेकर सही डिसीजन ले पाएंगे।

वेबसाइट्स से हेल्प

इंटरनेट पर आज सब कुछ मौजूद है। अगर प्रॉपर गाइडेंस न मिले, तो आप इंटरनेट की भी मदद ले सकते हैं। कुछ ऐसी वेबसाइट्स हैं, जिनकी मदद से आप अपनी तैयारी का आंकलन कर सकते हैं। कई ऑनलाइन साइट्स हैं, जिनसे मदद ली जा सकती है। इन वेबसाइट की मदद से आपको अपनी तैयारी और नॉलेज का सही से पता चल जाएगा।

साइकोमेट्रिक टेस्ट

साइकोमेट्रिक टेस्ट के जरिये भी आप अपना लक्ष्य तय कर सकते हैं। इसमें आप काउंसलर की मदद ले सकते हैं कि कौन सा करियर आपके लिए बेहतर होगा। इसके अलावा कुछ वेबसाइट्स भी हैं, जिनकी मदद आप ले सकते हैं:

-www.mindtools.com

-www.mapmytalent.in

-www.jagranjosh.com

-www.careergym.com

अपनी पसंद न थोपें

थ्री इडियट्स के फरहान कुरैशी को तो आप सभी जानते होंगे, जिसका इंट्रेस्ट फोटोग्राफी में था, लेकिन उसके पिता उसका एडमिशन इंजीनियरिंग कॉलेज में करा देते हैं, जहां वह बडी मुश्किल से पास हो पाता है। फरहान जैसे हजारों पैरेंट्स अपनी पसंद बच्चों पर थोप देते हैं। वह क्या चाहते हैं, किस फील्ड में उनका रुझान है, यह जानने की कोशिश ही नहींकरते और अपनी पसंद की फील्ड में जबरन उनका दाखिला करा देते हैं। ऐसे में बच्चे का मन कभी उस फील्ड में नहींलगता। वह बडी मुश्किल से आगे बढता है। इस बीच वह बेहतर करने के लिए पैरेंट्स का दबाव भी झेलता है। नतीजा यह होता है कि बच्चा लाइफ में सक्सेस नहीं हो पाता और पैरेंट्स को लगता है कि बच्चे ने ठीक से मेहनत नहींकी, इसलिए वह सक्सेस नहीं हो पाया। पैरेंट्स इस बात के लिए हमेशा बच्चे को ताना कसते हैं या उस पर दबाव बनाते रहते हैं कि अपनी लापरवाही की वजह से वह आज आगे नहीं बढ पाया। ऐसी स्थिति में बच्चा परेशान हो जाता है और उसे कोई रास्ता समझ में नहींआता।

बचपन में पहचानें हुनर

करियर बनाने में पैरेंट्स का रोल बहुत अहम होता है। पैरेंट्ेस के सही मार्गदर्शन में ही बच्चे अपना भविष्य तय करते हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि पैरेंट्स बच्चे के हुनर को पहचानने की कोशिश?करें। हर बच्चे में एक यूनीक क्वॉलिटी होती है। स्कूल समय से ही बच्चे अक्सर अपनी दिलचस्पी जाहिर कर देते हैं, लेकिन पैरेंट्स इसे पहचान नहीं पाते। वह समझ ही नहीं पाते हैं कि आखिर बच्चा क्या चाहता है, उसका किस फील्ड में इंट्रेस्ट है। पैरेंट्स को चाहिए कि वह बच्चे के छोटे से छोटे इंट्रेस्ट का ध्यान रखें, साथ ही समझने की कोशिश करें कि बच्चे का रुझान किस तरफ है।

काउंसलर की मदद

10वीं-12वीं में करियर डिसाइड करना बडा मुश्किल होता है। समझ में नहीं आता है कि कौन सी फील्ड में जाना बेहतर होगा। ऐसी सिचुएशन में कई बार हम गलत फील्ड का चुनाव कर लेते हैं, जिसके कारण बाद में हमें पछताना पडता है। करियर को लेकर जब भी कंफ्यूजन हो, आप बिना देर किए करियर काउंसलर की मदद लें। करियर काउंसलर आपकी नॉलेज का आकलन करते हुए आपको सही सलाह देगा और आप बेहतर करियर बना सकेंगे।

