एक फरमान करोड़ों का नुकसान, शिक्षकों की परीक्षा दो केंद्रों पर करा करोड़ों डुबाए
ऐसा कोई तर्क गले से नहीं उतर रहा कि आखिर एक परीक्षा दो पाली में और दो अलग-अलग दिनों व जिलों में क्यों हों।
आशीष झा, रांची। धनबाद की आरती अपने पति के साथ परीक्षा देने शनिवार की देर शाम गुमला पहुंची। हाई स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति के लिए पहली पाली की परीक्षा का केंद्र गुमला में था। उनके जैसे लगभग दस हजार विद्यार्थी विभिन्न जिलों से गुमला पहुंचे थे। धनबाद से लगभग 300 किमी दूर इस केंद्र पर सुबह आठ बजे पहुंचने के लिए कोई सुविधा नहीं, सो अधिकांश विद्यार्थी एक दिन पहले ही परीक्षा देने पहुंच गए। वहां जमशेदपुर और दुमका प्रमंडल से भी छात्र पहुंचे थे।
महज सात-आठ होटलों वाले इस जिले में दस हजार विद्यार्थियों के लिए जगह का घोर अभाव था और यही कारण रहा कि लोग कहीं सड़क पर तो कहीं अस्पताल के दरवाजे पर पूरी रात गुजारने को मजबूर हुए। जिन्हें जगह मिली उन्हें एक कमरे का दो हजार रुपये तक देना पड़ा। आरती की मुसीबत यहीं खत्म नहीं हुई। दूसरी पाली की परीक्षा अब शनिवार को रांची में है। सो, एक बार फिर वही मशक्कत। दो-तीन हजार रुपये खर्च सो अलग।
डालटनगंज में शिक्षक नियुक्ति परीक्षा देने के बाद बाहर निकलते परीक्षार्थी ।
झारखंड कर्मचारी चयन आयोग इस वर्ष राज्य में हाई स्कूल शिक्षकों के लिए परीक्षा आयोजित करा रहा है। आयोग के एक बेतुके फरमान से करोड़ों रुपये यूं ही बर्बाद हो जाएंगे। ऐसा कोई तर्क गले से नहीं उतर रहा कि आखिर एक परीक्षा दो पाली में और दो अलग-अलग दिनों व जिलों में क्यों हों। आयोग लाख दलीलें दे, तंग तो आम और बेरोजगार इंसान हो रहा है, जिसके लिए सरकार तमाम मशक्कत कर रही है। बड़ा सवाल यह कि आयोग एक ओर ऑनलाइन परीक्षा भी आयोजित कर रहा है और दूसरी ओर यह परेशान करने वाली परीक्षा।
हाई स्कूल शिक्षक की परीक्षा के लिए इस वर्ष 1.8 लाख छात्रों ने फॉर्म भरे थे। इनमें से 90 फीसद उपस्थिति रही। इन विद्यार्थियों के लिए राज्य के 22 जिलों में परीक्षा केंद्रों की व्यवस्था थी और औसतन आठ से दस हजार परीक्षार्थी हर जिले में पहुंचे थे। समस्याएं सभी की एक जैसी और एक बार फिर सभी समस्या को झेलने के लिए तैयारियों में जुट गए हैं। खासकर महिला परीक्षार्थियों की समस्या अधिक हो रही है। झारखंड में किसी भी जिले की स्थिति ऐसी नहीं जहां महिलाओं को परीक्षा देने के लिए अकेले भेजा जा सके। और फिर इतनी बड़ी संख्या में छात्र जाएंगे तो कैसे? महिला परीक्षार्थियों के साथ तो कोई न कोई अभिभावक अवश्य जाते हैं।
गौर करने लायक बात है कि देश के साथ राज्य में भी परीक्षा लेने का तरीका बदल रहा है। अभी हाल में ही आयोग ने ही दारोगा बहाली के लिए ऑनलाइन परीक्षा आयोजित की थी। उस परीक्षा में कोई गड़बड़ी भी नहीं हुई। ऐसे में अगर परीक्षार्थियों के गृह जिले में ही परीक्षा केंद्र हों तो बड़े पैमाने पर पैसों और समय की बचत होगी। सरकार भी तमाम प्रयास कर रही है कि इस स्थिति में सुधार लाया जाए लेकिन अधिकारियों को कौन समझाए।
एक फर्जी संदेश ने दर्जनों परीक्षार्थियों को परेशान कर दिया। इन विद्यार्थियों को संदेश मिल गया कि उनका परीक्षा केंद्र रांची में है लेकिन वास्तविकता में उनका केंद्र बोकारो में था और यह जानकारी परीक्षा से कुछ वक्त पहले मिल पाई। ऐसे में अगर जिले में ही केंद्र होता तो लोग निश्चित तौर पर निर्धारित केंद्र तक देर-सबेर पहुंच जाते। जिले में सेंटर नहीं देने का एक बड़ा तर्क है परीक्षा के दौरान कदाचार रोकना। तो क्या, गृह जिलों में विद्यार्थियों को परीक्षा के दौरान कदाचार की छूट होती है? सरकार के पास ही इस सवाल का जवाब है। आखिर जिन परीक्षाओं का केंद्र गृह जिले में होता है उनकी गुणवत्ता कैसी होती है?
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