एजुकेशन मैनेजमेंटः गरीब बच्चों को शिक्षित करने में जुटे शादाब
यह ऐसा स्कूल है, जहां गूगल के कर्मचारी लाइव क्लास के जरिये बच्चों को पढ़ाते हैं।
सौरभ सुमन, रांची। बच्चों का एजुकेशन मैनेजर। एक शिक्षक, गुरु और भाई भी। इलाके में शादाब हसन की पहचान कुछ ऐसी ही है। एजुकेशन मैनेजमेंट के जरिये गरीब बच्चों को आगे बढ़ा रहे हैं। वैसे बच्चे जो स्कूल नहीं पहुंच पाते थे या अर्थाभाव में बीच में ही स्कूल छोड़ देते थे। शादाब रांची से सटे गांव ब्रांबे में हामिद हसन हाई स्कूल चलाते हैं।
स्कूल में गरीब परिवार के 500 से भी अधिक बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध करवा रहे हैं। यह ऐसा स्कूल है, जहां गूगल के कर्मचारी लाइव क्लास के जरिये बच्चों को पढ़ाते हैं। 100 से भी अधिक बच्चे ऐसे हैं जिनकी शिक्षा पूरी तरह से मुफ्त है। शादाब आज मैनेजमेंट के विद्यार्थियों के हीरो हैं। समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने की प्रेरणा भी। पर यह सफर इतना आसान भी नहीं था। 2010 में बीआइटी मेसरा से एमबीए करके शादाब ने मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने का ख्याल छोड़ते हुए, गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए काम करने का मन बनाया और स्कूल खोलने की ठानी।
राजधानी रांची से 20 किलोमीटर दूर ब्रांबे गांव को चुना। यह वही गांव है जहां शादाब के पिता ने अपने बचपन के दिन गुजारे थे। शिक्षा पाना इस गांव के लोगों के लिए कभी आसान नहीं था। शुरुआती दिनों में शादाब का साथ उनके माता पिता और कुछ दोस्तों ने दिया। गांव में घर-घर जाकर इन्होंने शिक्षा के महत्व के बारे में लोगों को बताया। अभिभावकों को शिक्षा के महत्व के बारे में समझाया। कड़ी मेहनत के बाद कुल 80 छात्र जुटे। इनमें से अधिकतर छात्र ऐसे थे जिन्हें अपने परिवार का खर्चा चलाने के लिए मजदूरी करना पड़ता था। तब स्कूल में कुर्सी टेबल भी नहीं था। 20 रुपये रोजाना के भाडे़ पर कारपेट का इंतजाम किया गया। साथ में कुछ ब्लैकबोर्ड भी शामिल हुए।
फिर कारवां चल पड़ा। देखते-देखते ब्रांबे और आसपास के लोगों में शिक्षा को लेकर जागरूकता आने लगी। छात्र जुड़ने लगे। कुछ दिनों बाद शादाब के इस हौसले को सभी ने सराहा। लाइव क्लास रूम मे जरिये गूगल भी इस मुहिम में जुड़ गया। गूगल के कर्मचारी समय-समय पर छात्रों को वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और आइटी के क्षेत्र की जानकारी देते हैं। छात्रों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। एचएच हाई स्कूल में अभी कुल 525 बच्चे हैं। इनमें से 80 छात्र ऐसे हैं जो पूरी तरह अनाथ हैं। और 40 से भी अधिक छात्र ऐसे हैं जिनके पिता नहीं है।
ऐसे छात्रों को पूरी तरह से मुफ्त शिक्षा दी जाती है। अन्य छात्रों से भी नाम मात्र का शुल्क लिया जाता है। अभी कुल 17 कक्षाएं हैं। साथ में विद्यार्थियों के खेलने के लिए कोर्ट भी। शादाब कहते हैं, हमारी कोशिश है कि गांवों में क्वालिटी एजूकेशन उपलब्ध कराया जा सकें। ऐसे छात्रों को भी बेहतर मंच मिले जिन्होंने कभी सपने में भी बेहतर शिक्षा हासिल करने की नहीं सोची हो। बहरहाल ब्रांबे के ग्रामीण खुश हैं कि उनके बच्चे पढ़ रहे हैं। शादाब उनके बच्चों को गढ़ रहे हैं।
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