पत्रकारिता को दल नहीं, देश के पक्ष में होना चाहिए: आशुतोष राणा
आशुतोष राणा के मुताबिक, पत्रकारिता को दलों के पक्ष में नहीं, बल्कि देश के पक्ष में होना चाहिए।
जागरण संवाददाता, रांची। भारतीय सिनेमा में आशुतोष राणा किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। भारत की दूसरी भाषाओं में भी लगातार फिल्में कर रहे हैं। कई पुरस्कार उन्हें मिल चुके हैं। 1999 में उन्हें दुश्मन के लिए व 2000 में संघर्ष के लिए सर्वश्रेष्ठ खलनायक का फिल्मफेयर अवार्ड मिल चुका है। अपने लाजवाब अभिनय, दमदार आवाज और बेहतरीन संवाद अदायगी के कारण वे दूसरों से अलग दिखते हैं। पत्रकारिता के सवाल पर कहते हैं कि पत्रकारिता को किसी दल, पार्टी नहीं, देश के पक्ष में होना चाहिए।
क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी की तारीफ करते हुए कहते हैं कि उनके जैसा कोई नहीं है। उनके अनुसार रांची को मुंबई बनाया जाए, यहां काफी संभावनाएं हैं। आशुतोष दैनिक जागरण के फिल्म फेस्टिवल में रांची आए थे। सोमवार को वे दैनिक जागरण कार्यालय रांची आए और लोगों के सवालों पर खुलकर अपनी बातें रखीं।
अभिनय के क्षेत्र में आपने एक मुकाम हासिल किया है। ऐसी कोई इच्छा तो मन में होगी कि आप इस किरदार को करना चाहते हैं?
हां, ऐसी इच्छा तो है। चाणक्य की भूमिका करना चाहता हूं। कृष्ण, कर्ण, कंस, रावण और स्वामी विवेकानंद की भूमिका करना चाहता हूं। ये ऐसे लीजेंड हैं, जिनके चरित्र को निभाकर तृप्ति की प्राप्ति होगी। ये अलग-अलग हैं। इनका तुलनात्मक अध्ययन नहीं किया जा सकता।
ऐसी कोई और भूमिका जिसे आप करना चाहते थे।
शोले के गब्बर सिंह का पात्र निभाना चाहता था।
अभिनय के साथ-साथ आप कविता भी लिखते हैं?
हां, लेखन मेरा पैशन है। कविता ही नहीं, गद्य भी लिखता हूं। बुंदेलखंड में एक कहावत है, खेती, पाती, विनती और खुजाना..ये चारों काम खुद करना चाहिए। यानी खेती खुद करनी चाहिए। पत्र भी खुद लिखना चाहिए। और, खुजाना भी।
हाथ की लकीर पर भरोसा करते हैं कि हाथ की ताकत पर?
प्रारब्ध पर भी विश्वास करता हूं और हाथ की शक्ति पर भी पूरा विश्वास है। हमारा काम है कर्म करना। बाकी ऊपर वाले पर छोड़ देना चाहिए। हमें कर्म के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
अक्सर दद्दा जी चर्चा करते हैं? ये कौन हैं?
ये मेरे गुरु हैं। पं. देव प्रभाकर शास्त्री। हम सब इन्हें दद्दा जी कहते हैं। 16 साल की उम्र से इनका सान्निध्य प्राप्त हो गया। अब तक पांच अरब शिवलिंग का निर्माण करा चुके हैं। दद्दा की कृपा हमेशा रही। उन्होंने ही कहा, तुम दिल्ली चले जाओ, एनएसडी ज्वाइन करो, तो दिल्ली चला आया। फिर आदेश आया, मुंबई चले जाओ, तो मुंबई आ गया। उन्होंने कहा, महेश भट्ट से मिलो, तो उनसे मिला और इस तरह करियर आगे बढ़ा। इसके बाद उन्होंने कहा, रेणुकाजी से शादी कर लो, तो यह भी लिया। इसके बाद उन्होंने कहा, आठ महीने तक वंश वृद्धि न हो। आठ महीने बाद उनका आदेश आया, अब वंशवृद्धि कर सकते हो। सिद्धि विनायक मंदिर जाओ, उन्हें प्रणाम करो। उनकी आज्ञा मेरे लिए सर्वोपरि है। यदि वे आज कह दें कि मुंबई छोड़ गांव चले आओ तो यहां आने में एक क्षण भी नहीं लगेगा न ट्रैक्टर की स्टेय¨रग पकड़ने में। तो, शुभत्व उनके आदेश में है।
अभिनय के लिए मुंबई मुफीद जगह है, लेकिन सभी वहां नहीं पहुंच पाते? छोटे शहर के कलाकार क्या करें?