बडी हस्तियों से लें मोटिवेशन

दुनिया की लगभग हर महान हस्ती की ऑटोबॉयोग्राफी लिखी गई हैं। ये ऑटोबॉयोग्राफीज आपके लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन सकते हैं। साथ ही आपके आसपास जो लोग सक्सेस हुए हैं, उनसे मोटिवेशन लें। उनकी सक्सेस के बारे में जानने की कोशिश करें। उन्होंने कैसे प्लानिंग कर तैयारी की, इस बारे में उनसे बात करें। आप जिस फील्ड में जाना चाहते हैं, उस फील्ड के लोगों से मिलें। उन्होंने किस तरह अपनी मंजिल तय की, क्या स्ट्रैटेजी बनाकर सक्सेस हासिल की। यह सब जानने के बाद आप अपनी तैयारी की एनालिसिस करें। क्या आपने भी उन्हीं की तरह प्लानिंग की है। अगर नहींकी है, तो अपनी प्लानिंग में थोडा चेंज लाएं और तैयारी में जुट जाएं।

ईमानदारी से करें मेहनत

ईमानदारी से किया हर काम सफल जरूर होता है। करियर में भी यही बात लागू होती है। जो लोग ईमानदारी से अपने लक्ष्य का पीछा करते हैं, वे सफल जरूर होते हैं। करियर काउंसलर जतिन चावला कहते हैं कि जो स्टूडेंट्स ईमानदारी से मेहनत करते हैं, उन्हें सफलता जरूर मिलती है। कई बार स्टूडेंट्स उतनी मेहनत नहींकरते, फिर भी सफलता की उम्मीद करते हैं। सफल होने के लिए अपने प्रति ईमानदार रहने की जरूरत है। आप दूसरों को तो धोखा दे सकते हैं, लेकिन खुद को नहीं। यह बात हमेशा याद रखें।

समय का सही इस्तेमाल

आमतौर पर खाली समय में हम फालतू के काम में लग जाते हैं। खाली समय में भी कुछ ऐसा करने की कोशिश करें, जिससे आपका मनोरंजन भी हो और वह आपके करियर के लिए फायदेमंद भी हो।

खाकी वर्दी का विजन

आइपीएस बनने का सपना

आइपीएस प्रभाकर चौधरी बताते हैं किजब वे सातवीं क्लास में थे तभी से उनके मन में धीरे-धीरे ये बात गहराई से बैठने लगी थी कि आइपीएस बनना है। मेरे पिताजी मेरे लिए अखबार और कॉम्पिटिटिव मैग्जीन्स लाया करते थे। इनमें छपे इंटरव्यू पढकर धीरे-धीरे मेरे मन में भी आइएएस बनने का सपना जन्म लेने लगा।

पुलिस अफसर बनने का जज्बा

मैं जब पुलिस वालों की खाकी वर्दी देखता था, तो मन करता था कि काश मैं भी ऐसा ही बन पाता। सपना लगता था, लेकिन धीरे-धीरे कॉन्फिडेंस आता गया और रास्ता बनता गया।

मेहनत का कोई विकल्प नहीं

मंजिल दिख रही थी। पत्र-पत्रिकाएं पढने से धुंधला-सा रास्ता भी दिखने लगा। इसलिए मैंने हाईस्कूल से ही ईमानदारी और पूरी मेहनत से पढाई करनी शुरू कर दी। आइपीएस बनने के लिए बस यही रास्ता समझ आया कि खूब पढाई करो।

इलाहाबाद में मिला माहौल

2001 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बीएससी करने के दौरान आइएएस फैक्ट्री कहे जाने वाले ए.एन. झा हॉस्टल में रहने से काफी फायदा मिला। गाइडेंस के लिए कहीं और नहीं जाना पडा। सलेक्टेड स्टूडेंट्स के बीच रहकर मेरी प्रेरणा को और बल मिला कि आइपीएस बनना चाहिए।

इंडिपेंडेंट डिसीजन जरूरी

प्रभाकर कहते हैं कि उनकी यही कोशिश होती है इंडिपेंडेंट डिसीजन लें। भले ही कुछ गलत हो जाए, लेकिन डिसीजन उनका अपना हो। इंडिपेंडेंट डिसीजन को वह सक्सेस का की-प्वाइंट मानते हैं।

कुछ कर गुजरने का जज्बा

प्रभाकर कुछ ऐसा करना चाहते हैं कि सबसे निचले स्तर का पुलिस कर्मचारी भी गर्व से कहे कि वह पुलिस में काम करता है, देश की जनता की सुरक्षा के लिए काम करता है और देश की जनता को भी पुलिस पर गर्व हो।

