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कभी भी धंस सकती है हिमालय से भी पुरानी यह पहाड़ी

मुख्य मंदिर में दरारें, धंस रहीं सीढि़यां निर्माण से ऊपर मुख्य मंदिर की दीवारों में दरारें पड़ गई हैं। ये कभी भी गिर सकती हैं।

By Sachin MishraEdited By: Published: Thu, 21 Dec 2017 02:12 PM (IST)Updated: Thu, 21 Dec 2017 02:12 PM (IST)
कभी भी धंस सकती है हिमालय से भी पुरानी यह पहाड़ी
कभी भी धंस सकती है हिमालय से भी पुरानी यह पहाड़ी

रांची, संजय कृष्ण। हिमालय से भी करोड़ों साल पुरानी रांची पहाड़ी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। रांची पहाड़ी मंदिर समिति की ओर से जबरन भव्य निर्माण के कारण पहाड़ी जर्जर हो गई है। कब ढह जाए, कहा नहीं जा सकता है। पहाड़ी की जर्जर स्थिति को देखते हुए मंदिर जीर्णोद्धार का काम एक महीने से बंद कर दिया गया है। पहाड़ी मंदिर पर निर्माण एक बड़ी दुर्घटना को दावत दे रहा है। मंदिर समिति के कोषाध्यक्ष हरि जालान बताते हैं कि यहां 20 करोड़ की लागत से मंदिर निर्माण हो रहा है।

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समिति पहाड़ की जर्जरावस्था को दरकिनार कर मंदिर निर्माण पर तुली हुई है, जबकि कई भूगर्भवेत्ताओं ने निर्माण को खतरनाक बताया है। यही नहीं, निर्माण कर रही कंपनी उर्मिला आरसीपी प्रोजेक्टस प्रा.लि ने एक मार्च 2016 को ही मंदिर समिति को 13 बिंदुओं की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए एक लंबा पत्र लिखा था, लेकिन मंदिर समिति को कोई असर नहीं हुआ।

मुख्य मंदिर में दरारें, धंस रहीं सीढि़यां निर्माण से ऊपर मुख्य मंदिर की दीवारों में दरारें पड़ गई हैं। ये कभी भी गिर सकती हैं। सीढि़या धंस रही हैं। जहां-जहां धंसी, वहां ईटें डालकर समतल कर दिया गया है, जबकि सीढि़यों के अंदर अब पत्थर भी नहीं बचे हैं। मिट्टी भी मृत है। यदि सीढि़यां कभी धंस जाएं, तो आश्चर्य नहीं।

अब दिखावे का रह गया दो करोड़ का स्तंभपहले तो यहां देश का सबसे विशाल तिरंगा के लिए सैकड़ों पेड़ काट दिए गए है। इसके निर्माण से पहाड़ी अंदर-अंदर टूटने लगी। फिर भी दो करोड़ की लागत से आखिरकार झंडा लगाने के लिए 81 मीटर की ऊंचाई वाला 30 टन वजनी स्तंभ बना दिया गया। इसके निर्माण की सलाह मेकॉन लि ने दी थी।

इसके वास्तुकार थे कन्फ्लुएंस कंसल्टेंसी सर्विसेज। निर्माणकर्ता-उर्मिला आरसीपी प्रोजेक्टस प्रा लि थी। दो नवंबर 15 से निर्माण शुरू हुआ और 22. जनवरी 2016 काम पूरा हो गया। 23 जनवरी, 2016 को तत्कालीन रक्षामंत्री ने यहां झंडा फहरा दिया। पहले दावा किया गया था कि झंडा फटेगा नहीं। आंधी में भी सुरक्षित रहेगा, लेकिन हर महीने झंडा फटने लगा और आज केवल स्तंभ भर रह गया है। यानी दो करोड़ रुपये पानी में चले गए।

निर्माण कंपनी ने समिति को किया आगाह :

उर्मिला आरसीपी प्रोजेक्टस प्रा.लि ने ही झंडे के स्तंभ का निर्माण किया था और यही मंदिर का निर्माण भी कर रही है, लेकिन उसने एक मार्च 2016 को पत्र लिखकर मंदिर समिति को आगाह कर दिया था कि यदि कोई हादसा, अनहोनी होती है कि इसकी जिम्मेदारी कंपनी की नहीं होगी। कंपनी ने 14 बिंदुओं की ओर ध्यान दिलाया। कंपनी ने कहा कि पहाड़ी कमजोर है। बार-बार यहां भूस्खलन होता है।

इसकी अनदेखी की जा रही है। जमीन ठीक नहीं है। सावन में भी लाखों श्रद्धालु यहां जल चढ़ाने आते हैं। तब भी भूस्खलन होता है, मंदिर समिति इस पर ध्यान नहीं देती है। पहाड़ी के पिछले इलाके की स्थिति और खराब है। मंदिर समिति आखिर, बार-बार लोगों के चेताने के बाद भी इतना बड़ा जोखिम क्यों लेना चाहती है, जब कि चारों तरफ आबादी है।

कोषाध्यक्ष ने दिया इस्तीफा :

कोषाध्यक्ष हरि जालान ने बताया कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने के कारण ऐसा कदम उठाया है। 31 दिसंबर के बाद नए कोषाध्यक्ष काम देखेंगे। इस बीच, उनका चयन हो जाएगा।

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पैसे के कारण काम रुका है। एजेंसी को पेमेंट नहीं हुआ है। इसलिए यहां काम बंद है। काम शीघ्र शुरू होगा।

-मुकेश अग्रवाल, प्रवक्ता, मंदिर जीर्णोद्धार समिति।

आठ-नौ साल पहले आगाह किया था कि यहां कोई बड़ा निर्माण नहीं कराना चाहिए। वह पहाड़ी को तबाह कर देगा। रांची पहाड़ी हिमालय से भी करोड़ों साल पुरानी है। इसके पत्थर भी अब मिट्टी बन चुके हैं। उनमें कोई जान नहीं बची है। इससे छेड़खानी का मतलब आपदा को बुलाना है।

-डॉ.नितिश प्रियदर्शी, भूगर्भशास्त्री।

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