जागृत मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है मां वनदुर्गा मंदिर
सिमडेगा : शक्ति की अधिष्ठात्री भगवती मां दुर्गा अपने भक्तों की श्रद्धा से प्रसन्न हाकर उन्हें किसी न
सिमडेगा : शक्ति की अधिष्ठात्री भगवती मां दुर्गा अपने भक्तों की श्रद्धा से प्रसन्न हाकर उन्हें किसी ना किसी रूप में दर्शन देने के लिए अवश्य प्रकट होती है। ऐसे ही आस्था जिले के बोलबा प्रखंड के मालसाडा गांव में स्थित आदिशक्ति जगत जननी मां वन दुर्गा से श्रद्धालुओं की जुड़ी है। यह धार्मिक स्थल जागृत मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। इस पुराने जागृत वन दुर्गा मंदिर के सामने भक्त शिरोमणि हनुमानजी विराजमान हैं। इस मंदिर में जिला समेत ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों से भक्त अपार श्रद्धा की भाव लिए पहुंचते है। मंदिर में पूजा पाठ का संचालन स्थानीय लोगों के द्वारा किया जाता है। मंदिर में मुख्य रूप से चैत्र नवरात्र व शारदीय नवरात्र में विशेष पूजा अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। भक्तों का मानना है कि सच्चे मन से मांगी गई मुरादें मां वनदुर्गा पूर्ण करती है। नवरात्र के मौके पर बलि पूजा पर रोक लगा दी जाती है। पुन: विजयादशमी से बलि पूजा प्रारंभ होती है।
मंदिर का इतिहास काफी पुराना
स्थानीय लोग मां वनदुर्गा के मंदिर के स्थापना से जुडे़ तथ्यों की जानकारी देते हुए कहते है कि मालसाडा व टैंसेरा के जमींदार स्व. लालू नारायण ¨सह के चाचा मां भगवती के अन्नय भक्त थे। वे जंगलों में घूम-घूम कर पत्थरों पर ¨सदूर व चंदन लगाकर मां की आराधना किया करते थे। इसी क्रम में उन्हें मालसाडा के जंगल में स्थित सरई के पेड़ के उपर से देवी की पत्थर से बनी प्रतिमा प्राप्त हुई थी। जिसे वे पूजा करने के लिए टैसेरा स्थित अपने आवास ले गए थे, किंतु मां की प्रतिमा रात्रि में अपने आप ही वर्तमान के वनदुर्गा मंदिर के पास आकर स्थापित हो गया था। तब गांव के भक्तों ने वहां मिट्टी व खपडे़ की मंदिर बनवाकर मां की अराधना व पूजा पाठ करना प्रारंभ कर दिया। सर्वप्रथम मंदिर में पुजारी के रूप में स्व मणि पहान ¨सह को रखा गया था। इधर सन 1985 में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया था। एवं विधि विधान पूर्वक पूजा-अर्चना कराई गयी थी और अब भी उसी पौराणिक रीति-रिवाज से मां की अराधना की जा रही है।