प्लान योर ड्रीम अर्ली

9वीं-10वीं क्लास करियर डिसाइड करने के लिए अहम होती है। बहुत से स्टूडेंट्स 9वीं-10वीं क्लास में ही अपना लक्ष्य तय कर लेते हैं और प्रॉपर तैयारी के साथ आगे बढते जाते हैं। स्टूडेंट्स का एक फेवरेट करियर है सिविल सर्विसेज। बहुत से स्टूडेंट्स बचपन से ही सिविल सर्वेट बनने का सपना देखते हैं और आगे चलकर सफल भी होते हैं। आइएएस कुमार प्रशांत ने भी प्रॉपर प्लानिंग के साथ तैयारी की और सफल भी हुए। सिविल सर्विसेज एग्जाम में कुमार प्रशांत ने 26वीं रैंक हासिल की। इस समय प्रशांत उत्तर प्रदेश के जिला अंबेडकर नगर में पोस्टेड हैं।

एक्सपीरियंस का शौक

प्रशांत कुछ अलग हटकर करना चाहते थे। उन्हें डिफरेंट फील्ड में काम करना पसंद है। आईआईटी कानपुर से बीटेक करने के बाद जितनी डायवर्सिटी उन्हें सिविल सर्विसेज में नजर आई उतना किसी और फील्ड में नहीं। प्रशांत कहते हैं कि एक सिविल सवर्ेंट पूरी सर्विस लाइफ में अलग-अलग एक्सपीरियंस हासिल करता है। एक कस्बे में काम करने से लेकर उसे देश के शीर्ष पद पर काम करने का मौका मिलता है।

न्यूज पेपर और मैग्जीन

प्रशांत ने न्यूज पेपर और मैग्जीन को पढाई का हिस्सा माना। न्यूज पेपर के एडिटोरियल पार्ट से उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला। करेंट अफेयर्स से रिलेटेड मैग्जीन भी तैयारी में काफी हेल्पफुल साबित हुर्इं। कुछ साल पुराने पेपर्स से भी प्रशांत को काफी मदद मिली।

डिस्कशन

तैयारी के दौरान अक्सर मैं दोस्तों के साथ ग्रुप डिस्कशन किया करता था। अलग-अलग टॉपिक्स पर हम सभी आपस में बात करते थे। बहुत सी नई-नई जानकारी सामने आती थीं।

मॉक इंटरव्यू

मॉक इंटरव्यू से मुझे काफी मदद मिली। इंटरव्यू में कैसे-कैसे सवाल किए जाते हैं, इसकी प्रैक्टिस किया करते थे। हम चार दोस्त थे तीन लोग इंटरव्यू पैनल में शामिल हो जाते थे और एक इंटरव्यू देता था। इस प्रॉसेस को हमने बहुत बार किया। जब फाइनल इंटरव्यू के लिए हम लोग गए, तो सभी सेलेक्ट हो गए। प्रशांत ने सकेंड अटेंप्ट में एग्जाम क्वालिफाई किया। अपने जूनियर्स को भी प्रशांत यही सलाह देते हैं कि प्रॉपर प्लानिंग के साथ तैयारी करें। अच्छी बुक्स और मैग्जीन पढें, अपने सीनियर्स से गाइडेंस लें।

बचपन में देखा डॉक्टर का सपना

अपाला के मम्मी-पापा दोनों ही डॉक्टर हैं। इसलिए वह बचपन से ही हॉस्पिटल, डॉक्टर और इससे जुडी दूसरी चीजों से अच्छी तरह अवेयर थीं। नेचुरली उन्हें इस पेशे से लगाव हो गया। दसवीं क्लास तक जाते-जाते तो अपाला ने करियर में अपना गोल पूरी तरह फिक्स कर लिया कि उन्हें डॉक्टर ही बनना है।

10वीं में शुरू की तैयारी

अपाला ने दसवीं तक हिसार में पढाई की। फिर दिल्ली के आर.के. पुरम में डीपीएस से 10+2 किया। 10+2 के दौरान ही अपाला ने एमबीबीएस की तैयारी के लिए कोचिंग ज्वाइन कर ली। फ‌र्स्ट अटेम्प्ट में कामयाबी नहीं मिल पाई, लेकिन अपाला ने हार नहीं मानी। एक साल तक तैयारी करती रहीं। इसका उन्हें पॉजिटिव रिजल्ट मिला।

इंटरैक्टिव प्रोफेशन

डॉ. अपाला बताती हैं कि डॉक्टर का प्रोफेशन एक नोबल प्रोफेशन है। ये ऐसा प्रोफेशन है जिसमें बहुत सा सोशल वर्क कर सकते हैं और इनकम भी ठीक-ठाक है। अपाला साइकायट्री चुनने की वजह बताती हैं इसका इंटरैक्टिव नेचर। डॉ. अपाला को बचपन से लोगों से बात करना और उनकी प्रॉब्लम्स सुनना अच्छा लगता है। इनका मानना है कि टॉकेटिव लोगों के लिए ये प्रोफेशन बहुत अच्छा है। आपको बहुत अच्छे से सुनना होता है। मतलब दवाओं से ज्यादा सुनने और बताने से ट्रीटमेंट होती है।

