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6th JPSC में फिर नया मोड़, हाईकोर्ट ने 6103 को ही माना पीटी पास

Jharkhand. झारखंड हाईकोर्ट ने जेपीएससी को निर्देश देते हुए कहा कि दूसरी बार जारी मेरिट लिस्ट के आधार पर ही मुख्य परीक्षा का रिजल्ट जारी करें।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 21 Oct 2019 09:16 PM (IST)Updated: Mon, 21 Oct 2019 09:16 PM (IST)
6th JPSC में फिर नया मोड़, हाईकोर्ट ने 6103 को ही माना पीटी पास
6th JPSC में फिर नया मोड़, हाईकोर्ट ने 6103 को ही माना पीटी पास

रांची, राज्य ब्यूरो। छठी जेपीएससी परीक्षा को लेकर हाईकोर्ट ने सोमवार को अहम फैसला सुनाया है। प्रारंभिक परीक्षा के तीन बारी जारी परिणामों में अदालत ने दूसरी बार जारी परिणाम को ही मान्यता देते हुए इसमें सफल 6103 अभ्यर्थियों के आधार पर ही मुख्य परीक्षा का परिणाम घोषित करने का निर्देश कोर्ट ने सरकार को दिया है। ये वैसे अभ्यर्थी हैैं, जो जेपीएससी द्वारा दूसरी बार जारी संशोधित परिणाम में उत्तीर्ण घोषित हुए थे।

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ज्ञात हो कि राज्य सरकार के आदेश पर तीसरी बार जारी संशोधित परिणाम में 34634 अभ्यर्थी पीटी पास घोषित किए गए थे। इनमें अब 28531 को मुख्य परीक्षा के लिए अयोग्य बताते हुए इनके मुख्य परीक्षा के परिणाम को जारी नहीं करने का आदेश दिया गया है। हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एचसी मिश्र व जस्टिस दीपक रोशन की अदालत ने सोमवार को यह फैसला सुनाया। सरकार ने इसके लिए 12 फरवरी 2018 को संकल्प जारी किया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मुख्य परीक्षा होने की वजह से अब जेपीएससी उन्हीं अभ्यर्थियों के परिणाम घोषित करेगी, जो पहले संशोधन के बाद सफल हुए थे।

11 अगस्त 2018 को जेपीएससी ने एकल पीठ के आदेश पर संशोधित परिणाम जारी किया था, जिसमें 6103 अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया गया था। सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद अदालत ने 16 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सोमवार को अदालत ने अपना फैसला सुनाया है। जेपीएससी की ओर से संजय पिपरवाल, प्रिंस कुमार सिंह और राकेश रंजन ने पक्ष रखा था। उम्मीद जताई जा रही है कि इस फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट जा सकती है।

अदालत ने कहा

जस्टिस एचसी मिश्र: छठी जेपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा में संशोधन के लिए सरकार को संकल्प जारी करने का कोई औचित्य नहीं था। क्योंकि नियमानुसार रिक्त पद के पंद्रह गुणा ही अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया जा सकता है।

जस्टिस दीपक रोशन: कानूनी अपेक्षाओं के सिद्धांत के फार्मूले पर सरकार का संशोधन खरा नहीं उतरता है। इसलिए सरकार के संकल्प को खारिज किया जाता है।

326 पदों के लिए हुई थी प्रारंभिक परीक्षा

सरकार की अधियाचना पर जेपीएससी ने विज्ञापन संख्या 23/2016 निकाला था। इसके तहत प्रशासनिक सेवा के लिए 143, वित्त सेवा-104, शिक्षा सेवा-36, सहकारिता सेवा-9, सामाजिक सुरक्षा-3, सूचना सेवा-7, पुलिस सेवा-6, योजना सेवा के 18 पदों पर नियुक्ति होनी थी। इसके लिए एक लाख से ज्यादा आवेदन आए। इसके लिए दिसंबर 2016 को प्रारंभिक परीक्षा ली गई।

23 फरवरी 2017 को प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम घोषित किया, जिसमें 5138 अभ्यर्थी सफल हुए। इसके बाद सरकार ने एक संकल्प जारी किया जिसके तहत बी-1, बी-2 कैटेगरी के ऐसे अभ्यर्थियों को सफल घोषित करने का आदेश दिया, जो सामान्य श्रेणी के अंतिम चयनित उम्मीदवार के बराबर अंक प्राप्त किया हो। देव कुमार ने इसको एकल पीठ में चुनौती दी। अदालत ने सरकार से संकल्प को सही माना और 25 जुलाई 2018 को संशोधित परिणाम जारी करने का आदेश दिया। इसके बाद 11 अगस्त 2018 को संशोधित परिणाम जारी किया, जिसमें 6103 अभ्यर्थी सफल हुए।

सरकार ने जारी किया दोबारा संकल्प

जनप्रतिनिधियों और अभ्यर्थियों के दबाव के बाद सरकार ने एक बार फिर से संशोधित परिणाम जारी करने का निर्णय लिया और 12 फरवरी 2018 को इसके लिए संकल्प जारी कर दिया। इसके बाद जेपीएससी ने प्रारंभिक परीक्षा का संशोधित परिणाम जारी किया, जिसमें 34634 अभ्यर्थी सफल हुए, जिन्हें मुख्य परीक्षा में शामिल किया गया। 28 फरवरी 2019 को छठी जेपीएससी की मुख्य परीक्षा हुई।

फिलहाल उत्तर पुस्तिका के मूल्यांकन का काम चल रहा है। इस बीच पंकज कुमार पांडेय ने सरकार के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। एकल पीठ ने सरकार के उस संकल्प को सही ठहराया, जिसके तहत न्यूनतम निर्धारित अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया गया था। इसके बाद अदालत ने पंकज कुमार पांडेय की याचिका को खारिज कर दिया।

खंडपीठ में दी आदेश को चुनौती

पंकज कुमार पांडेय ने एकल पीठ के आदेश और सरकार के संकल्प को खंडपीठ में चुनौती दी। अधिवक्ता शुभाशीष रसिक सोरेन ने अदालत को बताया कि एक बार विज्ञापन जारी होने के बाद उसकी शर्तों में बदलाव नहीं किया जा सकता है। नियमानुसार प्रारंभिक परीक्षा में पद के पंद्रह गुणा ही अभ्यर्थी सफल हो सकते हैैं, जैसा कि प्रथम परिणाम में हुआ था।

लेकिन इसके बाद सरकार के आदेश पर संशोधित परिणाम जारी किया गया, जो कि असंवैधानिक है। इसलिए एकल पीठ के आदेश और सरकार के संकल्प को निरस्त किया जाए। इस दौरान सरकार की ओर कहा गया था कि छात्र हितों को ध्यान में रखकर यह संकल्प जारी किया गया है, ताकि अधिक से अधिक अभ्यर्थियों को मौका मिल सके।


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