सातवें वेतन आयोग से माननीयों का मन डगमगाया
सातवें वेतन आयोग द्वारा केंद्रीय कर्मियों के वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी की अनुशंसा को केंद्रीय कैबिनेट द्वारा स्वीकृत किए जाने के बाद राज्य के जनप्रतिनिधियों का मन डगमगा गया है।
श्याम किशोर चौबे, रांची। सातवें वेतन आयोग द्वारा केंद्रीय कर्मियों के वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी की अनुशंसा को केंद्रीय कैबिनेट द्वारा स्वीकृत किए जाने के बाद राज्य के जनप्रतिनिधियों का मन डगमगा गया है। केंद्रीय कैबिनेट के फैसले के तत्काल बाद बुधवार को मुख्यमंत्री द्वारा यह कहे जाने का विधायकों ने स्वागत किया है कि राज्य सरकार केंद्रीय कर्मियों के समान अपने कर्मियों को भी सुविधाएं शीघ्र उपलब्ध कराने की पहल करेगी।
विधायकों का मानना है कि इससे राज्य के सरकारी कर्मियों का मनोबल ऊंचा होगा। इसी से जुड़े एक सवाल पर राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों के वरिष्ठ विधायकों का कहना है कि इसके समतुल्य लाभ उनको भी मिलना चाहिए। समाज में सबकी जरूरतें समान हैं।
इस सवाल पर कि झारखंड गठन के बाद आधा दर्जन बार उनके वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी की गई, विधायकों का कहना था कि यह भी देखें कि 16 वर्ष पूर्व झारखंड गठन के समय उनका वेतन महज बीस हजार रुपये ही था। समाज में जैसे-जैसे सबकी आर्थिक स्थिति में मजबूती लाई गई, वैसे-वैसे उनकी भी सुविधाएं बढ़ीं। प्रोटोकॉल में उनका पद और कार्य क्षेत्र में दायित्व सबसे अधिक होने के कारण वे भी समाज से अपेक्षा रखते हैं।
उन्होंने यह भी गिनाया कि उनका एक कार्यकाल पांच वर्षों का ही होता है। इस दौरान वे राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।
यह पूछे जाने पर कि आप लोगों को अपने विषय में खुद ही निर्णय लेना होता है, वरिष्ठ विधायकों का कहना था कि यह तो है, लेकिन इसकी भी एक प्रक्रिया है। इसलिए इसको अन्यथा नहीं लिया जाना चाहिए।
विधायक जनता के प्रति सीधे जिम्मेवार और जवाबदेह होते हैं। संवैधानिक रूप से प्रोटोकॉल में वे नौकरशाही के किसी भी पद से ऊपर होते हैं। अधिकारी या कर्मचारी तीस वर्षों तक सेवारत रहते हैं, जबकि विधायकों का पांच वर्षों का ही कार्यकाल होता है। इसलिए व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि जनप्रतिनिधियों को भी सुविधाएं मिलनी चाहिए। जहां तक वेतन वृद्धि का सवाल है, यह सदन की सहमति के बाद ही संभव होता है।
-राधाकृष्ण किशोर, मुख्य सचेतक, एनडीए
हम भले ही राज्य की सेवा आजीवन करते हैं, हमारा एक कार्यकाल पांच वर्षों का ही होता है। जो बेहतर सेवा करते हैं, वे दुबारा-तिबारा या कई बार यह अवसर पाते हैं। हमारी सुविधाओं की चाहे जितनी आलोचना की जाए लेकिन हमारी मेहनत और दायित्वों को भी देखा जाना चाहिए। हमारी भी जरूरतें वैसी ही हैं, जैसी हर किसी की। इस लिहाज से यदि सहमति बनती है तो नौकरशाही के समतुल्य सुविधाएं पाने में किसी को एतराज नहीं होना चाहिए।
-नलिन सोरेन, मुख्य सचेतक, झामुमो
वक्त के अनुसार हर किसी की सुविधाएं बढ़ाई जाती हैं। हर स्तर पर पहले की अपेक्षा आय में समय-समय पर बढ़ोतरी की जाती रहती है। सातवें वेतन आयोग की अनुशंसाओं को इसी आइने में देखा जाना चाहिए। जनप्रतिनिधियों पर कम समय में राज्य और समाज के लिए बहुत कुछ करने का दायित्व होता है। इस आलोक में यदि सदन की सहमति बनती है तो हमारी सुविधाएं बढ़ाने की पहल होनी चाहिए। इसे सकारात्मक तरीके से लिया जाना चाहिए।
-आलमगीर आलम
नेता विधायक दल, कांग्रेस
-विधायकों का वर्तमान वेतन : 85 हजार।
-मुख्य सचिव का फिक्स वेतनमान 80 हजार। सातवें वेतन आयोग की अनुसंशा के अनुसार इनका वेतन बढ़कर 2.2 लाख रुपये हो जाएगा।