चैलेंजिंग है डॉक्टर की जॉब

डॉ. अपाला के मुताबिक उन्हीं लोगों को डॉक्टर बनना चाहिए, जो चैलेंज ले सकें। आप 30-35 साल के हो जाएंगे, तब भी पढते रहेंगे। हर दो-तीन साल बाद आपको एग्जाम देना पडता है। इसलिए बहुत मेहनत करनी पडती है। ये फील्ड केवल उन लोगों के लिए है, जो पढना चाहते हैं, हार्डवर्क करना चाहते हैं। जिन लोगों को काम करने से डर नहीं लगता, जिन लोगों को इन चीजों में अच्छा लगता है, उन्हें इस फील्ड में जरूर आना चाहिए।

लॉ में चैलेंज और रेस्पेक्ट

ईशा जे कुमार के पैरेंट्स डॉक्टर हैं और जैसा कि इंडियन फैमिलीज में ट्रेडिशन रहा है, एक डॉक्टर अपने बच्चे को भी वही बनाना चाहता है, लेकिन ईशा के कुछ और ड्रीम्स थे। उन्हें लॉयर का प्रोफेशन अट्रैक्ट करता था, इसीलिए दसवीं में ही सोच लिया कि हायर सेकंडरी के बाद सीधे लॉ कोर्स में एडमिशन लेंगी। आज वे दिल्ली की एक लॉ फर्म में काम कर रही हैं।

एंट्रेंस की तैयारी

ईशा ने बताया कि प्लस टू के बाद उनके पास दो ऑप्शन थे। वे या तो तीन साल का एलएलबी कोर्स करतीं या पांच साल का इंटीग्रेटेड लॉ कोर्स। उन्होंने पांच साल के कोर्स को चुना, जिसके लिए कंबाइंड लॉ एडमिशन टेस्ट क्लियर करना होता है। ईशा कहती हैं, मैंने इस एंट्रेस टेस्ट के लिए एक महीने की कोचिंग की। इसके लिए इंग्लिश, जनरल स्टडीज, मैथ्स, लीगल एप्टीट्यूड के साथ-साथ लॉजिकल रीजनिंग जैसे सब्जेक्ट्स की अच्छे से प्रिपरेशन की। टेस्ट क्लियर करने के बाद लॉ स्कूल में एडमिशन लिया और 2010 में एक लॉ ग्रेजुएट बनकर दिखाया।

राइट करियर च्वाइस

जैसा कि सभी जानते हैं कि एक लॉयर के पास ढेर सारा पेशेंस, कम्युनिकेशन और लॉजिकल स्किल होना चाहिए, साथ ही इसमें खूब सारा हार्डवर्क चाहिए होता है। तभी एक स्टूडेंट अपने प्रोफेशन में सक्सेसफुल हो सकता है। ईशा ने बताया कि उन्हें डिस्कशन करना अच्छा लगता था। वे अपने पैरेंट्स और फ्रेंड्स के साथ अक्सर किसी न किसी टॉपिक पर बहस कर लेती थीं। इस तरह जब उन्होंने घर में अपना डिसीजन बताया, तो किसी ने विरोध नहीं किया, बल्कि पूरा सपोर्ट दिया।

डिफरेंट एक्सपीरियंस

ईशा ने बताया कि कोर्स कंप्लीट करने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज के अंडर में ज्यूडिशियल क्लर्कशिप की, जो एक बिल्कुल अलग तरह का एक्सपीरियंस था। कॉलेज में तो काफी थ्योरिटिकल पढाई की थी, लेकिन यहां प्रैक्टिकल लर्निंग का मौका मिल रहा था। वे कहती हैं कि लॉ फील्ड में आने के बाद सभी फ्रेशर्स को किसी एडवोकेट या जज को असिस्ट करना होता है। इसके बाद चाहे तो वह कोर्ट में, लीगल फर्म, बैंक,कॉरपोरेट हाउस या इंडिपेंडेंट काम कर सकते हैं। ईशा की मानें, तो बेशक नए सेक्टर्स में जॉब ओपनिंग हो रही है, लेकिन लॉ फील्ड में रेस्पेक्ट के साथ चैलेंज और फाइनेंशियल स्टैबिलिटी दोनों है। गवर्नमेंट जॉब में सैलरी थोडी कम हो सकती है, लेकिन प्राइवेट सेक्टर में काफी अच्छा पे-पैकेज मिलने लगा है।

