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सत्ता का गलियारा: जानिए क्‍यों अटकी हैं माननीय की सांसें...

Political Rumors. विपक्षी महागठबंधन और सत्‍तारूढ़ दल में नेताओं की आपसी खींचतान ने झारखंड की सियासत को अलग रंग दे दिया है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sun, 17 Feb 2019 01:07 PM (IST)Updated: Sun, 17 Feb 2019 01:07 PM (IST)
सत्ता का गलियारा: जानिए क्‍यों अटकी हैं माननीय की सांसें...
सत्ता का गलियारा: जानिए क्‍यों अटकी हैं माननीय की सांसें...

रांची, राज्‍य ब्‍यूरो। राज्‍य में विपक्षी महागठबंधन पर अब तक फैसला नहीं हो पाने से जहां राजनीतिक दलों में असमंजस की स्थिति दिख रही है, वहीं सत्‍तारूढ़ दल में भी नेताओं की आपसी खींचतान ने झारखंड की सियासत को अलग रंग दे दिया है। आइए जानते हैं सियासी गलियारे में चल रही चर्चाओं के बारे में...

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अलग रहने में भला
दवा-दारू की जिम्मेदारी संभालने वाले माननीय अपने पदाधिकारियों के हालिया विवाद में पडऩा नहीं चाहते। वे इसमें अपने आपको अलग ही रख रहे हैं। बेचारे डायरेक्टर साहब पर वरीय पदाधिकारियों का डंडा चलने लगा तो दौड़े-दौड़े माननीय के पास पहुंच गए थे। गुहार लगाने। उम्मीद थी कि माननीय के दरबार में उनकी सुनी जाएगी और वे निश्चित रूप से उनके साथ खड़े हो जाएंगे। लेकिन माननीय ने दो टूक कह दिया। ये आपका मामला है आप ही समझिए। नसीहत भी दे दी कि ऐसा कुछ भी नहीं करिए जिससे उनके विभाग की कोई बदनामी हो। बेचारे डायरेक्टर साहब निराश लौट गए। 

बदला अंदाज
पीड़ा जब हद से गुजर जाती है तो अंदाज भी बदल जाता है। राज्य में एक से एक माननीय हैं जो अपनेआप में अनुभवों के खान हैं। ऐसे ही एक माननीय जिनकी बातों में सरयू से गहराई होती है, अब अलग अंदाज में बात कर रहे हैं। कहते हैं कि सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। भरोसा भी डिगा नहीं है। लेकिन हंगामा तो खड़ा हो गया है। वह भी रांची से दिल्ली तक। अब देखते हैं कि हंगामा अपनी हद तक पहुंचेगा या माननीय 28 फरवरी के बाद स्वत: विदा ले लेंगे।

माननीय की सांसें अटकी
सत्ता के गलियारे में एक छलांग क्या लगाई, बोर्ड-निगम के अध्यक्ष से लेकर मंत्री तक बन बैठे। बाग कोई लगाए और फल कोई खाए, लाल बाबू को कहां से रास आती। सो, हुजूर के दरबार में अर्जी लगा दी। एक-दो दिन नहीं, 64 दिन हुजूर के दरबार में जिरह चली। दलबदलुओं के तर्क को लालबाबू के काले कोट वालों ने कई मौकों पर पटखनी दे। पंच तो परमेश्वर होता है, बिगाड़ की डर से ईमान की बात कहने से नहीं चुकेंगे, हुजूर कई बार दोहरा चुके हैं। अब ऊंट किस करवट बदलेगा, यह तो हुजूर ही जाने, परंतु 'हम छह की सांसें अटक गई हैं। 


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