जो लोग मुंबई नहीं पहुंच सकते, अपने गृह नगर को ही मुंबई बना ले। मुंबई और रांची में कोई अंतर नहीं है। मुंबई को प्लेटफार्म न मानें। रांची में फिल्म फेस्टिवल हो रहा है। यह छोटा शहर है। यहां भी आपको अवसर मिल रहा है। यहां की सरकार ने फिल्म नीति बनाई है। अनुपम खेर इसके संरक्षक हैं। तो, अब रांची में भी काफी संभावनाएं हैं। इसे ही मुंबई बनाएं।
अमिताभ बच्चन आपके प्रिय कलाकार हैं। उनके साथ अभिनय भी किया। कैसा रहा?
आदर्शो से तुलना नहीं की जा सकती है। वे आदर्श हैं। पहाड़-पक्षी के बीच तुलना कैसी? वे एक सिद्ध कलाकार हैं। सिद्ध कलाकार का रिफ्लेक्शन तो सामने वाले पर भी पड़ता ही है। उनकी सिद्धि का प्रसाद हमें भी मिल जाता है, जिसके कारण हम भी प्रसिद्ध हो जाते हैं।
एक बात आपके बारे में कही जाती है, जब पैसे की जरूरत होती है, तभी अभिनय करते हैं?
हां, जब पैसे की जरूरत होती है, तभी काम करता हूं। धन मेरे लिए उतना ही चाहिए, जिससे हमारा मन खराब न हो। हमें दस रोटी की जरूरत है तो उतना ही काम करूंगा। पचास रोटी एकत्रित नहीं करूंगा। एक बार मेरे गुरु जी मुंबई आए। तब मैं लगातार चार शिफ्ट में काम कर रहा था। तब मेरे गुरुजी ने कहा कि जैसे बासा अन्न खाने से तन खराब हो जाता है, वैसे ही बासा धन मन को खराब कर देता है। इसलिए बस जब जरूरत होती है फिल्में करता हूं। बाकी का समय यायावरी और पठन-पाठन में व्यतीत होता है।
आपके हिसाब से सफलता क्या है?
हमें किसी और के जैसा नहीं, बल्कि स्वयं के जैसा बनना चाहिए। जब स्वयं को गंभीरता से नहीं लेते हैं, तो दुनिया कैसे गंभीरता से लेगी। सफलता के लिए एक सूत्र है खुद के जैसा बनना है। सफलता अंदर की यात्रा है। उदाहरण के लिए महेंद्र सिंह धौनी जैसा कोई नहीं है। उनके हेलीकॉप्टर शॉट की कोई सानी नहीं है।
आप अक्सर नकारात्मक किरदार निभाते हैं?
हम नकारात्मक किरदारों को सकारात्मक अंदाज में प्रस्तुत करते हैं। एक अभिनेता की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने किरदार को सकारात्मक अंदाज में प्रस्तुत करे।
काफी हद तक आप मोटिवेटर की भूमिका में रहते हैं?
हां, यह मेरी मूल प्रवृत्ति है। इसलिए मैं किरदारों को प्रेरित करता हूं। मैं इस पर एक पुस्तक भी लिख रहा हूं। जिसमें एक काल्पनिक चरित्र से मैं ही सवाल-जवाब करता हूं।
पत्रकारिता से आपकी क्या अपेक्षा है?
लोग कहते हैं कि पत्रकारों को निष्पक्ष होना चाहिए। पत्रकारिता को दलों के पक्ष में नहीं, बल्कि देश के पक्ष में होना चाहिए। देश के पक्ष में रहने पर हम पक्षपाती होने पर भी निष्पक्ष कहलाएंगे। तभी तीनों और स्तंभ भी बच सकते हैं।
देखें तस्वीरें, आशुतोष राणा दैनिक जागरण के रांची कार्यालय पहुंचे
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