पायलट बनने का विजन

दसवींमें बोर्ड एग्जाम का इतना प्रेशर होता है कि ज्यादातर स्टूडेंट्स के पास टाइम ही नहींहोता है कि वे तय कर पाएं कि उन्हें आगे क्या करना है। लेकिन मुंबई की आयशा अजीज के साथ ऐसा नहींथा। जब ये आठवींक्लास में थीं, तो अक्सर मुंबई से कश्मीर जाना होता था। आसमान में प्लेन को उडते देखकर उनके मन में एक ही ख्याल आता था कि बडे होकर पायलट बनना है और अपने बुलंद हौसले से उन्होंने ये कर दिखाया।

फोकस के साथ तैयारी

आयशा कहती हैं, मैंने बहुत कम एज में डिसाइड कर लिया था कि क्या करना है। इसलिए फोकस होकर उसकी तैयारी की। इनकी मानें तो स्कूल की पढाई करते हुए पायलट बनना कतई ईजी नहींथा, लेकिन टाइम मैनेजमेंट और स्ट्रॉन्ग विल पॉवर के जरिए आयशा ने स्कूल के साथ-साथ बॉम्बे फ्लाइंग क्लब में एडमिशन ले लिया। आयशा ने बताया कि उन्होंने मैथ्स और फिजिक्स के अलावा एविएशन से रिलेटेड सब्जेक्ट्स पर काफी ध्यान दिया, जैसे नैविगेशन और टेक्नोलॉजिकल स्किल्स। उनके अनुसार, बॉम्बे फ्लाइंग क्लब में करीब 4 महीने की ट्रेनिंग काफी फायदेमंद रही। वे स्कूल के बाद हफ्ते में दो दिन फ्लाइंग क्लब में ट्रेनिंग के लिए जाती थीं, जिसस उन्हें स्टूडेंट पायलट लाइसेंस का एग्जाम क्लियर करने में आसानी हुई। दसवींक्लास में ही आयशा ने स्टूडेंट पायलट लाइसेंस हासिल कर लिया था।

एविएशन में करियर

आयशा के अनुसार, उनके पिता एक इंडस्ट्रियलिस्ट हैं, इस वजह से करियर चूज करना ज्यादा मुश्किल नहींरहा। आम पैरेंट्स की तरह फैमिली ने कभी ये नहींकहा कि एविएशन एक रिस्की फील्ड हो सकता है, खासकर पायलट के नजरिए से। इसी वजह से वे बॉम्बे फ्लाइंग क्लब से एविएशन में बीएससी कर रही हैं। साथ ही कमर्शियल पायलट लाइसेंस के एग्जाम की तैयारी।

सेल्फ स्टडी कर बनी सीए

आज के टफ कॉम्पिटिटिव दौर में अगर स्टूडेंट दसवीं या बोर्ड के समय ही प्लान कर ले कि उसे क्या करना है, किस सेक्टर में करियर बनाना है, तो वह अपने फील्ड में अच्छे से ग्रो कर सकता है। कारगिल इंडिया में असिस्टेंट मैनेजर (कंप्लायंस ऐंड रिपोर्टिंग) के पद पर काम कर रही शिखा मस्करा ने कुछ ऐसा ही किया था। शिखा चार्टर्ड अकाउंटेंसी के फील्ड में करियर बनाना चाहती थीं, इसलिए बोर्ड एग्जाम्स के बाद ही डिसाइड कर लिया कि वे कॉमर्स स्ट्रीम से प्लस टू करेंगी। इस तरह अपने टारगेट पर फोकस करते हुए वे आगे बढीं और आज अपने काम से सैटिस्फाइड हैं।

अकाउंटिंग पर दिया ध्यान

शिखा के मुताबिक, उन्होंने चार्टर्ड अकाउंटेंसी की तैयारी के लिए किसी कोचिंग इंस्टीट्यूट की मदद नहीं ली, बल्कि सेल्फ स्टडी की। हायर सेकंडरी के बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट में एडमिशन लिया। वे कहती हैं, इंस्टीट्यूट से मिलने वाला स्टडी मैटेरियल तैयारी के लिए काफी था। मैंने अकाउंटिंग अपडेट्स, टैक्सेशन अपडेट्स और दूसरे रिलेटेड चेंजेज को अच्छी तरह स्टडी किया। इससे कोर्स कंप्लीट करने में ज्यादा मुश्किल नहीं आई। इसके बाद उन्होंने तीनों लेवल, सीपीटी, पीसीसी और आर्टिकलशिप पूरा कर लिया। आर्टिकलशिप के दौरान शिखा ने एक रेप्यूटेड सीए फर्म के साथ तीन साल की ट्रेनिंग ली, जो कोर्स का सबसे इंपॉटर्ेंट हिस्सा माना जाता है। शिखा की स्टूडेंट्स को एडवाइस है कि अगर वे इस फील्ड में आना चाहते हैं, तो हायर सेकंडरी में कॉमर्स के अलावा पीसीएम यानी मैथ्स स्ट्रीम भी सेलेक्ट कर सकते हैं। हां, इसमें 50 परसेंट मा‌र्क्स लाना जरूरी है।

समय से तैयारी

शिखा ने बताया कि स्कूल में अकाउंटिंग से ज्यादा वास्ता नहीं पडा था, लेकिन प्लस टू में इसके बेसिक्स को स्ट्रॉन्ग करने का मौका मिला। इसलिए जो स्टूडेंट चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहते हैं, उनके लिए जरूरी है कि वे हायर सेकंडरी में मैथ्स के साथ-साथ अकाउंटिंग और क्वॉन्टिटेटिव एप्टीट्यूड पर पूरा फोकस करें।

कम इनवेस्टमेंट, फायदे ज्यादा

आज की जेनरेशन एमबीए करने को लेकर काफी एक्साइटेड रहती है, लेकिन अगर अच्छे इंस्टीट्यूट से एमबीए न किया हो, तो अच्छी जॉब मिलना मुश्किल होता है। शिखा की मानें, तो चार्टर्ड अकाउंटेंसी की फील्ड में ऐसा नहीं है। यहां कम इनवेस्टमेंट में एक स्टूडेंट को ज्यादा मिलता है। चार्टर्ड अकाउंटेंट के लिए फाइनेंस, बिजनेस, बैंक्स, लीगल फ‌र्म्स, ऑडिटिंग फ‌र्म्स और सेल्स में काफी ऑप्शंस हैं।

नेहरू योजनाओं से बनाएं फ्यूचर

नेहरू युवा केंद्र

यूथ को नेशन मेकिंग प्रोग्राम में पार्टिसिपेट कराने और उनकी पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के लिए एक बेहतर माहौल मुहैया कराने के मकसद से नेहरू युवा केंद्र की स्थापना की गई थी। नेहरू युवा केंद्र विश्व में अपनी तरह का सबसे बडा वॉलंटियर ऑर्गनाइजेशन है। आज देश के हर कोने में नेहरू युवा केंद्र के ऑफिस और ब्रांचेज हैं, जहां पर युवाओं के डेवलपमेंट से जुडी एक्टीविटीज पर फोकस किया जाता है। नेहरू युवा केंद्र में युवाओं में ऐसी स्किल्स एवं वैल्यूज को डेवलप करना है जिससे कि वे मॉडर्न, सेक्युलर और डेवलप नेशन का निर्माण कर सकें। नेहरू युवा केंद्र में युवाओं के लिए तरह-तरह के मोटिवेशनल प्रोग्राम चलाए जाते हैं। इन प्रोग्राम्स के जरिए ग्रामीण युवाओं की पर्सनैलिटी डेवलप होती है, जो युवा नेहरू युवा केंद्र का हिस्सा बनना चाहते हैं, वे अपने क्षेत्र के डिस्ट्रिक कोऑर्डिनेटर से सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

एलिजिबिलिटी

नेहरू युवा केंद्र का हिस्सा बनने के लिए कैंडिडेट के पास ग्रेजुएशन की डिग्री और सामाजिक क्षेत्र में काम करने का अनुभव होना चाहिए। 18 से 35 वर्ष के युवा नेहरू युवा केंद्र का हिस्सा बन सकते हैं।

ब्रांचेज

देशभर में नेहरू युवा केंद्र के लगभग 623 ऑफिसेज हैं। इसके अलावा अधिकांश ग्रामीण इलाकों में नेहरू युवा मंडल और महिला मंडल की शाखाएं हैं। इन शाखाओं में युवाओं के लिए सांस्कृतिक और खेलकूद के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। युवाओं के विकास के लिए युवा और खेल मंत्रालय द्वारा नेहरू युवा केंद्र को हर साल करोडों रुपये दिए जाते हैं।

अवॉर्ड

केंद्र के अंतर्गत अच्छे काम और प्रदर्शन के लिए युवाओं को सम्मानित भी किया जाता है। युवाओं को बेस्ट यूथ अवॉर्ड, स्टेट यूथ अवॉर्ड और नेशनल यूथ अवॉड से सम्मानित किया जाता है। इसके अलावा यूथ को जिला स्तर पर आयोजित प्रोग्राम में भी सम्मानित किया जाता है।

स्कॉलरशिप्स फॉर टैलेंट

जवाहरलाल नेहरु मेमोरियल फंड फेलोशिप

पंडित जवाहरलाल नेहरूह्यूमन हिस्ट्री के कुछ? उन गिने-चुने लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने देश के साथ-साथ एक पूरी जेनरेशन को भी बदलने का काम किया। वे ऐसे युवाओं को आगे लाना चाहते थे जो अपनी नॉलेज और लीडरशिप क्वॉलिटी से देश के विकास में हर संभव मदद करें। उनके इस सपने को पूरा करने के लिए साल 1968 में यह फंड बनाया गया। इसका उद्देश्य युवाओं के टैलेंट को आर्थिक सहयोग देकर इंटरनेशनल लेवल पर सामने लाना है।

सब्जेक्ट्स

यह फेलोशिप किसी एक डिसिप्लिन के स्टूडेंट्स के लिए नहीं है। इसका बेनिफिट सभी सब्जेक्ट्स के लोग उठा सकते हैं। राइटर्स, जर्नलिस्ट, आर्टिस्ट्स, सिविल इंजीनियर्स आदि के लिए भी यह फेलोशिप है।

सेलेक्शन

इस फेलोशिप के लिए लोगों का चयन सेलेक्शन कमेटी करती है। कमेटी का यह प्रयास रहता है कि इसके लिए जिसे सेलेक्ट किया जाएं, वह उच्च शैक्षिक मानकों पर खरा उतरें, साथ ही अपने काम से वह देश और सोसायटी दोनों को लाभ पहुंचाएं।

ग्रांट

यह फेलोशिप दो साल के लिए दी जाती है। इसमें मंथ में एक लाख रुपये वजीफे के तौर पर दिए जाते हैं। इस फेलोशिप के बारे में डिटेल पता करने के लिए जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड की वेबसाइट को देख सकते हैं।

वेबसाइट www.jnmf.in

फुलब्राइट नेहरू डॉक्टोरल रिसर्च फेलोशिप

इस फेलोशिप के लिए वे इंडियन स्टूडेंट अप्लाई कर सकते हैं, जो कि पहले से ही किसी इंडियन यूनिवर्सिटी में पीएचडी के लिए रजिस्टर्ड हैं। इस फेलोशिप के अंतर्गत चुने गए स्टूडेंट्स यूएस की यूनिवर्सिटीज में प्रोफेशनल एक्सपीरियंस ले सकते हैं।

सब्जेक्ट्स

एग्रीकल्चर साइंस, एजुकेशन, इकोनॉमिक्स, सस्टेनेबल डेवलपमेंट ऐंड क्लाइमेट चेंज, एनर्जी, एनवॉयरनमेंट, इंटरनेशनल रिलेशन, मैनेजमेंट ऐंड लीडरशिप डेवलपमेंट, मीडिया ऐंड कम्युनिकेशन, साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, सोसायटी ऐंड कल्चर, रिलीजन, फिल्म स्टडी आदि के लिए है।

एलिजिबिलिटी

एप्लीकेशन भेजने के कम से कम एक साल पहले से ही कैंडिडेट किसी अच्छे इंडियन इंस्टीट्यूट में रजिस्टर्ड हो चुका हो।

पीरियड

यह रिसर्च फेलोशिप 9 महीने के लिए है। इसमें कैंडिडेट यूएस के किसी टॉप इंस्टीट्यूट से बेनिफिट उठा सकते हैं। सेलेक्शन का फाइनल डिसीजन पूरी तरह से ऑर्गेनाइजेशन के पास है।

ग्रांट

इस फेलोशिप के लिए सेलेक्ट किए गए कैंडिडेट को मंथली स्कॉलरशिप, राउंड ट्रिप इकोनॉमी क्लास एयर टै्रवल अलाउंस, एक्सीडेंट ऐंड सिकनेस कवर आदि कई तरह के दूसरे बेनिफिट भी दिए जाते हैं।

वेबसाइट www.usief.org.in

फुलब्राइट नेहरु मास्टर्स फेलोशिप

इस फेलोशिप के लिए सेलेक्ट किए गए कैंडिडेट्स को यूएस के चुने हुए इंस्टीट्यूट और यूनिवर्सिटीज में मास्टर डिग्री प्रोग्राम कराया जाता है। इस फेलोशिप का उद्देश्य युनाइटेड स्टेट्स के इंस्टीट्यूट्स में इंडियन स्टूडेंट्स की संख्या में इजाफा करना भी है। इस फेलोशिप का मोटिव लीडरशिप क्वॉलिटी डेवलप करने के साथ सोसायटी में चेंज लाकर समाज के विकास में बाधा बन रही बुराइयों को दूर करने की कोशिश करना है।

सब्जेक्ट्स

इसमें इन सब्जेक्ट्स को शामिल किया गया है : आर्ट ऐंड कल्चर मैनेजमेंट जिसमें हेरिटेज कंजर्वेशन ऐंड म्यूजियम स्टडीज शामिल है, एनवॉयरनमेंटल साइंस/स्टडीज, हायर एजुकेशन एडमिनिस्ट्रेशन, पब्लिक हेल्थ, अर्बन ऐंड रीजनल प्लानिंग, वूमन स्टडीज/जेंडर स्टडी हैं।

एलिजिबिलिटी

यूएस की बैचलर डिग्री के बराबर की बैचलर क्वॉलिफिकेशन किसी भी रिकग्नॉइज्ड इंडियन यूनिवर्सिटी से मिनिमम 55 परसेंट मा‌र्क्स के साथ। कैंडिडेट के पास कम से कम 3 साल का अपनी फील्ड में फुल टाइम प्रोफेशनल वर्क का एक्सपीरियंस हो। उसके पास यूएस की कोई और डिग्री न हो और वह यूएस के किसी डिग्री प्रोग्राम में इनरोल्ड भी न हो।

ग्रांट बेनिफिट

सेलेक्ट किए गए कैंडिडेट्स को जे-1 वीजा के साथ आने-जाने का इकोनॉमी क्लास एयर ट्रैवल कनवेंस मिलता है। साथ ही ट्यूशन फीस, लिविंग एक्सपेंसेज आदि भी मिलते हैं।

वेबसाइट

www.usief.org.in

स्कीम फॉर सेल्फ एंप्लॉयमेंट

शहर में रहते हैं, लेकिन जॉब नहीं है। फैमिली की फाइनेंशियल कंडीशन भी ऐसी नहीं है कि अपना कुछ काम शुरू कर सकें, तो नेहरू रोजगार योजना यानी स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना का फायदा उठा सकते हैं। ये स्कीम गरीबी रेखा से नीचे की फैमिलीज के युवाओं की सहूलियत के लिए बनाई गई है। स्कीम की 75 परसेंट फंडिंग केंद्र सरकार, जबकि 25 परसेंट फंडिंग राज्य सरकार करती है। स्पेशल दर्जा पाए राज्यों के लिए कुछ अलग स्टैंडर्ड होता है, लेकिन इससे शहरों में एंप्लॉयमेंट जेनरेशन में काफी मदद मिली है। इसके तहत सरकार स्किल डेवलपमेंट से लेकर रोजगार शुरू करने के लिए जरूरी लोन अवेलेबल कराती है। यह काम अर्बन लोकल बॉडीज और कम्युनिटी स्टक्चर्स के जरिए किया जाता है। पूरी स्कीम को पांच अलग-अलग एरियाज में बांटा गया है, जिसमें अहम फोकस एंप्लॉयमेंट जेनरेशन पर है।

फोकस ऑन एंप्लॉयमेंट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के अर्बन वेज एंप्लॉयमेंट प्रोग्राम के तहत अर्बन लोकल बॉडीज 50 हजार से ज्यादा आबादी वाले शहरों में सेवा या सुविधा केंद्रों के जरिए जरूरी लॉजिस्टिक और स्पेस प्रोवाइड कराती है। जो लोग बिजनेस करना चाहते हैं, उन्हें दुकान या कियोस्क खोलने के लिए लीज पर जगह दी जाती है, चाहें तो अपने घर से ही बिजनेस शुरू कर सकते हैं। ट्रांसपोर्ट सेक्टर में काम करना चाहते हैं, तो ऑटो रिक्शा भी क्रेडिट पर दिए जाते हैं। इसके अलावा जिन लोगों के पास कुछ न कुछ स्किल है, लेकिन काम नहीं है, वे इन सेवा सेंटर्स पर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। जब भी कहीं से डिमांड आएगी, तो रजिस्टर्ड लोगों को ही नौकरी में प्रॉयरिटी दी जाएगी।

जरूरी क्वॉलिफिकेशन

इस स्कीम का फायदा उठाने के लिए किसी खास एजुकेशनल क्वॉलिफिकेशन की जरूरत नहीं होती है। हां, आप जो रोजगार करना चाहते हैं, उसमें स्कोप और आपके स्किल्स को देखते हुए सरकार अर्बन सेल्फ एंप्लॉयमेंट प्रोग्राम जैसी स्कीम्स के तहत लोन और सब्सिडी देती है। योजना के तहत दो लाख रुपये का लोन मिल सकता है। इसके अलावा किसी प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए 50 हजार रुपये तक की सब्सिडी भी दी जाती है।

कॉन्सेप्ट : मो. रजा, अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव और शरद अग्निहोत्री

जेआरसी टीम


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